अकबर बीरबल की २१ सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ | 21 Best Akbar Birbal Stories In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम २१ सर्वश्रेष्ठ अकबर बीरबल की कहानियाँ (21 Best Akbar Birbal Kahani) शेयर कर रहे हैं. मुग़ल शासक जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर और उनके मुख्य सलाहकार बीरबल (महेश दास) को कौन नहीं जानता? मोहम्मद अकबर हिंदुस्तान के शहंशाह थे, जो सन १५४२ से १६०६ तक हिंदुस्तान के तख़्त पर  विराजमान थे. बीरबल उनके नवरत्नों में से एक थे. वे बादशाह अकबर के मुख्य सलाहकार होने के साथ ही उनके परम मित्र भी थे.

अकबर बीरबल (Akbar Birbal) के जीवन में हुई घटनायें, उनके मज़ेदार वार्तालाप और उनके मध्य हुई खट्टी-मीठी नोंक-झोंक को किस्सों-कहानियों के रूप में पिरोकर सालों-साल से सुनाया जाता रहा है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये कहानियाँ विकसित होती गई है. इन किस्से-कहानियों पर कई किताबें लिखी गई है, जो हर उम्र के लोगों में प्रचलित है. इन कहानियों की खास बात यह है कि ये हमारा मनोरंजन करने के साथ ज्ञान की बातें भी सिखा जाती हैं. शायद यही कारण है कि इतने वर्ष हो जाने के बाद भी इन कहानियों का अस्तित्व बरक़रार है.

इन पोस्ट में हम आपके लिए अकबर बीरबल की २१ सर्वश्रेष्ठ कहानियों (21 Best Akbar Birbal Stories In Hindi) का संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आपका मनोरंजन करेंगी, आपको गुदगुदा जायेंगी और साथ ही साथ कुछ न कुछ सिखा भी जायेंगी. तो अवश्य पढ़िये  :

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21 Best Akbar Birbal Stories In Hindi 

Table of Contents

21 Best Akbar Birbal Kahani
21 Best Akbar Birbal Kahani | Source : Akbar Birbal PNG

 Akbar Birbal Kahani # 1 : अकबर बीरबल से कैसे मिले?

Akbar Birbal Kahani : एक बार बादशाह अकबर (Akbar) अपने कुछ सिपाहियों को लेकर शिकार पर निकले. शिकार करते-करते वे सभी वन में बहुत आगे निकल आये और रास्ता भटक गए. अत्यधिक प्रयासों के बाद भी उन्हें आगरा (Agra) राजमहल जाने का रास्ता नहीं मिल सका.

धीरे-धीरे शाम घिरने लगी. सबका भूख-प्यास से बुरा हाल हो गया. लेकिन वे रुके नहीं और अनुमान के आधार पर आगे बढ़ते रहे. कुछ देर में वे सब एक तिराहे पर पहुँचे. उन्हें उम्मीद थी कि वहाँ से एक रास्ता अवश्य महल को जायेगा, लेकिन कौन सा? ये पता करना आवश्यक था.

आस-पास कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ रहा था, जिससे रास्ता पूछा जा सके. सब चिंतित होकर इधर-उधर देख रहे थे. तभी बादशाह की दृष्टि एक बालक पर पड़ी, जो उनकी ओर ही आ रहा था.

पास आने पर बादशाह अकबर ने बालक से पूछा, “बालक! ज़रा बताओ तो, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है?”

बादशाह का प्रश्न सुनकर बालक हँस पड़ा और बोला, “महाशय! सड़क कहीं नहीं जाती. जाना तो आपको ही पड़ेगा.” उसकी इस निर्भीकता और वाकपटुता से बादशाह अकबर बड़े प्रभावित हुए और प्रसन्नचित होकर उससे बोले, “बहुत वाकपटु जान पड़ते हो बालक. नाम क्या है तुम्हारा?”

“मेरा नाम महेश दास महाशय और आपका नाम?” बालक ने तपाक से उत्तर देते हुए प्रश्न भी कर दिया.

मुस्कुराते हुए अकबर ने उत्तर दिया, “तुम हिंदुस्तान के बादशाह अकबर से बात कर रहे हो.”

यह जानकर बालक ने सिर झुकाकर बादशाह अकबर का अभिवादन किया. अकबर ने अपनी उंगली से हीरे की अंगूठी निकाल कर बालक को दी और बोले, “बालक हम तुम्हारी वाकपटुता और निडरता देखकर बहुत खुश हैं. हमारे राजमहल आना और ये अंगूठी हमें दिखाना. हम तुम्हें तुरंत पहचान जायेंगे और ईनाम देंगे. चलो, अब बता दो कि आगरा जाने का रास्ता किस ओर है?”

बालक ने अंगूठी ले ली और आगरा जाने का रास्ता उन्हें बता दिया. समय व्यतीत हुआ और महेश दास युवा हो गया. एक दिन उसने बादशाह से मिलने उनके राजमहल जाने का विचार किया और उनकी दी हुई अंगूठी लेकर अपने घर से निकल पड़ा.

राजमहल पहुँचकर वह हैरान रह गया. कीमती पत्थरों से निर्मित और बेहतरीन नक्काशी से सज्जित आलीशान राजमहल देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई. कुछ देर राजमहल को निहारने के बाद जब वह अंदर जाने को हुआ, तो द्वार पर खड़े दरबान ने उसे रोक दिया, “रुको! ऐसे कैसे अंदर चले जा रहे हो?”  
 
बादशाह अकबर के द्वारा दी हुई अंगूठी दिखाते हुए महेश दास दरबान से बोला, “महाशय! मुझे जहाँपनाह से मिलना है.”
 
दरबान उसे राजमहल में प्रवेश देने के लिए राज़ी हो गया, किंतु इस शर्त पर कि बादशाह उसे जो भी ईनाम देंगे, उसका आधा हिस्सा वो उसे देगा. बीरबल ने शर्त मान ली. राजमहल में प्रवेश कर वह बादशाह अकबर के दरबार पहुँचा. बादशाह सलामत को सलाम करने के बाद उसने उन्हें अंगूठी दिखाई, जिसे पहचान कर बादशाह बोले, “अरे! तुम तो वही बालक हो, जिसने हमें रास्ता बताया था.”

“जी हुज़ूर”
 
“बोलो, ईनाम में क्या चाहते हो?”
 
“जहाँपनाह मैं चाहता हूँ कि आप मुझे ईनाम में १०० कोड़े लगवायें.” महेश दास ने नम्रतापूर्वक निवेदन किया.
 
यह निवेदन सुनकर बादशाह अकबर हक्के-बक्के रह गए, “ये तुम क्या कह रहे हो? बिना अपराध के हम तुम्हें कैसे कोड़े लगवा सकते हैं.”
 
“हुज़ूर, मुझे ईनाम में १०० कोड़े ही चाहिए.”
 
महेश दास की ज़िद के आगे अकबर को झुकना पड़ा और उन्होंने ज़ल्लाद को आदेश दिया, “महेश दास को १०० कोड़े लगायें जाये.”

ज़ल्लाद ने महेश दास को कोड़े लगा शुरू किया. जैसे ही उसने ५० कोड़े पूरे किये, महेश दास बोला, “बस हुज़ूर! ये मेरे हिस्से का ईनाम था. ईनाम का आधा हिस्सा मुझे अपने वचन अनुसार आपके दरबान को देना है. इसलिए ५० कोड़े उसे लगाये जायें.”

यह कहकर बीरबल ने राजमहल में प्रवेश के लिए दरबान से हुई बातचीत का पूरा विवरण बादशाह अकबर को दे दिया. यह बात सुननी थी कि दरबार में ठहाके लगने लगे. बादशाह अकबर ने दरबान को ५० की जगह १०० कोड़े लगवाए.

महेश दास की बुद्धिमानी को देखते हुए उन्होंने कहा, “महेश! अपनी बुद्धिमानी के कारण आज से तुम ‘बीरबल’ कहलाओगे.”  और अपने नवरत्नों में सम्मिलित करते हुए उसे अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर लिया.

इस तरह बीरबल अकबर (Akbar Birbal) के ख़ासम-ख़ास बन गए.


Akbar Birbal Kahani #2 : सड़क पर कितने मोड़

Akbar Birbal Kahani : फ़ारस के शहंशाह और बादशाह अकबर गहरे मित्र थे. अक्सर पत्र लिखकर वे एक-दूसरे का हाल-चाल पूछते रहते थे. पत्र में वे आमोद-प्रमोद की बातें, लतीफ़े और पहेलियाँ भी लिखते थे. पहेलियों का उत्तर सही मिलने पर वे एक-दूसरे को उपहार भी भेजा करते थे.

एक बार फ़ारस के शहंशाह का पत्र अकबर (Akbar) को प्राप्त हुआ, जिसमें उन्होंने एक प्रश्न लिखकर प्रेषित किया था. प्रश्न कुछ ऐसा था – “आपके राज्य की सड़कों पर कितने मोड़ हैं?”
 
प्रश्न पढ़कर अकबर (Akbar) सोच में पड़ गए. उनका सम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था. इतने विस्तृत साम्राज्य में सड़कों की संख्या भी अत्यधिक थी. ऐसे में सभी सड़कों के मोड़ों की गणना कर पाना एक नामुमकिन कार्य था.
 
लेकिन अकबर फ़ारस के शहंशाह के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहते थे. उन्हें किसी भी सूरत में इस प्रश्न का उत्तर देना ही था. उन्होंने टोडरमल को बुलवाया और कहा, “टोडरमल! तुम अभी तुरंत कुछ सैनिकों को लेकर निकल जाओ. तुम्हें हमारे पूरे साम्राज्य की सड़कों के मोड़ों की गणना करनी है. किसी भी सूरत में हमें ये काम पूरा करके दो.” टोडरमल कुछ सैनिकों को लेकर तुरंत निकल गया. लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी नहीं लौटा. इधर अकबर को चिंता सताने लगी कि ये कार्य टोडरमल कर पायेगा भी या नहीं?

एक दिन बीरबल ने अकबर को चिंतित देखा, तो पूछ बैठा, “जहाँपनाह! क्या बात है? आप बड़े चिंतित लग रहे हैं?
 
अकबर ने फ़ारस के शहंशाह के पत्र और उसमें पूछे गए प्रश्न के बारे में बीरबल को बताते हुए कहा, “बीरबल! हमने टोडरमल को राज्य की सभी सड़कों के मोड़ों की संख्या की गणना के लिए भेजा है. हमें उसकी ही प्रतीक्षा है. साथ ही ये चिंता भी कि वो ये काम पूरा करके लौटेंगा या नहीं.”
 
फ़ारस के शहंशाह के पूछे गए प्रश्न को जानकर बीरबल मुस्कुरा उठा और बोला, “जहाँपनाह! इस आसान से प्रश्न के लिए आपको टोडरमल को कहीं भी भेजने की आवश्यकता नहीं थी. मैं तो यही खड़े-खड़े ये बता सकता हूँ कि आपके राज्य की सड़कों पर कितने मोड़ हैं. यहाँ तक कि मैं तो ये भी बता सकता हूँ कि पूरी दुनिया की सड़कों में कितने मोड़ हैं.” “बीरबल! तुम बिना गणना किये हमारे राज्य और दुनिया की सड़कों के मोड़ों की संख्या बता सकते हो. कैसे?” अकबर हैरत में पड़ गए.

“जहाँपनाह! क्योंकि इसमें गणना की आवश्यकता ही नहीं है. दुनिया की सारी सड़कों के बस दो ही तो मोड़ होते हैं. एक दांया और दूसरा बांया.” बीरबल (birbal) ने शांतभाव से उत्तर दिया.
 
ये उत्तर सुनकर अकबर हँस पड़े, “अरे, हमने तो ये सोचा ही नहीं और टोडरमल को सड़कों के मोड़ों की गणना के लिए भेज दिया. बीरबल तुम वाकई अक्लमंद हो.”
 

अकबर ने बीरबल को इनाम में सोने का हार दिया और फ़ारस के शहंशाह के प्रश्न का उत्तर उन्हें भिजवा दिया.


Akbar Birbal Story In Hindi #3 : बहुभाषी 

Akbar Birbal Kahani
Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Story In Hindi
Akbar Birbal Kahani : बादशाह अकबर अपने विभिन्न प्रांतों में भाषाई विविधता को देखते हुए अपने दरबार में एक बहुभाषिक की आवश्यकता महसूस किया करते थे. वे चाहते थे कि उनके दरबार में एक बहुभाषिक हो, जिसकी मदद से वे अपनी प्रजा से वार्तालाप कर सकें. 
 
उन्होंने अपने मंत्रियों को ऐसा बहुभाषिक ढूंढने का आदेश दिया, जिसकी विभिन्न भाषाओं पर अच्छी पकड़ हो. मंत्रियों ने सैनिकों की मदद से अकबर का आदेश राज्य के हर कोने में प्रसारित करवाया.
 
कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति अकबर के दरबार में उपस्थित हुआ. अकबर को सलाम कर वह बोला, “जहाँपनाह! मैं कई भाषाओँ का अच्छा जानकार हूँ. आप मुझे बहुभाषिक के पद पर नियुक्त कर लीजिये.”
 
अकबर (Akbar) ने उसकी परीक्षा लेने के लिए अपने दरबारियों को उससे अपनी-अपनी भाषाओं में बात करने के लिए कहा. एक-एक कर दरबारी अपनी भाषा में उस बहुभाषी से प्रश्न करने लगे. बहुभाषी ने सभी को उनकी ही भाषा में उत्तर दे दिया. भाषा पर उसकी पकड़ देखकर अकबर बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उसे अपने दरबार में बहुभाषी नियुक्त करने का निर्णय कर लिया और उससे बोले, “तुम्हारे भाषा ज्ञान से हम बहुत प्रभावित है. हर भाषा में तुम इतने धाराप्रवाह हो कि लगता है, अपनी ही भाषा बोल रहे हो. हम तुम्हें अपने दरबार का बहुभाषी नियुक्त करते हैं. लेकिन हम ये भी जानने को उत्सुक हैं कि तुम्हारी मातृभाषा क्या है?”
 
 
इस पर बहुभाषी बोला, “जहाँपनाह! मैंने सुना है कि आपके दरबार में बहुत बुद्धिमान मंत्रिगण हैं. क्या उनमें से कोई बता सकता है कि मेरी मातृभाषा क्या है?”
 
दरबारियों ने अपने अनुमान के आधार पर बहुभाषी की भाषा बताने का प्रयास किया, लेकिन किसी का भी अनुमान सही नहीं निकला.
 
यह देख बहुभाषी हँस पड़ा और बोला, “जहाँपनाह! लगता है मैंने गलत सुना है. यहाँ तो कोई भी बुद्धिमान दिखाई नहीं पड़ता.”
 
इस बात पर अकबर को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई. उन्होंने बीरबल की ओर देखा, जिसने अब तक बहुभाषी की भाषा बताने का प्रयास नहीं किया था.
 
अकबर को अपनी ओर देखता पाकर बीरबल अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और बोला, “जहाँपनाह! मैं कल बता दूंगा कि इस बहुभाषी की भाषा क्या है.” उस रात बहुभाषी को शाही अतिथिगृह में ठहराया गया. अगले दिन वह अकबर के दरबार में फिर से उपस्थित हुआ.

अकबर से बीरबल से पूछा, “हाँ बताओ बीरबल! क्या है इनकी मातृभाषा?”

इस पर बीरबल (Birbal) बोला, “हुजूर, इनकी मातृभाषा बांग्ला है. आप इनसे पूछ लीजिये.”
 
अकबर ने बहुभाषी से पूछा, तो उसके हामी भर दी. अकबर हैरान थे कि बीरबल ने उसकी मातृभाषा को कैसे पहचान लिया.
 
पूछे जाने पर बीरबल ने बताया, “महाराज! कल रात मैंने शाही अतिथि गृह के बाहर अपना एक सेवक भेजा. वह सेवक वहाँ जोर-जोर से चिल्लाने लगा. उस समय ये महाशय सो रहे थे. चीखने की आवाज़ सुनकर इनकी नींद खुल गई और बाहर आकर ये गुस्से में चिल्लाने लगा. उस समय ये जो भाषा बोल रहा था, वह बांग्ला थी. मैं पास ही के कक्ष में छुपकर सब सुन रहा था. मैं समझ गया कि इनकी भाषा बांग्ला है क्योंकि व्यक्ति कितनी ही भाषों का ज्ञाता क्यों ना हो. जब गुस्से में होता है या मुसीबत में पड़ जाता है, तो अपनी ही भाषा में चिल्लाता है.”
 

बहुभाषिये ने बीरबल की बुद्धिमत्ता का लोहा मान लिया. अकबर शर्मिंदगी से बच गए.


Akbar Birbal Hindi Story #4 : स्वर्ग की यात्रा 

Akbar Birbal Kahani : बादशाह अकबर के दरबार के अधिकांश मंत्री बीरबल से जलते थे. उन्हें बीरबल की अकबर (Akbar) से निकटता फूंटी आँख नहीं सुहाती थी. अकबर का बीरबल पर अति-विश्वास तथा हर बात पर बीरबल की राय को सर्वोपरि रखना भी वे कारण थे, जिसके कारण बीरबल दरबारियों की ईर्ष्या का पात्र था. दरबारी जानते थे कि बीरबल (Birbal) के रहते वे कभी बादशाह अकबर के प्रिय नहीं बन सकते. एक बार उन्होंने बीरबल को अपने रास्ते से हटाने की साज़िश की. इस साज़िश में उनका सहायक बना बादशाह अकबर का नाई.

नाई को बादशाह अकबर के बाल काटते समय उनसे वार्तालाप करने का अवसर मिल जाता है. एक दिन बाल काटते हुए वह अकबर से बोला, “बादशाह सलामत! कल रात मैंने एक सपना देखा, जिसमें आपके अब्बा हुज़ूर मुझे दिखाई दिए.”

अपने पिता की बात सुनकर अकबर भावुक हो गए. वे बहुत छोटे थे, जब उनके पिता की मृत्यु हुई थी. भावुक होकर उन्होंने नाई से पूछा, “अच्छा! कैसे लग रहे थे अब्बा हुज़ूर?” 

अपनी बात में अकबर को रूचि लेते देख नाई ने अपनी चाल चल दी, “वो ठीक लग रहे थे हुज़ूर. उन्होंने मुझसे कहा कि वे स्वर्ग में हैं और बहुत आराम से हैं. बस एक चीज़ की कमी उन्हें खलती है.”
“वह क्या?” अकबर की उत्सुकता बढ़ने लगी.

“हुज़ूर! वहाँ उनका मनोरंजन करने वाला कोई नहीं है. इसलिए वे ख़ुश नहीं रहते. स्वर्ग से जब भी वे बीरबल को आपको लतीफ़े सुनाते हुए देखते हैं, तो सोचते हैं कि काश बीरबल उनके पास होता. उन्होंने आपके लिए पैगाम भिजवाया है कि बीरबल को उनके पास स्वर्ग भिजवा दिया जाये.”

बीरबल अकबर को अतिप्रिय थे. लेकिन अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने निर्णय लिया कि वे बीरबल को अपने पिता के पास स्वर्ग भेज देगें.अगले दिन उन्होंने बीरबल को अपना फ़रमान सुना दिया. बीरबल अकबर का फ़रमान सुनकर हैरान रह गया. 

पूछने पर अकबर ने नाई के स्वप्न की बात बीरबल को बता दी. बीरबल को समझते तनिक भी देर न लगी कि ये दरबारियों की उसके खिलाफ़ साज़िश है और इस साज़िश में नाई भी उनके साथ है.लेकिन अकबर के आदेश की अवहेलना करने का साहस उसमें नहीं था.

वह स्वर्ग जाने को तैयार हो गया. लेकिन उसके पहले अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने के लिए उसने कुछ दिन का समय मांग लिया.घर पहुँचकर उसने सारी बात अपनी पत्नि को बताई. जिसे सुनकर वह चिंतित हो गई. लेकिन बीरबल इस विपत्ति से निकलने की एक योजना बना चुका था. योजनानुसार अपनी पत्नि के साथ मिलकर उसने अपने घर के आँगन में एक कब्र खोद ली. साथ ही उस कब्र के भीतर से अपने शयन कक्ष को जाती एक सुरंग भी निकाल ली. कुछ दिनों तक घर पर रहने के बाद बीरबल अकबर से मिला और बोला, “जहाँपनाह! अब मैं आपके पिता के पास स्वर्ग जाने को तैयार हूँ. किंतु आपसे मेरा निवेदन है कि मेरे परिवार की परंपरा अनुसार मुझे मेरे घर के आँगन में ही जिंदा दफना दिया जाए.” अकबर बीरबल (akbar birbal) की बात मान गए और उसे उसके घर के आंगन में बनी कब्र में जिंदा दफ्न करवा दिया. योजनानुसार बीरबल कब्र से लगी सुरंग से होते हुए अपने घर आ गया. उसके बाद दो महीने तक वह घर पर ही छुपकर रहा.

दो महीने बाद वो अकबर के दरबार में पहुँचा. सारे दरबारी उसे देखकर हैरान थे. बीरबल के बाल और दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वह बड़ा ही विचित्र नज़र आ रहा था.

उसे इस अवस्था में अपने सामने देख अकबर ने पूछा, “बीरबल! तुम वापस आ गए. हमें बताओ, हमारे अब्बा हुज़ूर कैसे हैं? और तुमने अपनी ये कैसी हालत बना ली है? सब ठीक तो है?”

“जी जहाँपनाह, स्वर्ग में सब ठीक है. मैं आपके पिताजी से मिला और उन्हें ख़ूब सारे लतीफ़े सुनाकर उनका मनोरंजन भी किया. आपके पिता खुश भी बहुत हुए. लेकिन…” बीरबल के कहना जारी रखा, “……स्वर्ग में नाई का ना होना एक बड़ी समस्या है. इसलिए तो मेरे बाल बढ़ गए हैं और दाढ़ी भी. आपके पिताजी के बालों और दाढ़ी की हालत तो मुझसे भी बुरी है. इसलिए उन्होंने स्वर्ग में आपके नाई को भिजवा देने का पैगाम भेजा है.” 

इत्तेफ़ाक से नाई भी उस दिन वहीं था. बीरबल की बात सुनकर उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. इधर अपने अब्बा हुज़ूर की ये इच्छा भी पूरी करने ले लिए अकबर ने नाई को जिंदा दफ़नाने का आदेश दे दिया.ये आदेश सुनकर डर के मारे नाई अकबर के पैरों पर गिर पड़ा और बीरबल को फंसाने की योजना और उसमें शामिल मंत्रियों के बारे में अकबर को सब कुछ बता दिया.

फिर क्या? साज़िशकर्ताओं को उनकी साज़िश की सजा मिलनी ही थी. अकबर ने सबको ५०-५० कोड़े लगवाये.

Akbar Birbal Ka Kissa #5 : दूज का चाँद

Akbar Birbal Kahani : एक बार बीरबल काबुल की यात्रा पर गया. वहाँ की संस्कृति को जानने की उत्सुकता में वह बातों-बातों में वहाँ के बारे में लोगों से सवाल करने लगा.

कुछ लोगों को बीरबल (Birbal) की बातें सुनकर ये शक़ हो गया कि वो किसी राज्य का भेदिया है. उन्होंने ये बात काबुल के शहंशाह के कानों तक पहुँचा दी. काबुल के शहंशाह ने बिना देर किये बीरबल को गिरफ्तार करने सैनिकों की टुकड़ी भेज दी.

बीरबल को गिरफ्तार काबुल के शहंशाह के सामने पेश किया गया. काबुल के शहंशाह ने बीरबल से पूछा, “कौन हो तुम? हमारे राज्य में क्या कर रहे हो?”

बीरबल ने उत्तर दिया, “हुज़ूर! मैं एक यात्री हूँ. भिन्न-भिन्न देशों का भ्रमण करना और वहाँ की संस्कृति के बारे में जानने का मुझे शौक है.”

“किस देश के निवासी हो तुम और कौन है तुम्हारा राजा?” काबुल के शहंशाह ने पुनः प्रश्न किया.

“हुज़ूर! मैं हिंदुस्तान का निवासी हूँ और वहाँ के शहंशाह जिलालुद्दीन अकबर हैं.” बीरबल ने शालीनता से उत्तर दिया.

“ओह! बादशाह अकबर और हमारे बारे में यदि एक शब्द में कुछ कहना पड़े, तो क्या कहोगे?”

“हुज़ूर! आप पूर्णिमा के चाँद हैं और वो दूज़ के.” बीरबल का ये त्वरित उत्तर सुनकर काबुल का शहंशाह बहुत ख़ुश हुआ. उसने बीरबल को छोड़ दिया और कई हीरे-जवाहरात के साथ विदा किया.

जब बीरबल वापस लौटकर अपने घर आया, तो काबुल का हाल घरवालों को बताया. उसने काबुल के शहंशाह से हुई बात-चीत के बारे में भी घरवालों को बताया. एक मुँह से दो मुँह और इस तरह बात फैलते-फैलते अकबर के दरबारियों के कानों में पहुँची और ईर्ष्या करने वाले कुछ दरबारियों ने अकबर के कान भर दिए.

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जब अकबर (Akbar) को मालूम पड़ा कि बीरबल ने काबुल जाकर उन्हें काबुल के शहंशाह के सामने ‘दूज के चाँद’ की संज्ञा दी और काबुल के शहंशाह को ‘पूर्णिमा के चाँद’ की, तो वे बहुत नाराज़ हुये.

अगले दिन जब दरबार लगा, तो उन्होंने बीरबल पर व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहा, “क्यों बीरबल? काबुल जाकर तुम तो काबुल के हो गए. वहाँ का शहंशाह तुम्हें पूर्णिमा का चाँद लगता है और हम दूज के. तो फिर तुम हमारे दरबार में क्या कर रहे हो? जिसकी बड़ाई करते हो, उसकी के दरबार में रहो.”

बीरबल समझ गया कि दरबारियों ने अकबर के कान भर दिए हैं. उसने तुरंत उत्तर दिया, “हुज़ूर! पहले आप मेरी पूरी बात सुन लीजिये. फिर कोई निष्कर्ष निकालिए. पूर्णिमा का चाँद आकार में चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, प्रतिदिन घटता चला जाता है और अमावस्या के दिन पूरा अदृश्य हो जाता है. लेकिन दूज का चाँद प्रतिदिन बढ़ता जाता है. पूर्णिमा का चाँद एक दिन चमकता है और दूज का चाँद पूरे पखवाड़े. अब बताइए, बड़ाई किसकी हुई? मैंने तो यही कहा कि दिन-प्रतिदिन आपका पराक्रम, साम्राज्य और यश बढ़ता रहे.”

बीरबल की बात सुनकर अकबर की नाराज़गी खत्म हो गई और उन्होंने बीरबल को कई वस्त्र और आभूषण उपहार में दिए. इधर ईर्ष्या करने वाले दरबारी अपना सा मुँह लेकर रह गए.


Akbar Birbal Kahani #6 : हरे रंग का घोड़ा

Akbar Birbal Kahani
Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Story In Hindi

Akbar Birbal Kahani : एक दिन बादशाह अकबर अपने घोड़े पर शाही बाग़ की सैर के लिये गए. बीरबल भी उनके साथ ही था. बीरबल की वाक्पटुता और अक्लमंदी के कारण राजकीय कार्यों के अलावा भी अकबर को उसका साथ पसंद था.

हरे-भरे बाग़ में टहलते हुए अकबर की नज़र जब अपने घोड़े पर पड़ी, तो उन्होंने बीरबल से फरमाइश कर दी, “बीरबल हमें हरे रंग का घोड़ा लाकर दो.”

अकबर (Akbar) की फरमाइश सुनकर बीरबल (Birbal) हैरत में पड़ गया. अकबर अक्सर विचित्र प्रश्न उसके सामने रखा करते थे. उन प्रश्नों के उत्तर वह अपनी बुद्धिमत्ता से बखूबी दे दिया करता था. लेकिन हरे रंग के घोड़े की मांग पूरा करना संभव नहीं था. होता भी कैसे? हरे रंग का घोड़ा तो होता ही नहीं था.

वह कुछ न बोला. बीरबल की चुप्पी से अकबर की फरमाइश आदेश में तब्दील हो गई, “बीरबल! हम तुम्हें सात दिन का समय देते हैं. सात दिनों के भीतर तुम हरे रंग का घोड़ा हमारे सामने पेश करो, वरना तुम्हें पदमुक्त कर दिया जायेगा.”

बीरबल के पास हामी भरने के अलावा कोई चारा नहीं था. यह उलजुलूल कार्य सौंपने के पीछे अकबर का उद्देश्य उसकी परीक्षा लेना है, वह समझ गया.

इधर अकबर मन ही मन बहुत खुश हुए. उन्हें यकीन था कि इस बार बीरबल हार मान जायेगा.

उस दिन घर आकर कुछ देर अपना दिमाग दौड़ाने के बाद बीरबल सो गया. उसके बाद ६ दिन तक वह घर पर ही आराम करता रहा. सातवें दिन वह अकबर के समक्ष हाज़िर हुआ.

बीरबल को देख अकबर ने पूछा, “कहो बीरबल! हरे रंग का घोड़ा तुमने ढूंढ लिया?”

“जी जहाँपनाह!” बीरबल अदब से बोला.

“तो फिर देर किस बात की? उसे फ़ौरन हमारे सामने लेकर आओ.”

“जहाँपनाह! घोड़े के मालिक ने घोड़ा देने की दो शर्तें रखी हैं.” बीरबल बोला.

“कौन सी शर्तें?” अकबर ने पूछा.

“पहली ये कि घोड़ा लेने आपको स्वयं उसके मालिक के पास जाना होगा.”

“इस शर्त को पूरा करना कौन सी बड़ी बात है.” अकबर हँस पड़े.

“हुज़ूर! दूसरी शर्त तो सुन लीजये.” बीरबल तपाक से बोला.

“बताओ”

“हुज़ूर! दूसरी शर्त ये है कि उस घोड़े को लेने आप उसके मालिक के पास सप्ताह के सात दिनों को छोड़कर किसी भी दिन जा सकते हैं.”

“ये कैसी उलजुलूल शर्त है?” अकबर चकित होकर बोले.

“हुज़ूर! जब कार्य ही उल्ज़ुलूल है, तो शर्त भी तो उलजुलूल होगी.” मुस्कुराते हुए बीरबल बोला.

अकबर बीरबल (akbar birbal) की बात सुनकर मुस्कुरा उठे. बीरबल को हरा पाना वाकई मुश्किल था.


Akbar Birbal Kahani #7 : कुएं का पानी 

Akbar Birbal Kahani : अकबर के राज्य में रहने वाले एक किसान ने एक आदमी से कुआं खरीदा. वह कुएं के पानी से अपने खेत की सिंचाई करना चाहता था.

किसान ने कुएं की पूरी कीमत अदा की. लेकिन जब अगले दिन वो कुएं पर पहुँचा और पानी निकालने के लिए रस्सी के सहारे बाल्टी डालने लगा, तो कुआं बेचने वाले आदमी ने उसे रोक दिया.

उसने किसान से कहा, “मैंने अपना कुआं बेचा है, इसका पानी नहीं. इसलिए तुम इसका पानी नहीं निकाल सकते. चलो भागो यहाँ से.”

किसान अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला आया. वह स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहा रहा था. आखिरकार न्याय की दरकार में वह अकबर के दरबार पहुँच गया.

अकबर ने किसान की गुहार सुनी और उसके मामले के निराकरण का दायित्व बीरबल को सौंप दिया.

मामला पूरी तरह समझने के बाद बीरबल उस कुएं पर पहुँचा, जिसका सौदा हुआ था. किसान उस आदमी को भी बुला लाया, जिससे उसने कुआं खरीदा था.

बीरबल ने उस आदमी से पूछा, “क्यों भाई, तुम इस किसान को कुएं का पानी निकालने क्यों नहीं दे रहे हो? कीमत तो तुमने पूरी वसूली है.”

कुएं बेचने वाले आदमी ने वही बात फिर से दोहराई, “मैंने कुआं बेचा है, इसका पानी नहीं. पानी पर अब भी मेरा अधिकार है. फिर कैसे मैं इसे पानी निकालने की इज़ाज़त दे दूं?”

बीरबल उस धोखेबाज़ आदमी की चालाकी समझ गया. वह समझ गया कि यहाँ सीधी उंगली से घी नहीं निकलने वाला. इसलिए उसने अपना पासा फेंकते हुए कहा, “ठीक कहते हो भाई. चलो मान लिया कि कुएं का पानी तुम्हारे स्वामित्व में है. लेकिन ये तो मानते हो ना कि अब कुएं का स्वामी ये किसान है?”

“हाँ, ये बात मैं मानता हूँ.” उस आदमी ने हामी भरी.

“ठीक है! तो फिर ऐसा करो कि फ़ौरन किसान के कुएं का सारा पानी निकाल कर कहीं और ले जाओ या फिर कुएं में पानी रखने का किराया तुम किसान को दो. बिना किराया दिए तुम अपना पानी किसान के कुएं में नहीं रख सकते.” बीरबल बोला.

कुआं बेचने वाला धोखेबाज़ आदमी हक्का-बक्का रह गया. किसान को बेवकूफ़ बनाने की उसकी पूरी तरक़ीब पर पानी फिर चुका था. उसने बीरबल से माफ़ी मांगी और किसान को कुएं का पूरा स्वामित्व सौंप दिया. आखिर सेर को सवा सेर मिल ही गया.

सीख – कभी दूसरों को धोखा मत दो. ऐसी चतुराई किसी काम की नहीं, जिसमें दूसरों का बुरा हो. ऐसी चतुराई अंततः धरी की धरी रह जाती है. 


Akbar Birbal Kahani  #8 : अंधों की सूची 

Akbar Birbal Kahani : एक बार बादशाह अकबर (Akbar) ने बीरबल को राज्य के अंधों की सूची लाने का आदेश दिया. एक दिन में ये कार्य असंभव था. इसलिए बीरबल ने अकबर से एक सप्ताह का समय मांग लिया.

अगले दिन बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं हुआ. वह एक थैला लेकर नगर के हाट बाज़ार में गया और बीचों-बीच एक स्थान पर बैठ गया. फिर उसने अपने थैले से जूता निकला और उसे सिलने लगा.

आते-जाते लोगों ने जब बीरबल को जूता सिलते हुए देखा, तो हैरत में पड़ गए. बादशाह अकबर के सलाहकार और राज्य के सबसे बड़े विद्वान व्यक्ति के बीच बाज़ार बैठकर जूते सिलने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

कई लोगों से रहा नहीं गया और वे बीरबल से पूछ ही बैठे, “महाशय! ये आप क्या कर रहे हैं?”

इस सवाल का जवाब देने के बजाय बीरबल ने अपने थैले में से एक कागज निकाला और उसमें कुछ लिखने लगा. इसी तरह दिन गुरजते रहे और बीरबल का बीच बाज़ार बैठकर जूते सिलने का सिलसिला जारी रहा.

“ये आप क्या कर रहे हैं?” जब भी ये सवाल पूछा जाता, वह कागज पर कुछ लिखने लगता. धीरे-धीरे पूरे नगर में ये बात फ़ैल गई कि बीरबल पागल हो गया है.

एक दिन बादशाह अकबर का काफ़िला उसी बाज़ार से निकला. जूते सिलते हुए बीरबल पर जब अकबर की दृष्टि पड़ी, तो वे बीरबल (Birbal) के पास पहुँचे और सवाल किया, “बीरबल! ये क्या कर रहे हो?”

बीरबल अकबर के सवाल का जवाब देने के बजाय कागज पर कुछ लिखने लगा. ये देख अकबर नाराज़ हो गए और अपने सैनिकों से बोले, “बीरबल को पकड़ कर दरबार ले चलो.”

दरबार में सैनिकों ने बीरबल को अकबर के सामने पेश किया. अकबर बीरबल (akbar birbal) से बोले, “पूरे नगर में ये बात फ़ैली हुई है कि तुम पागल हो गए हो. आज तो हमने भी देख दिया. क्या हो गया है तुम्हें?”

जवाब में बीरबल ने एक सूची अकबर की ओर बढ़ा दी. अकबर हैरत से उस सूची को देखने लगे.

तब बीरबल बोला, “जहाँपनाह! आपके आदेश अनुसार राज्य के अंधों की सूची तैयार है. आज हफ्ते का आखिरी दिन है और मैंने अपना काम पूरा कर लिया है.”

सूची काफ़ी लंबी थी. अकबर सूची लेकर उसमें लिखे नाम पढ़ने लगे. पढ़ते-पढ़ते जब वे सूची के अंत में पहुँचे, तो वहाँ अपना नाम लिखा हुआ पाया. फिर क्या? वे बौखला गए.

“बीरबल! तुम्हारी ज़ुर्रत कैसे हुई हमारा नाम इस सूची में डालने की?” अकबर बीरबल (Akbar Birbal) पर बिफ़रने लगे.

“गुस्सा शांत करें हुज़ूर, मैं सब बता रहा हूँ.” कहकर बीरबल बताने लगा, “बादशाह सलामत!  पिछले एक सप्ताह से मैं रोज़ बीच बाज़ार जाकर जूते सिल रहा था. मेरे क्रिया-कलाप हर आते-जाते व्यक्ति को नज़र आ रहे थे. तिस पर भी वे आकर मुझसे पूछते कि मैं क्या कर रहा हूँ और मैं उनका नाम अंधों की सूची में डाल देता. सब आँखें होते हुए भी अंधे थे हुज़ूर. गुस्ताखी माफ़ हुज़ूर, ये सवाल आपने भी किया था, इसलिए आपका नाम भी इस सूची में है.”

अब अकबर क्या कहते? वे निरुत्तर हो गए.


Akbar Birbal Story In Hindi #9 : चार सबसे बड़े मूर्ख

Akbar Birbal Kahani
Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Story In Hindi

Akbar Birbal Kahani : अकबर बीरबल (Akbar Birbal) की अक्लमंदी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उसे विचित्र कार्य सौंपा करते थे. ऐसा कर उन्हें अति आनंद की प्राप्ति की होती है.

एक दिन दरबार में राजकीय कार्यवाही के मध्य अचानक अकबर बीरबल (Akbar Birbal) से बोले, “बीरबल! इस राज्य के चार सबसे बड़े मूर्खों को हमारे सामने हाज़िर करो. हम तुम्हें एक महीने का समय देते हैं. तुरंत इस काम में लग जाओ.”

अकबर का आदेश सुन बीरबल आश्चर्यचकित हुआ. किंतु वह था तो अकबर का मुलाज़िम ही. उनका हर हुक्म बजाना उसका फ़र्ज़ था. वह तुरंत चार मूर्खों की तलाश में निकल पड़ा.

एक माह पूर्ण होने के ऊपरांत वह दो व्यक्तियों के साथ अकबर के समक्ष उपस्थित हुआ. अकबर की दृष्टि जब दो व्यक्तियों पर पड़ी, तो वे बिफ़र गये, “बीरबल! ये क्या तुम दो ही मूर्खों को लेकर आये हो? हमने एक महीने का वक़्त तुम्हें चार मूर्ख लाने के लिए दिया था.”

“हुज़ूर! मेरी गुज़ारिश है कि अपना गुस्सा शांत रखिये और मेरी पूरी बात सुने बगैर किसी नतीज़े पर मत पहुँचिये.” बीरबल अकबर का गुस्सा शांत करते हुए बोला.

बीरबल (Birbal) की बात सुन अकबर का गुस्सा कुछ ठंडा हुआ.

“जहाँपनाह! ये रहा पहला मूर्ख. इसकी मूर्खता का वर्णन सुनेंगे, तो आप भी सोचेंगे कि ऐसे लोग भी होते हैं इस दुनिया में.” पहले व्यक्ति को आगे कर बीरबल बोला.

“बताओ. ऐसी क्या मूर्खता कर रहा था ये?” अकबर ने पूछा.

“हुज़ूर! मैंने इस व्यक्ति को बैलगाड़ी पर बैठकर कहीं जाते हुये देखा. बैलगाड़ी चालक के अतिरिक्त बैलगाड़ी पर बैठा ये अकेला व्यक्ति ही था. तिस पर भी इसने अपनी गठरी सिर पर लाद रखी थी. चकित होकर जब मैंने कारण पूछा. तो ये कहने लगा कि गठरी बैलगाड़ी पर रख दूंगा, तो बैल के ऊपर बोझ बढ़ जायेगा. इसलिए मैंने गठरी अपने सिर पर रख ली है. अब इसे मूर्खता नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे.”

पहले व्यक्ति की मूर्खता का क़िस्सा सुनकर अकबर (Akbar) के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई.

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फिर बीरबल ने दूसरे व्यक्ति को आगे किया और बोला, “जहाँपनाह! ये आदमी तो इससे भी बड़ा मूर्ख है. एक दिन मैंने देखा कि ये अपने घर की छत पर भैंस लेकर जा रहा है. मुझे आश्चर्य हुआ, तो मैंने पूछ लिया. लेकिन फिर इसका जवाब सुनकर मैंने तो अपना सिर ही पीट लिया. इसने बताया कि इसके घर की छत पर घास उग आई है. इसलिए ये भैंस को छत पर ले जाता है, ताकि वह वहाँ घास खा सके. घास काटकर ये भैंस को लाकर खिला सकता है. लेकिन ये मूर्ख भैंस को ही छत पर ले जाता है. ऐसा मूर्ख कहीं देखा है आपने?”

“हम्म, वाकई इन दोनो की कारस्तानी बेवकूफ़ाना है. अब बाकी के दो मूर्खों को पेश करो.” अकबर बोले.

“हुज़ूर! नज़र उठाकर देखिये तीसरा मूर्ख आपको सामने खड़ा दिखाई पड़ेगा.” बीरबल बोला.

“कहाँ बीरबल? हमें तो यहाँ कोई तीसरा व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ रहा.” अकबर इधर-उधर देखते हुए बोले.

“तीसरा मूर्ख मैं हूँ हुज़ूर.” बीरबल सिर झुकाकर बोला, “अब देखिये. मुझे पर कितने महत्वपूर्ण कार्यों की ज़िम्मेदारी है. लेकिन सब कुछ एक तरफ़ हटाकर मैं एक महीने से मूर्खों को खोज रहा हूँ. ये मूर्खता नहीं तो और क्या है?”

बीरबल की बात सुनकर अकबर सोच में पड़ गए, फिर बोले, “और चौथा मूर्ख कहाँ है बीरबल?”

“गुस्ताखी माफ़ हुज़ूर, पर चौथे मूर्ख आप हैं. आप हिंदुस्तान के शहंशाह है. इतने बड़े साम्राज्य का भार आपके कंधों पर है. प्रजा के हित के जाने कितने कार्य आपको करवाने हैं. लेकिन उन सबको दरकिनार कर आप एक महीने से मुझसे चार मूर्खों की तलाश करवा रहे हैं. तो चौथे मूर्ख आप हुए ना…” कहते हुए बीरबल ने अपने कान पकड़ लिए.

बीरबल का जवाब सुनकर अकबर को अपनी गलती का अहसास हो गया कि बेफ़िजूल में उन्होंने अपना और बीरबल का काफ़ी वक़्त बर्बाद कर लिया है.


Akbar Birbal Kahani # 10 : जादुई गधा 

Akbar Birbal Kahani : एक बार बादशाह अकबर ने बेगम साहिबा के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें एक बेशकीमती हार दिया. बादशाह अकबर का उपहार होने के कारण बेगम साहिबा को वह हार अतिप्रिय था. उन्होंने उसे बहुत संभालकर एक संदूक में रखा था. 

एक दिन श्रृंगार करते समय जब हार निकालने के लिए बेगम साहिबा ने संदूक खोला, तो उन्होंने वह नदारत पाया.

घबराते हुए वो फ़ौरन अकबर के पास पहुँची और उन्हें अपना बेशकीमती हार खो जाने की जानकारी थी. अकबर ने उन्हें वह हार कक्ष में अच्छी तरह ढूंढने को कहा. लेकिन वह हार नहीं मिला. अब अकबर और बेगम साहिबा को यकीन हो गया कि हो न हो, उस शाही हार की चोरी हो गई है.

अकबर ने तुरंत बीरबल को बुलवा भेजा और सारी बात बताकर शाही  हार खोजने की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी.

बीरबल ने बिना देर किये राजमहल के सभी सेवक-सेविकाओं को दरबार में हाज़िर होने का फ़रमान ज़ारी करवा दिया.

कुछ ही देर में दरबार लग चुका था. अकबर अपनी बेगम साहिबा के साथ शाही तख़्त पर विराजमान थे. सभी सेवक-सेविकायें दरबार में हाज़िर थे. बस बीरबल नदारत था.

सब बीरबल के आने का इंतज़ार करने लगे. लेकिन दो घंटे बीत जाने पर भी बीरबल नहीं आया. बीरबल की इस हरक़त पर अकबर आग-बबूला होने लगे.  

दरबार में बैठने का कोई औचित्य न देख वे बेगम साहिबा के साथ उठकर वहाँ से जाने लगे. ठीक उसी वक़्त बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया. उसके साथ एक गधा भी था.

विलंब के लिए अकबर से माफ़ी मांगते हुए वह बोला, “जहाँपनाह! माफ़ कीजियेगा. इस गधे को खोजने में मुझे समय लग गया.”

सबकी समझ के परे था कि बीरबल अपने साथ वो गधा दरबार में लेकर क्यों आया है?

बीरबल सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोला, “ये कोई साधारण गधा नहीं है. ये एक जादुई गधा है. मैं ये गधा यहाँ इसलिए लाया हूँ, ताकि ये शाही हार के चोर का नाम बता सके.”

बीरबल की बात अब भी किसी के पल्ले नहीं पड़ रही थी. बीरबल कहने लगा, “मैं इस जादुई गधे को पास ही के एक कक्ष में ले जाकर खड़ा कर रहा हूँ. एक-एक कर सभी सेवक-सेविकाओं को उस कक्ष में जाना होगा और  इस गधे की पूंछ पकड़कर जोर से चिल्लाना होगा कि उसने चोरी नहीं की है. ध्यान रहे आप सबकी आवाज़ बाहर सुनाई पड़नी चाहिए. अंत में ये गधा बताएगा कि चोर कौन है?”

बीरबल गधे को दरबार से लगे एक कक्ष में छोड़ आया और कतार बनाकर सभी सेवक-सेविका उस कक्ष में जाने लगे. सबके कक्ष में जाने के बाद बाहर ज़ोर से आवाज़ आती – “मैंने चोरी नहीं की है.”

जब सारे सेवक-सेविकाओं ने ऐसा कर लिया, तो बीरबल गधे को बाहर ले आया. अब सबकी निगाहें गधे पर थी.

लेकिन गधे को एक ओर खड़ा कर बीरबल एक विचित्र हरक़त करने लगा. वह सभी सेवक-सेविकाओं के पास जाकर उनसे हाथ आगे करने को कहता और उसे सूंघता. बादशाह अकबर और बेगम सहित सभी हैरान थे कि आखिर बीरबल ये कर क्या रहा है. तभी बीरबल एक सेवक का हाथ पकड़कर जोर से बोला, “जहाँपनाह! ये है शाही हार का चोर.”

“तुम इतने यकीन से ऐसा कैसे कह सकते हो बीरबल? क्या इस जादुई गधे ने तुम्हें इस चोर का नाम बताया है?” आश्चर्यचकित अकबर ने बीरबल से पूछा.

बीरबल बोला, “नहीं हुज़ूर! ये कोई जादुई गधा नहीं है. ये एक साधारण गधा है. मैंने बस इसकी पूंछ पर एक खास किस्म का इत्र लगा दिया था. जब सारे सेवक-सेविकाओं ने इसकी पूंछ पकड़ी, तो उनके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू आ गई. लेकिन इस चोर ने डर के कारण गधे की पूंछ पकड़ी ही नहीं. वह कक्ष में जाकर बस जोर से चिल्लाकर बाहर आ गया. इसलिए इसके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू नहीं आ पाई. इससे सिद्ध होता है कि यही चोर है.”

उस चोर को दबिश देकर शाही हार बरामद कर लिया गया और उसे कठोर सजा सुनाई गई. इस बार बीरबल की अक्लमंदी की बेगम साहिबा भी कायल हो गई और उन्होंने अकबर से कहकर बीरबल को कई उपहार दिलवाए.    


Akbar Birbal Kahani #11 : रेत और चीनी का मिश्रण

बादशाह अकबर के दरबारी बीरबल से अत्यधिक ईर्ष्या करते थे. बीरबल को बादशाह की दृष्टि में नीचा दिखाने के प्रयास में वे यदा-कदा कुछ न कुछ प्रपंच रचते रहते थे.

एक दिन बीरबल को नीचा दिखने के प्रयोजन से एक दरबारी अपने साथ एक मर्तबान लेकर दरबार में आया.

अकबर ने जब पूछा कि मर्तबान में क्या है? तो दरबारी बोला, “जहाँपनाह! इस मर्तबान में रेत और चीनी का मिश्रण है.”

“इसे दरबार में लाने का मतलब?” अकबर ने फिर से पूछा.

“जहाँपनाह! बीरबल स्वयं को बहुत अक्लमंद समझता है. यदि वह इतना ही अक्लमंद है, तो इस मर्तबान में रखे रेत और चीनी के मिश्रण में से चीनी के दाने अलग कर दे.” दरबारी बोला.

“ये कौन सी बड़ी बात है?” बीरबल अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और मर्तबान की ओर बढ़ा.

“लेकिन तुम्हें एक बात ध्यान में रखनी होगी बीरबल.” दरबारी बीरबल से बोला, “तुम इसमें पानी नहीं मिला सकते.”

बीरबल मुस्कुराया और मर्तबान उठाकर दरबार से बाहर जाने लगा. पूछने पर वह बोला कि बाहर जाकर वह चीनी के दाने इस मिश्रण में से अलग कर देगा.

अकबर सहित सभी दरबारी बीरबल के पीछे-पीछे बाहर आ गए. बाहर आकर बीरबल शाही बाग़ में जाने लगा. सभी फिर से उसके पीछे हो लिये.

शाही बाग़ पहुँचकर बीरबल एक आम के पेड़ के पास रुक गया और मर्तबान खोलकर उसके नीचे रेत और चीनी का मिश्रण बिखेर दिया.

सब हैरत में बीरबल को देख रहे थे.

अकबर ने पूछा, “बीरबल! यह तुमने क्या किया?”

बीरबल बोला, “जहाँपनाह! जो मैंने किया है, उसका नतीज़ा कल सब यहीं आकर देखेंगे.”

अगले दिन सभी पुनः शाही बाग़ के आम के पेड़ के नीचे एकत्रित हुए. बीरबल आम के पेड़ के नीचे पड़ी हुई रेत को दिखाते हुए बोला, “जहाँपनाह! यहाँ बस रेत पड़ी हुई है. चीनी गायब हो चुकी है.”

“अरे चीनी कहाँ गई?” मर्तबान लाने वाला दरबारी अचंभे में चिल्लाया.

“रेत से अलग हो गई है.” बीरबल शांति से बोला.

वास्तव में पेड़ के नीचे से चीनी के दाने चीटियाँ उठाकर ले गई थी. इस तरह बीरबल ने अपनी अक्लमंदी फिर से साबित कर दी. वह दरबारी अपना सा मुँह लेकर रह गया.


Akbar Birbal Kahani #12 : हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते?

Akbar Birbal Kahani
Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Story In Hindi

Akbar Birbal Kahnai : एक दिन दरबार की कार्यवाही के मध्य बादशाह अकबर को मसखरी सूझी और उन्होंने बीरबल के मज़े लेने के लिए सवाल पूछा, “बीरबल! ये तो बताओ कि हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते?

सवाल सुनकर बीरबल (Birbal) समझ गया कि आज बादशाह मजाक में मूड में हैं.

हाजिरजवाब बीरबल का फ़ौरन कोई जवाब न आता देख अकबर बोले, “क्यों बीरबल! हर सवाल का जवाब तो तुम तपाक से दे देते हो. आज क्या हुआ?”

“कुछ नहीं जहाँपनाह! मैं बस ये सोच रहा था कि किसकी हथेली पर?” बीरबल ने शांति से पूछा.

“हमारी हथेली पर बीरबल.” अकबर अपनी हथेली दिखाते हुए बोले.

“हुज़ूर! आपकी हथेली पर बाल कैसे उगेंगे? आप दिन भर अपने हाथों से उपहार वितरित करते रहते हैं. लगातार घर्षण के कारण आपकी हथेली में बाल उगना नामुमकिन है.” बीरबल ने जवाब दिया.

“चलो मान लेते हैं. लेकिन तुम्हारी हथेली पर भी तो बाल नहीं है. ऐसा क्यों?” अकबर आसानी से कहाँ मानने वाले थे. उन्होंने तुरंत दूसरा सवाल कर दिया.

ये सुनकर दरबारियों के भी कान खड़े हो गए. उन्हें लगने लगा कि बीरबल इसका जवाब नहीं दे पायेगा.   

लेकिन बीरबल का जवाब तैयार था, “हुज़ूर! मैं हमेशा आपसे ईनाम लेता रहता हूँ. इसलिए मेरी हथेली पर भी बाल नहीं है.”

अकबर (Akbar) इस जवाब से प्रभावित तो हुए. लेकिन उनका मन किसी भी तरह बीरबल को निरुत्तर करने का था. इसलिए उन्होंने तीसरा सवाल दागा, “चलो ये तो हुई हमारी और तुम्हारी बात. लेकिन इन दरबारियों का क्या? ये तो हमसे हमेशा ईनाम नहीं लेते. ऐसे में इनकी हथेलियों पर बाल क्यों नहीं है?”

इस सवाल पर दरबारियों को लगा कि अब बीरबल फंस गया.

लेकिन बीरबल यूं ही अपनी वाक्पटुता के लिए प्रसिद्ध नहीं था. वह झट से बोला, “जहाँपनाह! आप ईनाम देते रहते हैं और मैं ईनाम लेता रहता हूँ. ये देख सभी दरबारी जलन में हाथ मलते रह जाते हैं. इसलिए इनकी हथेली पर बाल नहीं है.”

ये सुनना था कि अकबर ठहाका लगा उठे. उधर दरबारियों के सिर शर्म से झुक गए.


Hindi Akbar Birbal Kahani #13 : बैल का दूध 

Akbar Birbal Kahani : हमेशा की तरह एक दिन मौका पाकर दरबारी बीरबल (Birbal) के खिलाफ़ बादशाह अकबर के कान भरने लगे. वे कहने लगे, “जहाँपनाह! बीरबल स्वयं को कुछ ज्यादा ही अक्लमंद समझता है. यदि वह इतना ही अक्लमंद है, तो उसे कहिये कि वह बैल का दूध लेकर आये.”

दरबारियों की बातों में आकर अकबर (Akbar) ने बीरबल की अक्लमंदी की परीक्षा लेने की सोची. बीरबल उस समय दरबार में उपस्थित नहीं था. जब वह दरबार पहुँचा, तो अकबर बोले, “बीरबल! क्या तुम मानते हो कि दुनिया में कोई कार्य असंभव नहीं?”

“जी हुज़ूर!” बीरबल में उत्तर दिया.

“तो ठीक है. हम तुम्हें एक काम दे रहे हैं. तुम्हें उसे दो दिवस के भीतर करना होगा.”

“फ़रमाइये हुज़ूर! आपके हर हुक्म की तामीली मेरा कर्त्तव्य है.” बीरबल सिर झुककर अदब से बोला.

“जाओ जाकर बैल (Ox) का दूध लेकर आओ.” अकबर ने आदेश दिया.

आदेश सुनकर बीरबल भौंचक्का रह गया. इधर दरबारी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए. वे जानते थे कि यह कार्य असंभव है क्योंकि दूध गाय देती है, बैल नहीं.

“क्यों बीरबल तुमने कोई जवाब नहीं दिया?” अकबर बोले.

बीरबल क्या कहता? वह बहस करने का समय नहीं था. हामी भरकर वह घर लौट आया.

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घर आकर उसने गहन सोच-विचार किया. अपनी पत्नि और पुत्री से भी चर्चा की. आखिरकार सबने मिलकर एक उपाय निकाल ही लिया.

उस रात बीरबल की पुत्री अकबर के महल के पीछे स्थित कुएं पर गई और पीट-पीटकर कपड़े धोने लगी. अकबर के महल की खिड़की उस कुएं की ओर खुलती थी. जोर-जोर से कपड़े पीटने की आवाज़ सुनकर उनकी नींद खुल गई. खिड़की से झाँकने पर उन्हें एक लड़की कुएं पर कपड़े धोती हुई दिखाई पड़ी.

अकबर ने वहीँ से चिल्लाकर उस लड़की से पूछा, “बच्ची! इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रही हो?”

बीरबल की पुत्री बोली, “हुज़ूर! मेरी माता घर पर नहीं है. वे कुछ महीनों से अपने मायके में हैं. उनकी अनुपस्थिति में आज मेरे पिता ने एक बच्चे को जन्म दिया. दिन-भर मुझे उनकी सेवा-सुश्रुषा करनी पड़ी. कपड़े धोने का समय ही नहीं पाया. इसलिए रात में कपड़े धो रही हूँ.”

“कैसी विचित्र बात कर रही हूँ बच्ची? आदमी बच्चे पैदा करते हैं क्या?” अकबर कुछ नाराज़गी में बोले.

“करते हैं हुज़ूर! जब बैल दूध दे सकता है, तो आदमी भी बच्चे पैदा कर सकते हैं.” बीरबल की पुत्री ने उत्तर दिया.

ये सुनना था कि अकबर की नाराज़गी हवा हो गई और वे पूछ बैठे, “बच्ची, कौन हो तुम?”

“हुज़ूर, ये मेरी पुत्री है.” पेड़ के पीछे छुपे बीरबल ने अकबर के सामने आकर उत्तर दिया.

“ओह, तो ये तुम्हारा स्वांग था.” अकबर मुस्कुराते हुए बोले.

“गुस्ताख़ी माफ़ हुज़ूर और कोई रास्ता भी नहीं था अपनी बात समझाने का.” बीरबल अकबर की नींद में खलल डालने के लिए क्षमा मांगते हुए बोला.

इधर अकबर भी बीरबल की अक्लमंदी का लोहा मान गए. अगले दिन रात का पूरा वृतांत दरबारियों को सुनाते हुए उन्होंने बीरबल को उसकी अक्लमंदी के लिए सोने का हार इनाम में दिया. दरबारी हमेशा की तरह जल-भुन कर रह गए.    


Akbar Birbal Ki Kahani #14 : साठ दिन का महिना 

Akbar Birbal Kahani : बादशाह अकबार (Akbar) के दरबार में चापलूस दरबारियों की कमी नहीं थी. उनका एकमात्र उद्देश्य अकबर की चापलूसी कर तरक्की हासिल करना था. लेकिन बीरबल उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा था, जिसके सामने उनकी दाल गल नहीं पाती थी. इसलिए वे सदा बीरबल (Birbal) को नीचा दिखाने की फ़िराक में रहते थे.

एक दिन दरबार लगा हुआ था. बीरबल सहित सभी दरबारी दरबार में उपस्थित थे. सहसा अकबर ने दरबारियों के सामने एक प्रस्ताव रख दिया, “हम सोच रहे हैं कि महिना ३० दिन की जगह ६० दिन का होना चाहिये. आप लोगों का इस बारे में क्या ख्याल है?”

यह सुनना था कि चापलूस दरबारी हाँ में हाँ मिलाने लगे. ये उनके लिए चापलूसी का बेहतरीन अवसर था. कुछ दरबारियों ने कहा, “जहाँपनाह! आपका विचार अति-उत्तम है. ३० दिन का महिना बहुत छोटा होता है. कामकाज पूरे नहीं हो पाते. इसलिए महिना ६० दिन का ही होना चाहिए.”

कुछ कहने लगे, “जहाँपनाह! ६० दिन का महिना करने का फ़रमान फ़ौरन जारी हो जाना चाहिए. इससे बढ़िया विचार तो हो ही नहीं सकता.”

बीरबल अब तक चुपचाप बैठा सारी बात सुन रहा था. उसने इस बारे में राय व्यक्त करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई.

बीरबल को खामोश देख अकबर ने पूछा, “बीरबल! तुम इस बारे में क्या कहते हो? क्या तुम्हारी राय भी अन्य दरबारियों की तरह ही है?”

“हुज़ूर ३० दिन से ६० दिन का महिना कर देने का विचार उत्तम है. किंतु इसके लिए एक काम करना होगा.” बीरबल शांति से बोला.

अकबर कुछ कहते, उसके पहले ही दरबारी एक स्वर में कहने लगे, “हम बादशाह सलामत के आदेश का पालन करने के लिए कोई भी काम करने को तैयार हैं.”

“अच्छी बात है….” बीरबल बोला, “आप लोग तो जानते ही होंगे कि पृथ्वी पर १५ दिन चाँदनी रातें और १५ दिन अंधेरी रातें चंद्रमा के कारण होती है. प्रकृति के इस नियम के कारण पृथ्वी पर महीना ३० दिन का होता है. अब जब आप लोग ६० दिन का महिना करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, तो ऐसा कीजिये कि चंद्रमा को कहकर ३० दिन चाँदनी रातें और ३० दिन अंधेरी रातें करवा दीजिये.”

ये सुनना था कि चापलूस दरबारी बगले झांकने लगे.

बीरबल अकबर से बोला, “जहाँपनाह! देखिये सारे कर्मठ दरबारियों को सांप सूंघ गया है. अब ऐसे में क्या किया जाये?”

अकबर ने दरबारियों की परीक्षा लेने के लिए ये प्रस्ताव सामने रखा था. दरबारियों की चापलूसी देख वे नाराज़ हो गये और उन्हें लताड़ते हुए बोले, “चापलूसी कर बीरबल की बराबरी करने चले हो. जानते नहीं बीरबल की बराबरी के लिए अक्ल चाहिये, चापलूसी का गुर नहीं.”


Akbar Birbal Story Hindi #15 : उम्र बढ़ाने वाला पेड़

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Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Story In Hindi

Akbar Birbal Kahani : एक बार तुर्किस्तान के शहंशाह ने बादशाह अकबर (Akbar) की बुद्धि की परीक्षा लेने के मंसूबे से एक पैगाम भेजा. पैगाम कुछ इस तरह था – “अकबरशाह! सुना है भारत में एक ऐसा पेड़ है, जिसके पत्तों को खाने से उम्र बढ़ जाती है. हमारी गुज़ारिश है कि हमें उस पेड़ के कुछ पत्ते ज़रूर भिजवायें.”

यह पैगाम लेकर तुर्किस्तान के शहंशाह का दूत और कुछ सिपाही अकबर के पास पहुँचे थे. पैगाम पढ़कर अकबर सोच में पड़ गए. फिर उन्होंने बीरबल को बुलाकर सलाह-मशवरा किया.

अंत में बीरबल की सलाह मानकर अकबर ने तुर्किस्तान से आये दूत को सिपाहियों सहित एक सुदृढ़ किले में कैद करवा दिया. वहाँ उनके खाने-पीने का यथोचित्त प्रबंध किया गया.

किले में बंद दूत और सिपाही चिंतित थे. उनकी समझ के बाहर था कि आखिर उनका दोष है क्या?

कुछ दिन व्यतीत होने के उपरांत बीरबल (Birbal) को साथ लेकर अकबर उनसे मिलने पहुँचे. उन्हें देख दूत और सिपाहियों में उम्मीद जागी कि शायद अब उन्हें मुक्त कर दिया जायेगा. किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ.

अकबर उनसे बोले, “तुम्हारे शहंशाह ने हमसे जिस चीज़ की गुज़ारिश की है. मैं वह तब ही दे पाऊंगा, जब इस किले की १-२ ईंटें गिर जायेंगी. तब तक तुम लोग यहाँ कैद रहोगे.”

अकबर की बार सुनकर दूत और सिपाहियों की वहाँ से मुक्त होने की उम्मीद जाती रही.

दिन गुजरने के साथ दूत और सिपाही की चिंता बढ़ने लगी. उन्हें अपना परिवार और अपने देश का सुखमय जीवन याद आने लगा.

किले से निकलने का कोई रास्ता न देख वे दिन भर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहते. वे ईश्वर से कहते, “ईश्वर! हमें इस कैद से मुक्त कराइये. कब तक हम इस तरह यहाँ बंद रहेंगे? हमें अपने देश, अपने परिवार के पास जाना है. तू सर्वेसर्वा है, कुछ चमत्कार कर हमें यहाँ से बाहर निकाल.”

उनकी इस नित्य प्रार्थना का असर था या प्रकृति उन पर मेहरबान थी, एक दिन उस क्ष्रेत्र में जोर का भूकंप आया. भूकंप से उस सुदृढ़ किले का एक हिस्सा धराशायी हो गया.

अकबर को अपनी कही बात याद थी. किले के धराशायी होने की सूचना मिलने पर अकबर ने दूत और सिपाहियों को आज़ाद करवाकर अपने समक्ष दरबार में हाज़िर करवाया.

अकबर उन्हें संबोधित करते हुए बोले, “तुम्हें तुर्किस्तान के शहंशाह का वह पैगाम याद होगा, जिसे लेकर तुम लोग हमारे पास आये थे. अब तो शायद तुम्हें उस पैगाम का जवाब पता चल गया हो. यदि नहीं, तो बीरबल तुम्हें उसकी व्याख्या करके देगा.”

अकबर के इतना कहने के बाद बीरबल अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और कहने लगा, “बादशाह अकबर ने एक दूत होते हुए भी आप लोगों को कैद कर लिया था. कहीं न कहीं ये एक प्रकार का ज़ुल्म था. आप लोगों की संख्या मात्र ५० है और देखिये आपकी आह से इतना सुदृढ़ किला धराशायी हो गया. अब सोचिये जिस देश में हजारों लोगों पर ज़ुल्म हो रहा हो, उनकी आह का क्या असर होगा? क्या वहाँ के बादशाह की उम्र बढ़ेगी? नहीं!! इन आहों के प्रभाव से उनकी उम्र तो घटती चली जायेगी और वह देश पतन के कगार पर पहुँच जायेगा. इसलिए तुम्हारे शहंशाह से कहना कि प्रजा की उत्थान और भलाई के लिए कार्य करना, उनकी रक्षा करना, उन पर अत्याचार ना करना ही आयुवर्धक वृक्ष है. अन्य बातें मिथ्या है.”

तुर्किस्तान के शहंशाह के दूत और सिपाहियों ने जब तुर्किस्तान पहुँचकर ये बात अपने शहंशाह को बताई, तो उनकी आँखें खुल गई. वे अकबर के कायल हो गए. इस तरह बीरबल की अक्लमंदी से अकबर तुर्किस्तान के शहंशाह के द्वार ली गई बुद्धि की परीक्षा में सफ़ल हो सके.  


Akbar Birbal Kahani # 16 : सबसे अच्छा शस्त्र

Akbar Birbal Kahani : दरबारी कार्यवाही के मध्य बादशाह अकबर ने दरबारियों से एक प्रश्न पूछा. प्रश्न था :

बचाव के लिए सबसे अच्छा शस्त्र कौन सा है?”

एक-एक कर दरबारियों ने इन प्रश्न का उत्तर दिया. किसी ने तलवार कहा, तो किसी ने भाला. किसी ने तीर-कमान कहा, तो किसी ने चाकू. जब बीरबल की बारी आई, तो वह बोला, “जहाँपनाह! मेरे विचार से मुसीबत में जो हाथ में हो, वही सबसे अच्छा शस्त्र होता है.”

बीरबल का उत्तर सुन दरबारी उसका मजाक उड़ाने लगे. अकबर भी उसके उत्तर के संतुष्ट नहीं हुए.

बीरबल उस दिन तो अपमान का घूंट पीकर रह गया. लेकिन अपनी बात सही साबित करने का मौका बहुत जल्द उसके हाथ लग गया.

बादशाह अकबर अक्सर भेष बदलकर नगर भ्रमण पर निकला करते थे. बीरबल भी उनके साथ ही होते थे. एक दिन इसी तरह वे दोनों नगर भ्रमण पर निकले.

वे एक तंग गली से पैदल गुज़र रहे थे. तभी एक मतवाला हाथी उस गली में आ गया. उस हाथी को देख अकबर डर गए. उस समय उनके पास एक तलवार थी, लेकिन इतने बड़े हाथी के सामने वह किसी काम की नहीं थी. उन्हें अपने बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. गली इतनी तंग थी कि वहाँ से भाग पाना लगभग नामुमकिन था.

उस गली में एक किनारे पर एक छोटा सा पिल्ला बैठा हुआ था. जब बीरबल की नज़र उस पर पड़ी, तो उसने उसे उठाया और हाथी के ऊपर फेंक दिया.

इस तरह हाथी के ऊपर उछाल दिए जाने पर पिल्ला डर गया. उसने हाथी की सूंड को कसकर पकड़ लिया. पिल्ले की इस हरक़त पर हाथी भी घबरा गया और अपनी सूंड झटकने लगा. हाथी के सूंड झटकने पर पिल्ला सूंड से फिसलने लगा और स्वयं को गिरने से बचाने के लिए उसने अपने पंजे और दांत हाथी की सूंड पर गड़ा दिये. हाथी बिलबिला उठा और सूंड को झटकते हुए पलटकर गली के बाहर भागने लगा.

हाथी के गली से बाहर भागने पर अकबर को चैन आया. पसीने पोंछते हुए जब उन्होंने बीरबल को देखा, तो बीरबल मुस्कुरा रहा था. अकबर बीरबल की मुस्कराहट का अर्थ समझ नहीं पाए और पूछ बैठे, “बीरबल! ऐसी संकट की घड़ी में भी तुम मुस्कुरा रहे हो?”

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बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मुसीबत की इस घड़ी में छोटा सा पिल्ला हमारा शस्त्र बना और हमारी रक्षा की. इस घटना से आपको अवश्य यकीन हो गया होगा कि मुसीबत में जो हाथ में हो, वही सबसे अच्छा शस्त्र होता है.”

अकबर ने भी मुस्कुराते हुए हामी भरी और बोले, “बीरबल तुम सही थे. उस प्रश्न के सही उत्तर के साथ आज हमारी रक्षा करने के लिए भी तुम पुरूस्कार के पात्र हो.”


Akbar Birbal Hindi Story # 17 : तीन प्रश्न 

Akbar Birbal Kahani : अकबर अक्सर बीरबल से प्रश्न पूछा कर उसकी बुद्धि की परीक्षा लेते रहते थे. एक दिन उन्होंने तीन प्रश्न बीरबल के समक्ष रखे.

वे प्रश्न थे :

  • ईश्वर कहाँ रहता है?
  • ईश्वर कैसे मिलता है?
  • ईश्वर क्या करता है? 

प्रश्न सुनकर बीरबल ने कहा, “जहाँपनाह! मैं इस प्रश्न पर उत्तर सोच-विचार कर कल दूंगा.”

अकबर ने बीरबल को दूसरे दिन तक का समय दे दिया.

घर जाकर बीरबल इस प्रश्न पर सोच-विचार करने लगा. पिता को विचारमग्न देख बीरबल के पुत्र से रहा न गया और वह पूछ बैठा, “पिताजी, क्या बात है? आपने जब से घर में प्रवेश किया है, तब से सोच में डूबे हुए हैं.”

बीरबल ने अकबर द्वारा पूछे गए प्रश्न अपने पुत्र को बताये. प्रश्न सुनकर वह बोला, “पिताजी! इस प्रश्नों का उत्तर बादशाह सलामत को मैं दूंगा. आप कल मुझे अपने साथ दरबार ले चलियेगा.”

बीरबल राज़ी हो गया. अगले दिन वह अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार पहुँचा. बीरबल को पुत्र के साथ आया देख अकबर सहित सारे दरबारी हैरान थे.

बीरबल और उसके पुत्र ने अकबर को अदब से सलाम किया. फिर बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मैंने आपके द्वारा पूछे गए प्रश्न अपने पुत्र को बताये. वह उन प्रश्नों के उत्तर देना चाहता है. इसलिए मैं उसे अपने साथ दरबार ले आया.”

इतना कहने के बाद बीरबल ने अपने पुत्र को अकबर के सामने कर दिया. बीरबल के पुत्र ने अकबर से कहा, “जहाँपनाह! आपके पहले प्रश्न का उत्तर देने के पूर्व मैं चाहता हूँ कि आप सेवक से कहकर शक्कर घुला हुआ दूध मंगवायें.”

कुछ देर में एक सेवक शक्कर घुला दूध लेकर हाज़िर हुआ. बीरबल के पुत्र ने कहा, “जहाँपनाह! ज़रा इस दूध को चखकर बताइए कि इसका स्वाद कैसा है?”

अकबर ने दूध चखा और बोले, “इसका स्वाद मीठा है.”

“क्या आपको इसमें शक्कर दिखाई पड़ रही है?” बीरबल के पुत्र ने पुनः प्रश्न किया.

“नहीं तो, वह कैसे दिखाई पड़ेगी? वह तो पूरी तरह से दूध में घुल चुकी है.” अकबर बोले.

“जी हुज़ूर! ठीक इसी तरह ईश्वर भी संसार की हर वस्तुओं में रचा-बसा हुआ है. यदि उनकी खोज करें, तो वह हर वस्तुओं में मिलेगा.”

इसके बाद बीरबल के पुत्र ने दही मंगवाकर अकबर से पूछा, “जहाँपनाह! क्या इस दही में मक्खन दिखाई दे रहा है?”

“मक्खन तो दही मथने के बाद ही दिखाई पड़ेगा.” अकबर बोले.

“जी जहाँपनाह! ठीक इसी तरह ईश्वर की प्राप्ति गहन मंथन के उपरांत ही हो सकती है. ये आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर है.”

दोनों उत्तरों से संतुष्ट होने के उपरांत अकबर ने तीसरे प्रश्न का उत्तर पूछा.

इस पर बीरबल के पुत्र ने कहा, “जहाँपनाह! इस प्रश्न का उत्तर मैं तभी दे पाऊंगा, जब आप मुझे अपना गुरू मान लेंगे.”

“ऐसी बात है, तो मैं तुम्हें अपना गुरू मानता हूँ.” अकबर बोले.

“अब जब आपने मुझे अपना गुरू मान लिया है, तो आप मेरे शिष्य हुए. लेकिन गुरू तो शिष्य से ऊँचे स्थान पर विराजमान होता है.”

यह सुनकर अकबर सिंहासन से उठ खड़े हुए और बीरबल के पुत्र को सिंहासन पर बिठा दिया. वे स्वयं नीचे आकर बैठ गए.

अकबर के सिंहासन पर बैठकर बीरबल का पुत्र बोला, “जहाँपनाह! ईश्वर की यही लीला है. वह एक क्षण में राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है. अब तो आपको तीसरे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा कि ईश्वर क्या करता है?”

ये सुनकर अकबर एक क्षण को मौन पड़ गए. लेकिन फिर उन्होंने बीरबल के पुत्र की अक्लमंदी की खूब तारीफ़ की और उसे पुरुस्कृत भी किया.


Akbar Birbal Kahani #18 : छोटा बांस बड़ा बांस

Akbar Birbal Kahani
Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Ka Kissa

एक दिन अकबर बीरबल के साथ शाही बाग़ में सैर कर रहे थे. दरबारी कार्यों के अतिरिक्त भी अकबर बीरबल के साथ समय व्यतीत करना पसंद करते थे क्योंकि वे बीरबल को अपना अभिन्न मित्र मानते थे.

बीरबल के साथ का सबसे बड़ा लाभ यह होता था कि उसकी चुटीली बातों से समय अच्छा कटता था. साथ ही बीरबल की अक्लमंदी से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता था.

उस दिन भी अकबर बाग़ में टहलते हुए बीरबल से हल्के-फुल्के मिज़ाज़ में बातें कर रहे थे. चलते-चलते उन्हें जमीन में पड़ा हुआ बांस का टुकड़ा दिखाई पड़ा. उसे देखते ही अकबर के दिमाग में बीरबल की परीक्षा लेने का विचार कौंध गया,

उन्होंने बांस का वह टुकड़ा उठा लिया और उसे बीरबल को दिखाते हुए बोले, “बीरबल! ये बांस का टुकड़ा देख रहे हो. तुम इसे बिना काटे छोटा करके दिखाओ, तो मानू.”

बीरबल ने बांस का वह टुकड़ा अपने हाथ में लेकर अकबर की ओर दृष्टि डाली. अकबर के होठों पर मुस्कराहट थी. बीरबल अकबर का मन समझ गया. वह अकबर की हर भाव-भंगिमा से परिचित था. अकबर अक्सर ऐसे प्रश्न बीरबल की बुद्धि के परीक्षण के प्रयोजन से पूछते थे.

उस प्रश्न का उत्तर सोचते हुए सहसा बीरबल की दृष्टि बाग़ के माली पर पड़ी. वह एक लंबा बांस लेकर आम के पेड़ से आम तोड़ रहा था. फिर क्या? बीरबल ने आवाज़ देकर माली को अपने पास बुला लिया.

माली के पास पहुँचने पर बीरबल ने उससे लंबा बांस मांगकर अपने दायें हाथ में ले लिया. अकबर के द्वारा दिया हुआ बांस का टुकड़ा पहले से ही उसके बायें हाथ में था.

माली के लंबे बांस के सामने अकबर का दिया हुआ बांस का टुकड़ा छोटा था. उसे दिखाते हुए बीरबल अकबर से बोला, “जहाँपनाह! देखिये मैंने बिना काटे ही आपका दिया हुआ बांस का टुकड़ा छोटा कर दिया.”

अकबर ने दोनों बांसों को देखा और बीरबल की अक्लमंदी पर मुस्कुरा कर रह गए.


Akbar Birbal Story In Hindi # 19 : सोने का खेत 

Akbar Birbal Kahani : बादशाह अकबर के शयनकक्ष में सफाई करते हुए एक सेवक के हाथ से गिरकर उनका पसंदीदा फूलदान टूट गया. फूलदान टूटने पर सेवक घबरा गया. उसने चुपचाप फूलदान के टुकड़े समेटे और उन्हें बाहर फेंक आया. 

अकबर जब शयनकक्ष में आये, तो उन्हें अपना मनपसंद फूलदान नदारत दिखा. उन्होंने सेवक को बुलाकर उसके बारे में पूछा, तो डर के मारे सेवक ने झूठ कह दिया, “जहाँपनाह मैं वह फूलदान साफ़ करने घर ले गया था. इस वक़्त वो वहीं है.”

अकबर ने सेवक को तुरंत वह फूलदान घर जाकर लाने का आदेश दे दिया. यह आदेश पाकर सेवक के पसीने छूटने लगे. बात छुपाने का कोई औचित्य ना देख उसने अकबर को सब कुछ सच-सच बता दिया और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा.  

अकबर फूलदान टूटने की बात पर तो उतने नाराज़ नहीं हुए, लेकिन उन्हें सेवक का झूठ बोलना हज़म नहीं हुआ और उन्होंने उसे फांसी की सजा सुना दी. सेवक गिड़गिड़ाता रहा. लेकिन अकबर ने उसकी एक न सुनी.

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अगले दिन अकबर ने दरबार में इस विषय को चर्चा का मुद्दा बनाया और दरबारियों से पूछा, “क्या आपमें से किसी ने कभी झूठ बोला है?”

सारे दरबारियों ने एक स्वर में इंकार कर दिया. जब अकबर ने बीरबल से पूछा, तो बीरबल बोला, “जहाँपनाह! हर इंसान कभी ना कभी झूठ बोलता है. मैंने भी बोला है. मुझे लगता है कि जिस झूठ से किसी को नुकसान न पहुँचे, उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है.”

बीरबल की बात सुनकर अकबर गुस्सा हो गए. उन्होंने उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनाई, किंतु उसे अपने दरबार से निकाल दिया. बीरबल तुरंत दरबार छोड़कर चला गया. उसे अपनी चिंता नहीं थी, किंतु बिना बात के सेवक का फांसी पर चढ़ जाना उसे गंवारा नहीं था.

वह उसे बचाने की युक्ति सोचने लगा. कुछ सोच-विचार उपरांत उसने घर की जगह सुनार की दुकान की राह पकड़ ली. सुनार को उसने सोने से धान की बाली बनाने कहा.

अगली सुबह सुनार ने बीरबल को सोने की बनी धान की बाली बनाकर दे दी, जिसे लेकर बीरबल अकबर के दरबार पहुँचा. दरबार से निकाले जाने के बाद भी वहाँ आने की बीरबल की हिमाकत देखकर अकबर नाराज़ हुए. लेकिन बीरबल ने उन्हें अपनी बात सुनने के लिए किसी तरह राज़ी कर लिया.

वह सोने की बनी धान की बाली अकबर को दिखाते हुए बोले, “जहाँपनाह! एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात आपको बतानी थी. इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा. कल शाम घर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात एक सिद्ध महात्मा से हुई. उन्होंने मुझे ये सोने की धान की बाली देकर कहा कि किसी उपजाऊ भूमि में इसे लगा देना. इससे उस खेत में सोने की फ़सल होगी. मैंने एक उपजाऊ भूमि खोज ली है. मैं चाहता हूँ कि सभी दरबारी और आप भी इसे लगाने उस खेत में चलें. आखिर देखें तो सही कि महात्मा की कही बात सच है या नहीं.”

अकबर बीरबल की बात मान गए और दूसरे दिन एक नियत समय पर खेत में पहुँचने के लिए दरबारियों को आदेशित कर दिया.

अगले दिन सभी नियत समय पर खेत पर पहुँचे. अकबर ने बीरबल को सोने से बना धान का पौधा खेत में लगाने को कहा. लेकिन बीरबल ने इंकार करते हुए कहा, “जहाँपनाह! महात्मा ने यह पौधा देते हुए मुझे निर्देश दिया था कि जिस व्यक्ति ने कभी झूठ ना बोला हो, उसके द्वारा लगाने पर ही खेत में सोने की फ़सल होगी. इसलिए मैं तो यह पौधा लगा नहीं सकता. कृपया आप दरबारियों में से किसी को यह पौधा लगाने का आदेश दे दीजिये.”

अकबर ने जब दरबारियों से धान का वह पौधा लगाने कहा, तो कोई सामने नहीं आया. अकबर समझ गए कि सभी ने कभी ना कभी झूठ बोला है. तब बीरबल ने वह पौधा अकबर के हाथ में दे दिया और बोला, “जहाँपनाह, यहाँ तो कोई भी सच्चा नहीं है. इसलिए ये पौधा आप ही लगायें.”

लेकिन अकबर भी वह पौधा लेने में हिचकने लगे और बोले, ”बचपन में हमने भी झूठ बोला है. कब ये याद नहीं, पर बोला है. इसलिए हम भी यह पौधा नहीं लगा सकते.”

यह सुनने के बाद बीरबल मुस्कुराते हुए बोला, “जहाँपनाह, इस पौधे को मैंने सुनार से बनवाया है. मेरा उद्देश्य मात्र आपको यह समझाना था कि दुनिया में लोग कभी न कभी झूठ बोलते ही हैं. जिस झूठ से किसी का बुरा ना हो, वह झूठ झूठ नहीं है.”

अकबर बीरबल की बात समझ गए थे. उन्होंने उसे वापस दरबार में स्थान दे दिया और सेवक की फांसी की सजा माफ़ कर दी.   


Akbar Birbal Kahani #20 : जल्दी बुलाकर लाओ

Akbar Birbal Kahani : एक दिन की बात है. बादशाह अकबर सुबह सोकर उठे और एक सेवक को बुलवाकर अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए बोले, “जाओ जल्दी बुलाकर लाओ?”

अकबर (Akbar) की बात सेवक के पल्ले नहीं पड़ी. किंतु उसमें इतना साहस नहीं था कि पलटकर अकबर से पूछ ले कि वे चाहते क्या हैं? आखिर किसे बुलाकर लाना है? वह “जी हुज़ूर” कहकर कक्ष से बाहर चला आया.

बाहर आकर उसने दूसरे सेवकों को यह बात बताई. वे भी उलझन में पड़ गए. सब इधर से उधर भाग-दौड़ करने लगे और जो मिला उससे अकबर की कही बात का अर्थ पूछने लगे. लेकिन किसी को उस बात का अर्थ समझ नहीं आया.

आखिरकार वह सेवक दौड़ा-दौड़ा बीरबल (Birbal) के घर गया और पूरी बात बताते हुए बोला, “हुज़ूर, आप ही बादशाह सलामत की बात का मतलब बता सकते हैं. सबसे पूछ चुका हूँ, पर कोई इसका अर्थ समझ नहीं पा रहा है. अगर जल्दी बादशाह का हुक्म नहीं बजाया, तो मेरी शामत आ जायेगी.”

बीरबल ने कुछ देर विचार किया. फिर सेवक से पूछा, “अच्छा ये बताओ, जब जहाँपनाह ने तुम्हें ये हुक्म दिया, तब वे क्या कर रहे थे?”

“बादशाह सलामत सोकर उठे थे और बिस्तर पर बैठकर अपनी दाढ़ी खुजा रहे थे.” सेवक सोचते हुए बोला.

बीरबल को पूरी बात समझते देर नहीं लगी और वो बोला, “हज्ज़ाम को लेकर फ़ौरन बादशाह सलामत के पास पहुँचो.”

सेवक ने वैसा ही किया और हज्ज़ाम को लेकर अकबर के सामने हाज़िर हो गया. अकबर हज्ज़ाम को देखकर सोच में पड़ गए – “मैंने तो सेवक को बताया ही नहीं था कि किसे बुलाना है. फिर ये हज्ज़ाम को लेकर कैसे आ गया?”

उन्होंने सेवक से पूछा, “सच-सच बताओ, किसके कहने पर तुम हज्ज़ाम को लेकर आये हो?”

घबराये सेवक ने बीरबल का नाम लिया और बोला कि बीरबल के सुझाव पर ही वह हज्ज़ाम को लेकर हाज़िर हुआ है. अकबर बीरबल की अक्लमंदी पर बहुत खुश हुए.


Akbar Birbal Kahani # 21 : आधी धूप आधी छाँव

Akbar Birbal Kahani
Akbar Birbal Kahani | Akbar Birbal Kahani

Akbar Birbal Kahani : एक बार अकबर बीरबल (Akbar Birbal) में किसी बात पर अनबन हो गई. अकबर ने गुस्से में आकर बीरबल को नगर छोड़कर जाने का आदेश दे दिया.

अकबर के आदेश के पालन में बीरबल नगर छोड़कर चला गया. वह एक गाँव में अपनी पहचान छुपाकर रहने लगा.

इधर दिन बीतने लगे और अकबर को बीरबल की कोई ख़बर नहीं लगी. बीरबल  अकबर का मुख्य सलाहकार होने के साथ-साथ परम मित्र भी था. अकबर को राजकीय कार्यों में बीरबल की सलाह की आवश्यकता महसूस होने लगी. साथ ही उन्हें उसकी याद भी सताने लगी.

उन्होंने सैनिकों को बीरबल को ढूंढने के लिए भेजा. किंतु वे उसका पता न लगा सके. अंत में अकबर ने बीरबल का पता लगाने के एक उपाय खोज निकाला. उन्होंने पूरे राज्य में ये ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई भी आधी धूप और आधी छाँव में उनसे मिलने आयेगा, उसे १००० स्वर्ण मुद्रायें ईनाम में दी जायेंगी. 

ये ख़बर उस गाँव में भी पहुँची, जहाँ बीरबल अज्ञातवास में रहता था. उसी गाँव में एक गरीब किसान भी रहता था. बीरबल ने सोचा कि यदि इस गरीब किसान को ईनाम की १००० स्वर्ण मुद्रायें मिल जायें, तो उसका भला हो जायेगा.

उसने किसान को अपने सिर पर एक चारपाई रखकर अकबर के पास जाने के लिए कहा. गरीब किसान ने वैसा ही किया.

सैनिकों ने जब उस किसान को भरी दोपहरी में अपने सिर पर चारपाई रखकर राजमहल की ओर आते देखा, तो अकबर को इस बात की सूचना दी. अकबर ने किसान को अपने पास बुलवाया. किसान ने अकबर के सामने हाज़िर होकर अपना ईनाम मांगा, तो अकबर ने पूछा, “सच-सच बताओ कि तुम्हें ऐसा करने किसने कहा था?”

भोले किसान ने सब कुछ सच-सच बता दिया, “जहाँपनाह, हमारे गाँव में एक भला मानुस आकर रुका है. उसी के कहने पर मैं सिर पर चारपाई रख आपके पास आया था.”

ये सुनकर अकबर समझ गए कि किसान को सलाह देने वाला व्यक्ति बीरबल ही है. उन्होंने फ़ौरन खजांची से कहकर किसान को १००० स्वर्ण मुद्रायें दिलवाई और सैनिकों को उसके साथ भेजकर बीरबल को वापस आने का पैगाम भिजवा दिया.

पैगाम पाकर बीरबल अकबर ने पास वापस लौट आया.      


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