बच्चों के लिए पंचतंत्र की 10 बेडटाइम स्टोरीज | Bedtime Stories In Hindi Panchatantra

Bedtime Stories In Hindi Panchatantra With Moral, Bachchon Ki Bedtime Stories Panchatantra 

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम बच्चों के लिए पंचतंत्र की 10 बेडटाइम स्टोरीज (Top 10 Bedtime Stories In Hindi Panchtantra)  शेयर कर रहे हैं. पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों का मनोरंजन करने के साथ-साथ  नैतिक शिक्षा भी प्रदान करती हैं. उन्हें सुलाते समय सुनाये :

Bedtime Stories In Hindi Panchtantra
Bedtime Stories In Hindi Panchtantra

Top 10 Bedtime Stories In Hindi Panchtantra

शेर और मूर्ख गधा की कहानी 

एक जंगल में करालकेसर नामक शेर रहता था. धूसरक नामक गीदड़ उसका सेवक था, जो उसकी सेवा-टहल किया करता था और बदले में शेर द्वारा मारे गए शिकार का अंश भोजन के रूप में प्राप्त करता था.

एक बार शेर का हाथी से सामना हो गया. दोनों अपने गर्व में चूर थे. बात बढ़ी और युद्ध तक पहुँच गई. दोनों में युद्ध हुआ, जिसमें हाथी शेर पर हावी रहा. उसने शेर को सूंड से पकड़कर उठाया और धरती पर पटक दिया. शेर के शरीर की कई हड्डियाँ टूट गई.

शेर बुरी तरह चोटिल हो चुका था. ऐसे में शिकार पर जाना उसके लिए दुष्कर था. वह दिन भर एक स्थान बैठा रहता. शिकार न कर पाने के कारण वो और उसका सेवक गीदड़ दोनों भूखे मरने लगे.

एक दिन शेर गीदड़ से बोला, “यदि इसी तरह चला, तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारे प्राण पखेरू उड़ जायेंगे. इस समस्या का कुछ न कुछ समाधान निकालना पड़ेगा.”

“वनराज! क्या करें? आप तो शिकार पर जा नहीं सकते. मैं ठहरा आपका सेवक. मैं तो आप पर निर्भर हूँ.” गीदड़ ने उत्तर दिया.

“इस स्थिति में मेरा शिकार पर जाना संभव नहीं. लेकिन यदि कोई जानवर मेरे निकट आ गए, तो अब भी मुझमें इतनी शक्ति है कि अपने पंजे के एक वार से उसके प्राण हर सकता हूँ. तुम किसी जानवर को बहला-फुसलाकर मुझ तक ले आओ. मैं उसे मार डालूंगा और फिर हम दोनों छककर उसका मांस खायेंगे.” शेर बोला.

गीदड़ को शेर की बात जंच गई और वह शिकार की खोज में निकल पड़ा. चलते-चलते वह एक गाँव में पहुँचा. वहाँ उसने एक खेत में लम्बकर्ण नामक गधे को चरते हुए देखा. उसे देख वह सोचने लगा कि इस गधे को किसी तरह शेर के पास ले जाऊं, तो कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.

वह गधे के पास गया और स्वर में मिठास भरकर बोला, “अरे मित्र, क्या हाल बना रखा है? पहले कितने हृष्ट-पुष्ट हुआ करते थे. इतने दुबले-पतले कैसे हो गए? लगता है धोबी कुछ ज्यादा ही काम ले रहा है.”

गीदड़ ने गधे की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. गधा दु:खी स्वर में बोला, “सही समझे मित्र. मैं बड़ा दु:खी हूँ. धोबी मुझसे आवश्यकता से अधिक काम लेता है और कुछ गलती हो जाने पर खूब पीटता है. ऊपर से खाने को भी कुछ भी देता. इधर-उधर चरकर कर किसी तरह मैं अपनी भूख शांत करता हूँ. इसलिए मेरा ऐसा हाल हो गया है.”

गीदड़ ने मौके की नज़ाकत समझ ली और कहने लगा, “मैं तुम्हारा दुःख समझ सकता हूँ मित्र. वैसे तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जा सकता हूँ, जहाँ हरी घास का विशाल मैदान है. तुम वहाँ जी भर कर घास खा सकते हो.”

“ये तो बहुत अच्छी बात कही मित्र. किंतु वहाँ जंगली जानवरों का भय होगा. प्राणों पर संकट आ गया तो? मैं यहीं ठीक हूँ. जो भी प्राप्त हो रहा है. कम से कम सुरक्षित तो हूँ.” गधे ने अपनी शंका जताई.

“अरे मित्र, क्या बात कर रहे हो? मेरे होते हुए तुम्हें किस बात का भय? वह पूरा क्षेत्र मेरे अधीन है. वहाँ कोई तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकता. तुम निर्भय होकर वहाँ के घास के मैदानों में चर सकते हो. और एक बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया. वहाँ तीन गर्दभ कन्यायें भी रहती हैं, जो अपने लिए वर की खोज में हैं. संभवतः, वहाँ तुम्हारी बात भी बन जाये.” गीदड़ उसे फुसलाते हुए बोला.

गधा उसकी बातों में आकर उसके साथ चलने को तैयार हो गया. गीदड़ उसे लेकर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ शेर बैठा हुआ था. गीदड़ को गधे के साथ आते हुए देख शेर ख़ुश हो गया और अपनी सारी शक्ति जुटाकर उठ खड़ा हुआ, ताकि गधे का शिकार कर सके.

इधर गधे ने जैसे ही शेर को उठते हुए देखा, वह वहाँ से भाग गया. शेर में इतनी शक्ति ही नहीं थी कि वह उसका पीछा कर सके. गीदड़ को शेर पर बहुत क्रोध आया कि हाथ में आया शिकार उसने यूं ही जाने दिया.

वह बोला, “वनराज, अब मुझे समझ में आया कि हाथी ने आपको युद्ध में पटकनी कैसे दी? आप में तो गधे का शिकार करने का भी सामर्थ्य नहीं है. हाथी तो फ़िर अति बलवान था.”

शेर लज्जित होकर बोला, “क्या करूं? मैं झपट्टा मारता, उसके पहले ही वह भाग गया. मेरे पंजे का एक वार भी लग जाता, तो वह बचकर नहीं जा पाता. तुम उसे किसी तरह एक बार फिर ले आओ. अबकी बार मैं उसे दबोच ही लूँगा.”

“उसे दोबारा लाना बहुत कठिन है. फिर भी मैं यत्न करूंगा. किंतु, इस बार वह आये, तो बचके जाने ना पाए.” गीदड़ बोला.

फ़िर वह गधे की तलाश में निकला पड़ा. कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि गधा एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहा है. वह उसेक पास गया और बोला, “क्या हुआ मित्र. तुम वहाँ से क्यों भाग आये?”

“अच्छी बात कर रहे हो तुम. तुम मुझे किस भयानक जीव के पास ले गए थे, जो मुझे देखते साथ मेरे पीछे भागा था. आज तो मुझे मौत सामने दिखाई पड़ रही थी. पूरा जोर लगाकर भागा न होता, तो अभी तुमसे बात न कर रहा होता.” गधा हांफते हुए बोला.

गीदड़ ने फिर से अपना पासा फेंका, “अरे तुमने ध्यान नहीं दिया. वो एक गर्दभी कन्या थी. तुम्हें देख वह उतावली हो गई और तुम्हारे पास आने लगी. किंतु, तुम तो ऐसे भागे की नज़रों से ओझल ही हो गये. अब वो तुमसे पुनः मिलने की आस में बैठी है. मुझे तुम्हें लाने के लिए भेजा है. वो तुमसे मिलना चाहती थी. कदाचित्, वह तुम्हारे प्रेम में पड़ गई है. तुम्हें भी उससे मिलना चाहिए. उसे इस तरह सताना उचित नहीं.”

गधा फिर गीदड़ की बातों में आ गया और उसके साथ फिर जंगल की ओर चल पड़ा. शेर वहाँ घात लगाये बैठा था. इस बार उसने गलती नहीं की. जैसे ही गधा उसके निकट आया, उसके अपने पंजे का शक्तिशाली वार किया और गधे के प्राण हर लिए.

गीदड़ और शेर के भोजन का प्रबंध हो चुका था. दोनों बहुत खुश थे. शेर गीदड़ से बोला, “मैं नदी में स्नान कर आता हूँ, तुम तब तक इसकी निगरानी करो.”

गीदड़ गधे के शव की निगरानी करने लगा. शेर नदी की ओर चला गया. उधर शेर स्नान करने में समय ग्गाया रहा था और इधर गीदड़ भूख से व्याकुल हो रहा था. आखिर, उससे रहा न गया और उसने गधे का कान और दिमाग खा लिया.

शेर जब स्नान कर लौटा, तो गधे के कान और दिमाग को गायब देख गीदड़ पर क्रुद्ध हो गया, “लोभी, मैंने तुझे निगरानी के लिए यहाँ छोड़ा था. किंतु, तुझसे मेरी प्रतीक्षा भी नहीं हुई. तूने इसे जूठा कर दिया. अब क्या मैं तेरी जूठन खाऊँ?”

गीदड बोला, “वनराज, आप गलत ना समझें. इस गधे के कान और दिमाग तो थे ही नहीं. होते तो क्या ये एक बार मौत के मुँह से बचने के बाद दोबारा वापस आता.”

शेर को गीदड़ की बात ठीक लगी. फ़िर क्या था? दोनों ने छककर गधे का मांस खाया और अपनी भूख मिटाई.

शिक्षा   

१. किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए.

२. लोभ नहीं करना चाहिए.

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मगरमच्छ और बंदर की कहानी 

जंगल में झील के किनारे जामुन का एक पेड़ था. ऋतु आने पर उसमें बड़े ही मीठे और रसीले जामुन लगा करते थे. जामुन का वह पेड़ ‘रक्तमुख’ नामक बंदर का घर था. जब भी पेड़ पर जामुन लगते, तो वह ख़ूब मज़े लेकर उन्हें खाया करता था. उसका जीवन सुखमय था.

एक दिन एक मगरमच्छ झील में तैरता-तैरता जामुन के उसी पेड़ के नीचे आ गया, जिस पर बंदर रहा करता था. बंदर ने उसे देखा, तो उसके लिए कुछ जामुन तोड़कर नीचे गिरा दिए. मगरमच्छ भूखा था. जामुन खाकर उसकी भूख मिट गई.

वह बंदर से बोला, “मैं बहुत भूखा था मित्र. तुम्हारे दिए जामुन ने मेरी भूख शांत कर दी. तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद.”

“जब मित्र कहा है, तो फिर धन्यवाद की क्या बात है? तुम यहाँ रोज़ आ जाया करो. ये पेड़ तो जामुनों से लदा हुआ है. हम दोनों साथ में जामुनों का स्वाद लिया करेंगे.” बंदर ने मैत्रीभाव से मगरमच्छ से कहा.

उस दिन से बंदर और मगरमच्छ में अच्छी मित्रता हो गई. मगरमच्छ रोज़ झील किनारे आता और बंदर के दिए जामुन खाते हुए उससे ढेर सारी बातें किया करता. बंदर मित्र के रूप में मगरमच्छ को पाकर बहुत ख़ुश था.      

एक दिन दोनों में अपने-अपने परिवार के बारे में बातें चली, तो बंदर बोला, “मित्र, परिवार के नाम पर मेरा कोई नहीं है. मैं इस दुनिया में अकेला हूँ. किंतु तुमसे मित्रता के बाद से मेरे जीवन का अकेलापन चला गया. मैं भगवान का बहुत आभारी हूँ कि उसने मित्र के रूप में तुम्हें मेरे जीवन में भेजा.”

मगरमच्छ बोला, “मैं भी तुम्हें मित्र के रूप में पाकर बहुत ख़ुश हूँ. लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ. मेरी पत्नि है. झील के पार हम दोनों साथ रहते हैं.”

“अरे ऐसी बात थी, तो पहले क्यों नहीं बताया? मैं उनके लिए भी जामुन भेजता.” बंदर बोला और उस दिन उसने मगरमच्छ की पत्नि के लिए भी जामुन भिजवाए.

घर पहुँचकर जब मगरमच्छ ने अपनी पत्नि को बंदर के भेजे जामुन दिए, तो उसने पूछा, “नाथ, तुम इतने मीठे जामुन कहाँ से लेकर आये हो?”

“ये जामुन मुझे मेरे मित्र बंदर ने दिए हैं, जो झील के पार जामुन के पेड़ पर रहता है.” मगरमच्छ बोला.

“बंदर और मगरमच्छ की मित्रता! कैसी बात कर रहे हो नाथ? बंदर और मगरमच्छ भी भला कभी मित्र होते हैं? वो तो हमारा आहार हैं. जामुन के स्थान पर तुम उस बंदर को मारकर ले आते, तो हम मिलकर उसके मांस का स्वाद लेते.” मगरमच्छ की पत्नि बोली.

“ख़बरदार, जो आइंदा कभी ऐसी बात की. बंदर मेरा मित्र है. वह मुझे रोज़ मीठे जामुन खिलाता है. मैं कभी उसका अहित नहीं कर सकता.” मगरमच्छ ने अपनी पत्नि को झिड़क दिया और वह मन मसोसकर रह गई.

इधर बंदर और मगरमच्छ की मित्रता पूर्वव्रत रही. दोनों रोज़ मिलते रहे और बातें करते हुए जामुन खाते रहे. बंदर अब मगरमच्छ की पत्नि के लिए भी जामुन भेजने लगा.

मगरमच्छ की पत्नि जब भी जामुन खाती, तो सोचती कि जो बंदर रोज़ इतने मीठे जामुन खाता है, उसका कलेजा कितना मीठा होगा? काश, मुझे उसका कलेजा खाने को मिल जाये! लेकिन डर के मारे वह अपने पति से कुछ न कहती. लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, वैसे-वैसे उसके मन में बंदर का कलेजा खाने की लालसा बढ़ती गई.

वह अपने पति से सीधे-सीधे बंदर के कलेजे की मांग नहीं कर सकती थी. इसलिए उसने एक तरक़ीब निकाली. एक शाम जब मगरमच्छ बंदर से मिलकर वापस आया, तो देखा कि उसकी पत्नि निढाल होकर पड़ी है.

पूछने पर वह आँसू बहाते हुए बोली, “मेरी तबियत बहुत ख़राब है. लगता है, अब मैं नहीं बचूंगी. नाथ, मेरे बाद तुम अपना ख्याल रखना.”

मगरमच्छ अपनी पत्नि से बहुत प्रेम करता था. उससे उसकी वह हालत देखी नहीं जा रही थी. वह दु:खी होकर बोला, “प्रिये! ऐसा मत कहो. हम वैद्य के पास जायेंगे और तुम्हारा इलाज़ करवाएंगे.”

“मैं वैद्य के पास गई थी. लेकिन उसने मेरी बीमारी का जो इलाज़ बताया है, वह संभव नहीं है.”

“तुम बताओ तो सही, मैं तुम्हारा हर संभव इलाज करवाऊंगा.”

मगरमच्छ की पत्नि इसी मौके की तलाश में थी. वह बोली, “वैद्य ने कहा है कि मैं बंदर का कलेजा खाकर ठीक हो सकती हूँ. तुम मुझे बंदर का कलेजा ला दो.”

“ये तुम क्या कह रही हो? मैं तुमसे कह चुका हूँ कि बंदर मेरा मित्र है. मैं उसक साथ धोखा नहीं कर सकता.” मगरमच्छ अपनी पत्नि की बात मानने को तैयार नहीं हुआ.

“यदि ऐसी बात है, तो तुम मेरा मरा मुँह देखने को तैयार रहो.” उसकी पत्नि रुठते हुए बोली.

मगरमच्छ दुविधा में पड़ गया. एक ओर मित्र था, तो दूसरी ओर पत्नि. अंत में उसने अपनी पत्नि के प्राण बचाने का निर्णय किया. दूसरे दिन वह सुबह-सुबह बंदर का कलेजा लाने चल पड़ा. उसकी पत्नि ख़ुशी से फूली नहीं समाई और उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगी.

जब मगरमच्छ बंदर के पास पहुँचा, तो बंदर बोला, “मित्र, आज इतनी सुबह-सुबह. क्या बात है?”

“मित्र, तुम्हारी भाभी तुमसे मिलने को लालायित है. वह रोज़ मुझसे शिकायत करती है कि मैं तुम्हारे दिए जामुन तो खा लेता हूँ. किंतु कभी तुम्हें घर बुलाकर तुम्हारा सत्कार नहीं करता. आज उसने तुम्हें भोज पर आमंत्रित किया है. मैं सुबह-सुबह वही संदेशा लेकर आया हूँ.” मगरमच्छ ने झूठ कहा.

“मित्र, भाभी को मेरी ओर से धन्यवाद कहना. लेकिन मैं जमीन रहने वाला जीव हूँ और तुम लोग जल में रहने वाले जीव हो. मैं ये झील पार नहीं कर सकता. मैं कैसे तुम्हारे घर आ पाऊंगा?” बंदर ने अपनी समस्या बताई.

“मित्र! उसकी चिंता तुम मत करो. मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बिठाकर अपने घर ले जाऊंगा.”

बंदर तैयार हो गया और पेड़ से कूदकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया. मगरमच्छ झील में तैरने लगा. जब वे झील के बीचो-बीच पहुँचे, तो मगरमच्छ ने सोचा कि अब बंदर को वास्तविकता बताने में कोई समस्या नहीं है. यहाँ से वह वापस नहीं लौट सकता.

वह बंदर से बोला, “मित्र, भगवान का स्मरण कर लो. अब तुम्हारे जीवन की कुछ ही घड़ियाँ शेष हैं. मैं तुम्हें भोज पर नहीं, बल्कि मारने के लिए ले जा रहा हूँ.”

ये सुनकर बंदर चकित होकर बोला, “मित्र, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम मुझे मारना चाहते हो. मैंने तो तुम्हें मित्र समझा, तुम्हें जामुन खिलाये और उसका प्रतिफल तुम मेरे प्राण लेकर दे रहे हो.”

मगरमच्छ ने बंदर को सारी बात बताई और बोला, “मित्र, तुम्हारी भाभी के जीवन के लिए तुम्हारा कलेजा आवश्यक है. वह तुम्हारा कलेजा खाकर ही भली-चंगी हो पायेगी. आशा है, तुम मेरे विवशता समझोगे.”

बंदर को मगरमच्छ की पत्नि की चालाकी समझ में आ गई. उसे मगरमच्छ और उसकी पत्नि दोनों पर बहुत बहुत क्रोध गया. किंतु वह समय क्रोध दिखाने का नहीं, बल्कि बुद्धि से काम लेने का था.

बंदर चतुर था. तुरंत उसके दिमाग में अपने प्राण बचाने का एक उपाय आ गया और वह मगरमच्छ से बोला, “मित्र तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि भाभी को मेरा कलेजा खाना है. हम बंदर लोग अपना कलेजा पेड़ की कोटर में संभाल कर रखते हैं. मैंने भी जामुन के पेड़ की कोटर में अपना कलेजा रखा हुआ है. अब तुम मुझे भाभी के पास लेकर भी जाओगे, तो वह मेरा कलेजा नहीं खा पायेगी.”

“यदि ऐसी बात है, तो मैं तुम्हें वापस पेड़ के पास ले चलता हूँ. तुम मुझे अपना कलेजा दे देना. वो ले जाकर मैं अपनी पत्नि को दे दूंगा.” कहकर मगरमच्छ ने फ़ौरन अपनी दिशा बदल ली और वापस जामुन के पेड़ की ओर तैरने लगा.

जैसे ही मगरमच्छ झील के किनारे पहुँचा, बंदर छलांग मारकर जामुन के पेड़ पर चढ़ गया. नीचे से मगरमच्छ बोला, “मित्र! जल्दी से मुझे अपना कलेजा दे दो. तुम्हारी भाभी प्रतीक्षा कर रही होगी.”

“मूर्ख! तुझे ये भी नहीं पता कि किसी भी प्राणी का कलेजा उसके शरीर में ही होता है. चल भाग जा यहाँ से. तुझ जैसे विश्वासघाती से मुझे कोई मित्रता नहीं रखनी.” बंदर मगरमच्छ से धिक्कारते हुए बोला.

मगरमच्छ बहुत लज्जित हुआ और सोचने लगा कि अपने मन का भेद कहकर मैंने गलती कर दी. वह पुनः बंदर का विश्वास पाने के उद्देश्य से बोला, “मित्र, मैं तो तुमसे हँसी-ठिठोली कर रहा था. तुम मेरी बातों को दिल पर मत लो. चलो घर चलो. तुम्हारी भाभी बांट जोह रही होगी.”

“दुष्ट, मैं इतना भी मूर्ख नहीं कि अब तेरी बातों में आऊंगा. तुझ जैसा विश्वासघाती किसी की मित्रता के योग्य नहीं है. चला जा यहाँ और फिर कभी मत आना.” बंदर मगरमच्छ को दुत्कारते हुए बोला.         

मगरमच्छ अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया.

सीख 

  • मित्र के साथ कभी धोखा नहीं करना चाहिए.
  • विपत्ति के समय धैर्य और बुद्धि से काम लेना चाहिए.

गौरैया और बंदर की कहानी

वन में घने वृक्ष की शाखा में घोंसला बनाकर गौरैया का जोड़ा रहा करता था. वर्षों से वे वहाँ सुख का जीवन व्यतीत कर रहे थे.

ठंड का मौसम था. गौरैया का जोड़ा अपने घोंसलें में बैठा आराम कर रहा था. तभी अचानक ठंडी हवा के साथ बारिश प्रारंभ हो गई.

ऐसे में कहीं से एक बंदर आया और उस डाल पर बैठ गया, जहाँ गौरैया के जोड़ों का घोंसला (Nest) था. बंदर ठंड से ठिठुर रहा था. ठिठुरन के कारण उसके दांत किटकिटा रहे थे.

बंदर के दांतों की किटकिटाहट सुन गौरैया ने अपने घोंसलें से बाहर झांककर देखा. बंदर को बारिश में भीगता देख वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाई और पूछ बैठी, “कौन हो तुम? इतनी बारिश में यहाँ इस डाल पर क्या कर रहे हो? क्या तुम्हारा कोई घर नहीं?”

गौरैया की बात सुन बंदर (Monkey) चिढ़ गया. किंतु उस समय वह किसी बात का उत्तर नहीं देना चाहता था. वह चुप रहा.

बंदर को चुप देख गौरैया का हौसला बढ़ गया और लगी वह अपनी सलाह देने, “लगता है तुम्हारा कोई घर नहीं. तभी इस बरसात में भीग रहे हो. तुम्हारा चेहरा तो मानव जैसा है. शरीर से भी हृष्ट-पुष्ट लगते हो. ऐसे में अपना घर बनाकर क्यों नहीं रहते? अपना घर न बनाना मूर्खता है. उसका फल देखो, तुम बारिश में बैठे ठिठुर रहे हो और हमें देखो, हम सुख से अपने घोंसले में बैठे है.”

ये सुनना था कि बंदर क्रोध में लाल-पीला हो गया. उसने गौरैया के घोंसले को तोड़ दिया. मूर्ख को परामर्श देने का फल गौरैया को मिल गया था.

सीख

परामर्श उसे दो, जिसे वास्तव में उसकी आवश्यकता हो. वह उसका मूल्य समझेगा. मूर्ख को परामर्श देने पर हो सकता है, उसके दुष्परिणाम भोगने पड़े.

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मूर्ख बगुला और नेवला की कहानी

जंगल की बीच स्थित वट वृक्ष के खोल में कुछ बगुलों का डेरा था. वे वहाँ वर्षों से रहते आ रहे थे. एक दिन उस वृक्ष की जड़ में बिल बनाकर एक सांप रहने लगा. जब भी अवसर प्राप्त होता, वह बगुलों के बच्चों को मारकर खा जाता.

अपने बच्चों के मारे जाने से बगुले बड़े दु:खी थे. वे किसी तरह उस सांप से छुटकारा पाना चाहते थे. एक दिन वे नदी किनारे उदास बैठे थे, तभी पानी से निकलकर एक केकड़ा उनके पास आया और बोला, “क्या हुआ मित्रों! तुम लोग इतने दु:खी क्यों लग रहे हो? क्या मैं तुम्हारी कोई सहायता कर सकता हूँ?”

दु:खी बगुलों ने अपनी समस्या केकड़े को बता दी. केकड़ा दुष्ट था. उसने मन ही मन सोचा – ‘ये बगुले मेरे परम शत्रु हैं. क्यों ना इनको ऐसा उपाय बताऊँ कि सांप के साथ-साथ इनका भी काम-तमाम हो जाये.’

किंतु ऊपर से दुःख व्यक्त करने का दिखावा करता हुआ वह बोला, “मित्रों, तुम्हारी समस्या सुनकर बड़ा दुःख हुआ. किंतु अब तुम लोगों को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है. मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बताऊंगा, जिससे तुम्हें सदा के लिए उस दुष्ट सांप से छुटकारा मिला जायेगा.”

केकड़े की बात सुनकर बगुले प्रसन्न हो गए और बोले, “तो फिर देर न करो मित्र और शीघ्र हमें वह उपाय बता दो.”

“तुम लोग कहीं से मांस के टुकड़ों की व्यवस्था करो. मांस के टुकड़ों में से कुछ टुकड़े नेवले के बिल के सामने डाल दो. शेष टुकड़े नेवले के बिल से लेकर सांप के बिल तक बिखेर दो. नेवला उन मांस के टुकड़ों को खाता हुआ सांप के बिल तक पहुँच जायेगा. सांप और नेवले जन्म-जन्मांतर के बैरी है. नेवला सांप का काम-तमाम कर देगा और तुम लोगों को सांप से सदा के लिए छुटकारा मिल जायेगा.”

बगुले शीघ्र सांप से छुटकारा पाना चाहते थे. उन्होंने ज्यादा सोच-विचार किये बिना ही केकड़े की बात मान ली. उन्होंने वैसा ही किया, जैसा केकड़े ने कहा था.

जैसी योजना थी, वैसा ही हुआ. नेवला मांस के टुकड़ों को खाता हुआ सांप के बिल तक पहुँच गया और सांप को मारकर खा गया. लेकिन वृक्ष में खोल देखकर वह वहाँ भी पहुँच गया और बगुलों को भी मारकर खा गया.

बगुलों के जल्दबाज़ी में केकड़े की योजना के दुष्परिणाम के बारे में विचार नहीं किया और मूर्खता कर दी थी, जिसका फल उन्हें अपनी जान से हाथ धोकर चुकाना पड़ा.  

सीख

किसी भी कार्य को करने के पूर्व उसके हर पहलू के बारे में अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए.

नीला सियार की कहानी

चंडरव नामक एक भूखा सियार भोजन की तलाश में भटकता हुआ जंगल के निकट स्थित गाँव में चला गया. गाँव की गलियों में घूमते हुए उसे कुछ कुत्तों के देखा, तो उस पर टूट पड़े.

किसी तरह जान बचाकर चंडरव वहाँ से भागा और एक मकान में घुस गया. वह मकान एक धोबी का था. मकान के एक कोने में बड़ा सा ड्रम रखा हुआ था. चंडरव उसमें छुप कर बैठ गया. वह रात भर वहीं छुपा रहा.

सुबह होने तक कुत्ते वहाँ से जा चुके थे. चंडरव ड्रम से निकल कर जंगल की ओर गया. उसे बड़े ज़ोरों की प्यास लगी थी. वह पानी पीने नदी किनारे गया, तो पानी में अपनी परछाई देख चौंक गया.

उसका रंग नीला हो चुका था. रात में वह जिस ड्रम में छुपकर बैठा था, उसमें धोबी ने नील घोला हुआ था. उस नील का रंग चंडरव के शरीर पर चढ़ गया था.

पानी पीकर जब वह जंगल में पहुँचा, तो दूसरे जानवर उसे देख डर गए. नीले रंग का विचित्र जानवर उन्होंने कभी नहीं देखा था. वे डर के मारे भागने लगे.

चंडरव ने जानवरों को भयभीत देखा, तो बड़ा खुश हुआ. उसके दिमाग में जानवरों को मूर्ख बनाकर जंगल का राजा बनने का विचार कौंधा.

उसने भागते हुए जानवरों को रोका और उन्हें अपने पास बुलाकर बोला, “मित्रों, मुझसे मत डरों. मैं ब्रह्मा जी का दूत हूँ. उन्होंने मुझे तुम लोगों की रक्षा के लिए भेजा है. इस जंगल का कोई राजा नहीं है. अब से मैं तुम्हारा राजा हूँ. तुम लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अब मेरी है. तुम मेरे राज में आनंद से रहो.”

सभी जानवर उसकी बातों में आ गए और उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया. उसने शेर को अपना मंत्री, चीते को अपना सेनापति और भेड़िये को अपना संतरी नियुक्त कर लिया. सियारों को उसने जंगल से निकाल दिया क्योंकि उसे उनके द्वारा पहचाने जाने का डर था.

अब चंडरव के मजे हो गए. दिन भर वह छोटे जानवरों से अपनी सेवा करवाता. हाथी की सवारी कर जंगल में घूमता. शेर, चीते और भेड़िये उसके लिए शिकार कर लाते. वह छककर उसका भक्षण करता और बचा हुआ मांस उन्हें दे देता. दिन बड़े ही शांतिपूर्ण रीति से गुजर रहे थे.

लेकिन झूठ आखिर कितने दिन छुपता? एक न एक दिन असलियत बाहर आनी ही थी.

एक सुबह चंडरव सोकर उठा और अपनी मांद से निकला. अचानक उसे कहीं दूर से सियारों की हुआ-हुआ की आवाज़ सुनाई पड़ी. चंडरव आखिर था तो सियार ही. वह भूल गया कि उसने अन्य जानवरों के सामने ब्रम्हा के भेजे दूत होने का नाटक किया है और वह भी मदमस्त होकर हुआ-हुआ चिल्लाने लगा.

जब दूसरे जानवरों ने उसकी आवाज़ सुनी, तो समझ गए कि वास्तव में वह एक सियार है और उन्हें मूर्ख बनाकर उनका राजा बना बैठा है. सब उसे मारने के लिए उसके पीछे दौड़े. चंडरव ने भागने का प्रयास किया, किंतु शेर-चीते के पंजों से बच ना सका और मारा गया.

सीख 

१. जो अपनों को ठुकराकर परायों को अपनाता है, उसका नाश हो जाता है.

२. झूठ की उम्र लंबी नहीं होती. जब वह खुलता है, तो उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है.

 

गौरैया और हाथी की कहानी

एक वन में बरगद के पेड़ की ऊँची डाल पर एक घोंसला था, जिसमें गौरैया का जोड़ा रहता था. दोनों दिन भर भोजन की तलाश में बाहर रहते और शाम ढले घोंसले में आकर आराम करते थे. दोनों ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे.

मौसम आने पर गौरैया ने अंडे दिये. अब उसका पति भोजन की तलाश में जाता और वह घोंसले में रहकर अंडों को सेती और उनकी देखभाल करती थी. वे दोनों बेसब्री से अंडों में से अपने बच्चों के बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

एक दिन रोज़ की तरह गौरैया का पति भोजन की तलाश में गया हुआ था और गौरैया घोंसले में अंडों को से रही थी. तभी एक मदमस्त हाथी उस वन में आ गया और उत्पात मचाने लगा. वह अपने विशालकाय शरीर से टकराकर और सूंड से हिला-हिलाकर पेड़-पौधों को उखाड़ने लगा.

कुछ ही देर में सारा वन तहस-नहस हो गया. आगे बढ़ते-बढ़ते वह उस बरगद के पेड़ के पास पहुँचा, जहाँ गौरैया का घोंसला था. वह जोर-जोर से पेड़ को हिलाने लगा. लेकिन बरगद का पेड़ मजबूत था. हाथी उसे गिरा नहीं पाया. लेकिन इन सबमें गौरैया का घोंसला टूटकर नीचे गिर पड़ा और उसके सारे अंडे फूट गए.

अपने बच्चों की मृत्यु पर गौरैया विलाप करने लगी. जब उसका पति वापस लौटा, तो गौरैया ने रोते-रोते उसे हाथी की करतूत के बारे में बताया. वह भी बहुत दु:खी हुआ.

दोनों प्रतिशोध की आग में जल रहे थे और हाथी को सबक सिखाना चाहते थे. लेकिन हाथी जैसे विशालकाय जीव के सामने उन जैसे निरीह प्राणियों का क्या बस चलता? उन्हें अपने मित्र कठफोड़वा की याद आई और वे उसकी सहायता लेने का पहुँच गए. कठफोड़वा के दो मित्र थे – मधुमक्खी और मेंढक. वे दोनों भी गौरैया के जोड़े की सहायता को तैयार हो गए.

सबने मिलकर योजना बनाई और हाथी को सबक सिखाने निकल पड़े. पूरे वन को तहस-नहस करने के बाद हाथी एक स्थान पर आराम कर रहा था. उसे देख योजना अनुसार मधुमक्खी ने उसके कानों में अपनी स्वलहरी छेड़ दी.

हाथी स्वरलहरी में डूबने लगा ही था कि कठफोड़वा ने उसकी दोनों आखें फोड़ दी. हाथी दर्द से चीख उठा. इधर हाथी के अंधे होते ही कुछ दूरी पर मेंढक टर्र-टर्र करने लगा. मेंढक के टर्राने की आवाज़ सुनकर हाथी ने सोचा कि अवश्य ही कुछ दूरी पर तालाब है. वह मेंढक की आवाज़ की दिशा में बढ़ने लगा.

योजना अनुसार मेंढक एक दलदल के किनारे बैठा टर्रा रहा था. हाथी तालाब समझकर दलदल में जा घुसा और फंस गया. दलदल से निकलने का भरसक प्रयास करने के बाद भी वह सफ़ल न हो सका और उसमें धंसता चला गया. कुछ ही देर में वह दलदल में समा गया और मर गया.

इस तरह जैसे गौरैया ने अपने मित्रों की सहायता से हाथी से अपने बच्चों की मौत का प्रतिशोध ले लिया.   

सीख 

एकजुटता में बड़ी शक्ति होती है. एकजुट होकर कार्य करने पर कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति भी बड़े से बड़ा कार्य संपन्न कर सकता है.    

 लड़ती बकरियाँ और सियार 

एक दिन एक सियार किसी गाँव से गुजर रहा था. गाँव में उस दिन हाट-बाज़ार लगा हुआ था. सियार जब हाट से गुजरा, तो वहाँ उसे लोगों की भीड़ दिखाई पड़ी. वे लोग जोर-जोर से चिल्ला रहे थे और तालियाँ बजा रहे थे.

कौतूहलवश सियार उस भीड़ की ओर चल पड़ा और उनके बीच में से झांककर देखने लगा कि आखिर माज़रा क्या है? उसने देखा कि वहाँ दो हट्ठी-कट्ठी बकरियों के बीच लड़ाई हो रही है. लोग उन्हें ही देखकर चिल्ला रहे हैं.

दोनों बकरियों के बीच चल रही लड़ाई जबरदस्त थी. अपनी सींगों के वार से दोनों ने एक-दूसरे को लहू-लुहान कर दिया था. किंतु इसके बाद भी कोई रुकने का नाम नहीं ले रहा था. उनके शरीर से बहता हुआ रक्त सड़क पर फ़ैलने लगा था.

ताज़े रक्त की महक जब सियार के नथुनों तक पहुँची, तो उसकी लार टपकने लगी. वह ख़ुद को रोक नहीं पाया और रक्त को चाटने लगा. रक्त को चाटते-चाटते वह बकरियों के नज़दीक पहुँच गया. उसके मुँह में बकरियों के रक्त का स्वाद लग चुका था. अब उसका लालच और बढ़ गया. उसने सोचा कि क्यों न इस बकरियों को मारकर मैं अपनी पेट की ज्वाला शांत कर लूं.

बस, फिर क्या था? उसने आव देखा न ताव और टूट पड़ा बकरियों के ऊपर. बकरियाँ हट्ठी-कट्ठी और बलशाली थीं. ऊपर से बहुत देर से लड़ते रहने के कारण तैश में भी थीं. सियार के अड़ंगे ने उनका क्रोध भड़का दिया और उन्होंने सियार को ऐसी पटकनी दी कि वह चारों खाने चित हो गया. उसके बाद बकरियों ने उसकी तब तक धुनाई की, जब तक वह मर नहीं गया.

सीख 

कोई भी कदम उठाने के पहले भली-भांति सोच लेना चाहिए. लोभ के वशीभूत होकर उठाया गया कदम पतन की ओर ले जाता है.

बोलने वाली गुफ़ा की कहानी

एक जंगल में खरनखर नामक शेर रहता था. एक दिन वह शिकार की तलाश में बहुत दूर निकल गया. शाम हो चुकी थी. कोई शिकार हाथ नहीं लगा था. ऊपर से वह थक कर चूर हो चुका था. तभी उसे एक गुफ़ा दिखाई पड़ी. वह गुफ़ा के अंदर चला गया.

गुफ़ा खाली थी. शेर ने सोचा – अवश्य यहाँ रहने वाला जानवर बाहर गया है. रात होते-होते वह गुफ़ा में वापस ज़रूर आएगा. ऐसा करता हूँ, तब तक यहीं छुपकर बैठता हूँ. जब वह जानवर आयेगा, तो उसे मारकर खा जाऊँगा और अपनी भूख मिटाऊंगा. वह गुफ़ा में एक कोने में छुपकर बैठ गया.

वह गुफ़ा दक्षिपुच्छ नामक गीदड़ की थी. जब वह लौटकर आया और गुफ़ा के पास पहुँचा, तो देखा कि शेर के पंजों के निशान उसकी गुफ़ा के अंदर जा रहे हैं. लेकिन बाहर आते हुए पंजों के निशान उसे दिखाई नहीं पड़े. वह समझ गया कि उसकी गुफ़ा में कोई शेर गया है. उसे यह भी संदेह था कि वह अब भी अंदर ही बैठा हुआ है.

यह पता लगाने की शेर गुफ़ा में बैठा है या नहीं, उसे एक युक्ति निकाली. गुफ़ा के द्वार पर खड़ा होकर वह तेज आवाज़ में बोला, “मित्र! मैं वापस आ गया हूँ. तुमने कहा था कि मेरे वापस आने पर तुम मेरा स्वागत करोगे. लेकिन तुम तो चुप हो. क्या बात है? तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो?”

जब गीदड़ की आवाज़ शेर के कानों में पहुँची, तो उसने सोचा कि ये गुफ़ा अवश्य गीदड़ के आने पर उसका स्वागत करते हुए कुछ कहती है. शायद मेरे यहाँ होने के कारण आज यह चुप है. अगर गुफ़ा कुछ न बोली, तो कहीं गीदड़ को संदेह न हो जाए और वह वापस न चला जाए. इसलिए वह गरज कर बोला, “आओ मित्र! तुम्हारा स्वागत है. जल्दी अंदर आओ.”

शेर की गरज सुनकर गीदड़ डर गया. वह उल्टे पैर वहाँ से भाग गया. इधर शेर बहुत देर तक गीदड़ ने अंदर आने की प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन सब व्यर्थ रहा. अंत में उसे समझ आ गया कि गीदड़ उसे मूर्ख बनाकर भाग गया है. शेर को अपनी मूर्खता पर बहुत क्रोध आया, किंतु अब वह क्या करता? शिकार उसके हाथ से निकल चुका था.

सीख 

भविष्य के संकट को भांपकर जो बचने की युक्ति निकाल ले, वह बुद्धिमान होता है.  

शेर और चतुर ख़रगोश की कहानी

एक जंगल में खरनखर नामक शेर रहता था. एक दिन वह शिकार की तलाश में बहुत दूर निकल गया. शाम हो चुकी थी. कोई शिकार हाथ नहीं लगा था. ऊपर से वह थक कर चूर हो चुका था. तभी उसे एक गुफ़ा दिखाई पड़ी. वह गुफ़ा के अंदर चला गया.

गुफ़ा खाली थी. शेर ने सोचा – अवश्य यहाँ रहने वाला जानवर बाहर गया है. रात होते-होते वह गुफ़ा में वापस ज़रूर आएगा. ऐसा करता हूँ, तब तक यहीं छुपकर बैठता हूँ. जब वह जानवर आयेगा, तो उसे मारकर खा जाऊँगा और अपनी भूख मिटाऊंगा. वह गुफ़ा में एक कोने में छुपकर बैठ गया.

वह गुफ़ा दक्षिपुच्छ नामक गीदड़ की थी. जब वह लौटकर आया और गुफ़ा के पास पहुँचा, तो देखा कि शेर के पंजों के निशान उसकी गुफ़ा के अंदर जा रहे हैं. लेकिन बाहर आते हुए पंजों के निशान उसे दिखाई नहीं पड़े. वह समझ गया कि उसकी गुफ़ा में कोई शेर गया है. उसे यह भी संदेह था कि वह अब भी अंदर ही बैठा हुआ है.

यह पता लगाने की शेर गुफ़ा में बैठा है या नहीं, उसे एक युक्ति निकाली. गुफ़ा के द्वार पर खड़ा होकर वह तेज आवाज़ में बोला, “मित्र! मैं वापस आ गया हूँ. तुमने कहा था कि मेरे वापस आने पर तुम मेरा स्वागत करोगे. लेकिन तुम तो चुप हो. क्या बात है? तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो?”

जब गीदड़ की आवाज़ शेर के कानों में पहुँची, तो उसने सोचा कि ये गुफ़ा अवश्य गीदड़ के आने पर उसका स्वागत करते हुए कुछ कहती है. शायद मेरे यहाँ होने के कारण आज यह चुप है. अगर गुफ़ा कुछ न बोली, तो कहीं गीदड़ को संदेह न हो जाए और वह वापस न चला जाए. इसलिए वह गरज कर बोला, “आओ मित्र! तुम्हारा स्वागत है. जल्दी अंदर आओ.”

शेर की गरज सुनकर गीदड़ डर गया. वह उल्टे पैर वहाँ से भाग गया. इधर शेर बहुत देर तक गीदड़ ने अंदर आने की प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन सब व्यर्थ रहा. अंत में उसे समझ आ गया कि गीदड़ उसे मूर्ख बनाकर भाग गया है. शेर को अपनी मूर्खता पर बहुत क्रोध आया, किंतु अब वह क्या करता? शिकार उसके हाथ से निकल चुका था.

सीख 

भविष्य के संकट को भांपकर जो बचने की युक्ति निकाल ले, वह बुद्धिमान होता है.

चार ब्राहमण और शेर की कहानी

एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था. उसके चार पुत्र थे. तीनों बड़े ब्राह्मण पुत्रों द्वारा शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया गया था, परन्तु बुद्धि की उनमें कमी थी. चौथे ब्राह्मण पुत्र को शास्त्र-ज्ञान नहीं था, परन्तु वह बुद्धिमान था.

एक दिन चारों भाई भविष्य की चर्चा करने लगे. बड़ा भाई बोला, “हमने इतनी विद्या अर्जित की है. किंतु, जब तक इसका उपयोग न किया जाये, यह व्यर्थ है. सुना है, हमारे राज्य के राजा विद्वानों का बड़ा सम्मान करते हैं. क्यों न हम राज-दरबार जाकर उन्हें अपने ज्ञान से प्रभावित करें? पुरूस्कार स्वरुप वह अवश्य हमें अपार धन-संपदा प्रदान करेंगे.”

सभी भाइयों को यह बात उचित प्रतीत हुई और अगले ही दिन वे राजा से मिलने चल पड़े. उन्होंने आधा रास्ता ही पार किया था कि बड़ा भाई कुछ सोचते हुए बोला, “हममें से तीन के पास विद्या है. हम राजा के पास जाकर उनसे धन अर्जित करने के पात्र हैं. किंतु, सबसे छोटा बुद्धिमान तो है, पर उसके पास विद्या नहीं है. मात्र बुद्धि के बल पर राजा से धन का अर्जन संभव नहीं है. हम इसे अपने हिस्से में से कुछ नहीं देंगे. इसका घर लौट जाना ही उचित होगा.”

दूसरे भाई ने भी बड़े भाई का समर्थन किया, किंतु तीसरा भाई बोला, “यह हमारा भाई है. हम सब साथ पले-बढ़े हैं. इसलिए इसके साथ ऐसा व्यवहार अनुचित होगा. इसे साथ चलने देना चाहिए. मैं अपना कुछ धन इसे दे दूंगा.”

अंत में, सभी सहमत हो और आगे की यात्रा प्रारंभ की.

मार्ग में एक घना जंगल पड़ा. जंगल से गुजरते हुए उन्हें शेर की हड्डियों का ढेर दिखाई पड़ा. उसे देखकर बड़ा भाई बोला, “भाइयों, आज अपनी विद्या का परीक्षण करने का समय आ गया है. देखो, इस मृत शेर को. हमें अपनी-अपनी विद्या का प्रयोग कर इसे जीवित करना चाहिए.”

सबसे बड़े भाई ने शेर की हड्डियों को इकट्ठा कर उसका ढांचा बना दिया. दूसरे भाई ने अपनी सिद्धि से हड्डियों के ढांचे पर मांस चढ़ाकर रक्त का संचार कर दिया. तीसरा भाई अपनी विद्या से शेर में प्राणों का संचार करने आगे बढ़ा, तो चौथे भाई ने उसे रोक दिया और बोला, “भैया, कृपा कर ऐसा अनर्थ मत कीजिये. यदि यह शेर जीवित हुआ, तो हम सबके प्राण हर लेगा.”

यह सुनकर तीसरा भाई क्रोधित हो गया, वह बोला, “मूर्ख, तुम्हारे साथ चलने का समर्थन कर कदाचित् मैंने त्रुटि कर दी है. तुम चाहते हो कि मैं अपनी विद्या नष्ट कर दूं. किंतु, ऐसा कतई नहीं होगा. मैंने इस शेर को अवश्य जीवित करूंगा.”

चौथा भाई बोला, “क्षमा करें भैया. मेरा अर्थ यह कतई नहीं था. आपको जो उचित लगे करें. बस मुझे किसी वृक्ष पर चढ़ जाने दें.”

यह कहकर वह एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ गया. तीसरे भाई ने अपने विद्या से शेर को जीवित कर दिया. परन्तु, जैसे ही शेर जीवित हुआ, उसने तीनों भाइयों पर आक्रमण कर उन्हें मार डाला.

चौथा भाई, जिसने बुद्धि का प्रयोग किया था, वह वृक्ष पर बैठा यह सब देख रहा था. वह वृक्ष से तब तक नहीं उतरा, जब तब शेर चला नहीं गया. सिंह के जाने के बाद वह वृक्ष से उतरा और गाँव लौट गया.

शिक्षा 

बुद्धि सदैव विद्या से श्रेष्ठ होती है. शास्त्रों में निपुण होने पर भी लोक-व्यवहार न जानने वाला व्यक्ति हमेशा उपहास का पात्र बनता है या समस्या को आमंत्रित करता है.

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