Buddha Story In Hindi

अशांत मन को शांत कैसे करें बुद्ध कथा | Ashant Man Ko Shant Kaise Kare Buddha Katha

अशांत मन को शांत कैसे करें बुद्ध कथा  (Ashant Man Ko Shant Kaise Kare Buddha Katha Story In Hindi)

मनुष्य का मन एक बहती नदी के समान है, जो कभी शांत नहीं रहता। विचार, भावनाएँ, और चिंताएँ हमारे मन को हर समय घेरती रहती हैं। अक्सर हम इन्हें नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह प्रयास कभी-कभी और अधिक तनाव पैदा कर देता है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हमें समझना होगा कि विचारों को दबाने के बजाय उन्हें स्वाभाविक रूप से स्वीकार करना चाहिए। इसी संदर्भ में यह कहानी गौतम बुद्ध की है, जो हमें सिखाती है कि मन को शांत कैसे किया जाए।  

Ashant Man Ko Shant Kaise Kare Buddha Katha

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Ashant Man Ko Shant Kaise Kare Buddha Katha

एक समय की बात है, एक युवक अपने जीवन में गहरी बेचैनी और मानसिक अशांति से परेशान था। वह दिन-रात चिंताओं में उलझा रहता और हर छोटी-बड़ी बात पर उसके मन में विचारों का तूफान उठता। उसे समझ नहीं आता था कि कैसे अपने मन को शांत रखे।  

किसी ने उसे सलाह दी कि वह गौतम बुद्ध के पास जाए। उन्होंने कहा, “बुद्ध महान ज्ञानी हैं। वे तुम्हें इस समस्या से बाहर निकलने का रास्ता दिखा सकते हैं।”  

युवक ने उनकी बात मानी और बुद्ध की शरण में पहुँचा।  

जब युवक बुद्ध के पास पहुँचा, तो उसने हाथ जोड़कर कहा, “हे भगवन्! मेरा मन हमेशा उथल-पुथल में रहता है। एक पल के लिए भी मुझे शांति नहीं मिलती। मैं जो भी करता हूँ, मेरे विचार मुझे परेशान करते रहते हैं। कृपया मुझे बताइए कि मैं अपने मन को कैसे शांत कर सकता हूँ।”  

बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “तुम्हारी समस्या का समाधान है, लेकिन उसके लिए धैर्य और अभ्यास की आवश्यकता है। क्या तुम तैयार हो?”  

युवक ने तुरंत हामी भरी, “हाँ, भगवन्। मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ। बस मुझे मन की शांति चाहिए।”  

बुद्ध ने उसे एक छोटी-सी पुस्तक दी और कहा, “इस पुस्तक को हर दिन पढ़ो। यह तुम्हें शांति का मार्ग दिखाएगी। लेकिन एक बात याद रखना – जब भी इस पुस्तक को पढ़ो, बंदर के बारे में मत सोचना।”  

युवक ने चौंकते हुए पूछा, “बंदर? मैं बंदर के बारे में क्यों सोचूँगा?”  

बुद्ध ने शांत स्वर में कहा, “याद रखना, बंदर के बारे में नहीं सोचना।”  

युवक ने पुस्तक को अपने साथ लिया और उत्साह से घर लौट गया। उसने सोचा कि यह पुस्तक उसे अपने मन को शांत करने में मदद करेगी।  

अगले दिन, युवक ने पुस्तक को पढ़ना शुरू किया। जैसे ही उसने पढ़ना शुरू किया, उसके मन में पहला विचार आया – “बंदर के बारे में मत सोचो।”

परंतु यह विचार आते ही उसके दिमाग में बंदरों की छवियाँ उभरने लगीं। उसने खुद को समझाने की कोशिश की, “मुझे बंदरों के बारे में नहीं सोचना है,” लेकिन जितना वह खुद को रोकने की कोशिश करता, उतना ही बंदरों के बारे में सोचता।  

दिन बीतते गए, और युवक ने देखा कि वह पुस्तक के मुख्य विचारों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हर बार जब वह पुस्तक खोलता, उसका मन बंदरों की छवियों से भर जाता।  

थक-हारकर, युवक बुद्ध के पास वापस गया और कहा, “भगवन्, मैं असफल हो गया। आपने कहा था कि पुस्तक पढ़ते समय बंदरों के बारे में मत सोचना। लेकिन जब भी मैं इसे पढ़ने की कोशिश करता हूँ, मेरे मन में बंदर ही बंदर आते हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?”  

बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “यही मैं तुम्हें सिखाना चाहता था। जब तुमने बंदरों के बारे में न सोचने का प्रयास किया, तब तुम्हारा पूरा ध्यान बंदरों पर केंद्रित हो गया। मन की प्रकृति यही है – जब तुम किसी विचार को दबाने की कोशिश करते हो, तो वह और बलपूर्वक लौट आता है।”  

युवक आश्चर्यचकित होकर बोला, “तो मैं क्या करूँ, भगवन्? क्या मैं अपने विचारों से कभी मुक्त नहीं हो सकता?”  

बुद्ध ने उत्तर दिया, “विचारों से मुक्त होने की कोशिश मत करो। जब कोई विचार आए, तो उसे स्वीकार करो। उसे दबाने या भगाने की कोशिश मत करो। बस उसे एक बाहरी पर्यवेक्षक की तरह देखो। जैसे-जैसे तुम इस अभ्यास में प्रवीण होगे, विचार धीरे-धीरे शांत हो जाएँगे।”  

बुद्ध ने आगे समझाया, “मन का स्वभाव बहने वाला है। यह हमेशा कुछ न कुछ सोचेगा। तुम्हारा काम यह नहीं है कि इसे रोकने की कोशिश करो। बल्कि, इसे बहने दो। ध्यान का अभ्यास करो – विचार आएँगे, तो उन्हें देखकर जाने दो। जैसे आसमान में बादल आते-जाते हैं, वैसे ही तुम्हारे विचार भी आएँगे और चले जाएँगे। लेकिन आसमान (तुम्हारा मन) स्थिर और शांत रहेगा।”  

युवक ने बुद्ध की बातों को ध्यानपूर्वक सुना और उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया। उसने रोज़ ध्यान का अभ्यास किया। जब भी कोई विचार आता, वह उसे बिना किसी विरोध के देखता और जाने देता।  

धीरे-धीरे, उसे महसूस हुआ कि विचारों का आना-जाना स्वाभाविक है। जब उसने उन्हें स्वीकार करना शुरू किया, तो वे स्वतः ही कम होने लगे। अब उसका मन पहले से अधिक शांत और स्थिर हो गया।  

कुछ समय बाद, वह फिर से बुद्ध के पास पहुँचा और बोला, “भगवन्, आपके निर्देशों का पालन करके मैं अब अपने मन को शांत रख पा रहा हूँ। मुझे अब समझ में आया कि विचारों से लड़ने की बजाय उन्हें स्वीकार करना ही शांति का मार्ग है।”  

बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह बात समझने के बाद तुम्हारा जीवन शांत और सुखमय हो जाएगा। ध्यान और स्वीकृति ही सच्चे शांति के साधन हैं।”  

सीख

यह कहानी हमें जीवन का एक गहरा सबक सिखाती है:  

1. विचारों को दबाने की कोशिश न करें – जब हम किसी विचार को दबाने की कोशिश करते हैं, तो वह और अधिक बलपूर्वक लौटता है।  

2. स्वीकृति का अभ्यास करें – विचारों और भावनाओं को स्वाभाविक रूप से आने दें। उन्हें एक बाहरी पर्यवेक्षक की तरह देखें।  

3. ध्यान का अभ्यास करें – ध्यान करने से हम विचारों से लड़ने की बजाय उन्हें सहजता से स्वीकार करना सीखते हैं।  

4. धैर्य रखें – मन को शांत करना एक प्रक्रिया है। इसे समय और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है।  

5. मन की स्वाभाविकता को समझें – मन का स्वभाव गतिशील है। इसे रोकने की कोशिश करने के बजाय इसे बहने दें।  

बुद्ध की यह कथा हमें सिखाती है कि शांति हमारे अंदर ही है। हमें बस अपनी दृष्टि और दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। जब हम विचारों को स्वाभाविक रूप से आने-जाने देते हैं, तो हमारा मन स्वतः ही शांत और स्थिर हो जाता है। यही सच्चा ध्यान और सच्ची शांति है।

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