अकबर बीरबल की कहानी सोने का खेत | Akbar Birbal Ki Kahani Sone Ka Khet

अकबर बीरबल की कहानी सोने का खेत, Akbar Birbal Ki Kahani Sone Ka Khet, A field Of Gold Akbar Birbal Story In Hindi में अकबर अपने एक सेवक को झूठ बोलने की सजा के तौर पर फांसी पर चढ़ाने का हुक्म सुना देते हैं. बीरबल कैसे साबित करता है कि झूठ हर कोई बोलता है और कैसे उस व्यक्ति को बचाता है? यही इस कहानी में बताया गया है.

Akbar Birbal Ki Kahani Sone Ka Khet

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Akbar Birbal Ki Kahani Sone Ka Khet

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बादशाह अकबर के शयनकक्ष में सफाई करते हुए एक सेवक के हाथ से गिरकर उनका पसंदीदा फूलदान टूट गया. फूलदान टूटने पर सेवक घबरा गया. उसने चुपचाप फूलदान के टुकड़े समेटे और उन्हें बाहर फेंक आया. 

अकबर जब शयनकक्ष में आये, तो उन्हें अपना मनपसंद फूलदान नदारत दिखा. उन्होंने सेवक को बुलाकर उसके बारे में पूछा, तो डर के मारे सेवक ने झूठ कह दिया, “जहाँपनाह मैं वह फूलदान साफ़ करने घर ले गया था. इस वक़्त वो वहीं है.”

अकबर ने सेवक को तुरंत वह फूलदान घर जाकर लाने का आदेश दे दिया. यह आदेश पाकर सेवक के पसीने छूटने लगे. बात छुपाने का कोई औचित्य ना देख उसने अकबर को सब कुछ सच-सच बता दिया और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा.  

अकबर फूलदान टूटने की बात पर तो उतने नाराज़ नहीं हुए, लेकिन उन्हें सेवक का झूठ बोलना हज़म नहीं हुआ और उन्होंने उसे फांसी की सजा सुना दी. सेवक गिड़गिड़ाता रहा. लेकिन अकबर ने उसकी एक न सुनी.

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अगले दिन अकबर ने दरबार में इस विषय को चर्चा का मुद्दा बनाया और दरबारियों से पूछा, “क्या आपमें से किसी ने कभी झूठ बोला है?”

सारे दरबारियों ने एक स्वर में इंकार कर दिया. जब अकबर ने बीरबल से पूछा, तो बीरबल बोला, “जहाँपनाह! हर इंसान कभी ना कभी झूठ बोलता है. मैंने भी बोला है. मुझे लगता है कि जिस झूठ से किसी को नुकसान न पहुँचे, उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है.”

बीरबल की बात सुनकर अकबर गुस्सा हो गए. उन्होंने उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनाई, किंतु उसे अपने दरबार से निकाल दिया. बीरबल तुरंत दरबार छोड़कर चला गया. उसे अपनी चिंता नहीं थी, किंतु बिना बात के सेवक का फांसी पर चढ़ जाना उसे गंवारा नहीं था.

वह उसे बचाने की युक्ति सोचने लगा. कुछ सोच-विचार उपरांत उसने घर की जगह सुनार की दुकान की राह पकड़ ली. सुनार को उसने सोने से धान की बाली बनाने कहा.

अगली सुबह सुनार ने बीरबल को सोने की बनी धान की बाली बनाकर दे दी, जिसे लेकर बीरबल अकबर के दरबार पहुँचा. दरबार से निकाले जाने के बाद भी वहाँ आने की बीरबल की हिमाकत देखकर अकबर नाराज़ हुए. लेकिन बीरबल ने उन्हें अपनी बात सुनने के लिए किसी तरह राज़ी कर लिया.

वह सोने की बनी धान की बाली अकबर को दिखाते हुए बोले, “जहाँपनाह! एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात आपको बतानी थी. इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा. कल शाम घर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात एक सिद्ध महात्मा से हुई. उन्होंने मुझे ये सोने की धान की बाली देकर कहा कि किसी उपजाऊ भूमि में इसे लगा देना. इससे उस खेत में सोने की फ़सल होगी. मैंने एक उपजाऊ भूमि खोज ली है. मैं चाहता हूँ कि सभी दरबारी और आप भी इसे लगाने उस खेत में चलें. आखिर देखें तो सही कि महात्मा की कही बात सच है या नहीं.”

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अकबर बीरबल की बात मान गए और दूसरे दिन एक नियत समय पर खेत में पहुँचने के लिए दरबारियों को आदेशित कर दिया.

अगले दिन सभी नियत समय पर खेत पर पहुँचे. अकबर ने बीरबल को सोने से बना धान का पौधा खेत में लगाने को कहा. लेकिन बीरबल ने इंकार करते हुए कहा, “जहाँपनाह! महात्मा ने यह पौधा देते हुए मुझे निर्देश दिया था कि जिस व्यक्ति ने कभी झूठ ना बोला हो, उसके द्वारा लगाने पर ही खेत में सोने की फ़सल होगी. इसलिए मैं तो यह पौधा लगा नहीं सकता. कृपया आप दरबारियों में से किसी को यह पौधा लगाने का आदेश दे दीजिये.”

अकबर ने जब दरबारियों से धान का वह पौधा लगाने कहा, तो कोई सामने नहीं आया. अकबर समझ गए कि सभी ने कभी ना कभी झूठ बोला है. तब बीरबल ने वह पौधा अकबर के हाथ में दे दिया और बोला, “जहाँपनाह, यहाँ तो कोई भी सच्चा नहीं है. इसलिए ये पौधा आप ही लगायें.”

लेकिन अकबर भी वह पौधा लेने में हिचकने लगे और बोले, ”बचपन में हमने भी झूठ बोला है. कब ये याद नहीं, पर बोला है. इसलिए हम भी यह पौधा नहीं लगा सकते.”

यह सुनने के बाद बीरबल मुस्कुराते हुए बोला, “जहाँपनाह, इस पौधे को मैंने सुनार से बनवाया है. मेरा उद्देश्य मात्र आपको यह समझाना था कि दुनिया में लोग कभी न कभी झूठ बोलते ही हैं. जिस झूठ से किसी का बुरा ना हो, वह झूठ झूठ नहीं है.”

अकबर बीरबल की बात समझ गए थे. उन्होंने उसे वापस दरबार में स्थान दे दिया और सेवक की फांसी की सजा माफ़ कर दी.   

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