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अमीर गरीब की कहानी | Amir Garib Ki Kahani

amir garib ki kahani अमीर गरीब की कहानी | Amir Garib Ki Kahani
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अमीर गरीब की कहानी (Amir Garib Ki Kahani In Hindi) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। यह कहानी दो दोस्तों की है, जिसमें से एक अमीर था और एक गरीब। 

Amir Garib Ki Kahani In Hindi

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Amir Garib Ki Kahani In Hindi

एक छोटे से गाँव में, दो दोस्त थे—रामू और श्यामू। रामू एक गरीब किसान का बेटा था, जबकि श्यामू गाँव के सबसे अमीर व्यापारी का बेटा था। दोनों की परवरिश अलग-अलग वातावरण में हुई थी, लेकिन उनकी दोस्ती बहुत गहरी थी। 

रामू का परिवार अत्यंत संघर्षशील था। उनके पास थोड़ी सी जमीन थी जिस पर वे खेती करके अपना गुजारा करते थे। रामू के पिता हर सुबह सूरज उगने से पहले खेत में काम करने चले जाते और देर रात तक मेहनत करते। रामू भी अपने पिता की मदद करता और साथ ही स्कूल भी जाता। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था और हमेशा अच्छे अंक लाता।

दूसरी ओर, श्यामू के पास किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। उसके पिता के पास बहुत सारा पैसा और जमीन-जायदाद थी। श्यामू की हर ख्वाहिश पूरी की जाती थी और उसे किसी चीज़ की कमी नहीं महसूस होती थी। लेकिन एक चीज़ थी जो श्यामू के पास नहीं थी—वह थी संतोष और खुशी। 

श्यामू को हमेशा किसी न किसी नई चीज़ की चाहत होती थी। उसके पास नए कपड़े, खिलौने और गैजेट्स थे, लेकिन फिर भी वह कभी संतुष्ट नहीं होता था। रामू और श्यामू की दोस्ती इस तरह की थी कि वे एक-दूसरे की जिंदगी की हकीकत से वाकिफ थे। 

एक दिन, रामू के पिता बीमार पड़ गए। परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर थी, और अब उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। रामू ने हिम्मत नहीं हारी। उसने गाँव के लोगों से मदद मांगी, लेकिन जितनी मदद मिली, वह नाकाफी थी। फिर उसने श्यामू से मदद मांगने का फैसला किया। 

श्यामू ने रामू की हालत देखी और उसकी मदद करने का वादा किया। उसने अपने पिता से बात की, लेकिन उसके पिता ने मदद से इनकार कर दिया। श्यामू बहुत दुखी हुआ, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपनी जेब खर्च से जो भी पैसे बचाए थे, वह सब रामू को दे दिए। 

रामू ने उन पैसों से अपने पिता का इलाज करवाया और उनके पिता धीरे-धीरे ठीक होने लगे। रामू ने श्यामू का धन्यवाद किया और कहा, “तुमने मेरी सबसे कठिन समय में मदद की, मैं यह कभी नहीं भूलूंगा।” 

समय बीतता गया, और दोनों दोस्त अपने-अपने रास्ते पर बढ़ते गए। रामू ने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी नौकरी पाई। उसने अपनी मेहनत और लगन से अपनी और अपने परिवार की जिंदगी को बेहतर बनाया। दूसरी ओर, श्यामू को अपने पिता के व्यवसाय को संभालना पड़ा। उसने भी मेहनत की, लेकिन उसे कभी वह संतोष और खुशी नहीं मिली जो रामू के पास थी। 

एक दिन, श्यामू ने रामू से कहा, “तुम्हारे पास सब कुछ नहीं होते हुए भी तुम हमेशा खुश रहते हो, और मैं सब कुछ होते हुए भी संतुष्ट नहीं हूं। इसका राज़ क्या है?” 

रामू ने मुस्कुराते हुए कहा, “दोस्त, खुशी और संतोष बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि हमारे अंदर होते हैं। मैं जो भी करता हूं, उसमें दिल से मेहनत करता हूं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता हूं। यही मुझे सच्ची खुशी देती है।” 

श्यामू ने रामू की बात को ध्यान से सुना और समझा। उसने धीरे-धीरे अपनी जीवनशैली में बदलाव किया। उसने अपनी संपत्ति का उपयोग जरूरतमंदों की मदद के लिए करना शुरू किया और अपने दोस्तों और परिवार के साथ अधिक समय बिताने लगा। 

रामू और श्यामू की कहानी गाँव में एक मिसाल बन गई। दोनों ने अपनी जिंदगी में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने अपने दोस्ती और मेहनत के दम पर सब कुछ हासिल किया। इस कहानी ने गाँव के अन्य लोगों को भी प्रेरित किया कि वे अपने जीवन में संतोष और खुशी को प्राथमिकता दें और अपने मित्रों और परिवार के साथ अच्छे संबंध बनाएं। 

इस तरह, रामू और श्यामू की कहानी हमें यह सिखाती है कि असली खुशी और संतोष पैसे और संपत्ति में नहीं, बल्कि हमारे रिश्तों, हमारी मेहनत और हमारी संतोष में है। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि सच्चे दोस्त कभी भी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते और मुश्किल समय में एक-दूसरे की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

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