मशहूर कहानीकार ईसप की 21 श्रेष्ठ दंतकथाएं

फ्रेंड्स, ईसप की दंतकथाएं (Best Aesops Fables In Hindi) विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय कथाओं में सम्मिलित है. Aesop’s Ki Kahaniyan 620 ई.पू. से 520 ई.पू. के मध्य प्राचीन यूनान के एक गुलाम और कहानीकार ईसप द्वारा लिखी गई हैं. बच्चों को कहानी के माध्यम से नैतिक शिक्षा प्रदान करना इन कहानियों का उद्देश्य है. आज इस लेख में हम ईसप की चुनिंदा कहानियों का संग्रह प्रस्तुत कर रहे हैं. पढ़िए  :

Aesops Fables
Aesops Fables In Hindi | Aesop’s Fables In Hindi

21 Best Aesop’s Fables In Hindi

बिल्ली के गले में घंटी 

एक शहर में एक बहुत बड़ा मकान था. उस मकान में चूहों ने डेरा जमा रखा था. जब भी मौका मिलता वे अपने-अपने बिलों से निकलते और कभी खाने की चीज़ों पर अपना हाथ साफ़ करते, तो कभी घर की अन्य चीज़ें कुतर देते. उनका जीवन बड़े मज़े से बीत रहा था.

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इधर मकान मालिक चूहों से तंग आ चुका था. इसलिए वह एक बड़ी सी  बिल्ली ले आया. अब वह बिल्ली उसी घर में रहने लगी. बिल्ली के आने से चूहों का जीना हराम हो गया. जो भी चूहा बिल से निकलता, वह उसे चट कर जाती.

चूहों का बिलों से निकलना मुहाल हो गया. वे दहशत के माहौल में जीने लगे. बिल्ली उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गई थी. समस्या से निज़ात पाने का उपाय निकालने के लिए एक दिन चूहों की सभा बुलाई गई.

सभा में सभी चूहे उपस्थित हुए. सभा की अध्यक्षता कर रहे चूहे ने सबको संबोधित करते हुए कहा, “साथियों, आप सब जानते ही हैं कि हम लोग बिल्ली रुपी बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं. वह रोज़ हमारे किसी न किसी साथी को मारकर खा जाती है. बिलों से निकलना मुश्किल हो गया है. लेकिन इस तरह हम कब तक बिल में छुपकर रहेंगे. भोजन की व्यवस्था के लिए तो हमें बिल से बाहर निकलना ही होगा. यह सभा इसलिए आयोजित की गई है, ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके. आपके सुझाव आमंत्रित हैं. आप एक-एक कर अपने सुझाव दे सकते हैं.”

एक-एक कर सभी चूहों से इस समस्या पर अपनी-अपनी सोच के हिसाब से सुझाए दिए. लेकिन किसी भी उपाय पर सब एकमत नहीं हुए.

तब अंत में एक चूहा उठा और चहकते हुए बोला, “मेरी दिमाग में अभी-अभी एक बहुत ही बढ़िया उपाय आया है. क्यों न हम बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दें? इस तरह बिल्ली जब भी आस-पास होगी, उस घंटी की आवाज़ से हमें पता चल जायेगा और हम वहाँ से भाग जायेंगे. कहो कैसा लगा उपाय?”  

सारे चूहों को ये उपाय बहुत पसंद आया. वे ख़ुशी में नाचने और झूमने लगे, मानो उनकी समस्या का अंत हो गया हो.

तभी एक बूढ़ा और अनुभवी चूहा खड़ा हुआ और बोला, “मूर्खों, नाचना-गाना बंद करो और ज़रा ये तो बताओ कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा?”

ये सुनना था कि चूहों का नाचना-गाना बंद हो गया. बिल्ली के गले में घंटी बांधना अपनी जान से हाथ धोना था. कोई इसके लिए तैयार नहीं हुआ. सभा में शांति छा गई थी. तभी इस शांति को चीरते हुए बिल्ली के कदमों की आहट सबके कानों में पड़ी और फिर क्या था? सब सिर पर पैर रखकर अपने-अपने बिलों की ओर भाग खड़े हुए.

सीख (Moral of the story)

योजना बनाने का कोई औचित्य नहीं, यदि उसे लागू न किया जा सके.


आलसी गधा

एक गाँव में नमक का व्यापारी रहता था. उसके पास एक गधा था. व्यापारी रोज़ अपने गोदाम से दुकान तक नमक ले जाने के लिए गधे का इस्तेमाल किया करता था. वह नमक को बोरी में भरकर गधे की पीठ पर लाद देता और उसके साथ-साथ चलता हुआ दुकान तक आता था. 

व्यापारी का गधा आलसी प्रवृत्ति का था. काम से बचने के लिए वह नित नए उपाय सोचता रहता था. गोदाम से दुकान तक के रास्ते में एक नदी पड़ती थी, जिस पर एक छोटा पुल बना हुआ है. एक दिन नदी पर बने पुल पर चलते समय अचानक गधे का पैर फिसला और वह नदी में जा गिरा.

नदी के पानी से नमक की बोरी भीग गई. जब तक व्यापारी ने गधे को पानी से निकाला, तब तक बोरी में भरा बहुत सारा नमक घुल चुका था. गधा जब चलने लगा, तो उसे बोरी का भार बहुत कम महसूस हुआ और वह ख़ुश हो गया.

उसने सोचा कि अपने ऊपर लदा बोझ हल्का करने का ये बहुत  बढ़िया तरीका है. अगले दिन वह जानबूझकर नदी में गिर पड़ा. नमक पानी में घुल जाने से बोरी का वजन फिर कम हो गया. उसके बाद से वह हर रोज़ ऐसा ही करने लगा.

रोज़-रोज़ गधे की ये हरक़त देखकर व्यापारी उसकी चालाकी समझ गया. उसने गधे को सबक सिखाने का फ़ैसला कर लिया और अगले दिन बोरी में नमक के स्थान पर रुई भरकर गधे की पीठ पर लाद दिया.

रुई हल्की थी. इसके बाद भी आलसी गधे ने सोचा कि क्यों न रोज़ की तरह नदी के पानी में गिरकर इस वजन को और कम कर लिया जाए. इसलिए वह जानबूझकर नदी में गिर पड़ा.

लेकिन इस बार बोरी में नमक नहीं बल्कि रुई थी. पानी में भीगकर रुई का वजन कई गुना बढ़ गया. गधा जब उठकर चलने को हुआ, तो इतने भारी बोझ से उसका बुरा हाल हो गया. उस दिन के बाद से उसने कभी आलस न करने का निर्णय किया.

सीख (Moral Of The Aesops Fables) 

१. आलस का फ़ल कभी न कभी मिल ही जाता है. 

२. एक ही उपाय हर बार कारगर सिद्ध नहीं होता.

सूअर और भेड़ 

रोज़ की तरह एक चरवाहा अपनी भेड़ों को घास के मैदान में चरा रहा था. तभी कहीं से एक मोटा सूअर वहाँ आ गया. जब चरवाहे की नज़र सूअर पर पड़ी, तो उसने उसे पकड़ लिया.

जैसे ही चरवाहे ने सूअर को पकड़ा, वो तेज आवाज़ में चीखने लगा और ख़ुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगा. लेकिन चरवाहे की पकड़ मजबूत थी. उसने सूअर के सामने और पीछे के दोनों पैर रस्सी से बांध दिए और उसे अपने कंधे पर लटकाकर कसाई के पास जाने लगा.

सूअर ज़ोर-ज़ोर से चीख रहा था और चरवाहा चला जा रहा था. मैदान में चर रही भेड़ें सूअर के इस व्यवहार पर बहुत चकित थीं. उनमें से एक भेड़ कुछ दूर तक चरवाहे के पीछे-पीछे गई और सूअर से बोली, “इस तरह चीखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती? चरवाहा रोज़ हममें से एक भेड़ को पकड़कर ले जाता है, लेकिन हम तो यूं नहीं चीखते. तुम तो बेकार में इतना उत्पात मचा रहे हो. शर्म करो.”

भेड़ की बात पर सूअर को बहुत गुस्सा आया. वह और जोर से चीखते हुए बोला, “चुप रहो! चरवाहा जब तुम लोगों को पकड़कर ले जाता है, तो उसे बस तुम्हारा ऊन चाहिए होता है. लेकिन उसे मेरा मांस चाहिए. जब तुम्हारी जान पर बनेगी, तब बहादुरी दिखाना.”

सीख (Moral Of The Story)

जब ख़ुद की जान पर कोई ख़तरा नहीं होता, तब बड़ी-बड़ी बातें करना और बहादुरी दिखाना बहुत आसान होता है.

उत्तरी हवा और सूर्य 

एक बार की सूर्य और उत्तरी हवा में बहस छिड़ गई. उत्तरी वायु घमंडी और ज़िद्दी प्रवृत्ति की थी. उसे अपनी शक्ति पर बड़ा अभिमान था. अक्सर वह प्रचंड वेग से बहती और पेड़ों को उखाड़ फेंकती, घरों को गिरा देती, खेतों में खड़ी फसल बर्बाद कर देती थी. उसमें उपस्थित आर्द्रता झीलों और नदियों के पानी को जमा देती थी.  

बहस करते हुए वह सूर्य से बोली, “मेरी शक्ति के सामने किसी का ज़ोर नहीं चलता. मैं दुनिया में सबसे ज्यादा शक्तिशाली हूँ. मेरे सामने सब तुच्छ हैं.”

सूर्य नम्रता से बोला, “मेरे विचार से हर किसी में शक्तियाँ भी होती हैं और कमजोरियाँ भी. इसलिए कोई ख़ुद के सबसे शक्तिशाली होने का दावा नहीं कर सकता. ख़ुद पर घमंड करना उचित नहीं है. हमें सबका सम्मान करना चाहिए और सबके साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए.”

उत्तरी हवा तुनककर बोली, “मैं तुम्हारी बात नहीं मानती. मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली हूँ और ये मैं तुम्हें साबित करके दिखाऊंगी.”

“ऐसी बात है, तो अपनी ताकत साबित करने के लिए तैयार हो जाओ. नीचे देखो. धरती पर एक व्यक्ति दुशाला ओढ़े पैदल जा रहा था. तुम उसकी दुशाला उसके शरीर से हटा दो. मैं मान जाऊंगा कि तुम सबसे ज्यादा शक्तिशाली  हो.” सूर्य उत्तरी हवा को चुनौती देते हुए बोला.

“इसमें कौन सी बड़ी बात है? कुछ ही देर में उस आदमी की दुशाला धरती पर पड़ी होगी.” कहकर उत्तरी हवा अपने प्रचंड रूप में आ गई. धरती पर धूल भरी आंधी चलने लगी, पेड़-पौधे लहराने लगे, सूखे पत्ते व अन्य सामान उड़ने लगे, मौसम ठंडा होने लगा. पैदल जा रहे व्यक्ति की दुशाला भी हवा के वेग के कारण उड़ने लगी. लेकिन उसने उसे पकड़ लिया और अपने शरीर से कसकर लपेट लिया. उत्तरी हवा ने अपनी प्रचंडता और बढ़ाई, लेकिन उसके साथ ठंड भी बढ़ गई. व्यक्ति ने अपनी दुशाला और कसकर लपेट ली. बहुत प्रयासों के बाद भी उत्तरी हवा उसके शरीर से दुशाला हटा नहीं पाई.

तब सूर्य बोला, “अब तुम देखना कि कैसे ये व्यक्ति ख़ुद-ब-ख़ुद अपनी दुशाला उतार देगा.”

सूर्य ने अपना ताप बढ़ाना शुरू किया. तापमान बढ़ते ही धरती पर जा रहे व्यक्ति को गर्मी लगने लगे. वह पसीना-पसीना हो गया. फिर क्या? उसने खुद ही अपनी दुशाला उतार दी.

यह देखकर उत्तरी हवा बहुत शर्मिंदा हुई. अपने घमंड के कारण उसे सूर्य के सामने नीचा देखना पड़ा. उस दिन के बाद से उसने अपनी शक्ति पर कभी घमंड नहीं किया.

सीख (Moral of the story)

घमंडी का सिर नीचा होता है.

दो घड़े 

नदी किनारे एक छोटा सा गाँव बसा हुआ था. नदी गाँव के लोगों के लिए पानी का प्रमुख श्रोत थी. लेकिन जब बरसात के मौसम आया और गाँव में कई दिनों तक घनघोर बारिश हुई, तो नदी में बाढ़ गई. बाढ़ का पानी पूरे गाँव में भर गया. मकान पानी में डूब गए, लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भागना पड़ा. 

बाढ़ के पानी में लोगों के घरों की कई चीज़ें बहने लगी. उनमें दो घड़े भी थे. एक पीतल का घड़ा था और एक मिट्टी का. दोनों ही घड़े पानी में ख़ुद को बचाने का प्रयत्न कर रहे थे. पीतल के कठोर और मजबूत घड़े ने जब मिट्टी के कमज़ोर घड़े को संघर्ष करते देखा, तो सोचने लगा कि मिट्टी का ये कमज़ोर घड़ा आखिर कब तक ख़ुद को डूबने से बचा पायेगा? मुझे इसकी सहायता करनी चाहिए.

उसने मिट्टी के घड़े से कहा, “मित्र सुनो, तुम मिट्टी के बने हुए हो और बहुत कमज़ोर हो. बाढ़ के इस पानी में तुम अधिक दूर तक नहीं जा पाओगे और डूब जाओगे. मेरी बात मानो और मेरे साथ रहो. मैं तुम्हें डूबने से बचा लूंगा.”

मिट्टी के घड़े ने पीतल के घड़े को देखा और उत्तर दिया, “मित्र! तुम्हारी सहायता के प्रस्ताव के लिए धन्यवाद. लेकिन मेरा तुम्हारे आस-पास रहना मेरे सलामती के लिए उचित नहीं है. तुम ठहरे पीतल के बने घड़े और मैं मिट्टी का घड़ा. तुम बहुत कठोर और मजबूत हो. अगर तुम मुझसे टकरा गए, तो मैं तो चकनाचूर हो जाऊंगा. इसलिए तुमसे दूर रहने में ही मेरी भलाई है. मैं स्वयं ही ख़ुद को बचाने का प्रयास करता हूँ. भगवान ने चाहा, तो किसी तरह किनारे तक पहुँच ही जाऊँगा.”

इतना कहने के बाद मिट्टी का घड़ा दूसरी दिशा में बहने का प्रयत्न करने लगा और धीरे-धीरे पानी के बहाव के साथ नदी किनारे पहुँच गया. वहीं दूसरी ओर पीतल का भारी घड़ा भी प्रयत्न करता रहा, लेकिन नदी के पानी के तेज बहाव में ख़ुद को संभाल नहीं पाया. उसमें पानी भर गया और वह डूब गया.

सीख (Moral of the story)

विपरीत गुणों की अपेक्षा एक समान गुण वाले अच्छी मित्रता कायम कर पाते हैं.

ख़रगोश और उसके कान

बहुत समय पहले की बात है. एक जंगल में एक शक्तिशाली शेर रहा करता था. उसे भूख लगती, तो वह शिकार पर निकलता और जो जानवर उसके सामने पड़ जाता, उसका शिकार कर वह अपनी भूख मिटाता था. जंगल के सभी जानवर उससे डरते थे.

एक दिन शेर ने एक बकरी का शिकार किया. जब वह उसे खाने लगा, तो उसकी नुकीली सींगों से बुरी तरह घायल हो गया. उसे बहुत क्रोध आया और उसने तय किया कि जंगल में सींगों वाले जानवरों के लिए कोई जगह नहीं है. उसने पूरे जंगल में ये घोषणा करवा दी कि सींग वाले सभी जानवर जंगल छोड़कर चले जाए.

यह घोषणा सुनकर बेचारे सींग वाले जानवर क्या करते? सबमें शेर का भय था. इसलिए जंगल छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे. उस जंगल में एक ख़रगोश भी रहता था. जब उसने भी शेर की घोषणा सुनी, तो डर के मारे सारी रात सो नहीं पाया.

अगली सुबह सींग वाले सभी जानवर जंगल से जाने लगे. उनमें से कई ख़रगोश के मित्र भी थे. ख़रगोश आख़िरी बार अपने मित्रों से मिलने गया. जब वह उनसे मिलकर वापस लौटने लगा, तो उसे धूप में अपनी परछाई दिखाई पड़ी. परछाई में जब उसने अपनी लंबे कानों को देखा, तो डर गया.

उसने सोचा कि कहीं मेरे लंबे कानों को शेर सींग न समझ ले. यदि उसके ऐसा समझ लिया, तो फिर चाहे मैं उसे कितना ही क्यों न समझाऊं, वह मेरी बात नहीं मानेगा. बेमौत मरने से अच्छा है कि मैं भी जंगल छोड़कर चला जाऊं. उसके बाद बिना देर किये उसने भी जंगल छोड़ दिया.

सीख (Moral Of The Story)

समझदारी इसी में है कि अपने शत्रुओं को ऐसा कोई अवसर न दिया जाए कि वह आप पर या आपकी प्रतिष्ठा पर आघात कर सके.

मूर्ख ज्योतिषी 

बहुत समय पहले की बात है. एक गाँव में एक ज्योतिषी रहा करता था. उसका विश्वास था कि वह तारों को देखकर भविष्य पढ़ सकता है. इसलिए वह सारी-सारी रात आसमान को ताकता रहता था. गाँव वालों के सामने भी वह अपनी इस विद्या के बारे में ढींगे हांका करता था.

एक शाम वह गाँव की कच्ची सड़क पर पैदल चलता हुआ अपने घर की ओर जा रहा है. उसकी नज़रें आसमान पर चमकते तारों पर जमी हुई थी. वह तारों को देखकर आने वाले समय में क्या छुपा है, यह पढ़ने की कोशिश कर रहा था. तभी अचानक उसका पैर कीचड़ से भरे एक गड्ढे पर पड़ा और वह गड्ढे में जा गिरा.

वह कीचड़ में लथपथ हो गया और किसी तरह गड्ढे से बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मारने लगा. लेकिन एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी वह गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाया. सारी कोशिश बेकार जाती देख वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा.

उसकी चिल्लाने की आवाज़ सुन कुछ लोग दौड़े चले आये. उन्होंने उसे गड्ढे में गिरे देखा, तो समझ गए कि आदतवश वह आसमान में तारों को देखकर भविष्य को समझने लगा हुआ होगा और सड़क का गड्ढा उसने नहीं देखा होगा.

उन्होंने उसे बाहर निकाला और बोले, “तुम आसमान में तारों को देखकर भविष्य पढ़ते रहते हो और तुम्हें यही नहीं पता कि तुम्हारे पैरों तले क्या है? भविष्य की तलाश में मत भटको, जो सामने है, उस पर ध्यान दो. भविष्य अपना ख्याल खुद ही रख लेगा.

सीख (Moral of the story)

हमारा आज ही कल अर्थात् भविष्य का निर्माण करता है. इसलिए भविष्य की चिंता छोड़कर आज पर ध्यान केंद्रित कर कर्म करो. आज मन लगाकर कर्म करोगे, तो ये कर्म स्वतः भविष्य का निर्माण कर लेंगे. 

 मेंढक और बैल

एक मेंढक अपने तीन बच्चों के साथ जंगल में नदी किनारे रहता था. उन चारों की दुनिया जंगल और नदी तक ही सीमित थी. बाहरी दुनिया से उनका कोई वास्ता नहीं  था.

खाते-पीते बड़े आराम और मज़े से उनका जीवन कट रहा था. मेंढक हृष्ट-पुष्ट था. उसके बच्चों के लिए वह दुनिया का सबसे विशालकाय जीव था. वह रोज़ उन्हें अपनी बहादुरी के किस्से सुनाता और उनकी प्रशंसा पाकर फूला नहीं समाता था.

एक दिन मेंढक (Frog) के तीनों बच्चे घूमते-घूमते जंगल के पास  स्थित एक गाँव में पहुँच गए. वहाँ उनकी दृष्टि एक खेत में चरते हुए बैल पर पड़ी. इतना विशालकाय जीव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. वे कुछ डरे, किंतु उसकी विशाल काया को देखते रहे. तभी बैल (Ox) ने हुंकार भरी और मेंढक के तीनों बच्चे डर के मारे उल्टे पांव भागते हुए अपने घर आ गए.

बच्चों को डरा हुआ देखकर जब मेंढक ने कारण पूछा, तो उन्होंने विस्तारपूर्वक बैल के बारे में बता दिया, “इतना बड़ा जीव हमने आज से पहले कभी नहीं देखा. हमें लगता है दुनिया का सबसे विशालकाय जीव आप नहीं वह है.”

अपने बच्चों की बात सुनकर मेंढक को बुरा लगा. उसने पूछा, “वह जीव दिखने में कैसा था?”

“उसके चार बड़े-बड़े पैर थे. एक लंबी सी पूंछ थी. दो नुकीले सींग थे. शरीर तो इतना बड़ा कि आपका शरीर उसके सामने कुछ भी नहीं.” बच्चे बोले.

यह सुनकर मेंढक के अहंकार को जबरदस्त ठेस पहुँची. उसने जोर के सांस खींची और हवा भरकर अपना शरीर फुला लिया. फिर बच्चों से पूछा, ”क्या वह इतना बड़ा था.”

“नहीं इससे बहुत बड़ा.” बच्चे बोले.

मेंढक ने थोड़ी और हवा भरकर अपना शरीर और फुलाया, “क्या इतना बड़ा?”

“नहीं नहीं और बड़ा.”

मेंढक ने जंगल के बाहर कभी कदम ही नहीं रखा था. उसे बैल के आकार का अनुमान ही नहीं था. किंतु उसने मानो ज़िद पकड़ ली थी कि अपने बच्चों के सामने स्वयं को नीचा नहीं दिखाना है.

वह जोर से सांस खींचकर ढेर सारी हवा अपने शरीर में भरने लगा. उसका छोटा सा शरीर गेंद के समान गोल हो गया. किंतु इतने पर भी वह नहीं रुका. उसका शरीर में हवा भरना जारी रहा. उसने इतनी सारी हवा अपने शरीर में भर ली कि उसका शरीर वह संभाल नहीं पाया और फट गया. अपने अहंकार में मेंढक के प्राण पखेरू उड़ गए.

सीख (Moral of the story)

अहंकार पतन का कारण है.

सोने का अंडा देने वाली मुर्गी

एक गाँव में एक किसान अपनी पत्नि के साथ रहता था. उनका एक छोटा सा खेत था, जहाँ वे दिन भर परिश्रम किया करते थे. किंतु कठोर परिश्रम के उपरांत भी कृषि से प्राप्त आमदनी उनके जीवन-यापन हेतु पर्याप्त नहीं थी और वे निर्धनता का जीवन व्यतीत करने हेतु विवश थे.

एक दिन किसान बाज़ार से कुछ मुर्गियाँ ख़रीद लाया. उसकी योजना मुर्गियों के अंडे विक्रय कर अतिरिक्त धन उपार्जन था. अपनी पत्नि के साथ मिलकर उसने घर के आंगन में एक छोटा सा दड़बा निर्मित किया और मुर्गियों को उसमें रख दिया.

भोर होने पर जब उन्होंने दड़बे में झांककर देखा, तो आश्चर्यचकित रह गए. वहाँ अन्य अंडों के साथ एक सोने का अंडा भी पड़ा हुआ था. किसान उस सोने के अंडे को अच्छी कीमत पर जौहरी के पास बेच आया.

अगले दिन फिर उन्होंने दड़बे में सोने का अंडा पाया. किसान और उसकी पत्नि समझ गए कि उनके द्वारा पाली जा रही  मुर्गियों में से एक मुर्गी अद्भुत है. वह सोने का अंडा देती है. एक रात पहरेदारी कर वे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पहचान गए. उसके बाद से वे उसका ख़ास ख्याल रखने लगे. उस मुर्गी से उन्हें रोज़ सोने का अंडा मिलने लगा. उन अंडों को बेचकर किसान कुछ ही महिनों में धनवान हो गया.

किसान अपने जीवन से संतुष्ट था. किंतु उसकी पत्नि लोभी प्रवृत्ति की थी. एक दिन वह किसान से बोली, “आखिर कब तक हम रोज़ एक ही सोने का अंडा प्राप्त करते रहेंगे. क्यों न हम मुर्गी के पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लें? इस तरह हम उन्हें बेचकर एक बार में इतने धनवान हो जायेंगे कि हमारी सात पुश्तें आराम का जीवन व्यतीत करेंगी.”

पत्नि की बात सुनकर किसान के मन में भी लोभ घर कर गया. उसने मुर्गी को मारकर उसके पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लेने का मन बना लिया. वह बाज़ार गया और वहाँ से एक बड़ा चाकू ख़रीद लाया.

फिर रात में अपनी पत्नि के साथ वह मुर्गियों के दड़बे में गया और सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पकड़कर उसका पेट चीर दिया. किंतु मुर्गी भीतर से सामान्य मुर्गियों की तरह ही थी. उसके पेट में सोने के अंडे नहीं थे. किसान और उसकी पत्नि अपनी गलती पर पछताने लगे. अधिक सोने के अंडों के लोभ में पड़कर वे रोज़ मिलने वाले एक सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठे थे.

सीख (Moral of the story)

लालच बुरी बला है.        

लोमड़ी और सारस 

एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी. उसे दूसरे जानवरों को मूर्ख बनाने में बड़ा आनंद प्राप्त होता था. वह आये-दिन कोई न कोई युक्ति सोचती और किसी न किसी जानवर को उसमें फंसाकर मज़े लिया करती थी. जंगल के सारे जानवर उसका स्वभाव समझ चुके थे. इसलिए उससे कन्नी काटने लगे थे.

एक दिन एक सारस (Crane) जंगल में आया और नदी किनारे रहने लगा. लोमड़ी (Fox) के नज़र जब सारस पर पड़ी, तो वह सोचने लगी – जंगल के दूसरे जानवर तो मुझसे कन्नी काटने लगे हैं. ये सारस जंगल में नया आया प्रतीत होता है. क्यों न इसे मूर्ख बनाकर मज़े लूं?

वह सारस के पास गई और बोली, “मित्र! इस जंगल में नये आये मालूम पड़ते हो. तुम्हारा स्वागत है.”

“सही पहचाना मित्र. मुझे यहाँ आये अभी कुछ ही दिन हुए हैं. मैं यहाँ किसी से परिचित भी नहीं हूँ. तुमने मेरा स्वागत किया, इसलिए तुम्हारा धन्यवाद.” सारस ने उत्तर दिया.

लोमड़ी ने सारस के समक्ष मित्रता का प्रस्ताव रखा. सारस का उस जंगल में कोई मित्र नहीं था. उसने लोमड़ी की मित्रता स्वीकार कर ली. लोमड़ी ने उससे मीठी-मीठी बातें की और वापस जाते-जाते अपने घर भोज के लिए आमंत्रित कर गया.

नियत दिन को उपहार लेकर सारस लोमड़ी के घर पहुँचा. लोमड़ी उसका स्वागत करते हुए बोली, “आओ मित्र! आज मैंने तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खीर तैयार की है.”

अंदर बुलाकर उसने दो तश्तरियां लगाई और उसमें खीर परोस दी. लंबी चोंच वाले सारस ने तश्तरी से खीर खाने का प्रयास किया, लेकिन खा नहीं पाया. उधर लोमड़ी झटपट तश्तरी में से खीर चाट गई.

अपनी तश्तरी में से खीर ख़त्म करने के बाद वह सारस से बोली, “खीर तो बहुत स्वादिष्ट है मित्र. लेकिन तुम खा क्यों नहीं रहे हो?”

सारस संकोचवश बस इतना ही कह पाया, “आज मेरे पेट में दर्द है मित्र. इसलिए मैं ये स्वादिष्ट खीर खा नहीं पाया. लेकिन भोज के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद.”

सारस अपमान का घूंट पीकर वहाँ से चला आया. उधर लोमड़ी सारस को मूर्ख बनाकर बहुत खुश हुई.

कुछ दिनों बाद सारस ने लोमड़ी को भोज पर आमंत्रित किया. नियत दिन को लोमड़ी बिना कोई उपहार लिए ही सारस के घर पहुँच गई. सारस के उसे अंदर बुलाया और बोला, “मित्र! मैंने भी भोज में खीर बनाया है. आशा है तुम्हें उसका स्वाद पसंद आएगा.”

खीर सुनकर लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया और वह खीर परोसने की प्रतीक्षा करने लगी. कुछ देर में सारस ने सुराही में खीर भरकर परोस दी. सुराही में खीर देखकर लोमड़ी का मुँह उतर गया. उसके लिए सुराही से खीर खा पाना असंभव था. वह चुपचाप सारस का मुँह देखने लगी, जो अपनी लंबी चोंच से झटपट सुराही में रखा खीर पी गया.

खीर ख़त्म कर सारस बोला, “क्या बात है मित्र? तुम खा क्यों नहीं रहे हो? क्या तुम्हें खीर पसंद नहीं?”

लोमड़ी समझ गई कि सारस ने उससे अपने अपमान का बदला लिया है. वह खिसियाते हुए बोली, “नहीं मित्र! वो क्या है कि आज मेरे पेट में दर्द है.” और वहाँ से भाग खड़ी हुई.

सीख (Moral of the story)

जैसे को तैसा.   

कंजूस और उसका सोना 

एक गाँव में एक अमीर जमींदार रहता था. वह जितना अमीर था, उतना ही कंजूस भी. अपने धन को सुरक्षित रखने का उसने एक अजीब तरीका निकाला था. वह धन से सोना खरीदता और फिर उस सोने को गलाकर उसके गोले बनाकर अपने एक खेत में एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर डाल देता था.

रोज़ खेत जाना और गड्ढे को खोदकर सोने के गोलों की गिनती करना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था. इस तरह वह सुनिश्चित करता था कि उसका सोना सुरक्षित है.

एक दिन एक चोर ने कंजूस आदमी को गड्ढे में से सोना निकालकर गिनते हुए देख लिया. वह छुपकर उसके जाने का इंतज़ार करने लगा. जैसे ही कंजूस आदमी गया, वह गड्ढे के पास पहुँचा और उसमें से सोना निकालकर भाग गया.

अगले दिन जब कंजूस आदमी खेत में गड्ढे के पास पहुँचा, तो सारा सोना नदारत पाकर रोने-पीटने लगा. उसके रोने की आवाज़ वहाँ से गुजरते एक राहगीर के कानों में पड़ी, तो वह रुक गया.

उसने कंजूस आदमी से रोने का कारण पूछा, तो कंजूस आदमी बोला, “मैं लुट गया. बर्बाद हो गया. कोई मेरा सारा सोना लेकर भाग गया. अब मैं क्या करूंगा?”

“सोना? किसने चुराया? कब चुराया?” राहगीर आश्चर्य में पड़ गया.

“पता नहीं चोर ने कब इस गड्ढे को खोदा और सारा सोना लेकर नौ दो ग्यारह हो गया. मैं जब यहाँ पहुँचा, तो सारा सोना गायब था.” कंजूस आदमी बिलखते हुए बोला.

“गड्ढे से सोना ले गया? तुम अपना सोना यहाँ इस गड्ढे में क्यों रखते हो? अपने घर पर क्यों नहीं रखते? वहाँ ज़रूरत पड़ने पर तुम उसका आसानी से उपयोग कर सकते हो.” राहगीर बोला.

“मैं अपने सोने को कभी हाथ नहीं लगाता. मैं उसे सहेजकर रखता हूँ और हमेशा रखता, यदि वो चोर उसे चुराकर नहीं ले जाता.” कंजूस आदमी बोला.

यह बात सुनकर राहगीर ने जमीन से कुछ कंकड़ उठाये और उसे उस गड्ढे में डालकर बोला, “यदि ऐसी बात है, तो इन कंकडों को गड्ढे में डालकर गड्ढे को मिट्टी ढक दो और कल्पना करो कि यही तुम्हारा सोना है, क्योंकि इनमें और तुम्हारे सोने में कोई अंतर नहीं है. ये भी किसी काम के नहीं और तुम्हारा सोना भी किसी काम का नहीं था. उस सोने का तुमने कभी कोई उपयोग ही नहीं किया, न ही करने वाले थे. उसका होना न होना बराबर था.”

सीख (Moral of the story) 

जिस धन का कोई उपयोग न हो, उसकी कोई मोल नहीं.

एन्ड्रोक्लीज़ और शेर 

एन्ड्रोक्लीज़ नामक एक व्यक्ति रोम के सम्राट का गुलाम था. एक दिन वह स्वयं पर होने वाले जुल्मों से तंग आकर महल से भाग गया और जंगल में जाकर छुप गया.

जंगल में उसका सामना एक शेर से हुआ, जो घायल अवस्था में था और  बार-बार अपना पंजा उठा रहा था.

पहले तो एन्ड्रोक्लीज़ डरा, लेकिन फिर सहृदयता दिखाते हुए वह शेर के पास गया. शेर के पंजे में कांटा चुभा हुआ था. उसने कांटा निकाला और कुछ दिनों तक घायल शेर की देखभाल की.

एन्ड्रोक्लीज़ की देखभाल से शेर ठीक हो गया. आभार में वह एन्ड्रोक्लीज़ का हाथ चाटने लगा. फिर चुपचाप अपनी गुफ़ा में चला गया.

इधर सम्राट के सैनिक एन्ड्रोक्लीज़ को ढूंढ रहे थे. आखिर, एक दिन वह पकड़ा गया. उसे सम्राट के सामने पेश किया गया. सम्राट बहुत नाराज़ था. उसने एन्ड्रोक्लीज़ को भूखे शेर के सामने फेंक देने का आदेश दिया.

जिस दिन एन्ड्रोक्लीज़ को शेर के सामने फेंका जाना था, उस दिन एक मैदान में रोम की सारी जनता इकट्ठा हुई. सबके सामने एन्ड्रोक्लीज़ को भूखे शेर के पिंजरे में फेंक दिया गया. एन्ड्रोक्लीज़ डरा हुआ था. उसे मौत सामने दिख रही थी. वह ईश्वर को याद करने लगा.

शेर एन्ड्रोक्लीज़ की ओर बढ़ा. एन्ड्रोक्लीज़ पसीने-पसीने हो गया. शेर एन्ड्रोक्लीज़ के पास आया. डर के मारे एन्ड्रोक्लीज़ ने अपनी आँखें बंद कर ली. लेकिन यह क्या? एन्ड्रोक्लीज़ को मारने के स्थान पर शेर उसका हाथ चाटने लगा. सम्राट हैरान था, सारी जनता हैरान थी और एन्ड्रोक्लीज़ भी.

अंततः, एन्ड्रोक्लीज़ समझ गया कि हो न हो, ये वही शेर है, जिसकी घायल अवस्था में उसने देखभाल की थी. वह एन्ड्रोक्लीज़ को पहचान गया था. वह भी शेर को पुचकारने लगा और उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरने लगा.

यह देख सम्राट ने सैनिकों को एन्ड्रोक्लीज़ को पिंजरे से बाहर निकालने का आदेश दिया. उसने एन्ड्रोक्लीज़ से पूछा, “तुमने ऐसा क्या किया कि शेर तुम्हें मारने के स्थान पर तुम्हारा हाथ चाटने लगा.”

एन्ड्रोक्लीज़ ने उसे जंगल की घटना सुना दी और बोला, “महाराज, जब शेर घायल था, तब मैंने कुछ दिनों तक ही इसकी देखभाल की थी. इस उपकार के कारण इसने मुझे नहीं मारा. लेकिन, आपकी सेवा तो मैंने बरसों की है. इसके बावजूद आप मेरी जान ले रहे हैं.”

सम्राट का दिल पसीज़ गया. उसने एन्ड्रोक्लीज़ को आज़ाद कर दिया और शेर को भी जंगल में छुड़वा दिया.

सीख (Moral of the story) 

  1. सबके प्रति सहृदयता का भाव रखो, फिर चाहे वो मनुष्य हो या पशु.
  2. जो आप पर उपकार करें, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहो.

गाँव का चूहा और शहर का चूहा 

शहर में रहने वाले और गाँव में रहने वाले दो चूहों में गहरी मित्रता थी. वे अक्सर एक-दूसरे को संदेश भेजा करते और एक-दूसरे का हाल जाना करते थे. एक बार गाँव में रहने वाले चूहे ने शहरी चूहे को गाँव आने का निमंत्रण भेजा. शहरी चूहे ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया.

सप्ताहांत का समय नियत हुआ और गाँव का चूहा अपने शहरी मित्र के आने की प्रतीक्षा करने लगा. वह उससे ढेर सारी बातें करना चाहता था, उसे गाँव के खेत-खालिहानों की सैर करवाना चाहता था. वह अपने मित्र की आव-भगत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए वह उसके लिए ढेर सरे फ़ल और आनाज इकट्ठा करने में लगा हुआ था.

आखिर वह दिन भी आया, जब शहरी चूहा गाँव पहुँचा. दोनों मित्र एक-दूसरे से मिलकर बहुत ख़ुश हुए. बहुत देर तक वे बातें करते रहे और एक-दूसरे को अपना हाल बताते रहे. फिर दोनों भोजन के लिए बैठे. भोजन में गाँव के चूहे ने अनाज और फ़ल परोसे, जिसे खाकर दोनों ने आराम किया.  

शाम को गाँव का चूहा अपने शहरी मित्र को गाँव दिखाने ले गया. शहरी चूहा वहाँ के खेत-खलिहान देखकर आनंद से भर उठा. वहाँ की शुद्ध हवा में श्वास लेकर उसका मन प्रफुल्लित हो गया. गाँव का चूहा बोला, “गाँव का वातावरण और वायु शुद्ध है, जो तुम्हें शहर में शायद ही नसीब होती होगी मित्र.”

शहरी चूहा शहर की समस्याएं जानता था. वह वर्षों से वहाँ रहा रहा था, लेकिन गाँव के चूहे मित्र की ये बात उसे बुरी लग गई. हालांकि वह कुछ बोला नहीं.

गाँव का चूहा गाँव की प्रशंसा में लगा हुआ था, वह उसे जंगलों में ले गया और बोला, “मित्र, ऐसे प्राकृतिक और मनोरम दृश्य तुम्हें शहर में देखने को नहीं मिलेंगे. इसलिए आज इस दृश्यों का आनंद ले लो.”

शहरी चूहे को यह बात भी चुभी, लेकिन वह कुछ नहीं बोला. वह सोचने लगा कि अब अपने इस ग्रामीण मित्र को शहरी चका-चौंध का जीवन दिखाना पड़ेगा. तब इसे समझ आएगा कि शहर कितना शानदार होता है.

रात होने पर दोनों चूहे घर वापस आ गए. भोजन का समय आया, तो गाँव के चूहे ने फिर से शहरी चूहे को फ़ल और अनाज परोसा. शहरी भोजन के आदी चूहे को यह भोजन गले नहीं उतर रहा था, वह बोला, “मित्र, क्या तुम हर समय फल और अनाज खाते हो. शहर आओ, मैं तुम्हें एक से बढ़कर एक पकवान खिलाऊंगा. साथ ही वहाँ का शानदार जीवन भी दिखाऊंगा. कल ही तुम मेरे साथ चलो.”

गाँव के चूहे में शहर देखने की लालसा जाग गई. वह फ़ौरन तैयार हो गया. रात नरम घास पर सोने के बाद अगली सुबह उठकर दोनों शहर के लिए निकल गए. शहरी चूहा अपने ग्रामीण मित्र को उस घर में ले गया, जहाँ वह रहा करता था. वह किसी अमीर आदमी का घर था, उसमें ही शहरी चूहे का बिल था. उतना बड़ा और सजा-धजा घर देखकर गाँव के चूहे की आँखें चौंधिया गई.

खाने की मेज़ देखी, तो उसका मुँह खुला रह गया. एक से बढ़कर एक पकवान उस पर सजे हुए थे. शहरी चूहे ने उसे भोजन प्रारंभ करने को कहा. ख़ुशी-ख़ुशी गाँव का चूहा भोजन करने लगा. सबसे पहले उसके प्लेट में से पनीर का टुकड़ा उठाया. उसने अभी पनीर कुतरा ही था, कि शहरी चूहा चिल्लाया, “भागो मित्र, बिल्ली आ रही है. जल्दी से अलमारी में छुप जाओ. नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा.”

पनीर छोड़ गाँव का चूहा शहरी चूहे के साथ अलमारी की ओर भागा. कुछ देर तक दोनों अलमारी में छुपे रहे. बिल्ली के जाने के बाद दोनों वहाँ से निकले. शहरी चूहा फिर से अपने मित्र गाँव के चूहे को भोजन के लिए ले गया. लेकिन डर के मारे उसकी भूख मर गई थी.  

शहरी चूहा उसकी हालत देख बोला, “मित्र डरने की कोई बात नहीं है. बिल्ली चली गई है. वैसे यह शहरी जीवन का हिस्सा है. यहाँ यूं ही जीवन जीते हैं. लो केक खाकर देखो.”

गाँव के चूहे ने केक का टुकड़ा ले लिया. लेकिन इसके पहले वह उसे मुँह में डाल पाता, शहरी चूहा चिल्लाया, “भागो मित्र! कुत्ता आ गया है.”

दोनों फिर से भागकर अलमारी में जा छुपे. शहरी चूहे ने बताया कि उस घर के मालिक ने एक कुत्ता पाला हुआ है, जो बड़ा भयानक है. उससे बचकर रहना पड़ता है.”

गाँव का चूहा बहुत ज्यादा डर गया था. अलमारी से बाहर आने के बाद वह एक क्षण भी वहाँ नहीं रुका. वह बोला, “मित्र, मुझे जाने दो. ये शहरी जीवन मुझे तो रास नहीं आता. यहाँ तो हर समय सिर पर ख़तरा मंडराता रहता है. इससे तो गाँव ही भला.”

फिर वह गाँव की ओर चल पड़ा और गाँव पहुँचकर ही दम लिया. वहाँ पहुँचकर वह सोचने लगा, “जगह वही अच्छी है, जहाँ जीवन सुरक्षित है.”

शिक्षा (Moral of the story)

अमन-चैन का साधारण जीवन ऐसे ऐशो-आराम के जीवन से बेहतर है, जो ख़तरों से भरा हुआ है.

मानव और साँप

एक दिन एक किसान अपने पुत्र के साथ खेत में काम कर रहा था. अचानक उसके पुत्र का पांव एक साँप की पूंछ पर पड़ गया. पूंछ दबते ही साँप फुंकार उठा और उसने किसान के बेटे को डस लिया.

साँप विषैला था. उसके विष के प्रभाव से किसान का पुत्र तत्काल मर गया.

अपने सामने पुत्र की मृत्यु देख किसान क्रोधित हो गया और प्रतिशोध लेने के लिए उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और साँप की पूंछ काट दी. साँप दर्द से छटपटाने लगा.

उसे भी अत्यधिक क्रोध आया और प्रतिशोध लेने की ठान कर वह किसान की गौशाला में घुस गया. वहाँ उसने मवेशिओं को डस लिया. सारे मवेशी मर गए.

इतना नुकसान देख किसान विचार करने लगा – “साँप से बैर के कारण मेरी अत्यधिक हानि हो चुकी है. अब इस बैर का अंत करना ही होगा. मुझे सर्प की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहिए.”

उसने एक कटोरे में दूध भरा और साँप के बिल के पास रख दिया. फिर कहने लगा, “हम दोनों ने एक-दूसरे का बहुत नुकसान कर लिया. अब इस बैर का अंत कर मित्रता कर लेते हैं. जो हुआ तुम भूल जाओ. मैं भी भूल जाता हूँ.”

साँप ने बिल के अंदर से ही उत्तर दिया, “दूध का कटोरा लेकर तुरंत यहाँ से चले जाओ. मेरे कारण तुमने अपना पुत्र खोया है, जो तुम कभी भूल नहीं पाओगे और तुम्हारे कारण मैंने अपनी पूंछ गंवाई है, जो मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा. इसलिए अब हमारे बीच मित्रता संभव नहीं है.”

शिक्षा (Moral of the story)

अपकार क्षमा तो किया जा सकता है, किंतु भुलाया नहीं जा सकता.

अबाबील और कौवा

जंगल में एक ऊँचे पेड़ पर एक अबाबील पक्षी रहता था. उसके पंख रंग-बिरंगे और सुंदर थे, जिस पर उसे बड़ा घमंड था. वह ख़ुद को दुनिया का सबसे सुंदर पक्षी समझता था. इस कारण हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था.

एक दिन कहीं से एक काला कौवा आकर उस पेड़ की एक डाली पर बैठ गया, जहाँ अबाबील रहता था. अबाबील ने जैसे ही कौवे को देखा, तो अपनी नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहने लगा, “सुनो! तुम कितने बदसूरत हो. पूरे के पूरे काले. तुम्हारे किसी भी पंख में कोई रंग नहीं है. मुझे देखो, मेरे रंग-बिरंगे पंखों को देखो. मैं कितना सुंदर हूँ.”

कौवे ने जब अबाबील की बात सुनी, तो बोला, “कह तो तुम ठीक रहे हो. मेरे पंख काले हैं, तुम्हारे पंखों जैसे रंग-बिरंगे नहीं. लेकिन ये मुझे उड़ने में मदद करते हैं.”

“वो तो मुझे भी करते हैं. देखो.” कहते हुए अबालील उड़कर कौवे के पास जा पहुँचा और अपने पंख पसारकर बैठ गया. उसके रंग-बिरंगे और सुंदर पंखों को देखकर कौवा मंत्र-मुग्ध हो गया.

“मान लो कि मेरे पंख तुमसे बेहतर हैं.” अबाबील बोला.

“वाकई तुम्हारे पंख दिखने में मेरे पंखों से कहीं अधिक सुंदर हैं. लेकिन मेरे पंख ज्यादा बेहतर है क्योंकि ये हर मौसम में मेरे साथ रहते हैं और इनके कारण मौसम चाहे कैसा भी हो, मैं हमेशा उड़ पाता हूँ. लेकिन तुम ठंड के मौसम में उड़ नहीं पाते, क्योंकि तुम्हारे पंख झड़ जाते हैं. मेरे पंख जैसे भी हैं, वो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ते.” कौवा बोला.

कौवे की बात सुनकर अबाबील का घमंड चूर-चूर हो गया.

सीख (Moral of the story)

दोस्ती करें, तो सीरत देखकर करें न कि सूरत देखकर, क्योंकि अच्छी सीरत का दोस्त अच्छे-बुरे हर वक़्त पर आपके साथ रहेगा और आपका साथ देगा. वहीं मौका-परस्त दोस्त अपना मतलब साधकर बुरे वक़्त में आपको छोड़कर चला जायेगा.

सेविका और भेड़िया

दोपहर का समय था. घर पर सेविका छोटे बच्चे को खाना खिलाकर सुलाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन बच्चा सो नहीं रहा था, बल्कि  रोये जा रहा था.

तंग आकर सेविका बच्चे को डराने के लिए बोली, “रोना बंद करो. नहीं तो मैं तुम्हें भेड़िये के सामने डाल दूंगी.”

उसी समय एक भेड़िया उस घर के पास से गुजर रहा था. सेविका की बात सुनकर वह बड़ा ख़ुश हुआ.

सोचने लगा, “वाह क्या बात है!! आज का दिन तो शानदार है. बिना मेहनत के ही भोजन मिलने वाला है. यहीं बैठ जाता हूँ. जब सेविका बच्चे को मेरे सामने डालेगी, तो आराम खाऊंगा.”

वह खिड़की के पास दुबककर बैठ गया और लार टपकाते हुए इंतज़ार करने लगा.

उधर बच्चा सेविका की भेड़िये के सामने डाल देने वाली बात सुनकर डर गया और चुप हो गया. भेड़िये इंतज़ार करता हुआ सोचने लगा कि ये बच्चा रो क्यों नहीं रहा है. जल्दी से ये रोये और जल्दी से सेविका इसे मेरे सामने डाल दे.

लेकिन बहुत देर हो जाने पर भी बच्चे की रोने की आवाज़ नहीं आई. भेड़िया बेचैन हो उठा और खिड़की से घर के अंदर झांकने लगा.

भेड़िये को अंदर झांकते हुए सेविका ने देख लिया. उसने झटपट खिड़की बंद की और सहायता के लिए शोर मचाने लगी, “बचाओ बचाओ भेड़िया भेड़िया.”

सेविका को शोर मचाता देख भेड़िया डरकर भाग गया.

सीख (Moral of the story)

शत्रु द्वारा दी गई आशा पर विश्वास नहीं करना चाहिए.

 

चमगादड़, पशु और पक्षी 

बहुत समय पहले की बात है. जंगल में शांति से रहने वाले पशुओं और पक्षियों के मध्य किसी बात को लेकर अनबन हो गई. ये अनबन इतनी बढ़ी कि दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया.

पशुओं की लंबी-चौड़ी सेना थी, जिसमें राजा शेर के अतिरिक्त लोमड़ी, भेड़िया, भालू, जिराफ़, सियार, ख़रगोश जैसे कई छोटे-बड़े जानवर सम्मिलित थे. वहीं आकाश में विचरण करने वाले पक्षियों की सेना भी कुछ कम न थी, उसमें चील, गिद्ध, कौवा, कबूतर, मैना, तोता सहित कई पक्षी सम्मिलित थे.

चमगादड़ बहुत परेशान था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसकी सेना में सम्मिलित हो. उसे अकेला देख पक्षी उसके पास आये और उसे आमंत्रित करने लगे, “चमगादड़ भाई, आओ हमारा साथ दो.”

“मैं तुम्हारे साथ कैसे आ सकता हूँ? देखो मुझे, पंख हटा दिया जाएं, तो मैं तो हूबहू चूहे के समान दिखता हूँ. मैं तो पशु हूँ. मुझे क्षमा करो.” चमगादड़ ने उत्तर दिया.

चमगादड़ का उत्तर सुन पक्षी चले गए.

पक्षियों के जाने के बाद पशुओं की मंडली उसके पास आई और बोली, “अरे भाई चमगादड़, यहाँ अकेले क्यों बैठे हो? आओ हमारी सेना में आ जाओ.”

“तुम्हें मेरे पंख दिखाई नहीं पड़ते. मैं तो पक्षी हूँ. कैसे तुम्हारी सेना में सम्मिलित हो जाऊं.” चमगादड़ ने अपना पल्ला झाड़ा.

पशु भी चले गए.

कुछ दिनों बाद पशुओं और पक्षियों की अनबन समाप्त हो गई. दोनों पक्षों में मित्रता हो गई. जंगल में मंगल हो गया. सभी आनंद मनाने लगे.

उन्हें आनंद मनाता देख चमगादड़ ने सोचा कि अब मुझे किसी एक दल में सम्मिलित हो जाना चाहिए. वह पक्षियों के दल के पास गया और उनसे निवेदन किया कि वे उसे अपन दल में ले लें. किंतु, पक्षियों ने यह कहकर मना कर दिया, “अरे तुम तो पशु हो. ऐसे में तुम हमारे दल में कैसे आ सकते हो?”

मुँह लटकाकर चमगादड़ पशुओं के पास पहुँचा और उनसे भी यही निवेदन किया. पशुओं ने भी उसे अपने दल में स्वीकार नहीं किया. वे बोले, “क्या तुम भूल गए हो कि तुम्हारे पंख है और तुम एक पक्षी हो.”

चमगादड़ क्या करता? वह समझ गया कि आवश्यकता पड़ने पर साथ न देने पर कोई भी मित्र नहीं रहता. तब से चमगादड़ अकेला ही रहता है.

सीख (Moral of the story)

आवश्यकता पड़ने पर सदा दूसरों का साथ दें. मौकापरस्त का कोई मित्र नहीं होता.

शेर और जंगली सूअर

एक जंगल में एक शेर रहता था. एक दिन उसे बहुत ज़ोरों की प्यास लगी. वह पानी पीने एक झरने के पास पहुँचा. उसी समय एक जंगली सूअर भी वहाँ पानी पीने आ गया.

शेर और जंगली सूअर दोनों स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते थे. इसलिए पहले पानी पीकर एक-दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे. दोनों में ठन गई और लड़ाई शुरू हो गई.

उसी समय कुछ गिद्ध आसमान से उड़ते हुए गुजरे. शेर और जंगली सूअर की लड़ाई देख उन्होंने सोचा कि आज तो दावत पक्की है. इन दोनों की लड़ाई में कोई-न-कोई तो अवश्य मरेगा. फिर छककर उसका मांस खाएंगे. वे वहीं मंडराने लगे.

इधर शेर और जंगली सूअर के बीच लड़ाई जारी थी. दोनों पर्याप्त बलशाली थी. इसलिए पीछे हटने कतई तैयार नहीं थे. लड़ते-लड़ते अचानक शेर की दृष्टि आसमान में मंडराते गिद्धों पर पड़ी. वह फ़ौरन सारा माज़रा समझ गया.

लड़ना बंद कर वह जंगली सूअर से बोला, “ऊपर आसमान में देखो. गिद्ध मंडरा रहे हैं. वे हम दोनों में से किसी एक की मौत की प्रतीक्षा में है. लड़ते-लड़ते मरने और फिर गिद्धों की आहार बनने से अच्छा है कि हम आपस में मित्रता कर लें और शांति से पानी पीकर अपने घर लौटें.”

जंगली सूअर को शेर की बात जंच गई. दोनों मित्र बन गए और साथ में झरने का पानी पीकर अपने निवास पर लौट गए.

शिक्षा (Moral of the story)

आपसी शत्रुता में तीसरा लाभ उठाता है. इसलिए एक-दूसरे के साथ मित्रवत रहें.

मोर और नीलकंठ 

बरसात का मौसम था. मोर सुंदर पंख फैलाए नाच रहे थे. पेड़ पर बैठे एक नीलकंठ ने उन्हें नाचते हुए देखा, तो सोचने लगा कि काश, मेरे भी ऐसे सुंदर पंख होते, तब मैं इनसे भी ज्यादा सुंदर दिखाई पड़ता.

कुछ देर बाद वह मोरों के रहने के ठिकाने पर पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि मोरों के ढेर सारे पंख जमीन पर बिखरे हुए हैं. उसने सोचा कि यदि मैं इस पंखों को अपनी पूंछ में बांध लूं, तो मैं भी मोर जैसा सुंदर दिखने लगूंगा.

बिना देर किये उसके उन पंखों को उठाया और अपनी पूंछ में बांध लिया. वह बहुत प्रसन्न था. उसे लगने लगा कि वह भी मोर बन गया है. वह ठुमकता हुआ मोरों के बीच गया और घूम-घूमकर उन्हें दिखाने लगा कि अब उसके पास भी मोर जैसे सुंदर पंख है और वह उनमें से ही एक है.

मोरों ने जब उसे देखा, तो पहचान लिया कि वो तो एक नीलकंठ है. फिर क्या सब उस पर टूट पड़े. वे उस पर चोंच मारकर मोर-पंखों को नोच-नोचकर निकालने लगे. कुछ ही देर में उन्होंने नीलकंठ की पूंछ में से सारे मोर-पंख नोंच दिए.

नीलकंठ के साथीगण दूर से यह सारा नज़ारा देख रहे थे. सारे पंख मोरों द्वारा नोंचकर निकाल दिए जाने के बाद दुखी मन से नीलकंठ अपने साथियों के पास गया. लेकिन वे सब उससे नाराज़ थे. वे बोले, “सुंदर पक्षी बनने के लिए मात्र सुंदर पंख ही आवश्यक नहीं है. हर पक्षी की अपनी सुंदरता होती है.”

सीख (Moral of the story)

दूसरों की नक़ल न करें. स्वाभाविक रहें.

शेर और बंदर

एक बार की बात है. जंगल के राजा शेर और बंदर में विवाद हो गया. विवाद का विषय था – ‘बुद्धि श्रेष्ठ है या बल’ (Wisdom Is Better Than Strength).

शेर की दृष्टि में बल श्रेष्ठ था, किंतु बंदर की दृष्टि में बुद्धि. दोनों के अपने-अपने तर्क थे. अपने तर्क देकर वे एक-दूसरे के सामने स्वयं को सही सिद्ध करने में लग गये.

बंदर बोला, “शेर महाराज, बुद्धि ही श्रेष्ठ है. बुद्धि से संसार का हर कार्य संभव है, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो? बुद्धि से हर समस्या का निदान संभव है, चाहे वह कितनी ही विकट क्यों न हो? मैं बुद्धिमान हूँ और अपनी बुद्धि का प्रयोग कर किसी भी मुसीबत से आसानी से निकल सकता हूँ. कृपया यह बात मान लीजिये.”

बंदर का तर्क सुन शेर भड़क गया और बोला, “चुपकर बंदर, तू बल और बुद्धि की तुलना कर बुद्धि को श्रेष्ठ बता रहा है. बल के आगे किसी का ज़ोर नहीं चलता. मैं बलवान हूँ और तेरी बुद्धि मेरे बल के सामने कुछ भी नहीं. मैं चाहूं, तो इसी क्षण इसका प्रयोग कर तेरे प्राण ले सकता हूँ.”

बंदर कुछ क्षण शांत रहा और बोला, “महाराज, मैं अभी तो जा रहा हूँ. किंतु मेरा यही मानना है कि बुद्धिं बल से श्रेष्ठ है. एक दिन मैं आपको ये प्रमाणित करके दिखाऊंगा. मैं अपनी बुद्धि से बल को हरा दूंगा.”

“मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूंगा, जब तुम ऐसा कर दिखाओगे. उस दिन मैं अवश्य तुम्हारी इस बात को स्वीकार करूंगा कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है. किंतु, तब तक कतई नहीं.” शेर ने उत्तर दिया.

इस बात को कई दिन बीत गए. बंदर और शेर का आमना-सामना भी नहीं हुआ.

एक दिन शेर जंगल में शिकार कर अपनी गुफ़ा की ओर लौट रहा था. अचानक वह पत्तों से ढके एक गड्ढे में जा गिरा. उसके पैर में चोट लग गई. किसी तरह  वह गड्ढे से बाहर निकला, तो पाया कि एक शिकारी उसके सामने बंदूक ताने खड़ा है. शेर घायल था. ऐसी अवस्था में वह शिकारी का सामना करने में असमर्थ था.

तभी अचानक कहीं से शिकारी पर पत्थर बरसने लगे. शिकारी हड़बड़ा गया. इसके पहले कि वो कुछ समझ पाता, एक पत्थर उसके सिर पर आकर पड़ा. वह दर्द से तिलमिला उठा और अपने प्राण बचाने वहाँ से भाग गया.

शेर भी चकित था कि शिकारी पर पत्थरों से हमला किसने किया और किसने उसके प्राणों की रक्षा की. वह इधर-उधर देखते हुए ये सोच ही रहा था कि सामने एक पेड़ पर बैठे बंदर की आवाज़ उसे सुनाई दी, “महाराज, आज आपके बल को क्या हुआ? इतने बलवान होते हुए भी आज आपकी जान पर बन आई.”

बंदर को देख शेर ने पूछा, “तुम यहाँ कैसे?”

“महाराज, कई दिनों से मेरी उस शिकारी पर नज़र थी. एक दिन मैंने उसे गड्ढा खोदते हुए देखा, तो समझ गया था कि वह आपका शिकार करने की फ़िराक में है. इसलिए मैंने थोड़ी बुद्धि लड़ाई और ढेर सारे पत्थर इस पेड़ पर एकत्रित कर लिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग शिकारी के विरुद्ध कर सकूं.”

बंदर ने शेर के प्राणों की रक्षा की थी. वह उसके प्रति कृतज्ञ था. उसने उसे धन्यवाद दिया. उसे अपने और बंदर में मध्य हुआ विवाद भी स्मरण हो आया. वह बोला, “बंदर भाई, आज तुमने सिद्ध कर दिया कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ होती है. मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है. मैं समझ गया हूँ कि बल हर समय और हर परिस्थिति में एक सा नहीं रहता, लेकिन बुद्धि हर समय और हर परिस्थिति में साथ रहती है.”

बंदर ने उत्तर दिया, “महाराज, मुझे प्रसन्नता है कि आप इस बात को समझ गए. आज की घटना पर ध्यान दीजिये. शिकारी आपसे बल में कम था, किंतु बावजूद इसके उसने अपनी बुद्धि से आप पर नियंत्रण पा लिया. उसी प्रकार मैं शिकारी से बल में कम था, किंतु बुद्धि का प्रयोग कर मैंने उसे डराकर भगा दिया. इसलिए हर कहते हैं कि बुद्धि बल से कहीं श्रेष्ठ है.”

सीख (Moral of the story)

बुद्धि का प्रयोग कर हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है. इसलिए बुद्धि को कभी कमतर न समझें.

दो बकरियाँ 

नदी किनारे एक छोटा सा गाँव था. गाँव में रहने वाले लोगों ने नदी पार करने के लिए उस पर एक पुल बनाया हुआ था. लेकिन वह पुल इतना संकरा था कि एक बार में केवल एक ही व्यक्ति उसे पार कर सकता था.

एक दिन की बात है. एक बकरी नदी पर बने उस पुल को पार कर रही थी. पुल पर चलते-चलते उसने देखा कि एक दूसरी बकरी उसी पुल पर विपरीत दिशा से आ रही है. कुछ ही देर में दोनों पुल के बीचों-बीच पहुँच गई.

पुल को एक बार में केवल एक ही बकरी पार कर सकती थी. इसलिए दोनों बकरियाँ कुछ देर तक इंतज़ार करती रही कि सामने वाली बकरी पीछे हट जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दोनों में से कोई भी अपनी जगह से नहीं हिली, बल्कि अकड़कर खड़ी रही.

तब एक बकरी दूसरी बकरी से बोली, “तुम मुझे जाने का रास्ता दो, क्योंकि मैं तुमसे बड़ी हूँ.”

इस बात पर दूसरी बकरी हँस पड़ी और बोली, “होगी तुम मुझसे बड़ी, लेकिन मैं तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हूँ. मैं तुमसे जल्दी ये पुल पार कर लूंगी. इसलिए तुम मुझे रास्ता दो.”

पहली बकरी बोली, “मैं तुमसे बड़ी भी हूँ और ताकतवर भी. इसलिए हट जाओ.”

कुछ देर तक दोनों में इस बात पर बहस होती रही कि दोनों में कौन ज्यादा ताकतवर है. फिर बहस लड़ाई में बदल गई. दोनों अपनी सींगों से एक-दूसरे पर वार करने लगी. धीरे-धीरे उनकी लड़ाई बहुत बढ़ गई. परिणाम ये हुआ कि उनका संतुलन बिगड़ा और वे दोनों पुल से नीचे नदी में जा गिरी. नीचे नदी की तेज धार उनको बहा ले गई और अंततः दोनों मर गई.

कुछ देर बाद दो और बकरियाँ विपरीत दिशा से उस पुल पर चलते हुए आई और बहस करने लगी कि कौन पीछे हटेगी और कौन दूसरे को रास्ता देगी. इस बार एक बकरी ने समझदारी से काम लिया और कुछ देर सोचकर दूसरी बकरी से बोली, “ये पुल बहुत संकरा है. इसे एक बार में कोई एक ही पार कर सकता है. यदि हमने लड़ने की मूर्खता की, तो नदी में गिरकर अपनी जान गंवा देंगी. इसलिए ऐसा करते हैं कि मैं पुल पर लेट जाती हूँ. तुम मुझे लांघ कर दूसरी ओर चले जाना.”

दूसरी बकरी को भी ये बात समझदारी भरी लगी. उसने पहली बकरी की बात मान ली. पहली बकरी पुल पर लेट गई और दूसरी बकरी उसे लांघ कर दूसरी ओर चली गई. इस तरह दोनों ने पुल पार कर लिया.

सीख (Moral Of The Story

१. गुस्सा और अहंकार बर्बादी की ओर ले जाता है.

२. वहीं समझदारी से काम लेने पर हर समस्या का समाधान निकल आता है.

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