Mythological Story

आसन की दूज की कहानी | Aaso Dooj Ki Kahani

आसन की दूज की कहानी लिखो (Aaso Dooj Ki Kahani) आसन की दूज का पर्व उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। इसे मुख्य रूप से भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व में बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। आसन की दूज से जुड़ी कई कथाएँ हैं, जिनमें से एक प्रचलित कथा राजा यमराज और उनकी बहन यमुनाजी की है। इस कथा के माध्यम से भाई-बहन के पवित्र संबंध और उनके प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाया गया है।  

Aaso Dooj Ki Kahani

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Aaso Dooj Ki Kahani

प्राचीन समय की बात है, यमराज और यमुनाजी भाई-बहन थे। यमराज मृत्यु के देवता और न्याय के संरक्षक माने जाते थे, जबकि यमुनाजी नदी के रूप में पूजनीय मानी जाती हैं। यमुनाजी अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थीं, और उन्हें अपने पास बुलाने की इच्छा हमेशा उनके मन में रहती थी। यमुनाजी ने कई बार यमराज को अपने घर आने के लिए बुलाया, लेकिन अपने कार्यभार के कारण यमराज उनके निवेदन को पूरा नहीं कर पाते थे।

एक दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुनाजी ने अपने भाई से मिलने की प्रबल इच्छा प्रकट की और उन्हें स्नेहपूर्वक अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया। यमराज ने अपनी बहन की स्नेहपूर्ण निवेदन को स्वीकार किया और उसके घर जाने का निर्णय लिया। यमुनाजी ने भाई के स्वागत की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने घर को सजाया, भोजन तैयार किया और भाई के स्वागत के लिए खुद को संवार कर इंतजार करने लगीं।

यमराज जब यमुनाजी के घर पहुँचे, तो यमुनाजी ने बड़े आदर और सम्मान के साथ उनका स्वागत किया। उन्होंने यमराज के चरण धोए और उनके लिए विविध प्रकार के पकवान बनाए। यमुनाजी ने अपने भाई का तिलक कर उन्हें मिठाई खिलाई और उनकी लंबी उम्र की कामना की। यमराज ने भी अपनी बहन के स्नेह और सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान देने का विचार किया।

यमराज ने यमुनाजी से कहा, “हे बहन! तुमने मेरे लिए जो स्नेह दिखाया है, मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे जो भी वरदान माँगना चाहो, मैं देने के लिए तैयार हूँ।”

इस पर यमुनाजी ने कहा, “भैया, मैं यही चाहती हूँ कि हर वर्ष इस दिन तुम मेरे घर पधारो और मेरा आशीर्वाद ग्रहण करो। इसके अलावा, मुझे यह वरदान दो कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के हाथों से तिलक कराएगा और बहन की सेवा में मन से शामिल होगा, उसकी आयु लंबी हो और उसे यमलोक का भय न हो।”

यमराज ने अपनी बहन की बात मान ली और उसे यह वरदान दिया। उन्होंने कहा, “हे बहन, तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण होगी। इस दिन जो भाई अपनी बहन से तिलक कराएगा और उसे उपहार देगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।”

इस प्रकार यमराज ने यमुनाजी को वरदान देकर उन्हें संतुष्ट किया और उनके घर से प्रसन्न मन से विदा हुए। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं, उनके लिए अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना करती हैं, और भाइयों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वे सदा सुरक्षित और खुशहाल रहेंगे। 

यमुनाजी और यमराज की इस कथा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। यह कथा केवल एक भाई-बहन के प्रेम को ही नहीं, बल्कि उनकी एक-दूसरे के प्रति चिंता, स्नेह और सम्मान को भी दर्शाती है। इस दिन बहनें भाइयों की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं, जबकि भाई भी अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनके सुखद भविष्य की कामना करते हैं। इस तरह आसन की दूज या भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है।

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