Akbar Birbal Stories In Hindi

अकबर बीरबल के सवाल जवाब हिंदी | अकबर बीरबल के प्रश्न उत्तर | Akbar Birbal Ke Sawal Jawab Hindi

akbar birbal ke sawal jawab अकबर बीरबल के सवाल जवाब हिंदी | अकबर बीरबल के प्रश्न उत्तर | Akbar Birbal Ke Sawal Jawab Hindi
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मित्रों,  हम इस पोस्ट में अकबर बीरबल के सवाल जवाब (Akbar Birbal Ke Sawal Jawab Hindi) शेयर कर रहे हैं. बादशाह अकबर अक्सर दरबारियों से अजीबोग़रीब सवाल पूछा करते थे. दरबारी हमेशा कोशिश में रहते कि उन सवालों का जवाब देकर बादशाह की नज़रों में चढ़ जायें या उनसे ईनाम पा लें. मगर, बीरबल की अक्लमंदी के सामने उनकी चल न पाती. उन सवालों के बारे में जानना चाहेंगे, तो पेश है, अकबर के कुछ अजीबोग़रीब सवालों के बीरबल द्वारा दिए शानदार जवाबों का संकलन : 

Akbar Birbal Ke Sawal Jawab Hindi

akbar birbal ke sawal jawab अकबर बीरबल के सवाल जवाब हिंदी | अकबर बीरबल के प्रश्न उत्तर | Akbar Birbal Ke Sawal Jawab Hindi

अकबर के तीन प्रश्न

अकबर अक्सर बीरबल से प्रश्न पूछा कर उसकी बुद्धि की परीक्षा लेते रहते थे. एक दिन उन्होंने तीन प्रश्न बीरबल के समक्ष रखे.

वे प्रश्न थे :

  • ईश्वर कहाँ रहता है?
  • ईश्वर कैसे मिलता है?
  • ईश्वर क्या करता है?

प्रश्न सुनकर बीरबल ने कहा, “जहाँपनाह! मैं इस प्रश्न पर उत्तर सोच-विचार कर कल दूंगा.”

अकबर ने बीरबल को दूसरे दिन तक का समय दे दिया.

घर जाकर बीरबल इस प्रश्न पर सोच-विचार करने लगा. पिता को विचारमग्न देख बीरबल के पुत्र से रहा न गया और वह पूछ बैठा, “पिताजी, क्या बात है? आपने जब से घर में प्रवेश किया है, तब से सोच में डूबे हुए हैं.”

बीरबल ने अकबर द्वारा पूछे गए प्रश्न अपने पुत्र को बताये. प्रश्न सुनकर वह बोला, “पिताजी! इस प्रश्नों का उत्तर बादशाह सलामत को मैं दूंगा. आप कल मुझे अपने साथ दरबार ले चलियेगा.”

बीरबल राज़ी हो गया. अगले दिन वह अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार पहुँचा. बीरबल को पुत्र के साथ आया देख अकबर सहित सारे दरबारी हैरान थे.

बीरबल और उसके पुत्र ने अकबर को अदब से सलाम किया. फिर बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मैंने आपके द्वारा पूछे गए प्रश्न अपने पुत्र को बताये. वह उन प्रश्नों के उत्तर देना चाहता है. इसलिए मैं उसे अपने साथ दरबार ले आया.”

इतना कहने के बाद बीरबल ने अपने पुत्र को अकबर के सामने कर दिया. बीरबल के पुत्र ने अकबर से कहा, “जहाँपनाह! आपके पहले प्रश्न का उत्तर देने के पूर्व मैं चाहता हूँ कि आप सेवक से कहकर शक्कर घुला हुआ दूध मंगवायें.”

कुछ देर में एक सेवक शक्कर घुला दूध लेकर हाज़िर हुआ. बीरबल के पुत्र ने कहा, “जहाँपनाह! ज़रा इस दूध को चखकर बताइए कि इसका स्वाद कैसा है?”

अकबर ने दूध चखा और बोले, “इसका स्वाद मीठा है.”

“क्या आपको इसमें शक्कर दिखाई पड़ रही है?” बीरबल के पुत्र ने पुनः प्रश्न किया.

“नहीं तो, वह कैसे दिखाई पड़ेगी? वह तो पूरी तरह से दूध में घुल चुकी है.” अकबर बोले.

“जी हुज़ूर! ठीक इसी तरह ईश्वर भी संसार की हर वस्तुओं में रचा-बसा हुआ है. यदि उनकी खोज करें, तो वह हर वस्तुओं में मिलेगा.”

इसके बाद बीरबल के पुत्र ने दही मंगवाकर अकबर से पूछा, “जहाँपनाह! क्या इस दही में मक्खन दिखाई दे रहा है?”

“मक्खन तो दही मथने के बाद ही दिखाई पड़ेगा.” अकबर बोले.

“जी जहाँपनाह! ठीक इसी तरह ईश्वर की प्राप्ति गहन मंथन के उपरांत ही हो सकती है. ये आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर है.”

दोनों उत्तरों से संतुष्ट होने के उपरांत अकबर ने तीसरे प्रश्न का उत्तर पूछा.

इस पर बीरबल के पुत्र ने कहा, “जहाँपनाह! इस प्रश्न का उत्तर मैं तभी दे पाऊंगा, जब आप मुझे अपना गुरू मान लेंगे.”

“ऐसी बात है, तो मैं तुम्हें अपना गुरू मानता हूँ.” अकबर बोले.

“अब जब आपने मुझे अपना गुरू मान लिया है, तो आप मेरे शिष्य हुए. लेकिन गुरू तो शिष्य से ऊँचे स्थान पर विराजमान होता है.”

यह सुनकर अकबर सिंहासन से उठ खड़े हुए और बीरबल के पुत्र को सिंहासन पर बिठा दिया. वे स्वयं नीचे आकर बैठ गए.

अकबर के सिंहासन पर बैठकर बीरबल का पुत्र बोला, “जहाँपनाह! ईश्वर की यही लीला है. वह एक क्षण में राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है. अब तो आपको तीसरे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा कि ईश्वर क्या करता है?”

ये सुनकर अकबर एक क्षण को मौन पड़ गए. लेकिन फिर उन्होंने बीरबल के पुत्र की अक्लमंदी की खूब तारीफ़ की और उसे पुरुस्कृत भी किया.

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अकबर के पाँच प्रश्न 

बादशाह अकबर दरबार में पधारे. दरबारी भी मौजूद थे. इसी बीच बादशाह के ध्यान में पाँच प्रश्न आये. उन्होंने दरबारियों से वे प्रश्न पूछे. बीरबल उस समय दरबार में मौज़ूद न था. वे पाँच प्रश्न इस प्रकार थे :

  • फूल किसका अच्छा?
  • दूध किसका अच्छा?
  • मिठास किसकी अच्छी?
  • पत्ता किसका अच्छा?
  • राजा कौन सा अच्छा?

बादशाह के इन सवालों को सुनकर दरबारियों में मतभेद उत्पन्न हो गया. किसी ने गुलाब को अच्छा बताया, तो किसी ने कमल को. इसी तरह दूध के लिए भी किसी ने गाय, तो किसी ने भैंस और बकरी आदि के दूधों को अच्छा बतलाया. पत्ते में किसी ने केले के पत्तों, तो किसी ने नीम के पत्तों को गुणकारी बतलाया.

राजा कौन सा अच्छा है? इस प्रश्न के उत्तर में चापलूस दरबारी एकमत थे. सब एक स्वर में बोले, “बादशाह अकबर  सबसे अच्छे.”

अकबर उनकी स्वामिभक्ति पर ख़ुश हुए. किंतु, अपने प्रश्नों का यथोचित उत्तर न पाने से उन्हें संतोष न हुआ. वे बीरबल की प्रतीक्षा में थे, क्योंकि जानते थे कि प्रश्नों का सही उत्तर दे सकने में वही समर्थ है.

तभी बीरबल आ पहुँचा और अकबर के बगल में अपने स्थान पर बैठ गया. अकबर ने बीरबल से वही प्रश्न पूछे. बीरबल ने जो उत्तर दिए, वह इस प्रकार थे :

  • फूल कपास का अच्छा होता है, जिससे सारी दुनिया का पर्दा रहता है क्योंकि उसी के फूल से कपड़े बनते हैं.
  • दूध माँ का अच्छा होता है. उससे शरीर का विकास होता है.
  • मिठास वाणी (जीभ) की अच्छी होती है.
  • पत्ता पान का अच्छा है, जिसे देने के शत्रु भी मित्र जैसा व्यवहार करता है.
  • राजाओं में इंद्र श्रेष्ठ है, क्योंकि उन्हीं की आज्ञा से वर्षा होती है. जिससे संसार में कृषि कर्म होता है और समस्त प्राणियों का पालन-पोषण होता है.

बादशाह अकबर बीरबल के उत्तर सुनकर संतुष्ट हो गए.

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सबसे बड़ा कौन? 

बादशाह अकबर को अपना शाही बाग़ बेहद पसंद था. अपने खाली समय में वे अक्सर वहाँ सैर के लिए जाया करते थे. एक दिन हमेशा की तरह वे शाही बाग़ में टहल रहे थे. बीरबल भी उनके साथ था.

टहलते-टहलते वे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे. चर्चा का मुख्य मुद्दा अकबर की हाल ही में पड़ोसी राज्यों और क्षेत्रों पर हुई जीतें थे. अचानक अकबर के दिमाग में एक प्रश्न कौंधा और हमेशा की तरह उन्होंने वह प्रश्न बीरबल से पूछ लिया.

प्रश्न था : “सबसे बड़ा कौन है?

दिल ही दिल में अकबर की चाहत थी कि बीरबल उसकी जीतों के बारे में बखान करे और साथ ही उसकी बहादुरी और नेतृत्वक्षमता की भी.

लेकिन अकबर की उम्मीदों के विपरीत बीरबल ने इस उत्तर दिया, “जहाँपनाह! सबसे बड़ा तो बच्चा ही होता है.”

अकबर को बीरबल का ये उत्तर बड़ा अटपटा लगा. साथ ही अपना मनचाहा उत्तर न मिलने पर थोड़ा बुरा भी लगा. उन्होंने बीरबल से अपनी बात सिद्ध करने को कहा. बीरबल समझ गया कि अकबर उसके उत्तर से ख़ुश नहीं है. उसने ४८ घंटों का समय मांगा. अकबर ने उसे समय प्रदान कर दिया.

समय मिलने के बाद बीरबल अपने एक मित्र के पास गया और उससे सहायता मांगी. उसके मित्र का एक बहुत ही प्यारा २ साल का बेटा था. बीरबल उसे अपने साथ राजमहल ले जाना चाहता था. मित्र ने उसे अनुमति दे दी और बीरबल बच्चे को लेकर अकबर के दरबार में चला आया.

बीरबल के साथ एक प्यारे से बच्चे को देखकर अकबर बहुत ख़ुश हुए और बीरबल से उसे अपने पास लाने को कहा. जब बीरबल बच्चे को अकबर के पास ले गया, तो उन्होंने उसे अपनी गोद पर बिठा लिया.

बच्चा अकबर की गोद में बैठकर मज़े से खेलने लगा. अकबर उसकी बालक्रीड़ा देखकर हँसने लगे. कुछ पलों के लिए वे राज-पाट की सारी चिंता भूल गए और उस बच्चे के साथ का आनंद लेने लगे.

अचानक खेलते-खेलते बच्चे को जाने क्या हुआ कि उसने अकबर की मूँछे पकड़कर खींच दी. बच्चे की इस हरक़त से अकबर दर्द से चीख उठे. उन्हें बहुत गुस्सा आया. वे बीरबल पर चिल्लाने लगे, “बीरबल! तुम इस गुस्ताख़ बच्चे को मेरे दरबार में क्यों लाये हो? इसे अभी यहाँ से ले जाओ, नहीं तो हम इसे सज़ा दे देंगे.”

बीरबल को ये समय सही लगा, अपनी बात रखने का. वह बोला, “जहाँपनाह! मैं ये बच्चा अपनी बात सिद्ध करने के उद्देश्य से लाया था. आप मेरी बात समझे या नहीं? इस समय ये बच्चा आपसे भी बड़ा है. यदि ऐसा नहीं होता, तो इसमें इतनी हिम्मत ही नहीं होती कि ये आपकी मूँछ खींच सके. इसकी जगह कोई और होता, तो उसकी आपको तकलीफ़ पहुँचाने की जुर्रत ही नहीं होती और यदि वह ऐसा कर भी लेता, तो ज़िन्दा नहीं बचता.”

अकबर बीरबल का उत्तर सुनकर हैरान रह गए. बीरबल बिलकुल सही था. वह बच्चा उन्हें तकलीफ़ पहुँचाने की हिमाक़त कर भी जीवित था और मुस्कुरा रहा था. बीरबल ने बहुत ही चतुराई से अपनी बात सिद्ध कर दी थी.

बीरबल की बात सुनकर अकबर का गुस्सा शांत हो गया. उन्होंने बच्चे को गले से लगा लिया और बीरबल की बहुत प्रशंसा की.     

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सबसे उज्जवल क्या है? 

समय-समय पर बादशाह अकबर अपने मंत्रियों और दरबारियों से प्रश्न पूछा करते थे. एक दिन उन्होंने पूछा –

“सबसे उज्जवल क्या होता है?”

इस प्रश्न का उत्तर किसी ने कपास दिया, तो किसी ने दूध. दोनों में ‘कपास’ को दरबारियों के अधिक मत मिले.

बीरबल शांत था. उसे शांत देख अकबर बोले, “बीरबल तुम्हारा क्या उत्तर है? कपास या दूध?”

बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मेरा उत्तर न कपास है न दूध. मेरे मतानुसार सबसे उज्जवल ‘प्रकाश’ होता है.”

बीरबल का उत्तर सुन अकबर बोले, “बीरबल! तुम्हें अपना उत्तर साबित करके दिखाना होगा.”

बीरबल ने हामी भर दी.

अगले दिन दोपहर को अकबर अपने कक्ष में आराम कर रहे थे. उसी समय बीरबल ने उनके कक्ष के दरवाज़े पर एक कटोरा दूध तथा कुछ कपास रख दिया. राजमहल के सभी दरवाज़े बंद होने के कारण उस स्थान पर प्रकाश नहीं आ पा रहा था.

आराम करने के बाद जब अकबर उठे और कमरे से बाहर जाने के लिए दरवाज़े से निकलने लगे, तो उनका पैर कटोरी पर पड़ा और उसमें रखा सारा दूध गिर पड़ा.

तब बाहर बैठे बीरबल ने महल के दूसरे दरवाज़े खुलवाए, ताकि प्रकाश अंदर आ सके. प्रकाश हुआ, तो बादशाह ने दूध का कटोरा, जमीन पर गिरा दूध और कपास ठीक दरवाज़े के सामने देखा. वे बड़े अचंभित हुए. बाहर बीरबल को बैठा देख उनके मन में विचार आया कि ये अवश्य बीरबल की कारस्तानी है. लेकिन क्यों ये उन्हें समझ नहीं आया.

उन्होंने बीरबल से कटोरा भरा दूध तथा कपास दरवाज़े पर रखने का कारण पूछा. यब बीरबल बोला, “जहाँपनाह! कल अपने दरबार में प्रश्न पूछा था कि सबसे उज्जवल क्या है. दरबारियों का उत्तर था कपास और दूध. मेरा उत्तर था प्रकाश. मैंने अपना उत्तर प्रमाणित कर दिया है.”

अकबर को उत्तर अब भी अस्पष्ट था. बीरबल अपनी बात स्पष्ट करते हुए बोला, “जहाँपनाह! दूध और कपास मैंने आपके कक्ष के दरवाज़े पर रख दिया था. इनकी उज्ज्वलता पर किसी को शक नहीं है. किंतु, बिना प्रकाश के ये चीज़ें दिखाई नहीं पड़ी. दरवाज़ा खोलते ही प्रकाश हुआ, तो ये चीज़ें दिखाई दीं. इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश सबसे उज्ज्वल है.”

अकबर बीरबल के उत्तर से संतुष्ट हो गए.

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सबसे अच्छा शस्त्र कौन सा है?

दरबारी कार्यवाही के मध्य बादशाह अकबर ने दरबारियों से एक प्रश्न पूछा. प्रश्न था :

बचाव के लिए सबसे अच्छा शस्त्र कौन सा है?”

एक-एक कर दरबारियों ने इन प्रश्न का उत्तर दिया. किसी ने तलवार कहा, तो किसी ने भाला. किसी ने तीर-कमान कहा, तो किसी ने चाकू. जब बीरबल की बारी आई, तो वह बोला, “जहाँपनाह! मेरे विचार से मुसीबत में जो हाथ में हो, वही सबसे अच्छा शस्त्र होता है.”

बीरबल का उत्तर सुन दरबारी उसका मजाक उड़ाने लगे. अकबर भी उसके उत्तर के संतुष्ट नहीं हुए.

बीरबल उस दिन तो अपमान का घूंट पीकर रह गया. लेकिन अपनी बात सही साबित करने का मौका बहुत जल्द उसके हाथ लग गया.

बादशाह अकबर अक्सर भेष बदलकर नगर भ्रमण पर निकला करते थे. बीरबल भी उनके साथ ही होते थे. एक दिन इसी तरह वे दोनों नगर भ्रमण पर निकले.

वे एक तंग गली से पैदल गुज़र रहे थे. तभी एक मतवाला हाथी उस गली में आ गया. उस हाथी को देख अकबर डर गए. उस समय उनके पास एक तलवार थी, लेकिन इतने बड़े हाथी के सामने वह किसी काम की नहीं थी. उन्हें अपने बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. गली इतनी तंग थी कि वहाँ से भाग पाना लगभग नामुमकिन था.

उस गली में एक किनारे पर एक छोटा सा पिल्ला बैठा हुआ था. जब बीरबल की नज़र उस पर पड़ी, तो उसने उसे उठाया और हाथी के ऊपर फेंक दिया.

इस तरह हाथी के ऊपर उछाल दिए जाने पर पिल्ला डर गया. उसने हाथी की सूंड को कसकर पकड़ लिया. पिल्ले की इस हरक़त पर हाथी भी घबरा गया और अपनी सूंड झटकने लगा. हाथी के सूंड झटकने पर पिल्ला सूंड से फिसलने लगा और स्वयं को गिरने से बचाने के लिए उसने अपने पंजे और दांत हाथी की सूंड पर गड़ा दिये. हाथी बिलबिला उठा और सूंड को झटकते हुए पलटकर गली के बाहर भागने लगा.

हाथी के गली से बाहर भागने पर अकबर को चैन आया. पसीने पोंछते हुए जब उन्होंने बीरबल को देखा, तो बीरबल मुस्कुरा रहा था. अकबर बीरबल की मुस्कराहट का अर्थ समझ नहीं पाए और पूछ बैठे, “बीरबल! ऐसी संकट की घड़ी में भी तुम मुस्कुरा रहे हो?”

बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मुसीबत की इस घड़ी में छोटा सा पिल्ला हमारा शस्त्र बना और हमारी रक्षा की. इस घटना से आपको अवश्य यकीन हो गया होगा कि मुसीबत में जो हाथ में हो, वही सबसे अच्छा शस्त्र होता है.”

अकबर ने भी मुस्कुराते हुए हामी भरी और बोले, “बीरबल तुम सही थे. उस प्रश्न के सही उत्तर के साथ आज हमारी रक्षा करने के लिए भी तुम पुरूस्कार के पात्र हो.”

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ऊँट की गर्दन क्यों मुड़ी हुई होती है? 

अकबर अक्सर बीरबल की अक्लमंदी और हाज़िर जवाबी से खुश होकर उसे ईनाम दिया करते थे. एक बार उन्होंने भरे दरबार में बीरबल को ईनाम देने की घोषणा की. लेकिन बाद वे ईनाम देना भूल गए. बीरबल कई दिनों तक इंतज़ार करता रहा, लेकिन उसे ईनाम नहीं मिला. मांगना उसे उचित नहीं लग रहा था और अकबर थे कि ईनाम देने का नाम नहीं ले रहे थे. अकबर के इस रवैये से बीरबल थोड़ा दु:खी था.

एक दिन अकबर बीरबल को साथ लेकर सैर पर निकले. वे दोनों यमुना नदी के तट पर पैदल टहल रहे थे. तभी वहाँ से एक ऊँट गुज़रा. ऊँट की मुड़ी हुई गर्दन को देख अकबर के ज़ेहन में एक सवाल कौंध गया और उन्होंने फ़ौरन बीरबल से पूछा, “बीरबल, देखो इस ऊँट को. इसकी गर्दन मुड़ी हुई है. ऐसा क्या कारण है कि ऊँट की गर्दन मुड़ी हुई होती है?”

अकबर का ये सवाल सुनकर बीरबल ने सोचा कि ये अच्छा मौका है बादशाह सलामत को ईनाम के बारे में याद दिलाने का और वह बोला, “जहाँपनाह, ऊँट ने किसी से कोई वादा किया था और अपना वादा निभाना भूल गया था. इसलिए भगवान ने इसकी गर्दन मोड़ दी है. ऐसा भगवान हर उस इंसान के साथ करता है, जो वादा करके उसे निभाता नहीं है.”

बीरबल की बात सुनकर अकबर को याद आया कि उन्होंने बीरबल को ईनाम देने का वादा किया था. लेकिन अब तक उसे ईनाम नहीं दिया है. वे बीरबल की लेकर फ़ौरन राजमहल पहुँचे और वादे अनुसार बीरबल को उसका ईनाम दे दिया.

इस तरह बीरबल ने चतुराई दिखाते हुए बिना मांगे ही अपना ईनाम प्राप्त कर लिया.

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भगवान मानव अवतार क्यों लेते हैं? 

एक दिन अकबर ने बीरबल से पूछा, “भगवान जब अपनी इच्छा से ही सब कुछ कर सकते हैं, तो वे मानव अवतार क्यों लेते हैं?”

प्रश्न सुनकर बीरबल ने अकबर से थोड़ा समय मांगा, ताकि वह सोच-विचार कर इस प्रश्न का उचित उत्तर दे सके. अकबर ने बीरबल को समय दे दिया.

अकबर से आज्ञा लेकर जब बीरबल घर की ओर निकला, तो शाही बाग़ में एक दासी को अकबर के पुत्र को गोद में घुमाते हुए देखा. बीरबल दासी के पास गया और बोला, “आज बादशाह सलामत ने मुझसे एक तार्किक प्रश्न किया है. उसके सही उत्तर के लिए मुझे तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है.”

दासी ने पूछा कि वह कैसे उसकी सहायता कर सकती हैं.

बीरबल ने उसे समझाना शुरू किया, “ध्यान से सुनो. जब बादशाह सलामत शाम को तालाब के किनारे अपने पुत्र के साथ खेलने आयेंगे. तो तुम एक कपड़े के गुड्डे को गोद में लिए तालाब के किनारे टहलने लगना. बादशाह के पुत्र को मैं अपने साथ छुपा कर रखूंगा. टहलते-टहलते तुम ऐसा दिखाना, मानो तुम्हारे पैर में ठोकर लग गई हैं और तुम गिर रही हो. इस प्रक्रिया में तुम कपड़े के गुड्डे को तालाब में गिरा देना.”

बीरबल ने दासी को यह भी विश्वास दिलाया कि उसे किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. इसलिए वह डरे नहीं. बीरबल का आश्वासन पाकर दासी ख़ुशी-ख़ुशी इस काम के लिए राज़ी हो गई.

शाम को रोज़ की तरह अकबर टहलते-टहलते राजमहल के तालाब के पास पहुँचे. उसी समय दासी बीरबल के कहे अनुसार अकबर के पुत्र के स्थान पर कपड़े का गुड्डा लेकर तालाब किनारे टहल रही थी. अचानक उसने पैर फ़िसलने का नाटक किया और उस कपड़े के गुड्डे को तालाब में गिरा दिया.

अकबर को लगा कि उनका पुत्र तालाब में गिर गया है. अकबर फ़ौरन तालाब के किनारे पहुँचे और पानी में छलांग लगा दी.

अकबर के पानी में कूदने के बाद पास ही पेड़ के पीछे छुपा बीरबल बाहर आ गया. उसके साथ अकबर का पुत्र भी था. वो अकबर से बोला, “जहाँपनाह, चिंता मत करिए. आपका पुत्र मेरे पास है और सही-सलामत है.”

यह देख अकबर बहुत नाराज़ हुए और तालाब से बाहर निकलकर सैनिकों को बीरबल को गिरफ्तार कर लेने आदेश दिया.

बीरबल ने तब बिना समय गंवाए कहा, “जहाँपनाह! आज दरबार में आपके मुझसे जो प्रश्न किया था. मैंने बस उसका व्यावहारिक उत्तर दिया है. आपके पास इतने सारे सेवक हैं, जो आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा कर सकते थे. फिर भी अपने पुत्र बचाने आपने खुद पानी में छलांग लगा दी. ऐसा आपने अपने पुत्र के प्रति प्रेम के कारण किया. ठीक इसी तरह भगवान भी अपनी इच्छा मात्र से सबकुछ कर सकते हैं. इसके बाद भी अपने भक्तों के प्रेम के कारण और उनकी रक्षा के लिए मानव अवतार लेकर धरती पर अवतरित होते हैं.”

बीरबल के उत्तर से अकबर संतुष्ट हो गए. उन्होंने उसकी सजा माफ़ कर दी और इनाम से नवाज़ा.

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हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते?

एक दिन दरबार की कार्यवाही के मध्य बादशाह अकबर को मसखरी सूझी और उन्होंने बीरबल के मज़े लेने के लिए सवाल पूछा, “बीरबल! ये तो बताओ कि हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते?

सवाल सुनकर बीरबल समझ गया कि आज बादशाह मजाक में मूड में हैं.

हाजिरजवाब बीरबल का फ़ौरन कोई जवाब न आता देख अकबर बोले, “क्यों बीरबल! हर सवाल का जवाब तो तुम तपाक से दे देते हो. आज क्या हुआ?”

“कुछ नहीं जहाँपनाह! मैं बस ये सोच रहा था कि किसकी हथेली पर?” बीरबल ने शांति से पूछा.

“हमारी हथेली पर बीरबल.” अकबर अपनी हथेली दिखाते हुए बोले.

“हुज़ूर! आपकी हथेली पर बाल कैसे उगेंगे? आप दिन भर अपने हाथों से उपहार वितरित करते रहते हैं. लगातार घर्षण के कारण आपकी हथेली में बाल उगना नामुमकिन है.” बीरबल ने जवाब दिया.

“चलो मान लेते हैं. लेकिन तुम्हारी हथेली पर भी तो बाल नहीं है. ऐसा क्यों?” अकबर आसानी से कहाँ मानने वाले थे. उन्होंने तुरंत दूसरा सवाल कर दिया.

ये सुनकर दरबारियों के भी कान खड़े हो गए. उन्हें लगने लगा कि बीरबल इसका जवाब नहीं दे पायेगा.   

लेकिन बीरबल का जवाब तैयार था, “हुज़ूर! मैं हमेशा आपसे ईनाम लेता रहता हूँ. इसलिए मेरी हथेली पर भी बाल नहीं है.”

अकबर इस जवाब से प्रभावित तो हुए. लेकिन उनका मन किसी भी तरह बीरबल को निरुत्तर करने का था. इसलिए उन्होंने तीसरा सवाल दागा, “चलो ये तो हुई हमारी और तुम्हारी बात. लेकिन इन दरबारियों का क्या? ये तो हमसे हमेशा ईनाम नहीं लेते. ऐसे में इनकी हथेलियों पर बाल क्यों नहीं है?”

इस सवाल पर दरबारियों को लगा कि अब बीरबल फंस गया.

लेकिन बीरबल यूं ही अपनी वाक्पटुता के लिए प्रसिद्ध नहीं था. वह झट से बोला, “जहाँपनाह! आप ईनाम देते रहते हैं और मैं ईनाम लेता रहता हूँ. ये देख सभी दरबारी जलन में हाथ मलते रह जाते हैं. इसलिए इनकी हथेली पर बाल नहीं है.”

ये सुनना था कि अकबर ठहाका लगा उठे. उधर दरबारियों के सिर शर्म से झुक गए.

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सड़क पर कितने मोड़ ?

फ़ारस के शहंशाह और बादशाह अकबर गहरे मित्र थे. अक्सर पत्र लिखकर वे एक-दूसरे का हाल-चाल पूछते रहते थे. पत्र में वे आमोद-प्रमोद की बातें, लतीफ़े और पहेलियाँ भी लिखते थे. पहेलियों का उत्तर सही मिलने पर वे एक-दूसरे को उपहार भी भेजा करते थे.

एक बार फ़ारस के शहंशाह का पत्र अकबर को प्राप्त हुआ, जिसमें उन्होंने एक प्रश्न लिखकर प्रेषित किया था. प्रश्न कुछ ऐसा था – “आपके राज्य की सड़कों पर कितने मोड़ हैं?”
 
प्रश्न पढ़कर अकबर (Akbar) सोच में पड़ गए. उनका सम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था. इतने विस्तृत साम्राज्य में सड़कों की संख्या भी अत्यधिक थी. ऐसे में सभी सड़कों के मोड़ों की गणना कर पाना एक नामुमकिन कार्य था.
 

लेकिन अकबर फ़ारस के शहंशाह के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहते थे. उन्हें किसी भी सूरत में इस प्रश्न का उत्तर देना ही था. उन्होंने टोडरमल को बुलवाया और कहा, “टोडरमल! तुम अभी तुरंत कुछ सैनिकों को लेकर निकल जाओ. तुम्हें हमारे पूरे साम्राज्य की सड़कों के मोड़ों की गणना करनी है. किसी भी सूरत में हमें ये काम पूरा करके दो.”

टोडरमल कुछ सैनिकों को लेकर तुरंत निकल गया. लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी नहीं लौटा. इधर अकबर को चिंता सताने लगी कि ये कार्य टोडरमल कर पायेगा भी या नहीं?

एक दिन बीरबल ने अकबर को चिंतित देखा, तो पूछ बैठा, “जहाँपनाह! क्या बात है? आप बड़े चिंतित लग रहे हैं?
अकबर ने फ़ारस के शहंशाह के पत्र और उसमें पूछे गए प्रश्न के बारे में बीरबल को बताते हुए कहा, “बीरबल! हमने टोडरमल को राज्य की सभी सड़कों के मोड़ों की संख्या की गणना के लिए भेजा है. हमें उसकी ही प्रतीक्षा है. साथ ही ये चिंता भी कि वो ये काम पूरा करके लौटेंगा या नहीं.”

फ़ारस के शहंशाह के पूछे गए प्रश्न को जानकर बीरबल मुस्कुरा उठा और बोला, “जहाँपनाह! इस आसान से प्रश्न के लिए आपको टोडरमल को कहीं भी भेजने की आवश्यकता नहीं थी. मैं तो यही खड़े-खड़े ये बता सकता हूँ कि आपके राज्य की सड़कों पर कितने मोड़ हैं. यहाँ तक कि मैं तो ये भी बता सकता हूँ कि पूरी दुनिया की सड़कों में कितने मोड़ हैं.”

“बीरबल! तुम बिना गणना किये हमारे राज्य और दुनिया की सड़कों के मोड़ों की संख्या बता सकते हो. कैसे?” अकबर हैरत में पड़ गए.

 “जहाँपनाह! क्योंकि इसमें गणना की आवश्यकता ही नहीं है. दुनिया की सारी सड़कों के बस दो ही तो मोड़ होते हैं. एक दांया और दूसरा बांया.” बीरबल ने शांतभाव से उत्तर दिया.
 
ये उत्तर सुनकर अकबर हँस पड़े, “अरे, हमने तो ये सोचा ही नहीं और टोडरमल को सड़कों के मोड़ों की गणना के लिए भेज दिया. बीरबल तुम वाकई अक्लमंद हो.”
 

अकबर ने बीरबल को इनाम में सोने का हार दिया और फ़ारस के शहंशाह के प्रश्न का उत्तर उन्हें भिजवा दिया.


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