अकबर बीरबल की 5 श्रेष्ठ शिक्षाप्रद कहानियाँ | 5 Best Akbar Birbal Stories In Hindi With Moral

मित्रों, इस पोस्ट में हम अकबर बीरबल की शिक्षाप्रद कहानियाँ  (Akbar Birbal Stories With Moral In Hindi) शेयर  कर रहे हैं. ये कहानियाँ मनोरंजन के साथ ही आपको नैतिक शिक्षा भी प्रदान करेंगी. पढ़िये अकबर बीरबल की ये शानदार कहानियाँ: 

Akbar Birbal Stories With Moral In Hindi

Akbar Birbal Stories With Moral In Hindi
Akbar Birbal Stories With Moral In Hindi

पढ़ें : अकबर बीरबल की संपूर्ण कहानियाँ

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चोर की दाढ़ी में तिनका : अकबर बीरबल की कहानी

एक बार की बात है. बादशाह अकबर (Akbar) की हीरे की अंगूठी गुम हो गई. उन्होंने उसे काफ़ी तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली.

उन्होंने इस बात का ज़िक्र बीरबल (Birbar) से किया, तो बीरबल ने पूछा, “हुज़ूर! क्या आपको याद है कि आपने वह अंगूठी कहाँ उतारी थी?”

कुछ देर सोचने के बाद अकबर ने जवाब दिया, “नहाने जाने के पहले मैंने वह अंगूठी उताकर पलंग के पास रखे संदूक में रख दी थी. नहाकर आने के बाद मैंने देखा कि अंगूठी गायब है.”

“हुज़ूर! तब तो हमें संदूक सहित इस पूरे कमरे की अच्छी तरह तलाशी लेनी चाहिए. अंगूठी यहीं–कहीं होगी.” बीरबल बोला.

“लेकिन वह यहाँ नहीं है. मैंने सेवकों से कहकर संदूक तो क्या, कमरे के हर कोने को तलाशा. पर अंगूठी कहीं नहीं मिली.” अकबर ने कहा.

“तब तो आपकी अंगूठी गुमी नहीं है हुज़ूर, चोरी हुई है और चोर आपके सेवकों में से ही कोई एक है. आप इस कमरे की साफ़-सफ़ाई करने वाले सेवकों को बुलवाइए.”

अकबर ने सभी साफ़-सफ़ाई करने वाले सेवकों को बुलवा लिया. वे कुल ६ लोग थे.

बीरबल ने उनसे अंगूठी के बारे में पूछा, तो सबने अनभिज्ञता ज़ाहिर की. तब बीरबल बोला, “लगता है कि अंगूठी चोरी हो गई है. बादशाह सलामत ने अंगूठी संदूक में रखी थी. इसलिए अब संदूक ही बताएगा कि चोर कौन है?”

यह कहकर बीरबल संदूक के पास गया और कान लगाकर कुछ सुनने की कोशिश करने लगा. फिर सेवकों को संबोधित कर बोला, “संदूक ने मुझे सब कुछ बता दिया. अब चोर का बचना नामुमकिन है. जो चोर है उसकी दाढ़ी में तिनका है.”

ये सुनना था कि ६ सेवकों में से एक ने नज़रें बचाते हुए अपनी दाढ़ी पर हाथ फ़िराया. बीरबल की नज़र ने उसे ऐसा करते देख लिया. उसने फ़ौरन उस सेवक को गिरफ़्तार करने का आदेश दे दिया.

कड़ाई से पूछताछ करने पर उस सेवक ने सच उगलकर अपना दोष स्वीकार कर लिया. बादशाह को बीरबल की अक्लमंदी से अपनी अंगूठी वापस मिल गई.

सीख (Moral Of The Story)

दोषी व्यक्ति घबराहट के कारण स्वयं अपने हाव-भाव से दोष  प्रकट कर देता है और अततः पकड़ा जाता है. सदाचार का  सादा जीवन श्रेष्ठ है ,  किसी भी  प्रकार के लोभ के कारण गलत कार्यों  में न पड़ें. 


बुद्धि से भरा घड़ा : अकबर बीरबल की कहानी

एक बार किसी बात पर अकबर बीरबल से नाराज़ हो गए और उन्होंने बीरबल को राज्य छोड़कर कहीं दूर चले जाने का आदेश दे दिया. बीरबल ने अकबर के आदेश का पालन किया और राज्य छोड़कर चले गए.

कुछ समय बीतने के बाद अकबर को बीरबल की याद आने लगी. कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बीरबल का मशवरा अकबर को निर्णय लेने में मदद करता था. इसलिए बीरबल के बिना निर्णय लेने में अकबर को असुविधा होने लगी.

आखिरकार, उन्होंने अपने सैनिकों को बीरबल को ढूंढने के लिए भेजा. सैनिकों के कई गाँव में बीरबल को ढूंढने का प्रयास किया. लेकिन बीरबल नहीं मिले. कई जगहों पर पूछताछ करने के बाद भी बीरबल का पता-ठिकाना नहीं मिल सका और अकबर के पास सैनिक बैरंग लौट आये.

अकबर किसी भी सूरत में बीरबल को वापस लाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने एक युक्ति सोची. सैनिकों के माध्यम से उन्होंने अपने राज्य के सभी गाँवों के मुखियाओं को संदेश भिजवाया. संदेश इस प्रकार था –

‘एक माह के भीतर एक घड़े बुद्धि भरकर उस घड़े के साथ दरबार में उपस्थित हो. ऐसा न कर पाने की स्थिति में बुद्धि की जगह घड़े में हीरे-जवाहरात भरकर देना होगा.’

अकबर का ये संदेश सैनिकों द्वारा गाँव-गाँव में प्रसारित किया गया. एक गाँव में बीरबल भेष बदलकर एक किसान के खेत पर काम किया करते थे. जब उस गाँव ने मुखिया को अकबर का ये संदेश मिला, तो वो चिंतित हो उठा.

उसने गाँव के लोगों की सभा बुलाई. बीरबल भी उस सभा में उपास्थित हुआ. गाँव के मुखिया ने अकबर का संदेष गाँव वालों को दिया, तो सभी सोच में पड़ गए. तब बीरबल ने मुखिया से आग्रह किया, “महाशय! आप मुझे एक घड़ा दे दें. मैं उसे इन महीने के अंत तक उसे बुद्धि से भर दूंगा.”

मुखिया के पास और कोई चारा नहीं था. उसने एक घड़ा बीरबल को दे दिया. बीरबल वह घड़ा लेकर किसान के उस खेत पर चला गया, जहाँ वह काम किया करता था. वहाँ उसने कद्दू उगाये थे. उनमें से ही एक छोटे से कद्दू को उठाकर उसने घड़े में डाल दिया. कद्दू अब भी अपनी बेल से लगा हुआ था.

बीरबल उस कद्दू को नियमित रूप से खाद-पानी देने लगा और उसकी अच्छी तरह से देखभाल करने लगा. जिससे धीरे-धीरे कद्दू बढ़ने लगा. कुछ दिनों बाद कद्दू का आकार इतना बड़ा हो गया कि उसे घड़े से बाहर निकाल पाना असंभव था.

कुछ और दिन बीतने के बाद जब कद्दू का आकार घड़े के आकार जितना बड़ा हो गया, तब बीरबल ने उसे उसकी बेल से काटकर अलग किया. घड़े का मुँह कपड़े से ढकने के बाद वह गाँव के मुखिया के पास पहुँचा और वह घड़ा उसे देते हुए बोला, “यह घड़ा बादशाह अकबर को दे देना और उनसे कहना कि इसमें बुद्धि भरी हुई है. उसे बिना काटे और इस घड़े को बिना फोड़े उसे निकाल लीजिये.”

मुखिया बादशाह अकबर के दरबार पहुँचा और उसने अकबर को घड़ा सौंपते हुए वैसा ही कहा, जैसा बीरबल ने उसे कहने के लिए बोला था. अकबर ने जब घड़े के ऊपर से कपड़ा हटाया और उसमें झांककर देखा, तो उसमें उन्हें कद्दू दिखाई दिया. वे समझ गए कि इतनी दूर की सोच सिर्फ़ बीरबल की ही हो सकती है. पूछने पर मुखिया ने बताया कि यह उसके गाँव के एक किसान के खेत में काम करने वाले व्यक्ति ने किया है. अकबर जान चुके थे कि वो व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि बीरबल है. वे तुरंत मुखिया के गाँव गए. वहाँ किसान के घर जाकर बीरबल से मिले और उससे माफ़ी मांगकर वापस दरबार में ले आये.

सीख (Moral Of The Story)

हर समस्या का कोई न कोई हल अवश्य होता है.


इत्र की बूंद : अकबर बीरबल की कहानी

फ़ारस के शहंशाह और बादशाह अकबर अक्सर एक-दूसरे को उपहार भेजा करते थे. एक बार उपहार में फ़ारस के शहंशाह ने बादशाह अकबर को एक दुर्लभ किस्म का इत्र भेजा.

इत्र लगाने की चाहत में अकबर (Akbar) अपने कक्ष में गए और इत्र की शीशी खोलने लगे. लेकिन जैसे ही उन्होंने शीशी खोली, इत्र की एक बूंद जमीन पर गिर गई. अकबर फ़ौरन घुटनों के बल बैठ गए और उंगली से समेटकर इत्र की उस बूंद को उठाने लगे. ठीक उसी समय किसी काम से बीरबल कक्ष के अंदर आ गया.

घुटनों के बल बैठे अकबर ने जब बीरबल (Birbal) को अपने सामने पाया, तो वे हड़बड़ा गए. उस हालत में अकबर को देखकर बीरबल मुँह से तो कुछ ना बोला, लेकिन उसकी आँखें हँस रही थी.

अकबर को बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई. हिंदुस्तान का बादशाह इत्र की एक बूंद के लिए अपने घुटनों पर आ गया. ये शर्म वाली बात तो थी. अकबर को लगा कि बीरबल अवश्य ऐसा ही कुछ सोच रहा होगा.

उस समय तो वे कुछ न बोल सके. लेकिन उनका मन उन्हें अंदर ही अंदर कचोट रहा था. वे किसी भी तरह बीरबल की अपने प्रति धारणा बदलना चाहते थे.

इसलिए अगले ही दिन अपने शाही हमाम को उन्होंने इत्र से भरवा दिया और एलान करवा दिया कि कोई भी आकर वहाँ से इत्र ले जा सकता है. लोग वहाँ से बाल्टी भर-भरकर इत्र ले जाने लगे.

अकबर ने बीरबल को बुलवा लिया और यह नज़ारा दिखाते हुए बोले, “बीरबल! देखो प्रजा कैसे ख़ुशी से बाल्टी भर-भरकर इत्र ले जा रही है. क्या सोचते हो इस बारे में?”

अकबर की मंशा बीरबल को ये दिखाने की थी कि हिंदुस्तान का बादशाह अकबर इत्र के मामले में कंजूस नहीं है. वह चाहे तो हमाम भर इत्र दान कर सकता है.

बीरबल मंद-मंद मुस्कुराते हुए बस इतना ही बोला, “बूंद से जाती, वो हौज से नहीं आती.” अर्थात् पूरा सागर भर देने के बाद भी वो कभी नहीं लौटता, जो एक बूंद से चला गया हो.

बीरबल ने इस वाक्य के सहारे कह दिया कि अकबर की इत्र का बूंद उठाने की स्वभाविक कंजूस प्रवृत्ति के कारण जो इज्ज़त चली गई है, अब वो पूरा का पूरा सागर भर देने के बाद भी वापस नहीं आ पायेगी.

सीख (Moral of the story)

मनुष्य का चरित्र उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति से निर्धारित होता है, दिखावा करने से नहीं. स्वाभाविक रूप से की गई हर क्रिया-प्रतिक्रिया मनुष्य के वास्तविक स्वरुप को दर्शाती हैं. उसे दिखावे का आवरण ढक नहीं सकता. इसलिए दिखावे का भ्रम न कर अपने वास्तविक स्वरुप में ही रहना चाहिए.


और क्या! फुर्र : अकबर बीरबल की कहानी

एक बार बादशाह अकबर को कहानियाँ सुनने का चस्का लग गया. उन्होंने अपने दरबारियों की पारी बांध दी, जो हर दिन आकर उन्हें कहानी सुनाने लगे.

अकबर को जल्दी नींद नहीं आती थी. इसलिए वे देर रात तक लंबी कहानियाँ सुनना पसंद करते थे. किसी भी कहानी से उनका मन भी जल्दी नहीं भरता था.

प्रारंभ में सभी दरबारियों ने उन्हें प्रभावित करने के उद्देश्य से ख़ूब दिल खोलकर कहानियाँ सुनाई, लेकिन धीरे-धीरे वे परेशान होने लगे. लेकिन बादशाह से कौन क्या कहता? डर के मारे सबकी ज़ुबान बंद थी. सबको बस इंतज़ार उस दिन का जब बादशाह का कहानियों का चस्का खत्म हो जाए और उनका इस आफ़त से पीछा छूटे.

एक दिन बीरबल की कहानी सुनाने की पारी आई. वह बादशाह अकबर के कक्ष में गया और कहानी सुनाने लगा. अकबर की बीरबल से अन्य दरबारियों की तुलना में अधिक अपेक्षा थी. बीरबल ने अकबर को छोटी-छोटी कई कहानियाँ सुनाई, लेकिन अकबर का मन नहीं भरा.

उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल तुम हमारे सभी दरबारियों में सबसे बुद्धिमान हो. तुम हमें कोई लंबी और सबसे हटकर ऐसी कहानी सुनाओ, जो हमने कभी न सुनी हो.”

बादशाह का हुक्म बजाना बीरबल का कर्तव्य था. उसने “जी हुज़ूर” कहकर कहानी सुनना शुरू किया. अकबर भी बड़े ध्यान से कहानी सुनने लगे. जब भी बीरबल कहानी समाप्त करने का प्रयास करता, अकबर कहते, “और फिर”.

फिर बीरबल को उसमें कुछ और किस्से जोड़ने पड़ते. ऐसा करते-करते रात हो गई. बीरबल को नींद आने लगी. वह घर जाकर सोना चाहता था. लेकिन अकबर की आँखों से नींद कोसो दूर थी. वे बड़े चाव से कहानी सुन रहे थे और बार-बार “और फिर” कहकर कहानी खत्म होने ही नहीं दे रहे थे.

बीरबल समझ गया कि बादशाह ऐसे नहीं मानेंगे. उसे कुछ ऐसा करना होगा कि वे ख़ुद ही उसे वहाँ से भगा दें.

कुछ सोचने के बाद वह बोला, “जहाँपनाह, मैं अब आपको एक नई और सबसे हटकर कहानी सुनाता हूँ. यकीन जानिये आपने पहले कभी ऐसी कहानी नहीं सुनी होगे.”

अकबर की उत्सुकता बढ़ गई.

बीरबल कहानी सुनाने लगा, “एक समय की बात है. एक गाँव में एक किसान रहता था. उसने अनाज रखने के लिए एक बड़ी सी कोठरी बना रखी थी. उस कोठरी में उसका अनाज सुरक्षित रहता था. उस कोठरी में एक छोटा सा छेद रह गया था, जिस ओर किसान ध्यान नहीं दे पाया. एक दिन एक चिड़िया उस छेद से कोठरी में जा घुसी और अनाज का एक दाना लेकर उसी छेद से फुर्र करके बाहर उड़ गई.”

“और फिर…” अकबर उत्सुक होकर बोले..

“फिर दूसरी चिड़िया आई और वह भी कोठरी में से दाना लेकर उड़ गई….फुर्र…” बीरबल बोला.

“और फिर…” अकबर ने फिर से पूछा.

“फिर तीसरी चिड़िया आई और वह भी कोठरी में से दाना लेकर उड़ गई….फुर्र…” बीरबल बोला.

अकबर अब जब भी “और फिर” कहते, बीरबल कह देता, “और फिर एक और चिड़िया आई और दाना लेकर उड़ गई…फुर्र”

अकबर को “और क्या…और क्या” करते-करते और बीरबल को “फुर्र..फुर्र” करते बहुत समय बीत गया. कहानी “फुर्र” से आगे बढ़ ही नहीं रही थी. आखिरकार, अकबर खीझकर बोले, “ये क्या फुर्र..फुर्र लगा रखा है. आगे की कहानी बताओ….”

“जहाँपनाह, आप इतने में ही तंग आ गये. कोठरी के आस-पास तो करोड़ो चिड़िया इकठ्ठी हो गई है. वे सब एक-एक करके कोठरी के अंदर जायेंगी और दाना लेकर उड़ जायेंगी….फुर्र….आपके कहे अनुसार कहानी बहुत लंबी और हटकर है.”

“फुर्र फुर्र” सुनकर अकबर पहले ही बहुत खीझ चुके थे. बीरबल की यह बात सुनकर उनका गुस्सा बढ़ गया और वे चिल्लाकर बोले, “ये क्या वाह्यात कहानी सुना रहे हो…नहीं सुननी ऐसी कहानी…चलो भागो यहाँ से….सोना है हमें”

“जैसा जहाँपनाह का आदेश” कहकर बीरबल मंद-मंद मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया.

सीख (moral of the story)

किसी भी तरह की समस्या हो. बुद्धिमानी से काम लेने पर उसका हल निकल ही आता है.


लोहे की गर्म सलाखें : अकबर बीरबल की कहानी

एक बार एक अमीर आदमी अपने पड़ोसी की शिकायत लेकर बादशाह अकबर के दरबार पहुँचा. वह न्याय की गुहार लगाते हुए अकबर से बोला, “जहाँपनाह! ये मेरा पड़ोसी महमूद है. इसने मेरे घर से कीमती सोने का हार चुराया है. न्याय कीजिये जहाँपनाह. मुझे मेरा हार वापस दिलाइये और इसे कड़ी से कड़ी सजा दीजिये.”

अमीर आदमी अपने पड़ोसी महमूद को जानबूझकर चोरी के इल्ज़ाम में फंसाकर सज़ा दिलवाना चाहता था.

अकबर ने अमीर आदमी की बात सुनकर महमूद से पूछा, “क्यों महमूद, ये सच है क्या?”

“नहीं बादशाह सलामत! मैं बेकुसूर हूँ. मैंने कोई चोरी नहीं की है. ये आदमी मुझे फंसाना चाहता है.” महमूद गिड़गिड़ाते हुए बोला.

“नहीं, जहाँपनाह! मैंने इसे अपनी आँखों से हार चुराते हुए देखा है. यही चोर है.” अमीर आदमी चिल्लाते हुए बोला, “यदि ये चोर नहीं है, तो साबित करके दिखाये. आप इसे लोहे की गर्म सलाखें अपने हाथों में पकड़ने के लिए कहें. ये सच कह रहा है, तो अल्लाह इसके हाथ जलने से बचा लेगें और मैं मान लूंगा कि ये चोर नहीं है. लेकिन यदि इसके हाथ जल गए, तो साफ़ हो जायेगा कि ये झूठ बोल रहा है और हार इसी ने चुराया है.”

अकबर ने महमूद की ओर देखा. अमीर आदमी की ये बात सुनकर वह डर गया था और बोला, “बादशाह सलामत! मुझे आज का वक़्त दें. मैं एक बार अपने घर पर देख लेता हूँ. यदि वह हार मिल गया, तो इसे दे दूंगा. नहीं तो, लोहे की गर्म सलाखें पकड़कर अपनी बेगुनाही साबित करूंगा.”

अकबर ने उसे एक दिन का समय दे दिया. वह घर पहुँचा, तो बहुत परेशान था. वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे स्वयं को इस मुसीबत से बचाये. अंत में उसने बीरबल के पास जाने का मन बनाया.

बीरबल के घर पहुँचकर उसने उसे सारी बात बताई और इस मुसीबत से निकलने के लिए कोई रास्ता सुझाने की गुजारिश की. बीरबल ने उससे कुछ कहा और वह अपने घर चला आया.

अगले दिन वह अकबर के दरबार में हाज़िर हुआ. अमीर आदमी भी वहाँ मौजूद था. अकबर ने उससे पूछा, “क्यों? क्या तुम अपने घर पर हार ढूंढ पाए.”

“नहीं हुज़ूर! मेरे घर वह हार नहीं है.” महमूद इत्मिनान से बोला.

“तो क्या तुम लोहे की गर्म सलाखें पकड़ने के लिये तैयार हो?” अकबर ने फिर पूछा.

“जी हुज़ूर! मैं तैयार हूँ. लेकिन मैं चाहता हूँ कि जिस तरह मैं लोहे की गर्म सलाखें पकड़कर अपनी सच्चाई साबित करूंगा, उसी तरह ये अमीर आदमी भी इन गर्म सलाखों को पकड़कर साबित करे कि ये सच्चा है. ये सच्चा होगा, तो अल्लाह इसके हाथ भी नहीं जलने देंगे. आप पहले इसे ये गर्म सलाखें पकड़ने के लिए कहें.”

ये सुनना था कि अमीर आदमी के पसीने छूटने लगे. वह बोला, “जहाँपनाह, ऐसा लगता है कि वह हार मैंने घर पर ही कहीं रख दिया है. मैं घर जाकर एक बार फिर से देखता हूँ.”

अकबर समझ गए कि दाल में कुछ काला है. उन्होंने सैनिकों को भेजकर अमीर आदमी के घर वह हार ढूंढवाया. वह हार उसके घर पर ही मिला. अमीर आदमी का कपट देख अकबर ने सजा के तौर पर उसे वह हार महमूद को देने का आदेश दिया. अमीर आदमी पछताकर रह गया.

सीख (Moral of the story)

बुरे काम का बुरा नतीज़ा.


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