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फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम बच्चों के लिए 21 लोकप्रिय बेडटाइम स्टोरी (21 Famous Bedtime Story For Kids In Hindi Written With Moral) शेयर कर रहे हैं. ये लोकप्रिय बेडटाइम स्टोरीज रोचक और शिक्षाप्रद है, जो उन्हें नैतिक शिक्षा का पाठ भी पढ़ाती हैं.
Bedtime Story For Kids In Hindi With Moral
Table of Contents
सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी
एक गाँव में एक किसान अपनी पत्नि के साथ रहता था. उनका एक छोटा सा खेत था, जहाँ वे दिन भर परिश्रम किया करते थे. किंतु कठोर परिश्रम के उपरांत भी कृषि से प्राप्त आमदनी उनके जीवन-यापन हेतु पर्याप्त नहीं थी और वे निर्धनता का जीवन व्यतीत करने हेतु विवश थे.
एक दिन किसान बाज़ार से कुछ मुर्गियाँ ख़रीद लाया. वह मुर्गियों के अंडे बेच कर पैसे कमाना चाहता था. अपनी पत्नि के साथ मिलकर उसने घर के आंगन में एक छोटा सा दड़बा बनाया और मुर्गियों को उसमें रख दिया.
सुबह होने पर जब उन्होंने दड़बे में झांककर देखा, तो आश्चर्यचकित रह गए. वहाँ एक सोने का अंडा पड़ा हुआ था. किसान सोने के अंडे को बेचकर अच्छे पैसे मिल गए.
अगले दिन फिर उन्हें सोने का अंडा मिला. किसान और उसकी पत्नि समझ गए कि उनकी मुर्गियों में से एक मुर्गी सोने का अंडा देती है. एक रात पहरेदारी कर वे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पहचान गए. उसके बाद से वे उसका ख़ास ख्याल रखने लगे. वह मुर्गी उन्हें रोज़ सोने का अंडा देती, जिसे बेचकर किसान कुछ ही महिनों में धनवान हो गया.
किसान अपने जीवन से संतुष्ट था. किंतु उसकी पत्नि लालची थी. एक दिन वह किसान से बोली, “आखिर कब तक हम रोज़ एक ही सोने का अंडा लेते रहेंगे. क्यों न हम मुर्गी के पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लें? फिर हम उन्हें बेचकर एक बार में इतने धनवान हो जायेंगे कि हमें काम करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी.”
पत्नि की बात सुनकर किसान के मन में भी लालच आ गया. वह बाज़ार गया और वहाँ से एक बड़ा चाकू ख़रीद लाया.
रात में अपनी पत्नि के साथ वह मुर्गियों के दड़बे में गया और सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पकड़कर उसका पेट चीर दिया. किंतु मुर्गी के पेट में सोने के अंडे नहीं थे. किसान और उसकी पत्नि अपनी गलती पर पछताने लगे. अधिक सोने के अंडों के लालच में पड़कर वे रोज़ मिलने वाले एक सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठे थे.
सीख (Moral of the story)
“लालच बुरी बला है.”
प्यासा कौआ की कहानी
गर्मियों के दिन थे. एक कौआ प्यास से बेहाल था और पानी की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहा था. किंतु कई जगहों पर भटकने के बाद भी उसे पानी नहीं मिला.
वह बहुत देर से उड़ रहा था. लगातार उड़ते रहने के कारण वह बहुत थक कर चूर हो चुका था. उधर तेज गर्मी में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी. धीरे-धीरे वह अपना धैर्य खोने लगा. उसे लगने लगा कि अब उसका अंत समय निकट है. आज वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा.
थकान के कारण अब उससे उड़ा नहीं जा रहा था. कुछ देर आराम करने वह एक मकान की छत पर बैठ गया. वहाँ उसने देखा कि छत के एक कोने में घड़ा रखा हुआ है. घड़े में पानी होने की आस में वह उड़कर घड़े के पास गया और उसके अंदर झांक कर देखा.
कौवे ने देखा कि घड़े में पानी तो है, किंतु इतना नीचे है कि उसकी चोंच वहाँ तक नहीं पहुँच सकती थी. वह उदास हो गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे घड़े में रखे पानी तक पहुँचे. लेकिन फिर उसने सोचा कि उदास होने से काम नहीं चलेगा, कोई उपाय सोचना होगा.
घड़े के ऊपर बैठे-बैठे ही वह उपाय सोचने लगा. सोचते-सोचते उसकी दृष्टि पास ही पड़े कंकड़ो के ढेर पर पड़ी. फिर क्या था? कौवे के दिमाग की घंटी बज गई. उसे एक उपाय सूझ गया.
बिना देर किये वह उड़कर कंकडों के ढेर पर पहुँचा और एक उनमें से एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े तक लाकर घड़े में डाल दिया. वह एक-एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े में लाकर डालने लगा. कंकड़ डालने से घड़े का पानी ऊपर आने लाग. कुछ देर में ही घड़े का पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ उसमें चोंच डालकर पानी पी सकता था. कौवे की मेहनत रंग लाई थी और वह पानी पीकर तृप्त हो गया.
सीख (Moral of the story )
“चाहे समय कितना ही कठिन क्यों न हो, धैर्य से काम लेना चाहिए और उस कठिनाई से निकलने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए. धैर्य और बुद्धि से हर समस्या का निवारण संभव है. “
टोपीवाला और बंदर की कहानी
एक गाँव में एक आदमी रहता था. टोपी बेचना उसका काम था. अपने गाँव के साथ ही वह आस-पास के दूसरे गाँवों में भी घूम-घूमकर टोपियाँ बेचा करता था. वह रोज़ सुबह एक बड़ी सी टोकरी में ढेर सारी रंग-बिरंगी टोपियाँ भरता और उसे सिर पर लादकर घर से निकल जाता. सांझ ढले सारी टोपियाँ बेचकर वह घर वापस आता था.
एक दिन अपने गाँव में टोपियाँ बेचने के बाद वह पास के एक दूसरे गाँव जा रहा था. दोपहर का समय था. वह थका हुआ था और उसका गला भी सूख रहा था. रास्ते में एक स्थान पर कुआँ देख वह रुक गया. कुएं के पास ही बरगद का एक पेड़ था, जिसके नीचे उसने टोपियों की टोकरी रख दी और कुएं से पानी निकालकर पीने लगा.
प्यास बुझ जाने के बाद उसने सोचा कि थोड़ी देर सुस्ताने के बाद ही आगे बढ़ना ठीक होगा. उसने टोकरी में से एक टोपी निकाली और पहन ली. फिर बरगद के पेड़ के नीचे गमछा बिछाकर बैठ गया. वह थका हुआ तो था ही, जल्दी ही उसे नींद आ गई.
वह खर्राटे मारते हुए सो रहा था कि शोर-शराबे से उसकी नींद उचट गई. आँख खुली, तो उसने देखा कि बरगद के पेड़ के ऊपर ढेर सारे बंदर उछल-कूद कर रहे हैं. वह यह देखकर चकित रहा गया कि उन सब बंदरों के सिर पर टोपियाँ थीं. उसने अपनी टोपियों की टोकरी की ओर दृष्टि डाली, तो सारी टोपियाँ नदारत पाई.
चिंता में वह अपना माथा पीटने लगा. सोचने लगा कि अगर बंदर सारी टोपियाँ ले गए, तो उसे बड़ा नुकसान हो जायेगा. उसे माथा पीटता देख बंदर भी अपना माथा पीटने लगे. बंदरों को नक़ल उतारने की आदत होती है. वे टोपीवाले की नक़ल उतार रहे थे.
बंदरों को अपनी नक़ल उतारता देख टोपीवाले को टोपियाँ वापस प्राप्त करने का एक उपाय सूझ गया. उपाय पर अमल करते हुए उसने अपने सिर से टोपी उतारकर फेंक दी. फिर क्या था? बंदरों ने भी अपनी-अपनी टोपियाँ उतारकर फ़ेंक दी. टोपीवाले ने झटपट सारी टोपियाँ टोकरी में इकठ्ठी की और आगे की राह पकड़ ली.
सीख (Moral of the story)
“सूझबूझ से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है.”
लोमड़ी और अंगूर की कहानी
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. एक दिन वह भूखी-प्यासी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी. भटकते-भटकते सुबह से शाम हो गई, लेकिन उसे कोई शिकार न मिला.
शाम होते-होते वह जंगल के पास के एक गाँव में पहुँच गई. वहाँ उसे एक खेत दिखाई पड़ा. भूखी लोमड़ी खेत में घुस गई. वहाँ एक ऊँचे पेड़ पर अंगूर की बेल लिपटी हुई थी, जिसमें रसीले अंगूर के गुच्छे लगे हुए थे.
अंगूर देखते ही लोमड़ी के मुँह से लार टपकने लगी. वह उन रस भरे अंगूरों को खाकर अपनी भूख मिटाना चाहती थी. उसने अंगूर के एक गुच्छे को देखा और जोर से उछली. ऊँची डाली पर लिपटी अंगूर की बेल पर लटका अंगूर का गुच्छा उसकी पहुँच के बाहर था. वह उस तक पहुँच नहीं पाई.
उसने सोचा क्यों न एक बार और कोशिश की जाए. इस बार वह थोड़ा और ज़ोर लगाकर उछली. लेकिन इस बार भी अंगूर तक पहुँच नहीं पाई. कुछ देर तक वह उछल-उछल कर अंगूर तक पहुँचने की कोशिश करती रही. लेकिन दिन भर की जंगल में भटकी थकी हुई भूखी-प्यासी लोमड़ी आखिर कितनी कोशिश करती?
वह थककर पेड़ के नीचे बैठ गई और ललचाई नज़रों से अंगूर को देखने लगी. वह समझ कई कि अंगूर तक पहुँचना उसने बस के बाहर है. इसलिए कुछ देर अंगूरों को ताकने के बाद वह उठी और वहाँ से जाने लगी.
वह अंगूर खाने का विचार त्याग चुकी थी. पास ही एक पेड़ पर बैठा बंदर उसे बहुत देर से देख रहा था. उसे जाते हुए देख वह खुद को रोक नहीं पाया और पूछ बैठा, “क्या हुआ लोमड़ी बहन? वापस क्यों जा रही हो? अंगूर नहीं खाओगी?”
लोमड़ी रुकी और बंदर को देखकर फीकी मुस्कान से साथ बोली, “नहीं बंदर भाई. मैं ऐसे अंगूर नहीं खाती. ये तो खट्टे हैं.”
सीख (Moral Of The Story)
जब हम किसी चीज़ को प्राप्त नहीं कर पाते, तो अपनी कमजोरियाँ को छुपाने उस चीज़ में ही कमियाँ निकालने लग जाते हैं. जबकि हमें अपनी कमजोरियों को पहचान कर उसे दूर करना चाहिए और सूझ-बूझ से काम लेकर तब तक कोशिश करनी चाहिए, जब तक हम सफल न हो जायें. दूसरों पर दोष मढ़ने से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता. हासिल होता है : कड़े परिश्रम और प्रयासों से.
कछुआ और खरगोश की कहानी
एक जंगल में एक मनमौजी खरगोश रहता था. वह दिन भर जंगल में कूदता-फांदता, खेलता और दौड़ता रहता था. वह इतना तेज दौड़ता था कि जंगल का कोई भी जानवर उसकी बराबरी नहीं कर पाता था. इस बात पर उसे बड़ा घमंड था.
वह अक्सर जंगल के जानवरों को अपने साथ दौड़ लगाने की चुनौती देता और उन्हें हराकर बहुत खुश होता था. धीरे-धीरे उसका घमंड उसके सिर चढ़कर बोलने लगा. वह जिस भी जानवर को दौड़ में हराता, उस पर ख़ूब हँसता और उसका खूब मज़ाक उड़ाता था. जंगल के जानवरों को खरगोश का ये व्यवहार बहुत बुरा लगता था, वे उससे कुछ कहते, तो वह बोलता, “पहले मुझे दौड़ में हराकर दिखाओ, फिर कुछ कहना.”
एक दिन खरगोश ने एक कछुए को देखा, जो अपनी धीमी चाल में कहीं जा रहा था. उसे देख वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा.
उसे हँसता देख कछुए ने पूछा, “खरगोश भाई, क्यों हँस रहे हो?”
खरगोश बोला, “तुम्हें देखकर हँस रहा हूँ. तुम कितने सुस्त हो और तुम्हारी चाल तुमसे भी सुस्त. मुझे देखो, मुझ जैसा तेज दौड़ने वाला कोई जानवर इस जंगल में नहीं.”
“तुम्हें खुद पर इतना घमंड नहीं करना चाहिए. हर किसी का घमंड कभी ना कभी टूट जाता है. तुम्हारा भी टूट जाएगा.” कछुआ उसे समझाते हुए बोला.
“इस जंगल में मैं सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर हूँ, तो मुझे इस बात का घमंड क्यों ना हो? और कौन मेरा घमंड तोड़ेगा, तुम?” खरगोश बोला.
“हाँ मैं, मैं तुम्हारा घमंड तोडूंगा.” कछुए के कह दिया.
“ऐसी बात है, तो इस कल मेरे साथ दौड़ लगाओ. देखें कौन जीतता है?” खरगोश कछुए को चुनौती देता हुआ बोला.
कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली. अगले दिन सुबह दोनों के बीच दौड़ की प्रतियोगिता रखी गई. जंगल के सारे जानवर दौड़ देखने आये. सबको पता था कि खरगोश ही दौड़ जीतेगा, लेकिन फिर भी सबमें उत्सुकता बनी हुई थी.
कछुए और खरगोश को जंगल की नदी तक दौड़ लगाना था. दोनों दौड़ के लिए तैयार हो गए. रेफ़री बंदर ने सीटी बजाई और दोनों दौड़ने लगे. कछुए ने एक कदम बढ़ाया, वहीं खरगोश इतनी तेज दौड़ा कि सबके नज़रों से ओझल हो गया.
खरगोश तेजी से दौड़ता जा रहा था, वहीं कछुआ धीमी चाल से आगे बढ़ता जा रहा था. नदी के काफ़ी पास पहुँच जाने पर खरगोश ने यह जानने के लिए पलटकर देखा कि कछुआ कहाँ तक पहुँचा है. उसे कछुआ दूर-दूर तक नज़र नहीं आया.
हँसते हुए वह सोचने लगा कि इस कछुए को नदी तक पहुँचने में तो शाम हो जायेगी. ऐसा करता हूँ, कुछ देर सुस्ता लेता हूँ.
वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने करने लगा. कब उसकी आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला और वह गहरी नींद में सो गया.
उधर कछुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया. कई जानवरों ने उसे समझाया कि खरगोश तो बहुत आगे पहुँच चुका है, अब दौड़ने का कोई फायदा नहीं. लेकिन कछुआ नहीं माना. वह बोला, “जब चुनौती ली है, तो मैं पूरी कोशिश करूंगा.”
कछुआ आगे बढ़ता-बढ़ता उसी पेड़ के पास से गुज़रा, जहाँ खरगोश खर्राटे मारकर सो रहा था. उसे देख कछुआ मुस्कुराया और आगे बढ़ गया. वह बिना रुके लगातार आगे बढ़ता रहा और नदी तक पहुँच गया. कछुआ दौड़ जीत चुका था और खरगोश अब तक सो रहा था. सब जानवर कछुए की जीत पर खुश थे, वे उसे बधाई देने लगे, उसके लिए ज़ोर-ज़ोर ताली बजाने लगे. ताली की आवाज़ जब खरगोश के कानों में पड़ी, तब उसकी नींद टूटी. वह भागता हुआ नदी के पास पहुँचा. देखा, कछुए वहाँ पहले ही पहुँच चुका है. वह पछताने लगा. उसका घमंड टूट गया था. उसने प्रण किया कि वह कभी घमंड नहीं करेगा, कभी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाएगा और कोई काम शुरू करने के बाद उसे पूरा किये बगैर नहीं रुकेगा.
सीख (Moral of the story)
- कभी घमंड मत करो, घमंड कभी न कभी ज़रूर टूटता है.
- कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. बिना रुके मेहनत से अपना कार्य करते रहो, सफ़लता अवश्य मिलेगी.
मूर्ख भालू की कहानी
एक जंगल में एक लालची भालू रहता था. वह हर समय ज्यादा की तलाश में रहता था. थोड़े से वह कभी संतुष्ट नहीं होता है. एक दोपहर जब वह सोकर उठा, तो उसे ज़ोरों की भूख लग आई. वह भोजन की तलाश में निकल पड़ा.
उस दिन मौसम साफ़ था. सुनहरी धूप खिली हुई थी. भालू ने सोचा, “कितना अच्छा मौसम है. इस मौसम में तो मुझे मछली पकड़नी चाहिए. चलो, आज मछली की ही दावत की जाए.”
ये सोचकर उसने नदी की राह पकड़ ली. नदी किनारे पहुँचकर भालू ने सोचा कि एक बड़ी मछली हाथ लग जाये, तो मज़ा आ जाये. उसने पूरी उम्मीद से नदी में हाथ डाला और एक मछली उसके हाथ आ गई. वह बहुत ख़ुश हुआ. लेकिन, जब उसने हाथ नदी से बाहर निकला, तो देखा कि हाथ लगी मछली छोटी सी है.
वह बहुत निराश हुआ. अरे इससे मेरा क्या होगा? बड़ी मछली हाथ लगे, तो बात बने. उसने वह छोटी मछली वापस नदी में फ़ेंक दी और फिर से मछली पकड़ने तैयार हो गया.
कुछ देर बाद उसने फिर से नदी में हाथ डाला और उसके हाथ फिर से एक मछली लग गई. लेकिन, वह मछली भी छोटी थी. उसने वह मछली भी यह सोचकर नदी में फेंक दी कि इस छोटी सी मछली से मेरा पेट नहीं भर पायेगा.
वह बार-बार नदी में हाथ डालकर मछली पकड़ता और हर बार उसके हाथ छोटी मछली लगती. वह बड़ी की आशा में छोटी मछली वापस नदी में फेंक देता. ऐसा करते-करते शाम हो गई और उसके हाथ एक भी बड़ी मछली नहीं लगी.
भूख के मारे उसका बुरा हाल हो गया. वह सोचने लगा कि बड़ी मछली के लिए मैंने कितनी सारी छोटी मछलियाँ फेंक दी. उतनी छोटी मछलियाँ एक बड़ी मछली के बराबर हो सकती थी और मेरा पेट भर सकता था.
सीख (Moral of the story)
“आपके पास जो है, उसका महत्व समझें. भले ही वह छोटी सही, लेकिन कुछ न होने से बेहतर है.”
दो बिल्लियों और बंदर की कहानी
दो बिल्लियों की आपस में अच्छी दोस्ती थी. वे सारा दिन एक-दूसरे के साथ खेलती, ढेर सारी बातें करती और साथ ही भोजन की तलाश करती थी.
एक दिन दोनों भोजन की तलाश में निकली. बहुत देर इधर-उधर भटकने के बाद उनकी नज़र रास्ते पर पड़ी एक रोटी पर पड़ी. एक बिल्ली ने झट से रोटी उठा ली और मुँह में डालने लगी.
तब दूसरी बिल्ली उसे टोककर बोली, “अरे, तुम अकेले कैसे इस रोटी को खा रही हो? हम दोनों ने साथ में इस रोटी को देखा था. इसलिए हमें इसे बांटकर खाना चाहिए.”
पहली बिल्ली ने रोटी तोड़कर दूसरी बिल्ली को दिया, लेकिन वह टुकड़ा छोटा था. यह देख उसे बुरा लगा और वह बोली, “अरे, ये टुकड़ा तो छोटा है. तुम्हें रोटी के बराबर टुकड़े करने चाहिए थे. तुम मेरे साथ बेइमानी कर रही हो.“
इस बात पर दोनों में बहस होने लगी. बहस इतनी बढ़ी कि दोनों लड़ने लगी. उसी समय वहाँ से एक बंदर गुजरा. उन्हें लड़ते हुए देख उसने कारण पूछा. बिल्लियों ने उसे सब कुछ बता दिया.
सारी बात जानकर बंदर बोला, “अरे इतनी सी बात पर तुम दोनों झगड़ रही हो. मेरे पास एक तराजू है. यदि तुम दोनों चाहो, तो मैं ये रोटी तुम दोनों में बराबर-बराबर सकता हूँ.”
बिल्लियाँ तैयार हो गई. बंदर एक तराजू लेकर आ गया. उसने बिल्लियों से रोटी ली और उसे तोड़कर तराजू ने दोनों पलड़े पर रखकर तौलने लगा. भूखी बिल्लियाँ उसे आस भरी नज़रों से देखने लगी.
तराजू के पलड़े पर रखी रोटी के टुकड़े में से एक टुकड़ा बड़ा और एक टुकड़ा छोटा था, जिससे पलड़ा एक तरफ़ झुक गया. तब बंदर बोला, “अरे ये क्या एक टुकड़ा दूसरे से बड़ा है. चलो मैं इसे बराबर कर देता हूँ.” उसने रोटी के बड़े टुकड़े को थोड़ा सा तोड़ा और अपने मुँह में डाल लिया.
अब दूसरा टुकड़ा पहले से बड़ा हो गया. बंदर ने अब उसे थोड़ा सा तोड़ा और अपने मुँह में डाल लिया. फिर तो यही सिलसिला चल पड़ा. रोटी को जो टुकड़ा बड़ा होता, वो बराबर करने बंदर उसे तोड़कर खा जाता.
ऐसा करते-करते रोटी के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े रह गये. अब बिल्लियाँ घबरा गई. उन्हें लगने लगा कि ऐसे में तो उनके हिस्से कुछ भी नहीं आयेगा. वे बोली, “बंदर भाई, तुम भी क्या परेशान होते हो. लाओ अब हम इसे ख़ुद ही आपस में बांट लेंगी.”
बंदर बोला, “ठीक है. लेकिन अब तक जो मैंने मेहनत की है, उसका मेहताना तो लगेगा ना. इसलिए रोटी के ये टुकड़े मेरे.” और उसने रोटी के शेष टुकड़े अपने मुँह में डाल लिए और चलता बना.
बिल्लियाँ उसे देखती रह गई. उन्हें अपनी गलती का अहसास हो चुका था. वे समझ गई कि उनकी आपसी फूट का लाभ उठाकर बंदर उन्हें मूर्ख बना गया. उसी समय उन्होंने निर्णय लिया कि अब कभी झगड़ा नहीं करेंगी और प्रेम से रहेंगी.
सीख (Moral of the story)
“मिलजुलकर रहे. अन्यथा, आपसी फूट का फ़ायदा कोई तीसरा उठा लेगा.”
बिल्ली के गले में घंटी कहानी
एक शहर में एक बहुत बड़ा मकान था. उस मकान में चूहों ने डेरा जमा रखा था. जब भी मौका मिलता वे अपने-अपने बिलों से निकलते और कभी खाने की चीज़ों पर अपना हाथ साफ़ करते, तो कभी घर की अन्य चीज़ें कुतर देते. उनका जीवन बड़े मज़े से बीत रहा था.
इधर मकान मालिक चूहों से तंग आ चुका था. इसलिए वह एक बड़ी सी बिल्ली ले आया. अब वह बिल्ली उसी घर में रहने लगी. बिल्ली के आने से चूहों का जीना हराम हो गया. जो भी चूहा बिल से निकलता, वह उसे चट कर जाती.
चूहों का बिलों से निकलना मुश्किल हो गया. वे डर के मारे बिल में ही घुसे रहते. बिल्ली उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गई थी. इसलिए एक दिन चूहों की सभा बुलाई गई.
सभा में सभी चूहे उपस्थित हुए. लीडर चूहे ने कहा, “साथियों, आप सब जानते ही हैं कि हम लोग बिल्ली हमारे लिए आफत बन गई है. वह रोज़ हमारे किसी न किसी साथी को मारकर खा जाती है. बिलों से निकलना मुश्किल हो गया है. लेकिन हम कब तक बिल में छुपकर रहेंगे. भोजन की खोज में हमें बिल से बाहर निकलना ही होगा. यह सभा इसलिए बुलाई ई है, ताकि इस समस्या को हल किया जा सके. आप एक-एक कर अपने सुझाव दे सकते हैं.”
एक-एक कर सभी चूहों से इस सुझाव दिए. अंत में एक चूहा उठा और चहकते हुए बोला, “मेरी दिमाग में अभी-अभी एक बहुत ही बढ़िया उपाय आया है. क्यों न हम बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दें? बिल्ली जब भी आस-पास होगी, घंटी की आवाज़ से हमें पता चल जायेगा और हम वहाँ से भाग जायेंगे. कहो कैसा लगा उपाय?”
सारे चूहों को ये उपाय बहुत पसंद आया. वे ख़ुशी में नाचने और झूमने लगे.
तभी एक बूढ़ा और अनुभवी चूहा खड़ा हुआ और बोला, “मूर्खों, नाचना-गाना बंद करो और ज़रा ये तो बताओ कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा?”
ये सुनना था कि चूहों का नाचना-गाना बंद हो गया. बिल्ली के गले में घंटी बांधना अपनी जान से हाथ धोना था. कोई इसके लिए तैयार नहीं हुआ. सब चुप गए. तभी उन्हें बिल्ली के कदमों की आहट सुनाई पड़ी और फिर क्या था? सब सिर पर पैर रखकर अपने-अपने बिलों की ओर भाग खड़े हुए.
सीख (Moral of the story)
“योजना बनाने का कोई लाभ नहीं, यदि उसे लागू न किया जा सके.”
चरवाहा बालक और भेड़िया की कहानी
एक गाँव में एक चरवाहा बालक रहता था. वह रोज़ अपनी भेड़ों को लेकर जंगल के पास घास के मैदानों में जाता. वहाँ वह भेड़ों को चरने के छोड़ देता और ख़ुद एक पेड़ के नीचे बैठकर उन पर निगाह रखता. उसकी यही दिनचर्या थी.
दिन भर पेड़ के नीचे बैठे-बैठे उसका समय बड़ी मुश्किल से कटता था. उसे बोरियत महसूस होती थी. वह सोचता कि काश मेरे जीवन में भी कुछ मज़ा आ जाये.
एक दिन भेड़ों को चराते हुए उसे मज़ाक सूझा और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”
वहाँ से कुछ दूरी पर खेतों में कुछ किसान काम कर रहे थे. चरवाहे बालक की आवाज़ सुनकर वे अपना काम छोड़ उसकी मदद के लिए दौड़े चले आये. लेकिन जैसे ही वे उसके पास पहुँचे, वह जोर-जोर से हँसने लगा.
किसान बहुत गुस्सा हुए. उसे डांटा और चेतावनी दी कि आज के बाद ऐसा मज़ाक मत करना. फिर वे अपने-अपने खेतों में लौट गए.
चरवाहे बालक को गाँव के किसानों को भागते हुए अपने पास आता देखने में बड़ा मज़ा आया. उसके उनकी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन उसे फिर से मसखरी सूझी और वह फिर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”
खेत में काम कर रहे किसान फिर से दौड़े चले आये, जिन्हें देखकर चरवाहा बालक फिर से जोर-जोर से हंसने लगा. किसानों ने उसे फिर से डांटा और चेतावनी दी. लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ. उसके बाद जब-तब वह किसानों को इसी तरह ‘भेड़िया आया भेड़िया आया’ कहकर बुलाता रहा. बालक को कोई खतरा तो नहीं, ये सोचकर किसान भी आते रहे. लेकिन वे उसकी इस शरारत से बहुत परेशान होने लगे थे.
एक दिन चरवाहा बालक पेड़ की छाया में बैठकर बांसुरी बजा रहा था कि सच में एक भेड़िया वहाँ आ गया. वह मदद के लिए चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”
लेकिन इस बार किसानों ने सोचा कि आज भी ये बालक उन्हें परेशान कर रहा है. इसलिए वे उसकी मदद करने नहीं गए. भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया.
चरवाहा बालक दौड़ते हुए खेत में काम कर रहे किसानों के पास पहुँचा और रोने लगा, “आज सचमुच भेड़िया आया था. वह मेरी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया.”
किसान बोले, “तुम रोज़ हमारे साथ शरारत करते हो. हमें लगा कि आज भी तुम्हारा इरादा वही है. तुम हमारा भरोसा खो चुके थे. इसलिए हममें से कोई तुम्हारी मदद के लिए नहीं आया.”
चरवाहे बालक को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने प्रण लिया कि वह फिर कभी झूठ नहीं बोलेगा और दूसरों को परेशान नहीं करेगा.
सीख (Moral of the story)
“बार-बार झूठ बोलने वालों पर कोई विश्वास नहीं करता. किसी का विश्वास जीतना है, तो हमेशा सच बोलो.”