बच्चों की 10 अच्छी अच्छी कहानियाँ | Bachho Ki Acchi Acchi Kahaniyan

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Bachho Ki Acchi Acchi Kahaniyan

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हाथी और भालू की कहानी

एक जंगल में एक हाथी रहता था। वह बड़ा दयालु था। मुसीबत के समय वह सदा सबकी सहायता किया करता था। उसके इस स्वभाव है कारण जंगल के सभी जानवर उससे बहुत प्रेम करते थे।

एक दिन हाथी को प्यास लगी और वह पानी पीने नदी पर गया। वहाँ उसने देखा कि नदी के किनारे एक बड़े से पत्थर के नीचे एक मगरमच्छ दबा हुआ है और दर्द से कराह रहा है।

हाथी ने उससे पूछा, “मगरमच्छ भाई! ये क्या हो गया? तुम इस पत्थर के नीचे कैसे दब गये?”

मगरमच्छ ने कराहते हुए उत्तर दिया, “क्या बताऊं हाथी दादा! मैं खाना खाकर नदी किनारे आराम कर रहा था। जाने कैसे उस बड़ी चट्टान का ये टुकड़ा टूटकर मुझ पर आ गिरा। बहुत दर्द हो रहा है। मेरी मदद करो। इस पत्थर को हटा दो। मैं ज़िन्दगी भर तुम्हारा अहसानमंद रहूंगा।”

हाथी को उस पर दया आ गई। लेकिन उसे डर भी था कि कहीं मगरमच्छ उस पर हमला न कर दे। इसलिए उसने पूछा, “देखो मगरमच्छ भाई! मैं तुम्हारी मदद तो कर दूं, लेकिन वादा करो कि तुम मुझ पर हमला नहीं करोगे।”

“मैं वादा करता हूँ।” मगरमच्छ बोला।

हाथी मगरमच्छ के पास गया और उसकी पीठ से भारी पत्थर हटा दिया। लेकिन पत्थर के हटते ही धूर्त मगरमच्छ ने हाथी का पैर अपने जबड़े में दबा लिया।

हाथी कराह उठा और बोला, “ये क्या मगरमच्छ भाई? ये तो धोखा है। तुमने तो वादा किया था।”

लेकिन मगरमच्छ ने हाथी का पैर नहीं छोड़ा। हाथी दर्द से चीखने लगा। कुछ ही दूर पर एक पेड़ के नीचे एक भालू आराम कर रहा था। उसने हाथी की चीख सुनी, तो नदी किनारे आया।

हाथी को उस हालत में देख उसने पूछा, “ये क्या हुआ हाथी भाई?”

“इस धूर्त मगरमच्छ की मैंने सहायता की और इसने मुझ पर ही हमला कर दिया। मुझे बचाओ।” हाथी ने कराहते हुए मगमच्छ के पत्थर के नीचे दबे होने की सारी कहानी सुना दी।

“क्या कहा? ये मगरमच्छ पत्थर के नीचे दबा था और फिर भी ज़िन्दा था। मैं नहीं मानता।” भालू बोला।

“ऐसा ही था।” मगरमच्छ गुर्राया और अपनी पकड़ हाथी के पैरों पर मजबूत कर दी।

“हो नहीं सकता!” भालू फिर से बोला।

“ऐसा ही था भालू भाई!” हाथी बोला।

“बिना देखे तो मैं नहीं मानने वाला। मुझे दिखाओ तो ज़रा कि ये मगरमच्छ कैसे उस पत्थर के नीचे दबा था और उसके बाद भी ज़िन्दा था। हाथी भाई ज़रा इस मगरमच्छ की पीठ पर वो पत्थर तो रख देना। फिर उसे हटाकर दिखाना।” भालू बोला।

मगरमच्छ भी तैयार हो गया। वह हाथी का पैर छोड़कर नदी के किनारे चला गया। हाथी ने वह भारी पत्थर उसके ऊपर रख दिया।

मगरमच्छ भालू से बोला, “ये देखो! मैं ऐसे इस पत्थर के नीचे दबा था। अब यकीन आया तुम्हें। इसके बाद हाथी ने आकर पत्थर हटाया था। चलो हाथी अब पत्थर हटा दो।” मगरमच्छ बोला।

“नहीं हाथी भाई! ये मगरमच्छ मदद के काबिल नहीं है। इसे ऐसे ही पड़े रहने दो। आओ हम चले।” भालू बोला।

इसके बाद हाथी और भालू वहाँ से चले गए। मगरमच्छ वहीं पत्थर के नीचे दबा रहा। उसकी धूर्तता का फल उसे मिल चुका था।

सीख 

हमें हमेशा सहायता करने वाले के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।

बुद्धिमानी से किसी भी मुसीबत से निकला जा सकता है।



साही और सांप की कहानी 

एक साही अपने रहने के लिए स्थान की खोज में भटक रहा था। दिन भर भटकने के बाद उसे एक गुफा दिखाई पड़ी। उसने सोचा – ‘ये गुफा रहने के लिए अच्छी जगह है।‘

वह गुफा के द्वार पर पहुँचा, तो देखा कि वहाँ सांपों का परिवार रहता है।

साही ने उन सबका अभिवादन किया और निवेदन करते हुए बोला, “भाइयों! मैं बेघर हूँ। कृपा करके मुझे इस गुफा में रहने के लिए थोड़ी सी जगह दे दो। मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।”

सांपों को साही पर दया आ गई और उन्होंने उसका निवेदन स्वीकार कर उसे गुफा के अंदर आने की अनुमति दे दी। लेकिन उसके गुफा में घुसने के बाद उन्होंने महसूस किया कि उसे अंदर बुलाकर और रहने कि जगह देकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी, क्योंकि साही के शरीर के कांटे उन्हें गड़ रहे थे और उनकी त्वचा ज़ख्मी हो रही थी।

उन्होंने साही से कहा, “तुम्हारे शरीर के कांटे हमें गड़ रहे हैं। इसलिए तुम यहाँ से जाओ और कोई दूसरी जगह खोजो।”

साही तब तक आराम से गुफा में पसर चुका था। बोला, “भई मुझे तो ये जगह बहुत पसंद है। मैं तो कहीं नहीं जाने वाला। जिसे समस्या है, वो जाये यहाँ से।”

अपनी त्वचा को साही के शरीर के कांटों से बचाने के लिए आखिरकार सांपों को वह गुफा छोड़कर जाना पड़ा। सांपों के जाने के बाद साही ने वहाँ पूरी तरह कब्जा जमा लिया।

सीख

कई बार हम उंगली देते हैं और सामने वाला हाथ पकड़ लेता है। इसलिए किसी की मदद करने के पहले अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए।

ओक का पेड़ और सरकंडा की कहानी 

नदी किनारे विशालकाय ओक का पेड़ लगा हुआ था। उसे देखकर लगता, मानो वह अपनी अनेकों भुजाओं को फैलाए गर्व से तनकर खड़ा हो। उसे अपनी विशालता का अभिमान भी था। पास ही कुछ पतले सरकंडे लगे हुए थे – नाजुक, कमज़ोर से दिखने वाले सरकंडे, जिन्हें देखकर ओक के पेड़ को अपनी मजबूती का अहसास होता और वह गर्व से और फूल जाता।

जब भी हवा चलती, विशाल ओक का पेड़ तनकर खड़ा होता, मानो हवाओं को रोक लेना चाहता हो। वहीं पतले सरकंडे झुक जाते, मानो हवा का अभिवादन कर उसे जाने का रास्ता दे रहे हों।

ओक का पेड़ सरकंडों को देखकर हंसता, “कितने कमज़ोर हो तुम लोग। ज़रा सी हवा के सामने झुक जाती हो। चिंता होती है मुझे तुम्हारी कि कहीं किसी दिन उखड़ कर उड़ न जाओ।”

“हमारी चिंता मत करो। हम हवाओं के सामने झुक जाते हैं। इसलिए सुरक्षित हैं। वे हमें नुकसान नहीं पहुंचाएंगी। लेकिन तुम ऐसे तने रहे, तो एक दिन ज़रूर उखड़ जाओगे। कई बार विरोध जताने के स्थान पर नम्रता दिखाना ज्यादा प्रभावी होता है।”

“मैं तुम जैसा कमज़ोर नहीं, जो हवा के सामने झुक जाऊं।” ओक का पेड़ जवाब देता।

“तो बस इंतज़ार करो। तुम्हारा अंत निकट है।” सरकंडे कहते।

एक दिन भयंकर तूफानी हवा चलने लगी। हमेशा की तरह ओक का पेड़ तूफान से लड़ने तन कर खड़ा हो गया। सरकंडे नम्रता से झुक गए। हवाएं सरकंडों के ऊपर से सहजता से उड़ गई। लेकिन ओक के पेड़ का अड़ियल रवैया देख कर क्रोधित हो गई और अपना प्रचंड रूप दिखलाने लगी।

हवा के क्रोध के आगे ओक का पेड़ ठहर नहीं पाया और जड़ से उखड़ कर नीचे आ गिरा। उसे अपनी व्यर्थ की हठधर्मिता और अड़ियल रवैए का फल मिल चुका था।

जहां नम्रता की आवश्यकता हो, वहां व्यर्थ की हठधर्मिता पतन लेकर आती है।

सुई बरसाने वाला पेड़ की कहानी 

बहुत समय पहले की बात है. घने जंगल किनारे एक गाँव बसा हुआ था. उस गाँव में दो भाई रहा करते थे. दोनों भाइयों के व्यवहार में बड़ा अंतर था. छोटा भाई बड़े भाई से बहुत प्यार करता था. लेकिन बड़ा भाई स्वार्थी, लालची और दुष्ट था. वह छोटे भाई से चिढ़ता था और सदा उससे बुरा व्यवहार किया करता था. बड़े भाई के इस व्यवहार से छोटा भाई दु:खी हो जाता था, लेकिन उसके प्रति प्रेम के कारण वह सब कुछ सह जाता था और कभी कुछ नहीं कहता था.

एक दिन बड़ा भाई लकड़ी काटने जंगल गया. वहाँ इधर-उधर तलाशने पर उसकी नज़र एक ऊँचे पेड़ पर पड़ी. आज इसी पेड़ की लकड़ी काटता हूँ, ये सोचकर उसने कुल्हाड़ी उठा ली. लेकिन वह कोई साधारण पेड़ नहीं, बल्कि एक जादुई पेड़ था.

जैसे ही बड़ा भाई पेड़ पर कुल्हाड़ी से वार करने को हुआ, पेड़ उससे विनती करने लगा, “बंधु! मुझे मत काटो. मुझे बख्श दो. यदि तुम मुझे नहीं काटोगे, तो मैं तुम्हें सोने के सेब दूंगा.”

सोने के सेब पाने के लालच में बड़ा भाई तैयार हो गया. पेड़ ने जब उसे सोने के कुछ सेब दिए, तो उसकी आँखें चौंधिया गई. उसका लालच और बढ़ गया. वह पेड़ से और सोने के सेब की मांग करने लगा. पेड़ के मना करने पर, वह उसे धमकाने लगा, “यदि तुमने मुझे और सेब नहीं दिए, तो मैं तुम्हें पूरा का पूरा काट दूंगा.”

यह बात सुनकर पेड़ को क्रोध आ गया. उसने बड़े भाई पर नुकीली सुईयों की बरसात कर दी. हजारों सुईयाँ चुभ जाने से बड़ा भाई दर्द से कराह उठा और वहीं गिर पड़ा. इधर सूर्यास्त होने के बाद भी जब बड़ा भाई घर नहीं आया, तो छोटे भाई को चिंता होने लगी. वह उसे खोजने जंगल की ओर निकल पड़ा.

जंगल पहुँचनकर वह उसे खोजने लगा. खोजते-खोजते वह उसी जादुई पेड़ के पास पहुँच गया. वहाँ उसने बड़े भाई को जमीन पड़े कराहते हुए देखा. वह फ़ौरन उसके करीब पहुँचा और उसके शरीर से सुईयाँ निकालने लगा. छोटे भाई का प्रेम देखकर बड़े भाई का दिल पसीज़ गया. उसे अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा. उसकी आँखों से आँसू बह निकले और वह अपने छोटे भाई से माफ़ी मांगने लगा. उसने वचन दिया कि आगे से कभी उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा.

छोटे भाई ने बड़े भाई को गले से लगा लिया. जादुई पेड़ ने भी जब बड़े भाई के व्यवहार में बदलाव देखा, तो उसे ढेर सारे सोने के सेब दिए. उन सोने के सेबों को बेचकर प्राप्त पैसों से दोनों भाइयों ने एक व्यवसाय प्रारंभ किया, जो धीरे-धीरे अच्छा चलने लगा और दोनों भाई सुख से रहने लगे.

सीख 

दूसरों के प्रति सदा दयालु रहें. दयालुता सदा सराही जाती है।

मकड़ी चींटी और जाला की कहानी

एक मकड़ी अपना जाला बनाने उपयुक्त स्थान की तलाश में थी. वह चाहती थी कि उसका जाला ऐसे स्थान पर हो, जहाँ ढेर सारे कीड़े-मकोड़े और मक्खियाँ आकर फंसे. इस तरह वह मज़े से खाते-पीते और आराम करते अपना जीवन बिताना चाहती थी.

उसे एक घर के कमरे का कोना पसंद आ गया और वह वहाँ जाला बनाने की तैयारी करने लगी. उसने जाला बुनना शुरू ही किया था कि वहाँ से गुजर रही एक बिल्ली उसे देख जोर-जोर से हँसने लगी. मकड़ी ने जब बिल्ली से उसके हंसने का कारण पूछा, तो बिल्ली बोली, ”मैं तुम्हारी बेवकूफ़ी पर हँस रही हूँ. तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता कि ये स्थान कितना साफ़-सुथरा है. यहाँ न कीड़े-मकोड़े हैं, न ही मक्खियाँ. तुम्हारे जाले में कौन फंसेगा?”

बिल्ली की बात सुनकर मकड़ी ने कमरे के उस कोने में जाला बनाने का विचार त्याग दिया और दूसरे स्थान की तलाश करने लगी. उसने घर के बरामदे से लगी एक खिड़की देखी और वह वहाँ जाला बुनने लगी. उसने आधा जाला बुनकर तैयार कर लिया था, तभी एक चिड़िया वहाँ आई और उसका मज़ाक उड़ाने लगी, “अरे, तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है क्या, जो इस खिड़की पर जाला बुन रही हो. तेज हवा चलेगी और तुम्हारा जाला उड़ जायेगा.”

मकड़ी को चिड़िया की बात सही लगी. उसने तुरंत खिड़की पर जाला बुनना बंद किया और दूसरा स्थान ढूंढने लगी. ढूंढते-ढूंढते उसकी नज़र एक पुरानी अलमारी पर पड़ी. उस अलमारी का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था. वह वहाँ जाकर जाला बुनने लगी. तभी एक कॉकरोच वहाँ आया और उसे समझाइश देते हुए बोला, “इस स्थान पर जाला बनाना व्यर्थ है. यह अलमारी बहुत पुरानी हो चुकी है. कुछ ही दिनों में इसे बेच दिया जायेगा. तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी.”

मकड़ी ने कॉकरोच की समझाइश मान ली और अलमारी में जाला बनाना बंद कर दूसरे स्थान की ख़ोज करने लगी. लेकिन इन सबके बीच पूरा दिन निकल चुका था. वह थक गई थी और भूख-प्यास से उसका हाल बेहाल हो चुका था. अब उसमें इतनी हिम्मत नहीं रह गई थी कि वह जाला बना सके.

थक-हार कर वह एक स्थान पर बैठ गई. वहीं एक चींटी भी बैठी हुई थी. थकी-हारी मकड़ी को देख चींटी बोली, “मैं तुम्हें सुबह से देख रही हूँ. तुम जाला बुनना शुरू करती हो और दूसरों की बातों में आकर उसे अधूरा छोड़ देती हो. जो दूसरों की बातों में आता है, उसका तुम्हारे जैसा ही हाल होता है.”

चींटी बात सुनकर मकड़ी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह पछताने  लगी.

सीख

अक्सर ऐसा होता है कि हम नया काम शुरू करते हैं और नकारात्मक मानसिकता के लोग आकर हमें हतोत्साहित करने लगते हैं. वे भविष्य की परेशानियाँ और समस्यायें गिनाकर हमारा हौसला तोड़ने की कोशिश करते हैं. कई बार हम उनकी बातों में आकर अपना काम उस स्थिति में छोड़ देते हैं, जब वह पूरा होने की कगार पर होता है और बाद में समय निकल जाने पर हम पछताते रह जाते हैं. आवश्यकता है कि जब भी हम कोई नया काम शुरू करें, तो पूर्ण सोच-विचार कर करें और उसके बाद आत्मविश्वास और दृढ़-निश्चय के साथ उस काम में जुट जायें. काम अवश्य पूरा होगा. जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो लक्ष्य के प्रति ऐसा ही दृष्टिकोण रखना होगा।

 हथौड़ा और चाभी की कहानी 

शहर की पुरानी बस्ती में ताले की एक दुकान थी. उस दुकान में ढेर सारे ताले-चाभी थे. लोग ताले ख़रीदने वहाँ आते. कभी-कभी मुख्य चाभी गुम हो जाने पर डुप्लीकेट चाभी बनवाने भी उस दुकान पर आते.

उसी दुकान में कोने में एक मजबूत हथौड़ा भी पड़ा हुआ था, जो ताला तोड़ने के काम आता था. लेकिन उसका प्रयोग कभी-कभार ही होता था.

कोने में पड़े-पड़े हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि मैं इतना मजबूत हूँ. इतना बलशाली हूँ. इसके बाद भी इतने प्रहार झेलता हूँ, तब ही ताले को खोल पाता हूँ. लेकिन चाभी इतनी छोटी होने के बावजूद किसी भी ताले को बड़ी ही आसानी से खोल लेती हैं. ऐसा क्या है इस छोटी सी चाभी में?

एक दिन जब दुकान बंद हुई, तो उससे रहा ना गया. उसने चाभी से पूछ ही लिया, “चाभी बहन, मैं बहुत दिनों से एक बात सोच रहा था, किंतु बहुत सोचने के बाद भी मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया. क्या तुम मेरे एक सवाल का जवाब देकर मुझे निष्कर्ष तक पहुँचने में मदद कर सकती हो?”

“पूछो भाई, बन पड़ा तो तुम्हारे सवाल का जवाब मैं तुम्हें अवश्य दूंगी.” चाभी नम्रता से बोली.

“बहन, तुममे में ऐसी क्या ख़ास बात है कि तुम इतनी छोटी होने पर भी हर प्रकार के ताले, चाहे वह कितना मजबूत और जिद्दी क्यों न हो, बड़ी आसानी से खोल लेती हो. जबकि मैं तुमसे बहुत बड़ा, बलशाली और शक्तिशाली होने के बावजूद ऐसा नहीं कर पाता. मुझसे ताला खोलने में बहुत मेहनत लगती हैं और कई बार प्रयास करने के बाद ही ताला टूटता है.”

चाभी मुस्कुराई और बोली, “बहुत ही साधारण सी बात हैं हथौड़े भाई. तुम ताले पर प्रहार करते हो. इस तरह तुम उस पर बल का प्रयोग करते हो और खोलने के प्रयास में उसे चोट पहुँचाते हो. ऐसे में ताला खुलता नहीं, बल्कि टूट जाता है. जबकि मैं बिना बल का प्रयोग किये और ताले को चोट पहुँचाये बगैर उसके अंतर्मन में उतर जाती हूँ. इसलिए मेरे निवेदन पर ताला तुरंत खुल जाता है.”

सीख

जीवन में कई बार ऐसी परिस्थियाँ आती हैं, जब हमारे सामने हथौड़ा या चाभी बनने का विकल्प होता है. किसी का दिल जीतना है, तो उसे हथौड़ा बनकर जोर-जबरदस्ती से नहीं जीता जा सकता, बल्कि चाभी की तरह उसके दिल में उतरकर जीता जाता हैं. इसी प्रकार किसी से कोई काम करवाना है, तो डरा-धमकाकर और जबरदस्ती दबाव डालकर भी काम करवाया जा सकता हैं. लेकिन ऐसे में कार्य के प्रति उत्साह और समर्पण भावना नगण्य रहेगी. यदि किसी के दिल में कार्य के प्रति समर्पण भावना जागृत कर उसे उत्साहित कर कार्य करवाया जाये, तो कार्य मन लगाकर और समर्पण से किया जायेगा और ऐसे में कार्य बेहतर होगा और परिणाम भी बेहतर प्राप्त होगा.

गुलाब का घमंड शिक्षाप्रद कहानी

वसंत ऋतु में जंगल के बीचों-बीच लगा गुलाब का पौधा अपने फूलों की सुंदरता पर इठला रहा था. पास ही लगे चीड़  के कुछ पेड़ आपस में बातें कर रहे थे. एक चीड़ के पेड़ ने गुलाब को देखकर कहा, “गुलाब के फूल कितने सुंदर होते है. मुझे मलाल है कि मैं इसके जैसा सुंदर नहीं हूँ.”

“मित्र, उदास होने की आवश्यकता नहीं है. हर किसी के पास सब कुछ तो नहीं हो सकता.” दूसरे चीड़ के उसकी इस बात का उत्तर दिया.

गुलाब ने उनकी बातें सुन ली और उसे अपनी सुंदरता पर और गुमान हो गया. वह बोला, “इस जंगल में सबसे सुंदर मैं ही हूँ.”

तभी सूरजमुखी के फूल ने उसकी इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा, “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? इन जंगल में बहुत सारे सुंदर फूल है और तुम बस उनमें से एक हो.”

“लेकिन सब मुझे देख कर ही तारीफ़ करते हैं.” गुलाब ने इतराते हुए कहा, “देखो, इस नागफनी के पौधे को. ये कितना बदसूरत है. इस पर तो कांटे ही कांटे हैं. कोई इसकी तारीफ़ नहीं करता.”

“ये तुम किस तरह की बात कर रही हो.” अबकी बार चीड़ का पेड़ बोला, “तुममें भी तो कांटे है. लेकिन फिर भी तुम सुंदर हो.”

गुलाब को इस बात पर गुस्सा आ गया, “तुम्हें तो सुंदरता का मतलब ही नहीं पता. तुम इस तरह मेरे कांटों और उस नागफनी के कांटों की तुलना नहीं कर सकते. हममें बहुत फ़र्क है. मैं सुंदर हूँ और वो नहीं.”

“तुममें घमंड चढ़ गया है गुलाब.” इतना कहकर चीड़ के पेड़ ने अपनी डालियों दूसरी ओर झुका ली.

इन सबके बीच नागफनी का पौधा चुपचाप रहा. लेकिन गुलाब ने गुस्से में अपनी जड़े नागफनी के पौधे से दूर हटाने की कोशिश की. लेकिन ऐसा संभव नहीं था. कुछ देर प्रयास करने के बाद गुलाब ने चिढ़कर नागफनी के पौधे से कहा, “तुम एक निरर्थक पौधे हो. तुममें न सुंदरता है, न ही तुम किसी काम के हो. मुझे दुःख है कि मुझे तुम्हारे पास रहना पड़ रहा है.”

गुलाब की बात सुनकर नागफनी को दुःख हुआ और वह बोला, “भगवान ने किसी को भी निरर्थक जीवन नहीं दिया है.”

गुलाब ने उसकी बात अनसुनी कर दी.

मौसम बदला और वसंत ऋतु चली गई. धूप की तपिश बढ़ने लगी और पेड़-पौधे मुरझाने लगे. गुलाब भी मुरझाने लगा.

एक दिन गुलाब ने देखा कि एक चिड़िया नागफनी के पौधे पर चोंच गड़ाकर बैठी है. कुछ देर बाद वह चिड़िया वहाँ से उड़ गई. वह चिड़िया ताज़गी से भरी लग रही थी. गुलाब को ये बात समझ नहीं आई कि वह चिड़िया नागफनी पर बैठकर क्या कर रही थी?

उसन चीड़ के पेड़ से पूछा “ये चिड़िया क्या कर रही थी?’

चीड़ के पेड़ ने कहा, “ये चिड़िया नागफनी के पौधे से पानी ले रही है.”

“ओह, लेकिन क्या इसके चोंच गड़ाने से नागफनी को दर्द नहीं हुआ होगा.” गुलाब ने पूछा.

“अवश्य हुआ होगा. किंतु दयालु नागफनी चिड़िया को तकलीफ़ में नहीं देख सकता था.” चीड़ के पेड़ ने उत्तर दिया.

“ओह तो इस गर्मी में नागफनी के पास पानी है. मैं तो पानी के बिना सूख रहा हूँ.” गुलाब उदास हो गया.

“तुम नागफनी से मदद क्यों नहीं मांगते? वह अवश्य तुम्हारी मदद करेगा. चिड़िया अपनी चोंच में भरकर तुम्हारे पास ले आएगी.” चीड़ के पेड़ ने सलाह दी.

गुलाब नागफनी से कैसे मदद मांगता? उसने तो अपनी सुंदरता के घमंड में उसे बहुत बुरा-भला कहा था. लेकिन तेज धूप में अपना जीवन बचाने के लिए आखिरकार एक दिन उसने नागफनी से मदद मांग ही ली.

नागफनी दयालु था. वह मदद के लिए फ़ौरन राज़ी हो गया. चिड़िया भी मदद को आगे आई. उसने नागफनी से पानी चूसा और अपनी चोंच में भरकर गुलाब के पौधे की जड़ों में डाल दिया. गुलाब का पौधा फिर से तरोताज़ा हो गया.

गुलाब को समझ आ गया था कि किसी को देखकर उसके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए. उसने नागफनी से माफ़ी मांग ली.

सीख

१. किसी की शक्ल देखकर कोई राय नहीं बनानी चाहिए. इंसान की बाहरी सुंदरता नहीं, बल्कि आंतरिक सुंदरता मायने रखती है.

२. हर किसी को भगवान ने अलग-अलग गुणों से नवाज़ा है. इसलिए अपने गुणों पर अभिमान मत करो. एक-दूसरे की सहायता से ही जीवन आगे बढ़ता है. 

डरपोक खरगोश की कहानी

जंगल में एक डरपोक खरगोश रहता था. एक दिन वह देवदार के पेड़ के नीचे मज़े से सो रहा था कि अचानक एक फल उसके सिर पर आ गिरा. डरपोक खरगोश की नींद खुल गई. वह सोचने लगा कि ये क्या हुआ? क्या गिरा मेरे सिर पर? कहीं आसमान तो नहीं गिर रहा?

दिमाग में ये सोच आते ही वह डर गया और फिर क्या? वह भागने लगा. वह बेतहाशा भागा चला जा रहा था. उसे इस तरह भागते हुए जब हाथी ने देखा, तो पूछने लगा, “अरे भाई खरगोश क्या हुआ? क्यों ऐसे भाग रहे हो?”

खरगोश हांफते हुए बोला, “भागो भागो…आसमान गिर रहा है.”

खरगोश की बात सुनकर हाथी भी डर गया. वह भी उसके पीछे-पीछे भागने लगा. कुछ देर बाद उनकी मुलाकात गेंडे से हुई. गेंडे ने भागने का कारण पूछा, तो हाथी ने खरगोश से सुनी बात दोहरा दी, “भागो भागो….आसमान गिर रहा है.”

ये सुनकर गेंडा भी डर गया और उनके पीछे हो लिया. अब जो भी उन्हें मिलता “आसमान गिर रहा है” सुनकर उनके पीछे भागने लगता. खरगोश ने पीछे हाथी, हाथी के पीछे गेंडा, गेंडे के पीछे भालू, भालू ने पीछे चीता और ऐसे ही जंगल के ढेर सारे जानवरों की कतार लग गई. सब बेतहाशा भागे जा रहे थे.

इतने सारे जानवरों को इस तरह भागते हुए जब जंगल में टहल रही लोमड़ी ने देखा, तो चकित रह गई. उसने कतार ने लगे भालू से पूछा, “क्या हुआ भाई, तुम सब लोग ऐसे कहाँ भागे चले जा रहे हो?”

“भागो भागो आसमान गिर रहा है.” भालू चिल्लाया.

ये सुनकर लोमड़ी अचरज में पड़ गई कि ऐसा भी कहीं होता है. उसने सारे जानवरों को रोका और बोली, “इस तरह भागने से किसी समस्या का हल नहीं निकलेगा. चलो जंगल के राजा शेर के पास चलते हैं.”

सब लोमड़ी के पीछे हो लिए. थोड़ी ही देर में सारे जानवर शेर के सामने खड़े थे. लोमड़ी ने शेर को सारी बात बताई.

ध्यान से सारी बात सुनने के बाद शेर ने पूछा, “सबसे पहले किसने आसमान गिरते हुए देखा?”

सबने खरगोश की तरफ़ इशारा किया. शेर ने खरगोश से पूछा, “तुमने कहाँ देखा कि आसमान गिर रहा है?”

“वनराज, मैं देवदार ने पेड़ ने नीचे सो रहा था कि तभी मेरे ऊपर आसमान का एक छोटा टुकड़ा गिरा और मैं भागने लगा और सबको बताने लगा. वनराज हम सबको भागना चाहिए कहीं पूरा आसमान गिर गया, तो हम सबका क्या होगा?”

खरगोश की बात सुनकर शेर को कुछ संदेह हुआ. उसने लोमड़ी से कुछ चर्चा की, फिर सारे जानवरों को लेकर उसी देवदार ने पेड़ के पास आया, जहाँ खरगोश सोया था. वहाँ देवदार का फल गिरा देख उसे सारा माज़रा समझ आ गया.

वह फल उठाकर शेर बोला, “तो ये है आसमान”

सारे जानवर समझ गए कि डरपोक खरगोश देवदार का फल गिरने पर सोचने लगा कि आसमान गिर रहा है. सब हँसने लगे. खरगोश बहुत शर्मिंदा हुआ. शेर ने खरगोश को समझाया कि इस तरह की अफ़वाह न फैलाए. उसने सारे जानवरों को भी समझाया कि बिना सोचे-समझे किसी की बात का यकीन न करें.

सीख

1. बिना सोचे-समझे अफवाहें न फैलाएं.

2. किसी की बात पर बिना सोचे-समझे विश्वास न करें.

 दो घड़ों की कहानी 

नदी किनारे एक छोटा सा गाँव बसा हुआ था. नदी गाँव के लोगों के लिए पानी का प्रमुख श्रोत थी. लेकिन जब बरसात के मौसम आया और गाँव में कई दिनों तक घनघोर बारिश हुई, तो नदी में बाढ़ गई. बाढ़ का पानी पूरे गाँव में भर गया. मकान पानी में डूब गए, लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भागना पड़ा.

बाढ़ के पानी में लोगों के घरों की कई चीज़ें बहने लगी. उनमें दो घड़े भी थे. एक पीतल का घड़ा था और एक मिट्टी का. दोनों ही घड़े पानी में ख़ुद को बचाने का प्रयत्न कर रहे थे. पीतल के कठोर और मजबूत घड़े ने जब मिट्टी के कमज़ोर घड़े को संघर्ष करते देखा, तो सोचने लगा कि मिट्टी का ये कमज़ोर घड़ा आखिर कब तक ख़ुद को डूबने से बचा पायेगा? मुझे इसकी सहायता करनी चाहिए.

उसने मिट्टी के घड़े से कहा, “मित्र सुनो, तुम मिट्टी के बने हुए हो और बहुत कमज़ोर हो. बाढ़ के इस पानी में तुम अधिक दूर तक नहीं जा पाओगे और डूब जाओगे. मेरी बात मानो और मेरे साथ रहो. मैं तुम्हें डूबने से बचा लूंगा.”

मिट्टी के घड़े ने पीतल के घड़े को देखा और उत्तर दिया, “मित्र! तुम्हारी सहायता के प्रस्ताव के लिए धन्यवाद. लेकिन मेरा तुम्हारे आस-पास रहना मेरे सलामती के लिए उचित नहीं है. तुम ठहरे पीतल के बने घड़े और मैं मिट्टी का घड़ा. तुम बहुत कठोर और मजबूत हो. अगर तुम मुझसे टकरा गए, तो मैं तो चकनाचूर हो जाऊंगा. इसलिए तुमसे दूर रहने में ही मेरी भलाई है. मैं स्वयं ही ख़ुद को बचाने का प्रयास करता हूँ. भगवान ने चाहा, तो किसी तरह किनारे तक पहुँच ही जाऊँगा.”

इतना कहने के बाद मिट्टी का घड़ा दूसरी दिशा में बहने का प्रयत्न करने लगा और धीरे-धीरे पानी के बहाव के साथ नदी किनारे पहुँच गया. वहीं दूसरी ओर पीतल का भारी घड़ा भी प्रयत्न करता रहा, लेकिन नदी के पानी के तेज बहाव में ख़ुद को संभाल नहीं पाया. उसमें पानी भर गया और वह डूब गया.

सीख

विपरीत गुणों की अपेक्षा एक समान गुण वाले अच्छी मित्रता कायम कर पाते हैं.

नटखट चूहा की कहानी 

ये कहानी एक नटखट चूहे की है. एक छोटे से बिल में रहने वाला नटखट चूहा (Natkhat Chuha)  हर समय कुछ न कुछ शरारतें करने मचलता रहता था. लेकिन बहुत दिनों से बारिश होने के कारण वह अपने बिल से बाहर नहीं निकल पा रहा था.

जिस दिन बारिश रुकी, उसने सोचा, “इतने दिन बिल में घुसे-घुसे मेरा मन उकता गया है. आज तो मैं शहर जाऊंगा और खूब घूमूंगा.”

वह झटपट तैयार हुआ और शहर की ओर निकल पड़ा. मस्ती में डूबा चूहा शहर में घूम रहा था. घूमते-घूमते वह शहर के बाज़ार में पहुँच गया. वहाँ उसे कपड़े की एक बड़ी सी दुकान दिखाई पड़ी. वह दुकान में घुस गया.

जब दुकानदार ने चूहे को देखा, तो बोला, “अरे चूहे, तू कैसे मेरी दुकान में घुस गया? चल भाग यहाँ से.”

चूहा बोला, “मुझे एक टोपी सिलवानी है. उसके लिए मैं कपड़ा ख़रीदने आया हूँ.”

उसकी बात सुनकर दुकानदार हँसते हुए बोला, “तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है. तू चूहा होकर टोपी पहनेगा..हा…हा…हा…ध्यान से सुन, मैं चूहों को कुछ नहीं बेचता. मेरा समय बर्बाद मत कर और भाग यहाँ से.”

चूहे को गुस्सा आ गया. वह चिल्लाकर बोला, “तुम मुझे कपड़ा बेच रहे हो या नहीं?”

“नहीं” दुकानदार ने उत्तर दिया.

“रातों रात मैं आऊँगा.

अपनी सेना लाऊँगा.

तेरे कपड़े कुतरूँगा.” चूहा गाते हुए दुकानदार से बोला.

चूहे गाने के अर्थ समझकर दुकानदार डर गया और उसे रेशमी कपड़ा देकर बोला, “चूहे भाई, मेरे दुकान के कपड़े मत कुतरना. मेरा धंधा बर्बाद हो जायेगा.”

चूहे ने रेशमी कपड़ा लिया और नाचते-गाते दुकान से बाहर निकल गया. थोड़ी ही दूर पर दर्जी की दुकान थी. वह वहाँ पहुँचा और दर्जी से बोला, “दर्जी भाई, इस कपड़े से एक अच्छी सी टोपी सिल दो.”

चूहे हो देखकर दर्जी बोला, “देखता नहीं मेरे पास बहुत काम है. तेरी टोपी मैं कब सिलूं? इतना समय नहीं है मेरे पास. चल भाग जा…मेरा समय बर्बाद कर.”

चूहे को गुस्सा आ गया. वह चिल्लाकर बोला, “तुम मेरी टोपी सिलते हो या नहीं.”

“नहीं सिलता.” दर्जी भी चिल्लाकर बोला.

“रातों रात मैं आऊँगा.

अपनी सेना लाऊँगा.

तेरे कपड़े कुतरूँगा.” चूहा गाने लगा.

चूहे का गाना सुनकर दर्जी डर गया और उससे कपड़ा लेकर वह टोपी सिलने लगा. थोड़ी ही देर में एक सुंदर टोपी तैयार थी. चूहे ने टोपी पहनी और आईने में ख़ुद को देखा. टोपी सुंदर लग रही थी, लेकिन सादी थी. चूहे ने सोचा कि इसमें चमकीले सितारे लगवाऊँगा, तो यह और ज्यादा सुंदर लगने लगेगी.

वह दर्जी की दुकान से निकला और सितारों की दुकान खोजने लगा. थोड़ी ही दूर पर एक छोटी सी सितारों की दुकान थी. नटखट चूहा उसमें घुस गया. दुकान के अंदर जाकर वह बोला, “भैया, मुझे इस टोपी में चमकीले सितारे लगवाने है. अपनी दुकान के सबसे सुंदर और चमकीले सितारे दिखाओ.”

टोपी पहने हुए चूहे को देखकर दुकानदार जोर से हँसा और बोला, “तेरे लिए ऐसी ही टोपी ठीक है. मैं तुझे सितारे नहीं दूंगा. भाग यहाँ से.”

“तुम मुझे सितारे देते हो या नहीं.” चूहा गुस्से में बोला.

“नहीं” दुकानदार बोला.

“रातों रात मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

सारे सितारे बिखेरूँगा.” चूहे ने गाना गया.

सितारे बिखेरने की बात सुनकर दुकानदार डर गया और बोला, “अरे चूहे भाई, क्यों नाराज़ होते हैं? मैं तुम्हें अभी सितारे दिखाता हूँ. जो सितारे तुम्हें पसंद हो, उसे तुम्हारी टोपी में टांक भी देता हूँ.”

कुछ ही देर में चूहे की टोपी पर चमकीले सितारे लग गए. जब उसने टोपी पहनकर ख़ुद को आईने में देखा, तो ख़ुशी से झूमने लगा. वह ख़ुद को राजा से कम नहीं समझ रहा था.

सितारों की दुकान से बाहर निकलने के बाद वह सोचने लगा, “मैं इस सुंदर टोपी में राजा लग रहा हूँ. ऐसा करता हूँ कि राजा के पास जाता हूँ और उन्हें अपनी टोपी दिखता हूँ.”

वह कूदते-फांदते राजमहल को ओर जाने लगा. राजमहल पहुँचकर वह चमकीली टोपी के साथ तनकर राजा के सामने खड़ा हो गया.

राजा उसे देखकर हैरत में पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

चूहा बोला, “महाराज! आज ही मैंने ये टोपी सिलवाई है. आपको दिखाने आया हूँ. आप बताइये कि इस टोपी में मैं कैसा लग रहा हूँ?”

“तुम तो इसमें बहुत जंच रहे हो. एकदम राजकुमार लग रहे हो.” राजा ने उत्तर दिया.

चूहा ख़ुश हो गया और बोला, “ऐसी बात है, तो राजसिंहासन से उतरो. मैं उस पर बैठूंगा.”

चूहे की बात पर राजा जोर-जोर से हँसने लगा. फिर बोला, “अरे चूहे, मैं इस राज्य का राजा हूँ. इस राजसिंहासन पर मैं ही बैठूंगा, कोई चूहा नहीं.”

चूहा तैश में आकर बोला, “तुम इस सिंहासन से उतरते हो या नहीं.”

सैनिक चूहे को पकड़ने के लिए जैसे ही आगे बढ़े, चूहा फुदककर दूसरी ओर भाग गया. सैनिकों नटखट चूहे को पकड़ने के लिए उसके पीछे बहुत भागे, लेकिन वो उनकी पकड़ में नहीं आया. जब वे थक-हार गए, तो चूहा राजा के सामने तनकर खड़ा हो गया और बोला –

“रातों रात को मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

तेरे कान कुतरूँगा.”

चूहे की बात सुनकर राजा डर गया. वह सोचने लगा, “चूहे की सेना तो पूरे राजमहल को तहस-नहस कर देगी.”

चूहा चिल्लाया, “सिंहासन से उतरते हो या नहीं.”

राजा डर के मारे तुरंत सिंहासन से उतर गया और बोला, “मैं तो सिंहासन से उतर गया, अब तुम जितनी देर चाहो इस पर बैठो.”

राजा के उतरते ही चूहा मज़े से सिंहासन पर बैठ गया. रात भर वह सिंहासन पर बैठकर आराम करता रहा. फिर उठकर ख़ुशी में नाचता-गाता अपने दोस्तों के पास चला गया. दोस्तों के बीच पहुँचकर उसने अपनी सुंदर चमकीली टोपी दिखाई और दिन भर का किस्सा उन्हें सुनाया.

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