फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम कश्मीरी कहानी “बदल गई राजो” (Badal Gai Rajo Kashmiri Lok Katha) शेयर कर रहे है. राज़ी नामक वृद्ध स्त्री की यह कहानी एक-दूसरे के हिल-मिलकर रहने की सीख देती है. पढ़िये कश्मीर की ये मज़ेदार लोक कथा :
Badal Gai Rajo Kashmiri Lok Katha
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राजो बुढ़िया कहते थे सब उसे. अकेली औरत थी. पति की मृत्यु हुए बरसों बीत चुके थे. कोई बाल-बच्चा भी न था. गुजारा सेब और अखरोट और बेचकर हो जाया करता था. उसके घर के आंगन में सेब और अखरोट के कई पेड़ लगे हुए थे. दिन भर भगवान शिव का नाम लेकर वह उन पेड़ों की देखभाल किया करती थी.
सब कुछ आराम से चल रहा था. बस मोहल्ले के बच्चों ने उसे बहुत परेशान कर रखा था. जब देखो, उसके आंगन से सेब और अखरोट चुरा ले जाते थे. वह गालियाँ देती हुई डंडा लेकर उन्हें मारने दौड़ती, तो भागते-भागते ‘राजो बुढ़िया’ ‘राजो बुढ़िया’ कहकर चिढ़ाते. वह तंग आ चुकी थी उनसे. वे बच्चे इतने ढीठ थे कि रोज़ मार खाने के बाद भी सुधरते नहीं थे और रोज़ अखरोट और सेब चोरी करने आ जाते थे.
रोज़ तो राजो उन बच्चों को लाठी लेकर दौड़ाती थी, लेकिन उस दिन उसने ढेर सारे पत्थर इकट्ठे कर लिये थे. सोच लिया था उसने कि आज अगर कोई बच्चा चोरी करने आया, तो उसे पत्थर से मारेगी.
वह दिन भर इंतज़ार करती रही. लेकिन कोई बच्चा नहीं आया. शाम होने लगी थी, तो वह सोचने लगी कि आज नहीं, तो कल सही. कल तो ज़रूर आयेंगे. इसलिए ये पत्थर संभाल कर रख देती हूँ. उसी समय अंधेरे में उसे एक परछाई दिखाई पड़ी. फिर क्या? उसने पत्थर खींचकर दे मारा. वह कोई बच्चा ही था. पत्थर लगते ही वह बच्चा कराह उठा. पत्थर उसके माथे पर लगा था और उसका खून बहाने लगा था. रोते-रोते वह अपने घर की ओर भाग गया.
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राजो बड़ी ख़ुश हुई. अच्छा सबक सिखाया था उसने. वह रात का खाना खाकर सो गई. उस रात सपने में उसे भगवान शिव दिखाई पड़े. उनके माथे से खून बह रहा था. माता पार्वती ने उनसे खून बहने का कारण पूछा, तो बोले, “आज मेरी एक भक्तन ने एक बच्चे को पत्थर से मारा है. उस चोटिल बच्चे को जो दर्द हो रहा है, वही दर्द मुझे हो रहा है. उसके माथे से निकला रक्त ही मेरे माथे से बह रहा है. मेरी भक्तन होकर घोर पाप किया उसने. बच्चों में तो भगवान बसते हैं. ये भी नहीं सोचा उसने.”
राजो की नींद खुल गई. उसे अपने किये पर पछतावा होने लगा. इस बात का उसके ह्रदय पर इतना आघात पहुँचा कि वह बीमार पड़ गई. अगली सुबह गाँव के बच्चे आये, तो उन्हें राजो दिखाई नहीं दी. उन्होंने मज़े से ढेर सारे सेब और अखरोट तोड़े. पर न राजो बाहर आई, न उसके गालियों की आवाज़ आई.
पूरा दिन निकल गया. शाम हो गई. बच्चे चकित थे, क्योंकि आज तक ऐसा नहीं हुआ था. वे डरते-डरते राजो के घर में घुसे, तो देखा कि वह चारपाई पर पड़ी बुखार में तप रही है. यह देख कुछ बच्चे झट गाँव के हकीम को बुला आये. कुछ बच्चे उसके माथे पर पानी की पट्टी करने लगे. कुछ अपने घर से खिचड़ी ले आये.
हकीम आये और राजो को दावा देकर चले गये. बच्चे उसकी सेवा-टहल करते रहे. यह देख राजो की आँखों से आँसू बहने लगे. वह सोचने लगी कि मैंने इन बच्चों को कितनी गालियाँ दी, कितना मारा. फिर भी ये लोग मेरी इतनी सेवा कर रहे हैं.
कुछ दिनों में वह स्वस्थ हो गई. अब वह बदल गई थी. उसे समझ आ गया था कि सबसे हिलमिल रहने में ही सच्ची ख़ुशी है. उसने अपने आँगन का बाग़ उन बच्चों के लिए खोल दिया था. अब वह उन बच्चों से बहुत प्यार करती थी. उन्हे अपने हाथों से सेब और अखरोट खिलाती थी. बच्चे भी उससे बहुत प्यार करने लगे. अब वह ‘राजो बुढ़िया’ नहीं रही, बल्कि ‘राजो अम्मा’ बन गई.
सीख (Moral of the story)
सबसे हिल-मिलकर प्रेमपूर्वक रहें.
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