फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम अब्राहीम की कहानी (Abraham Bible Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. इब्राहीम ईश्वर का अनुयायी था. उसने ईश्वर की वाणी का विश्वास किया और उसकी आज्ञा पर चला. इसलिए ईश्वर की कृपादृष्टि से उसके वंश का विस्तार हुआ और वह कई राष्ट्रों का स्वामी बना. आइये जानते हैं बाइबिल के अनुसार अब्राहीम का इतिहास (History Of Abraham In The Bible In Hindi) :
Bible Story Of Abraham In Hindi
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अब्राहीम (Abraham) नूह का वंशज था. नूह के तीन पुत्र थे – हाम, याफेत और सेम. सेम की वंशावली इस प्रकार थी : सेम का पुत्र था अरफ़क्षद, अरफ़क्षद का पुत्र शेलह, शेलह का पुत्र एबेर, एबेर का पुत्र पेलेग, पेलेग का पुत्र रऊ, रऊ का पुत्र सरूग, सरूग का पुत्र नाहोर, नाहोर का पुत्र तेरह. इनके अतिरिक्त भी सेम और उसके पुत्रों के कई अन्य पुत्र-पुत्रियाँ थे.
तेरह के तीन पुत्र थे – अब्राम, नाहोर, हारान. ‘अब्राम’ ही आगे चलकर ‘अब्राहीम’ (Abraham) कहलाया. अब्राम की पत्नि सारय थी, जो आगे चलकर ‘सारा’ कहलाई. अब्राम अपने पिता तेरह और परिवार के साथ खल्दैया देश ने उरू नगर में निवास करता था.
जब उसके पिता तेरह खल्दैया देश छोड़कर कनान देश के लिए रवाना हुए, तो वह भी अपनी पत्नि के साथ उनके साथ गया. लेकिन वे सब हारान देश पहुँचकर वहीं रहने लगे. तेरह की हारान देश में मृत्यु हुई. उसकी मृत्यु के बाद अब्राम अपने परिवार के साथ हारान में ही रहा.
एक रात ईश्वर अब्राम के सामने प्रकट हुए और उससे हारान छोड़ देने का आदेश दिया. वे बोले, “अपना देश, अपना कुटुंब और अपने पिता का घर छोड़ दो और उस देश जाओ, जिसे मैं तुम्हें दिखाऊँगा. मैं तुम्हारे द्वारा एक महान राष्ट्र उत्पन्न करूंगा, तुम्हें आशीर्वाद दूंगा और तुम्हारा नाम इतना महान बनाऊंगा कि वह कल्याण का स्रोत बन जायेगा. जो तुम्हें आशीर्वाद देते हैं, मैं उन्हें आशीर्वाद दूंगा. जो तुम्हें शाप देते हैं, मैं उन्हें शाप दूंगा. तुम्हारे द्वारा पृथ्वी भर के वंश आशीर्वाद प्राप्त करेंगे.”
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अब्राह ने ईश्वर की आज्ञा का पालन किया. वह हारान देश छोड़कर कनान (Canaan) देश की ओर निकल पड़ा. उसकी पत्नि सारय, उसका भतीजा लोट और वे समस्त लोग भी उसके साथ थे, जो उसे हारान में मिले थे. वह अपनी संपत्ति और जानवरों को भी साथ ले गया.
विभिन्न नगरों और गाँवों को पारकर वे कनान देश पहुँचे. आगे बढ़ते हुए वे मोरे नगर के बलूत नामक स्थान पर पहुँचे, जहाँ ईश्वर ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, “मैं यह देश तुम्हारे वंशजों को प्रदान करूंगा.”
अब्राम ने बेतेल के पूर्व एक पहाड़ी पर जाकर अपना पड़ाव डाला और प्रभु के लिए एक वेदी बनाकर प्रार्थना की.
अब्राम अपने परिवार और लोगों के साथ वहाँ रहने लगा. किंतु जब वहाँ घोर अकाल पड़ा, तो उसे मिस्र जाना पड़ा. मिश्र में प्रवेश करने के पूर्व अब्राम चिंतित था. वह जानता था कि सारय की सुंदरता देख मिस्री उसे अपनी पत्नि बनाना चाहेंगे और जब उन्हें पता चलेगा कि वह उसकी पत्नि है, तो वे उसे मार डालेंगे.
इसलिए उसने सारय से कहा, “तुम सबसे कहना कि तुम मेरी बहन हो. इस तरह तुम्हारे कारण मैं जीवित रह सकूंगा और वे मुझसे अच्छा व्यवहार करेंगे. नहीं तो, ये जानकर कि तुम मेरी पत्नि हो, वे मुझे जीवित नहीं छोड़ेंगे.”
सारय ने वैसा ही किया, जैसा अब्राम ने उसे कहा. मिस्री उन्हें अपने राजा फिराऊन के पास ले गए. फिराऊन सारय की सुंदरता पर मुग्ध हो गया और उसे अपनी पत्नि बना लिया. अब्राम को उसका भाई समझकर उसने ख़ूब आव-भगत की और उसे भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, गधे, ऊँट, नौकर, नौकरानी प्रदान किये.
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अब्राम कुछ समय तक मिस्र में रहा. सारय फिराऊन के साथ महल में रही. सारय से विवाह के बाद फिराउन और उसके परिवार पर ईश्वर ने कई रोग और विपत्तियाँ भेजी. फिराउन ईश्वर की नाराज़गी का कारण समझ नहीं पा रहा था.
किंतु जब उसे पता चला कि अब्राम ने उससे झूठ कहा है और सारय उसकी बहन नहीं, बल्कि पत्नि है. तो उसे ईश्वर द्वारा भेजी विपत्ति का कारण समझ में आ गया.
उसने अब्राम को बुलाया और कहा, “तुमने मुझे क्यों नहीं बताया कि सारय तुम्हारी पत्नि है. तुम्हारी बहन समझकर मैंने उसे अपनी पत्नि बना लिया था. लेकिन अब तुम उसे लेकर इस देश से निकल जाओ.”
अब्राम सारय, अपने भतीजे लोट और अर्जित संपत्ति के साथ मिस्र छोड़कर बेतेल की पहाड़ी पर उसी स्थान पर आ गया, जहाँ उसने पहले अपना पड़ाव बनाया था. वहाँ उसने फिर से वेदी बनाई और प्रभु से प्रार्थना की.
अब्राम और लोट के पास बहुत अधिक भेड़-बकरियाँ, चौपाये और संपत्ति थी. उनके पास इतनी अधिक संपत्ति थी कि उनका साथ रहना कठिन हो गया था, क्योंकि उनके चरवाहों में प्रायः झगड़े होने लगे. अब्राम नहीं चाहता था कि आगे चलकर उसका और लोट का संबंध बिगड़ जाए. इसलिए उसने लोट को उसका मनचाहा प्रदेश दिया और उससे अलग हो गया.
लोट ने यर्दन नदी की घाटी चुनी और अब्राम कनान की भूमि पर रहा.
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एक दिन प्रभु ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, अपनी दृष्टि ऊपर उठाओ और जहाँ खड़े हो, वहाँ से चारों दिशाओं में दृष्टि घुमाओ. ये समस्त प्रदेश मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को दूंगा. जाओ इस देश के चारों ओर घूमने जाओ.”
इसके बाद अब्राम ह्र्ब्रोन में मामरे के बलूत के पास बस गया.
कई वर्ष गुजर गए. लेकिन अब्राम की पत्नि सारय को कोई संतान नहीं हुई. मिस्र से सारय के साथ ‘हागार’ नामक दासी भी आई थी. एक दिन सारय ने अब्राम से कहा कि वह संतान प्राप्ति के लिए हागार को अपनी उप-पत्नि के रूप में स्वीकार कर ले. अब्राम ने यह बात मान ली. हागार भी इसके लिए तैयार हो गई.
अब्राम की उप-पत्नि बनने की बाद हागार गर्भवती हुई. स्वयं के गर्भवती होने की बात जानने के बाद वह अपनी स्वामिनी सारय का तिरस्कार करने लगी. इस बार से क्रुद्ध होकर सारय ने हागार की शिकायत अब्राम से की, तो अब्राम ने उससे कहा कि हागार तुम्हारी दासी है. तुम जैसा चाहो, उससे व्यवहार करो.
इसके बाद सारय हागार से इतना दुर्व्यवहार करने लगी कि हागार घर छोड़कर भाग गई. वह एक उजाड़ प्रदेश में एक झरने के पास बैठी हुई थी, तब प्रभु के दूत ने उसे दर्शन दिए और उसे वापस घर लौट जाने को कहा. उसने उसे कहा कि तुम शीघ्र की एक पुत्र को जन्म दोगी, उसका नाम ‘इस्माएल’ रखना.
हागार अब्राम और सारय के पास लौट गई. उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम ‘इस्माएल’ रखा गया. इस्माएल के जन्म के समय अब्राम की आयु छयासी वर्ष थी.
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जब अब्राम निन्यानबे वर्ष का हुआ, तब ईश्वर उसके सामने फिर से प्रकट हुए और बोले, “मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूँ. तुम अब से ‘अब्राम’ नहीं ‘अब्राहीम’ (Abraham) कहलाओगे, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत से राष्ट्रों का पिता बनाऊंगा. तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे. तुम अपनी पत्नि को ‘सारय’ नहीं ‘सारा’ पुकारो. मैं उसे पुत्र प्रसव करने का आशीर्वाद देता हूँ. तुम्हारे पुत्र इस्माएल के वशजों की संख्या भी मैं बढ़ाऊँगा. उसकी बारह संतान होगी और उससे महान राष्ट्र उत्पन्न होगा.”
यह सुन अब्राहीम मन ही मन हंसने लगा कि क्या इस आयु में सारा पुत्र प्रसव करेगी और वह इस आयु में पिता बन पायेगा.
तब ईश्वर के कहा, “सारा तुम्हारे लिए पुत्र प्रसव करेगी. तुम उसका नाम ‘इसहाक’ रखना. मैं उसका और उसके वंशजों का ईश्वर होऊंगा.”
इस घटना के बाद एक दिन अब्राहीम बलूत के पास तेज़ गर्मी में अपने तम्बू के पास बैठा हुआ था, तब तीन पुरुष उसके पास आये. अब्राहीम ने उनका ख़ूब आदर-सत्कार किया. उन्होंने अब्राहीम से पूछा, “तुम्हारी पत्नि सारा कहाँ है?”
अब्राहीम (Abraham) ने उन्हें बताया कि वह तम्बू के अंदर बैठी हुई है. तब उन्होंने कहा कि हम एक वर्ष बाद फिर तुम्हारे पास आयेंगे. उस समय सारा को एक पुत्र होगा.
तम्बू के अंदर बैठी सारा ने जब यह बात सुनी, तो हँसने लगी. वह यह सोच कर हँसी थी कि नब्बे वर्ष की आयु में वह माँ कैसे बन सकती है? किंतु प्रभु की कृपादृष्टि से सारा गर्भवती ही और उसने एक पुत्र को जन्म दिया. इब्राहीम ने उसका नाम ‘इसहाक’ रखा.
सारा ईश्वर की बात पर हंसी थी. इसलिए इसहाक के जन्म पर वह बोली, “ईश्वर में मुझे हँसने दिया था. इसलिए अब जो भी यह बात सुनेगा, वह मुझ पर हँसेगा.”
पुत्र प्राप्ति के लिए अब्राहीम (Abraham) ने ईश्वर का धन्यवाद दिया. इस प्रकार ईश्वर ने अपना वचन निभाया.
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