अनमोल राय : असम की लोक कथा | Anmol Rai Folk Tale Of Assam In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम असम की लोक कथा “अनमोल राय” (Anmol Rai Assam Ki Lok Katha) शेयर कर रहे है.  इस लोक कथा में जयंत नाम के व्यक्ति को दो अजीबोग़रीब सलाह मिलती है, वे सलाह क्या थी? उनका जयंत के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? जानने के लिए पढ़िये पूरी कहानी : 

Anmol Rai Assam Ki Lok Katha

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Anmol Rai Assam Ki Lok Katha
Anmol Rai Assam Ki Lok Katha

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जयंत फुकन नामक एक व्यक्ति सिलचर के पास एक गाँव में निवास करता था. वह एक संपन्न परिवार में जन्मा था. जमीन-जायदाद, रुपये-पैसे की उसे कोई कमी न थी और वह सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था.

एक दिन वह पड़ोस के गाँव में रहने वाले अपने चाचा के पोते के विवाह में सम्मिलित होने गया. विवाह उपरांत वह कुछ दिन गाँव देखने वहीं रुक गया.

एक दिन घूमते-घूमते वह वहाँ के हाट-बाज़ार पहुँचा. तरह-तरह के सामानों से सजी दुकानों को देख वह बहुत प्रसन्न हुआ. दिन भर वह हाट में घूमता रहा. शाम होने को आई, तो देखा कि दुकानदार दुकान बंद कर घर लौट रहे हैं. वह भी लौटने को हुआ. लेकिन तभी उसकी दृष्टि एक दुकान पर पड़ी, जो उस समय भी खुली हुई थी.

उसने दुकानदार से पूछा, “क्यों भाई, घर नहीं जाना? दुकान बंद नहीं करोगे?”

“मेरी कोई बिक्री नहीं हुई भाई, कैसे घर जाऊं?” दुकानदार बोला.

“क्या बेचते हो?” जयंत ने पूछा.

“मैं सलाह बेचता हूँ.” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया.

यह सुनकर जयंत आश्चर्यचकित रह गया और पूछा, “क्या कहा? सलाह? कैसी सलाह?”

“मूल्य चुकाओगे, तभी सलाह मिलेगी, बिना मूल्य के कुछ भी नहीं मिलता.” दुकानदार बोला.

जयंत में जिज्ञासा उत्पन्न हो गई. उसने एक सलाह का मूल्य पूछा, तो दुकानदार ने बताया, “एक सलाह एक हजार रूपये की है. मेरे पास दो सलाह है, तो दो हजार रूपये लगेंगे.”

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मूल्य सुनकर जयंत हँसने लगा और यह कहकर जाने को हुआ, “इतने में कौन तुम्हारी सलाह ख़रीदेगा?”

“पछताओगे बंधु. ऐसा अवसर फिर नहीं मिलने वाला. जीवन भर ये सलाह लाम आएंगी.” दुकानदार ने कहा, तो जयंत ठिठक गया और सोचने लगा कि सलाह लेकर देखता हूँ, हो सकता है जीवन बदल जाए.

उसने दो हजार रुपये दुकानदार की ओर बढ़ा दिए.

दुकानदार उसे सलाह देने लगा –

१. कांटेदार बाड़ न लगाना.
२. घरवाली को राज न बताना, नहीं तो पीछे पड़ेगा पछताना.

जयंत सलाह सुनकर हैरान हुआ कि ये कैसी सलाह है? लेकिन, फिर भी उसके दोनों सलाह याद कर ली. उस रात वह चाचा के गाँव में ही रुका और अगले दिन अपने गाँव के लिए निकल गया. अपने घर पहुँचा, तो देखा कि पत्नी सोनपाही बाग़ में माली के साथ खड़ी है और कांटेदार बाड़ लगवा रही है. उसके दिमाग में दुकानदार की पहली सलाह कौंधी – कांटेदार बाड़ मत लगवाना.

उसने सोनपाही को बाड़ लगवाने से मना किया, लेकिन तब तक बाड़ लग चुकी थी. माली के जाने के बाद उसने सोनपाही को चाचा के गाँव के हाट से दो हजार में दो सलाह खरीदने की बात बता दी. यह सुनकर सोनपाही हँसने लगी और कहने लगी, “क्या मूर्खता कर आये? इससे कहीं अच्छा होता कि उन दो हजार रुपयों से मेरे लिए ही कुछ ले आते.”

जयंत कुछ न बोला. सोनपाही की बात सुनकर उसे भी महसूस हुआ कि कहीं उसने अपने पैसे व्यर्थ तो नहीं गंवा दिए. वह रात में ढंग से सो भी नहीं पाया. उसके मन में यही विचार आने लगा कि उसने सलाह खीदकर गलती कर दी है. इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना सलाहों को आज़माकर देखूं.

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वह उठा और बाहर जाकर एक सूअर के बच्चे का सिर काटकर जंगल में छुपा आया. उसके बाद वह चैन से सो गया. सुबह उठने के बाद उसने सोनपाही को खून से सना चाकू दिखाया और बोला, “मेरे हाथों एक आदमी का खून हो गया है. ये बात तू किसी को बताना मत. नहीं तो मैं मुश्किल में पड़ जाऊंगा.”

सोनपाही ने हामी भर दी, लेकिन उसकी पेट में बात पचना बहुत मुश्किल था. वह जब पनघट पर पानी भरने गई, तो देखा कि वहाँ इकट्ठी औरतें अपने-अपने पतियों की बहादुरी के किस्से सुना रही हैं. वह कैसे पीछे रहती? उससे भी रहा नहीं गया और उसने अपने पति की बहादुरी का गुणगान करते हुए सबको बता दिया कि उसने एक आदमी का खून कर उसकी लाश जंगल में छुपा दी है.

यह खबर आग की तरह पूरे गाँव में फ़ैल गई. जो भी जयंत को देखता, डर के मारे दूर भाग जाता. जब यह खबर राजा के पास पहुँची, तो उसने सैनिकों को जयंत को पकड़कर लाने के लिए भेजा. जब सैनिक जयंत को उसके घर से पकड़कर ले जाने लगे, तब कांटेदार बाड़ में फंसकर जयंत की पगड़ी गिर गई और जयंत वैसे ही राजा के पास पहुँच गया.

राजा का नियम था कि कोई भी व्यक्ति उसके पास बिना पगड़ी के नहीं आएगा. जयंत को बिना पगड़ी के देख राजा आग-बबूला हो उठा. यह देख जयंत को दुकानदार की पहली सलाह याद आई – ‘कांटेदार बाड़ न लगाना.’

फिर राजा ने उससे पूछा, “तुमने किसका खून किया है?”

ये सुनकर जयंत के होश उड़ गए, वो एकदम से कुछ कह नहीं पाया. तब राजा बोला, “तुम्हारी पत्नी गवाह है कि तुमने किसी का खून किया है. इसलिए तुम इस आरोप से बच नहीं सकते.”

तब जयंत को दुकानदार की दूसरी सलाह याद आई –

‘घरवाली को राज न बताना,
नहीं तो पीछे पड़ेगा पछताना.

उसने सारी बात राजा को बताई कि कैसे वह दुकानदार की दी गई सलाह को आज़मा रहा था और उसे लेने के देने पड़ गए. फिर वह सैनिकों के साथ जंगल गया, जहाँ उसने सूअर के बच्चे का सिर छुपाया था.

सैनिकों ने वापस आकर सारी बात राजा को बताई, तो राजा भी हँस पड़ा और उसने जयंत को छोड़ दिया.

जयंत चैन की सांस लेकर घर वापस आया. लेकिन, उसने सोनपाही को कुछ नहीं बताया. अगले दिन उसने अपने घर से कांटेदार बाड़ हटवा दी और दुकानदार की सलाह जीवन भर मानने का निश्चय किया.

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