Bible Story In Hindi

बच्चों के लिए बाइबल की कहानियाँ | 10 Best Bible Stories For Kids In Hindi

बच्चों के लिए बाइबल की कहानियाँ | Best Bible Stories For Kids In Hindi | Bachhon Ke Liye Bible Ki Kahaniyan

Best Bible Stories For Kids In Hindi

Best Bible Stories For Kids In Hindi

आदमु और हव्वा की कहानी 

ईश्वर ने संपूर्ण सृष्टि की रचना के बाद धरती की मिट्टी से मनुष्य गढ़ा और उसके नथुनों में प्राणवायु फूंक दी. इस प्रकार मनुष्य एक सजीव तत्व बन गया. वह ‘आदम’ कहलाया.

भूमि से निकले जल-प्रवाहों धरती को सिंचित कर रहे थे और उसमें सभी प्रकार के जंगली और फलदार पेड़-पौधे पनपने लगे थे. इसके बाद ईश्वर ने पूर्व की ओर अदन में एक वाटिका बनाई.

अदन की वाटिका में हर तरह के पेड़-पौधे थे. उसके बीचोंबीच ‘जीवन-वृक्ष’ था, जो भले-बुरे के ज्ञान का वृक्ष भी था. उस वाटिका को सींचने के लिए अदन से एक नदी निकलती थी, जो चार धाराओं में विभाजित हो जाती थी.

अदन को सींचने वाली पहली धारा ‘पीशोन’ है. यह धारा संपूर्ण हवीला देश के चारों ओर बहती है. वहाँ सोना पाया जाता है. वहाँ गुग्गुल और गोमेद भी मिलते हैं.

दूसरी धारा का नाम ‘गीहोन’ है, जो कूश देश के चारों ओर बहती है. तीसरी धारा का नाम ‘दजला’ है, जो अस्सूर के पूर्व में बहती है और  चौथी धारा का नाम ‘फ़रात’ है.

ईश्वर ने अदन वाटिका में अपने द्वारा गढ़े मनुष्य ‘आदम’ को रखा,  जो वाटिका की देखरेख करता था और वहाँ खेती-बाड़ी करता था. ईश्वर के आदेश के अनुसार उसे वाटिका के हर वृक्ष का फल खाने की अनुमति थी. किंतु जीवन-वृक्ष के फल खाने की अनुमति उसे नहीं थी.

ईश्वर ने उसे स्पष्ट निर्देश दिया था कि जीवन-वृक्ष या भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष के फल को कभी मत खाना. यदि तुमने उसका फल खाया, तो मर जाओगे.

ईश्वर नहीं चाहते थे कि मनुष्य अकेला रहे. उनका कहना था, “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं उसके लिए एक उपयुक्त सहयोगी बनाऊंगा.”

ईश्वर ने मिट्टी से धरती के सभी पशुओं और आकाश के सभी पक्षियों को गढ़ा और उन्हें ‘आदम’ के पास ले गए. आदम ने उन्हें नाम दिए.  किंतु उसे अपने लिए उपयुक्त सहयोगी नहीं मिला था.

तब ईश्वर उसे गहरी नींद में सुला दिया. उसके बाद उसकी पसली निकालकर उसके स्थान पर मांस भर दिया. ईश्वर ने आदम से निकाली पसली से एक स्त्री को गढ़ा और उसके पास ले गया. वह ‘हव्वा’ कहलाई.

आदम और हव्वा (Adam And Eve) दोनों नग्न थे. किंतु उन्हें एक-दूसरे के सामने लज्जा का अनुभव नहीं होता था. वे अदन वाटिका में विचरण करते थे. हर वृक्ष का फल खाते थे. किंतु ईश्वर के आदेश के कारण कभी जीवन-वृक्ष के निकट नहीं जाते थे.

एक दिन सांप हव्वा के पास गया. वह ईश्वर के द्वारा बनाए सभी जीव-जंतुओं में सबसे धूर्त था. उसने हव्वा से पूछा, “क्या ईश्वर ने वाटिका के वृक्षों के फल खाने से तुम्हें मना किया है.?”

हव्वा ने उत्तर दिया, “नहीं, हम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हैं. परंतु वाटिका के बीचोंबीच स्थित जीवन-वृक्ष के फल खाने से ईश्वर ने हमें मना किया है. उन्होंने हमें उसे स्पर्श तक करने से मना किया है. हम उसे खायेंगे, तो अवश्य मर जायेंगे.”

यह बात सुन सांप ने हव्वा को फुसलाते हुए कहा, “ऐसा नहीं है. तुम नहीं मरोगी. ईश्वर ने तुम्हें वह फल खाने से इसलिए मना किया है क्योंकि उसका फल खाने से तुम्हारी आँखें खुल जायेंगी, तुम्हें भले-बुरे का ज्ञान हो जायेगा और इस प्रकार तुम ईश्वर के सदृश्य हो जाओगी. उस वृक्ष का फल अति-स्वादिष्ट है. तुम्हें उसे अवश्य खाना चाहिए.”

हव्वा ने सोचा कि उस वृक्ष का फल देखने में अच्छा है, खाने में स्वादिष्ट है और तो और उसे खाने से भले-बुरे का ज्ञान भी प्राप्त होता है, तो वह खाकर देखने में हर्ज़ क्या है?”

उसने वह फल तोड़कर खा लिया और आदम को भी दिया. आदम ने भी फल खा लिया. फल खाते ही दोनों की आँखें खुल गई. उन्हें ज्ञान हुआ कि वे नग्न हैं. उन्हें इस अवस्था में एक-दूसरे के सामने लज्जा का अनुभव होने लगा. इसलिए अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़ कर उन्होंने अपने लिए लंगोट बना लिए.

उसी समय अदन वाटिका में टहलते हुए प्रभु-ईश्वर की वाणी उन्हें सुनाई पड़ी और वे लज्जा और भय से वृक्षों के पीछे छिप गए.

ईश्वर ने आदम को पुकारा, ““तुम कहाँ हो आदम?”

आदम ने उत्तर दिया, “प्रभु मैं नंगा हूँ. इसलिए तुझसे छिप गया हूँ.”

प्रभु ने पूछा, “तुम्हें किसने बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया है, जिसे खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?”

आदम ने उतर दिया, “प्रभु, तूने जिस स्त्री को मेरे साथ रहने के लिए बनाया, उसी ने मुझे उस वृक्ष का फल लाकर दिया और मैंने वह खा लिया.”

ईश्वर ने हव्वा से पूछा, “क्या तुमने यह किया है?”

हव्वा ने उत्तर दिया, “सांप ने मुझे फुसला दिया और मैंने उस वृक्ष का फल खा लिया.”

तब ईश्वर ने सांप से कहा, “तूने यह किया है. इसलिए तू सभी घरेलू और जंगली जानवरों में शापित होगा. तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा. मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश के बीच शत्रुता उत्पन्न करूंगा. वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उनकी एड़ी कटेगा.

ईश्वर ने हव्वा से यह कहा, “मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढ़ाऊंगा और तुम पीड़ा में संतान को जन्म दोगी. तुम वासना के कारण पति में असक्त होगी और वह तुम पर शासन करेगा.”

उसने आदम से कहा, “चूँकि तुमने अपनी पत्नि की बात मानी है और उस वृक्ष का फल खाया है, जिसे खाने से मैंने मना किया था, भूमि तुम्हारे कारण शापित होगी. तुम जीवन भर कठोर परिश्रम करते हुये उससे अपनी जीविका चलाओगे. वह कांटे और ऊँट-कटारे पैदा करेंगी और तुम खेत के पौधे खाओगे. तुम तब तक पसीना बहाकर अपनी रोटी खाओगे, जब तक तुम उस भूमि में नहीं लौटोगे, जिससे तुम बनाये गए हो, क्योंकि तुम मिट्टी हो और मिट्टी में मिल जाओगे.”

ईश्वर ने आदम और हव्वा के लिए खाल के कपड़े बनाये और उन्हें पहनाया. उसने उन्हें अदन वाटिका से निकाल दिया और जीवन वृक्ष के मार्ग पर पहरा देने के लिए अदन-वाटिका के पूर्व में केरुबों और एक परिभ्रामी ज्वालामय तलवार रख दी.

ईश्वर के आदेश की अवहेलना के कारण ही मनुष्य को उस भूमि पर खेती करनी पड़ी, जिससे वह बनाया गया था और स्त्री को गर्भावस्था का कष्ट झेलना पड़ा।

काइन और हाबिल की कहानी 

अदन वाटिका से निकाले जाने के बाद आदम और उसकी पत्नि हव्वा ने धरती पर अपना कठिन जीवन प्रारंभ किया. वे दिनभर खेत में परिश्रम करते और विभिन्न प्रकार के अनाज, फल और सब्जियाँ उगाते.

समय बीता और हव्वा ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया. उसका नाम ‘काइन’ रखा गया. जब हव्वा का दूसरा पुत्र हुआ, तो उसका नाम ‘हाबिल’ रखा गया.

काइन को खेती-बाड़ी में रूचि थी. वह बड़ा होकर किसान बना. वहीं हाबिल को भेड़-बकरियों से प्यार था. बड़ा होकर वह चरवाहा बना.

एक दिन दोनों को उनके पिता आदम ने बुलाया और उन्हें प्रभु को बलि अर्पित को कहा. दोनों ने उनकी बात मानकर बलि की तैयारी प्रारंभ कर दी.

काइन ने सोचा कि वह तो एक किसान है. इसलिए उसे अपनी भूमि में उत्पन्न उपज में से ही कुछ प्रभु को अर्पित करना चाहिए. उसने भूमि की उपज का अधिकांश भाग स्वयं के लिए रखा और कुछ अंश प्रभु को अर्पित कर दिया.

हाबिल प्रभु को बलि चढ़ाने के लिए अपनी सर्वोत्तम भेड़ों के पहलौठे मेमनों को चुना. वह उन्हें बहुत प्रेम करता था. किंतु उसका मानना था कि प्रभु को अपनी सबसे प्रिय वस्तु ही अर्पित की जानी चाहिए. इसलिए उसने अपनी सर्वोत्तम भेड़ों के पहलौठे मेमनों को ही प्रभु को अर्पित किया.

प्रभु ने हाबिल की भेंट स्वीकार की, किंतु काइन की भेंट अस्वीकार कर दी. यह देख काइन का चेहरा उतर गया और उसका मन हाबिल के प्रति ईर्ष्या से भर उठा. क्रोध की जवाला उसके भीतर धधकने लगी.

तब प्रभु ने उससे कहा, “काइन! तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है? तुम क्रोध में क्यों हो? जब तुम भला करोगे, तो प्रसन्न होगे. यदि तुम भला नहीं करोगे, तो पाप हिंसक पशु की तरह तुम पर झपटने के लिए तुम्हारे द्वार पर घात लगा कर बैठेगा. क्या तुम उसका दमन कर पाओगे?”

किंतु काइन का क्रोध कम नहीं हुआ. हाबिल से बदला लेने की भावना उस पर हावी होने लगी. वह शाम को हाबिल के पास गया और बोला, “हाबिल, क्या हम टहलने चलें?”

हाबिल उसके इरादों से अनजान था. वह उसके साथ जाने तैयार हो गया. दोनों टहलते हुए दूर निकल गये और एक सुनसान स्थान पर काइन ने हाबिल पर हमला किया और उसे मार डाला.

हाबिल को मारने के बाद जब काइन जाने लगा, तो प्रभु ने काइन को आवाज़ दी, “काइन, तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है?”

काइन ने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता. मैं कैसे जानूंगा? क्या मैं उसका रखवाला हूँ?”

तब प्रभु ने कहा, “तुमने क्या किया है काइन? मैं सब जानता हूँ. तुमने अपने भाई हाबिल को मार दिया है. उसका रक्त भूमि पर से मुझे पुकार रहा है. भूमि ने तुम्हारे भाई के उस रक्त को ग्रहण किया है, जिसे तुमें बहाया है. इसलिए तुम शापित होकर उस भूमि से निर्वासित किये जाओगे. यदि तुम उस भूमि पर खेती करोगे, तो वह कुछ भी पैदा नहीं करेगी. तुम आवारे की तरह पृथ्वी पर मारे-मारे फिरोगे.”

काइन प्रभु के सामने गिड़गिड़ाने लगा, “प्रभु, मैं यह दंड नहीं सह सकता. तू मुझे उपजाऊ भूमि से निर्वासित कर रहा है. तू मुझे ख़ुद से दूर कर रहा है. मैं कैसे आवारे की तरह पृथ्वी पर मारा-मारा फिरूंगा? वहाँ कोई भी मेरा वध कर देगा. मुझ पर दया करो.”

इस पर प्रभु ने उससे कहा, “मैं तुम्हारे लिए बस इतना कर सकता हूँ कि जो भी तुम्हारा वध करेगा, उससे इसका सात गुना बदला लिया जायेगा.”

काइन से भेंट होने पर कोई उसका वध न कर दे, इसलिए प्रभु ने उस पर एक चिन्ह अंकित कर दिया. इसके बाद काइन प्रभु के पास से चला गया और अदन के पूर्व में नोद देश में रहने लगा.

इस तरह काइन के द्वारा धरती पर पहला अपराध किया गया और उसे उसकी सजा मिली.

नूह का पोत की कहानी 

पृथ्वी पर मनुष्यों की दुष्टता बढ़ने लगी. उसका मन-मस्तिष्क बुरे विचारों और बुरी प्रवृत्तियों से भर गया. जब ईश्वर ने यह देखा, तो दु:खी हो गए. उन्हें खेद हुआ कि उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्यों को बनाया.

इसलिए उन्होंने कहा, “मैं उस मानवजाति को, जिसकी मैंने सृष्टि की है, पृथ्वी पर से मिटा दूंगा – और मनुष्यों के साथ-साथ पशुओ, रेंगने वाले जीव-जंतुओं और आकाश के पक्षियों को भी – क्योंकि मुझे खेद है कि मैंने उनको बनाया है.”

नूह सदाचारी और अपने समय के लोगों में निर्दोष व्यक्ति था. वह ईश्वर के मार्ग पर चलता था. उसके तीन पुत्र थे – सेम, हाम और याफेत. उस पर ईश्वर की कृपा-दृष्टि थी. जब संसार पर पाप बढ़ने लागा और सब शरीरधारी हिंसा और कुमार्ग पर चलने लगे थे, तब ईश्वर ने नूह से कहा, “सभी शरीरधारियों द्वारा संसार हिंसा से भर गया गया है. इसलिए मैंने उनका विनाश करने का संकल्प किया है.”

ईश्वर ने नूह से आगे कहा, “तुम अपने लिए गोफर वृक्ष की लकड़ी का एक पोत बना लो. वह पोत तीन सौ हाथ लंबा, पचास हाथ चौड़ा और तीस हाथ ऊँचा हो. उसमें ऊपर चारों ओर एक हाथ ऊँची खिड़की बनाना, एक दरवाज़ा बनाना और उसमें नीचे की, बीच की और ऊपर की मंजिलें बनाना. उस पोत में तुम कक्ष बनाना. मैं पृथ्वी के समस्त प्राणियों के विनाश हेतु जल-प्रलय भेजूंगा. जो कुछ पृथ्वी पर है, वह सब नष्ट हो जायेगा. परन्तु, मैं तुमसे अपना नाता रखूंगा. क्योंकि इस पीढ़ी में केवल तुम्हें मेरी दृष्टि में धार्मिक हो. तुम्हारे पुत्र, तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे पुत्रों की पत्नियाँ, सब तुम्हारे साथ पोत में प्रवेश करेंगे.”

ईश्वर ने नूह को आदेश दिया कि वह पृथ्वी के समस्त शुद्ध पशुओं में से नर-मादा के सात-सात जोड़े और समस्त अशुद्ध पशुओं में से नर और मादा के दो जोड़े, आकाश के पक्षियों में से भी नर और मादा के सात-सात जोड़े उस पोत पर ले जाये. ताकि पृथ्वी पर उनका अस्तित्व बना रहे. ईश्वर ने नूह को पोत पर अपने साथ सब प्रकार के भोज्य पदार्थ ले जाने और उन्हें संचित रखने का निर्देश भी दिया.

नूह (Noah) ने ईश्वर के आदेश अनुसार सब किया. उसने पोत का निर्माण किया और अपने परिवार तथा ईश्वर द्वारा बताये पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं के साथ पोत पर चढ़ा. इसके बाद प्रभु ने पोत का दरवाज़ा बंद कर दिया.

सातवें दिन प्रलय का जल बरसने लगा. चालीस दिन और चालीस रात पृथ्वी पर वर्षा होती रही. पानी बढ़ता गया और पोत को पृथ्वी तल से ऊपर उठाता गया. पानी बढ़ते-बढ़ते पृथ्वी पर फैलता गया और पोत पानी की सतह पर तैरने लगा.

पृथ्वी पर इतना पानी बढ़ गया कि उसने पर्वतों को भी ढक दिया. पर्वतों से भी पंद्रह हाथ ऊपर तक पानी भर गया. पृथ्वी पर रहने सब शरीरधारी मर गए. ईश्वर ने पृथ्वी के समस्त प्राणियों का विनाश कर दिया. केवल वे ही जीवित रहे, जो नूह के साथ पोत में थे.

चालीस दिन और चालीस रात वर्षा का जल बरसता रहा. उसके बाद वर्षा रुक गई. पृथ्वी पूरी तरह से जलमग्न थी. पृथ्वी पर पानी एक सौ पचास दिन तक फैला रहा. फिर ईश्वर ने हवा बहाई और पानी घटने लगा. पृथ्वी पर धीरे-धीरे पानी कम होने लगा. एक सौ पचास दिन बाद पानी घट गया और पोत अरारट की पर्वत श्रेणी पर जा लगा.

चालीस दिन बाद नूह ने पोत में बनाई गई खिड़की खोली और एक कौवा छोड़ दिया. वह कौवा तब तक आता-जाता रहा, जब तक पृथ्वी पर का पानी सूख नहीं गया.

सात दिन प्रतीक्षा करने के बाद नूह ने पोत से एक कपोत छोड़ा, जिससे ये पता चले कि पृथ्वी पर पानी सूखा है या नहीं. कपोत को कहीं भी पैर रखने की जगह नहीं मिली और वह नूह के पास वापस लौट आया. नूह ने कपोत को पकड़ लिया और उसे पोत के अंदर अपने पास रख लिया.

सात दिन और प्रतीक्षा करने के बाद उसने फिर से कपोत को पोत के बाहर छोड़ दिया. शाम को जब कपोत उसके पास लौटा, तो उसकी चोंच में जैतून की हरी पत्ती थी. नूह समझ गया कि पानी पृथ्वीतल पर घट गया है. उसने फिर सात दिन प्रतीक्षा करने के बाद कपोत को छोड़ दिया और इस बार वह उसके पास नहीं लौटा.

तब नोह ने पोत की छत हटाई और पोत के बाहर दृष्टि दौड़ाई. पृथ्वीतल सूख गया था.

ईश्वर ने नूह से कहा, “अब तुम अपनी पत्नी, अपने पुत्रों और अपने पुत्रों की पत्नियों के साथ पोत से बाहर आओ. प्रत्येक प्राणी को – पशुओं, पक्षियों और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जंतुओं को बाहर ले आओ. वे पृथ्वी पर फ़ैल जायें – फलें-फूलें और पृथ्वी पर अपनी-अपनी जाति की संख्या बढ़ाएं.”

नूह अपने परिवार और समस्त जीव-जंतुओं के साथ पोत के बाहर आ गया. उसने ईश्वर के लिए एक वेदी बनाई और हर प्रकार के शुद्ध पशुओं और पक्षियों में से कुछ को चुन वेदी पर उनका होम चढ़ाया.

प्रभु ने उनकी सुगंध पाकर अपने मन में यह कहा, “मैं मनुष्य के कारण फिर कभी पृथ्वी को अभिशाप नहीं दूंगा, क्योंकि बचपन से ही मनुष्य की प्रवृत्ति बुराई की ओर होती है. मैं फिर कभी सब प्राणियों का विनाश नहीं करूंगा, जैसा मैंने अभी किया है.”

ईश्वर ने यह कहते हुए नूह और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया, फलो-फूलों और पृथ्वी पर फ़ैल जाओ और उसे अपने अधिकार में कर लो.

इस प्रकार उसके बाद पृथ्वी नूह के वंशजों से आबाद हुई।

अब्राहम की कहानी 

अब्राहीम (Abraham) नूह का वंशज था. नूह के तीन पुत्र थे  – हाम, याफेत और सेम. सेम की वंशावली इस प्रकार थी : सेम का पुत्र था अरफ़क्षद, अरफ़क्षद का पुत्र शेलह, शेलह का पुत्र एबेर, एबेर का पुत्र पेलेग, पेलेग का पुत्र रऊ, रऊ का पुत्र सरूग, सरूग का पुत्र नाहोर, नाहोर का पुत्र तेरह. इनके अतिरिक्त भी सेम और उसके पुत्रों के कई अन्य पुत्र-पुत्रियाँ थे.

तेरह के तीन पुत्र थे – अब्राम, नाहोर, हारान. ‘अब्राम’ ही आगे चलकर ‘अब्राहीम’ (Abraham) कहलाया. अब्राम की पत्नि सारय थी, जो आगे चलकर ‘सारा’ कहलाई. अब्राम अपने पिता तेरह और परिवार के साथ खल्दैया देश ने उरू नगर में निवास करता था.

जब उसके पिता तेरह खल्दैया देश छोड़कर कनान देश के लिए रवाना हुए, तो वह भी अपनी पत्नि के साथ उनके साथ गया. लेकिन वे सब हारान देश पहुँचकर वहीं रहने लगे. तेरह की हारान देश में मृत्यु हुई. उसकी मृत्यु के बाद अब्राम अपने परिवार के साथ हारान में ही रहा.

एक रात ईश्वर अब्राम के सामने प्रकट हुए और उससे हारान छोड़ देने का आदेश दिया. वे बोले, “अपना देश, अपना कुटुंब और अपने पिता का घर छोड़ दो और उस देश जाओ, जिसे मैं तुम्हें दिखाऊँगा. मैं तुम्हारे द्वारा एक महान राष्ट्र उत्पन्न करूंगा, तुम्हें आशीर्वाद दूंगा और तुम्हारा नाम इतना महान बनाऊंगा कि वह कल्याण का स्रोत बन जायेगा. जो तुम्हें आशीर्वाद देते हैं, मैं उन्हें आशीर्वाद दूंगा. जो तुम्हें शाप देते हैं, मैं उन्हें शाप दूंगा. तुम्हारे द्वारा पृथ्वी भर के वंश आशीर्वाद प्राप्त करेंगे.”

अब्राह ने ईश्वर की आज्ञा का पालन किया. वह हारान देश छोड़कर कनान (Canaan) देश की ओर निकल पड़ा. उसकी पत्नि सारय, उसका भतीजा लोट और वे समस्त लोग भी उसके साथ थे, जो उसे हारान में मिले थे. वह अपनी संपत्ति और जानवरों को भी साथ ले गया.

विभिन्न नगरों और गाँवों को पारकर वे कनान देश पहुँचे. आगे बढ़ते हुए वे मोरे नगर के बलूत नामक स्थान पर पहुँचे, जहाँ ईश्वर ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, “मैं यह देश तुम्हारे वंशजों को प्रदान करूंगा.”

अब्राम ने बेतेल के पूर्व एक पहाड़ी पर जाकर अपना पड़ाव डाला और प्रभु के लिए एक वेदी बनाकर प्रार्थना की.

अब्राम अपने परिवार और लोगों के साथ वहाँ रहने लगा. किंतु जब वहाँ घोर अकाल पड़ा, तो उसे मिस्र जाना पड़ा. मिश्र में प्रवेश करने के पूर्व अब्राम चिंतित था. वह जानता था कि सारय की सुंदरता देख मिस्री उसे अपनी पत्नि बनाना चाहेंगे और जब उन्हें पता चलेगा कि वह उसकी पत्नि है, तो वे उसे मार डालेंगे.

इसलिए उसने सारय से कहा, “तुम सबसे कहना कि तुम मेरी बहन हो. इस तरह तुम्हारे कारण मैं जीवित रह सकूंगा और वे मुझसे अच्छा व्यवहार करेंगे. नहीं तो, ये जानकर कि तुम मेरी पत्नि हो, वे मुझे जीवित नहीं छोड़ेंगे.”

सारय ने वैसा ही किया, जैसा अब्राम ने उसे कहा. मिस्री उन्हें अपने राजा फिराऊन के पास ले गए. फिराऊन सारय की सुंदरता पर मुग्ध हो गया और उसे अपनी पत्नि बना लिया. अब्राम को उसका भाई समझकर उसने ख़ूब आव-भगत की और उसे भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, गधे, ऊँट, नौकर, नौकरानी प्रदान किये.

अब्राम कुछ समय तक मिस्र में रहा. सारय फिराऊन के साथ महल में रही. सारय से विवाह के बाद फिराउन और उसके परिवार पर ईश्वर ने  कई रोग और विपत्तियाँ भेजी. फिराउन ईश्वर की नाराज़गी का कारण समझ नहीं पा रहा था.

किंतु जब उसे पता चला कि अब्राम ने उससे झूठ कहा है और सारय उसकी बहन नहीं, बल्कि पत्नि है. तो उसे ईश्वर द्वारा भेजी विपत्ति का कारण समझ में आ गया.

उसने अब्राम को बुलाया और कहा, “तुमने मुझे क्यों नहीं बताया कि सारय तुम्हारी पत्नि है. तुम्हारी बहन समझकर मैंने उसे अपनी पत्नि बना लिया था. लेकिन अब तुम उसे लेकर इस देश से निकल जाओ.”

अब्राम सारय, अपने भतीजे लोट और अर्जित संपत्ति के साथ मिस्र छोड़कर बेतेल की पहाड़ी पर उसी स्थान पर आ गया, जहाँ उसने पहले अपना पड़ाव बनाया था. वहाँ उसने फिर से वेदी बनाई और प्रभु से प्रार्थना की.

अब्राम और लोट के पास बहुत अधिक भेड़-बकरियाँ, चौपाये और संपत्ति थी. उनके पास इतनी अधिक संपत्ति थी कि उनका साथ रहना कठिन हो गया था, क्योंकि उनके चरवाहों में प्रायः झगड़े होने लगे. अब्राम नहीं चाहता था कि आगे चलकर उसका और लोट का संबंध बिगड़ जाए. इसलिए उसने लोट को उसका मनचाहा प्रदेश दिया और उससे अलग हो गया.

लोट ने यर्दन नदी की घाटी चुनी और अब्राम कनान की भूमि पर रहा.

एक दिन प्रभु ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, अपनी दृष्टि ऊपर उठाओ और जहाँ खड़े हो, वहाँ से चारों दिशाओं में दृष्टि घुमाओ. ये समस्त प्रदेश मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को दूंगा. जाओ इस देश के चारों ओर घूमने जाओ.”

इसके बाद अब्राम ह्र्ब्रोन में मामरे के बलूत के पास बस गया.

कई वर्ष गुजर गए. लेकिन अब्राम की पत्नि सारय को कोई संतान नहीं हुई. मिस्र से सारय के साथ ‘हागार’ नामक दासी भी आई थी. एक दिन सारय ने अब्राम से कहा कि वह संतान प्राप्ति के लिए हागार को अपनी उप-पत्नि के रूप में स्वीकार कर ले. अब्राम ने यह बात मान ली. हागार भी इसके लिए तैयार हो गई.

अब्राम की उप-पत्नि बनने की बाद हागार गर्भवती हुई. स्वयं के गर्भवती होने की बात जानने के बाद वह अपनी स्वामिनी सारय का तिरस्कार करने लगी. इस बार से क्रुद्ध होकर सारय ने हागार की शिकायत अब्राम से की, तो अब्राम ने उससे कहा कि हागार तुम्हारी दासी है. तुम जैसा चाहो, उससे व्यवहार करो.

इसके बाद सारय हागार से इतना दुर्व्यवहार करने लगी कि हागार घर छोड़कर भाग गई. वह एक उजाड़ प्रदेश में एक झरने के पास बैठी हुई थी, तब प्रभु के दूत ने उसे दर्शन दिए और उसे वापस घर लौट जाने को कहा. उसने उसे कहा कि तुम शीघ्र की एक पुत्र को जन्म दोगी, उसका नाम ‘इस्माएल’ रखना.

हागार अब्राम और सारय के पास लौट गई. उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम ‘इस्माएल’ रखा गया. इस्माएल के जन्म के समय अब्राम की आयु छयासी वर्ष थी.

जब अब्राम निन्यानबे वर्ष का हुआ, तब ईश्वर उसके सामने फिर से प्रकट हुए और बोले, “मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूँ. तुम अब से ‘अब्राम’ नहीं ‘अब्राहीम’ (Abraham) कहलाओगे, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत से राष्ट्रों का पिता बनाऊंगा. तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे. तुम अपनी पत्नि को ‘सारय’ नहीं ‘सारा’ पुकारो. मैं उसे पुत्र प्रसव करने का आशीर्वाद देता हूँ. तुम्हारे पुत्र इस्माएल के वशजों की संख्या भी मैं बढ़ाऊँगा. उसकी बारह संतान होगी और उससे महान राष्ट्र उत्पन्न होगा.”

यह सुन अब्राहीम मन ही मन हंसने लगा कि क्या इस आयु में सारा  पुत्र प्रसव करेगी और वह इस आयु में पिता बन पायेगा.

तब ईश्वर के कहा, “सारा तुम्हारे लिए पुत्र प्रसव करेगी. तुम उसका नाम ‘इसहाक’ रखना. मैं उसका और उसके वंशजों का ईश्वर होऊंगा.”

इस घटना के बाद एक दिन अब्राहीम बलूत के पास तेज़ गर्मी में अपने  तम्बू के पास बैठा हुआ था, तब तीन पुरुष उसके पास आये. अब्राहीम ने उनका ख़ूब आदर-सत्कार किया. उन्होंने अब्राहीम से पूछा, “तुम्हारी पत्नि सारा कहाँ है?”

अब्राहीम (Abraham) ने उन्हें बताया कि वह तम्बू के अंदर बैठी हुई है. तब उन्होंने कहा कि हम एक वर्ष बाद फिर तुम्हारे पास आयेंगे. उस समय सारा को एक पुत्र होगा.

तम्बू के अंदर बैठी सारा ने जब यह बात सुनी, तो हँसने लगी. वह यह सोच कर हँसी थी कि नब्बे वर्ष की आयु में वह माँ कैसे बन सकती है? किंतु प्रभु की कृपादृष्टि से सारा गर्भवती ही और उसने एक पुत्र को जन्म दिया. इब्राहीम ने उसका नाम ‘इसहाक’ रखा.

सारा ईश्वर की बात पर हंसी थी. इसलिए इसहाक के जन्म पर वह बोली, “ईश्वर में मुझे हँसने दिया था. इसलिए अब जो भी यह बात सुनेगा, वह मुझ पर हँसेगा.”

पुत्र प्राप्ति के लिए अब्राहीम (Abraham) ने ईश्वर का धन्यवाद दिया. इस प्रकार ईश्वर ने अपना वचन निभाया।

इसहाक की कहानी

नब्बे वर्ष की आयु में इब्राहीम की पत्नी ‘सारा’ ने पुत्र को जन्म दिया. उसका नाम ‘इसहाक’ रखा गया. ‘इसहाक’ के जन्म के पूर्व इब्राहीम ने मिस्र से साथ आई दासी ‘हागार’ को उपपत्नी बना लिया था. उससे  उसे ‘इस्माएल’ नामक पुत्र हुआ था.

‘इसहाक’ के जन्म के बाद सारा ने इब्राहीम से कहा कि वो हागार और उसके पुत्र को घर से निकाल दे. वह नहीं चाहती थी कि एक दासी पुत्र उसके पुत्र के साथ इब्राहीम की विरासत का अधिकारी बने.

इब्राहीम इस बात से दु:खी था. किंतु, उससे ईश्वर ने कहा, “इब्राहीम. जैसा सारा ने कहा है. वैसा ही करो. हागार और इस्माएल को घर से निकाल दो. तुम्हारा वंश इसहाक के द्वारा बना रहेगा. इस्माएल की भी तुम चिंता मत करो. वह भी तुम्हारा पुत्र है. इसलिए मैं उसके द्वारा भी एक महान राष्ट्र उत्पन्न करूंगा.”

ईश्वर की आज्ञा मानकर इब्राहीम ने हागार को रोटी और पानी से भरा मशक दिया. फ़िर इस्माएल को उसकी गोद में डालकर घर से निकाल दिया.

अब इब्राहीम सारा और अपने पुत्र इसहाक के साथ रहने लगा.

एक दिन ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली. उसने उसका नाम पुकारा, “इब्राहीम इब्राहीम.”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “प्रस्तुत हूँ.”

ईश्वर ने उससे कहा, “इब्राहीम मेरी आज्ञा है कि तुम अपने परम प्रिय पुत्र को लेकर मोरिया देश जाओ. वहाँ मैं तुम्हें जो पहाड़ बताऊं, उस पर उसे बलि चढ़ा देना.”

इब्राहीम ने सवेरे उठकर अपने गधे पर जीन बाँधी. फ़िर होम-बलि के लिए लकड़ी तैयार की और अपने पुत्र इसहाक को लेकर मोरिया देश की ओर रवाना हो गया. उसके साथ दो नौकर भी थे.

वह तीन दिनों तक चलता रहा. तीसरे दिन वह मोरिया देश पहुँच गया. वहाँ उसने सिर उठाकर देखा, तो उसे मोरिया पहाड़ दिखाई पड़ा. उसने अपने नौकरों से कहा, “तुम लोग यहीं रूककर गधे का ध्यान रखो. मैं अपने पुत्र के साथ आगे जा रहा हूँ. कुछ देर में आराधना कर वापस लौट आऊंगा.”

दोनों नौकर वहीं रुक गए. इब्राहीम ने होम बलि की लकड़ी पुत्र इसहाक की पीठ पर लाद दी. हाथ में आग और छुरा लेकर वह इसहाक के साथ आगे बढ़ने लगा.

इसहाक समझ गया था कि वे लोग बलि के लिए जा रहे हैं. किंतु, वह ये समझ नहीं पा रहा था कि बलि का मेमना कहाँ है. उसने इब्राहीम से पूछा, “पिताजी! हमारे पास आग और लकड़ी तो है. किंतु, होम का मेमना कहाँ है? हम बलि कैसे देंगे?”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “पुत्र! ईश्वर पर विश्वास रखो. वो हमारे लिए होम के मेमने की व्यवस्था कर देगा.”

कुछ देर में दोनों ईश्वर द्वारा बताये स्थान पर पहुँच गए. इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी का निर्माण किया और उस पर लकड़ी सजा ली. फिर उसने अपने पुत्र इसहाक को बांधकर वेदी पर लिटा दिया.

अब वह ईश्वर की आज्ञा के अनुसार अपने एकलौते पुत्र की बलि के लिए तैयार था. उसने छुरा उठा लिया और इसहाक की ओर बढ़ाया. तभी उसे प्रभु के दूत की वाणी सुनाई पड़ी, “इब्राहीम, इब्राहीम,”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “प्रस्तुत हूँ.”

दूत ने कहा, “बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे किसी प्रकार की कोई  हानि मत पहुँचाना. मैं जान चुका हूँ कि तुम ईश्वर पर कितनी श्रद्धा रखते हो. तुमने मुझे अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इंकार नहीं किया.”

इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठाई, तो उसे झाड़ी में फंसा हुआ एक मेढ़ा दिखाई दिया. इब्राहीम ने मेढ़े को झाड़ी से निकाला और अपने पुत्र के स्थान पर उसकी बलि दे दी. उसने उस स्थान का नाम ‘प्रभु का प्रबंध ‘ रखा.

प्रभु के दूत ने इब्राहीम को फ़िर से पुकारा, “यह प्रभु की वाणी है. तुमने मुझे अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इंकार नहीं किया. मैं तुम पर सदा आशीष बरसाता रहूँगा. मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूंगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेने. तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा.”

इब्राहीम पहाड़ी से उतरकर अपने नौकरों के पास आ गया. उसके बाद वह ‘बएर-शेबा’ चला गया और वहाँ रहने लगा.

उड़ाव पुत्र की कहानी 

एक धनी व्यक्ति के दो पुत्र थे। बड़ा आज्ञाकारी और परिश्रमी था। छोटा विलासी था। एक दिन छोटा पुत्र अपने पिता के पास गया और उससे अपने हिस्से की संपत्ति की मांग की। पिता ने उसे उसकी संपत्ति का हिस्सा दे दिया।

अपने हिस्से की संपत्ति लेकर छोटा पुत्र दूसरे देश चला गया। वहां पहुंचकर उसने भोग विलास में सारी संपत्ति उड़ा दी। उसी समय उस देश में भयंकर अकाल पड़ा और उसकी भूखों मरने की नौबत आ गई।

मजबूर होकर उसने एक आदमी के खेत में सूअर चराने की नौकरी कर ली। वह दिन भर खेत में सूअर चराता और सूअर को खाने को जो फलियां मिलती, उसे खाकर ही अपना पेट भरने की चेष्टा करता। लेकिन उसके नसीब में सूअर की फलियां भी नहीं थी।

ऐसे में उसे अपने पिता के घर की याद सताने लगी। वह सोचने लगा कि उसके पिता के घर तो नौकर और मजदूरों को भी उनकी भूख से ज्यादा रोटी मिलती है और मैं यहां सूअर को मिलने वाली फलियों को तरस रहा हूं।

उसने फैसला किया कि वह अपने पिता के घर लौट जायेगा और उनसे गिड़गिड़ाते हुए क्षमा याचना करेगा, “मेरे पिता मैंने आपके विरुद्ध, स्वर्ग में विराजमान परमात्मा के विरुद्ध अपराध किया है, जो अपने विलास के लिए आपको त्याग दिया। मुझे अपना मजदूर बनाकर रख लीजिए, क्योंकि अब मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्य नहीं रहा।”

ये सोचकर वह अपने पिता के घर चल पड़ा। वह घर से कुछ दूरी पर था, तब उसके पिता की दृष्टि उस पर पड़ी। अपने पुत्र को ऐसी स्थिति में देखकर पिता का हृदय द्रवित हो गया। वह भागकर उसके पास गया और उसे अपने गले से लगा लिया।

बेटा पिता से क्षमा याचना करते हुए बोला, “पिताजी! अब मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा। मैंने आपके प्रति पाप किया है।”

लेकिन पिता ने उसकी बात अनसुनी कर दी। वह खुशी में अपने सेवकों को पुकारते हुए बोला, “जाओ और मेरे पुत्र के लिए अच्छे वस्त्र लेकर आओ, उसे उंगली में अंगूठी और पैरों में जूते पहनाओ। एक मोटा बछड़ा मारो और आनंद मानने की तैयारी करो। मेरा बेटा मर गया था, लेकिन वह फिर जी उठा है। वह खो गया था, लेकिन फिर मिल गया है।”

घर में सब मिलकर गाने बजाने और आनंद मानने लगे। 

उस समय बड़ा पुत्र खेत में काम कर रहा था। जब वह खेत से लौटने लगा और घर के निकट पहुंचा, तो नाचने और गाने बजाने की आवाज सुनकर एक नौकर से इस बारे में पूछा।

नौकर ने बताया कि आपका भाई परदेश से भला चंगा लौट आया है। इसलिए आपके पिता ने एक मोटा बछड़ा मारा है और सब मिलकर आनंद मना रहे हैं।

बड़ा पुत्र क्रोधित हो गया और वहीं से लौटने लगा। तब पिता उसके पास आया और उसे मानने लगा।

बड़े पुत्र ने शिकायत करते हुए कहा, “मैं सदा आपके साथ रहा। आपकी हर आज्ञा का पालन किया। लेकिन आपने कभी मेरे लिए बकरी का बच्चा तक नहीं मारा और उसके लिए, जो आपको छोड़कर चला गया और अपनी सारी संपत्ति भोग विलास में उड़ा दी, उसके लिए एक मोटा बछड़ा मारा।”

तब पिता ने कहा, “पुत्र! तुम तो सदा मेरे साथ थे। मेरा सब कुछ तुम्हारा है। लेकिन तुम्हारा छोटा भाई राह भटक कर मुझसे दूर चला गया था। वह सही राह पर आ गया है। मैं इसका आनंद मना रहा हूं।”

उड़ाऊ पुत्र की कहानी से यह सीख मिलती है कि प्रभु परमेश्वर अपनी समस्त संतानों से प्रेम करता है। जो राह भटक गए थे और पश्चाताप कर वापस प्रभु की शरण में आ गए हैं, प्रभु उन्हें पुनः स्वीकार करता है और उनके लौटने पर प्रसन्न होता है। वह उनके लिए आनंद पूर्ण जीवन प्रदान करता है। इसलिए भटके हुए भाई बहन पश्चाताप कर पुनः ईश्वर की शरण में लौट आएं और उनके प्रेम के भागी बनकर आनंदपूर्ण जीवन बिताए।

रूथ की कहानी

रूथ की कहानी मूआब देश में शुरू होती है। बेतलेहम के एक व्यक्ति एलीमेलेक अपनी पत्नी नाओमी और दो पुत्रों, मखलोन और किल्योन के साथ मूआब में बसने के लिए चला जाता है। कुछ समय बाद एलीमेलेक की मृत्यु हो जाती है। उसके दो पुत्र मूआब की स्त्रियों से विवाह करते हैं—मखलोन ने रूथ से और किल्योन ने ओरपा से। लगभग दस साल बाद, नाओमी के दोनों पुत्र भी मर जाते हैं, और नाओमी अपने दोनों विधवा बहुओं के साथ अकेली रह जाती है।

नाओमी अपने देश वापस लौटने का निर्णय लेती है क्योंकि उसने सुना है कि बेतलेहम में अब अकाल समाप्त हो गया है और वहां परमेश्वर ने अपने लोगों पर कृपा दिखाई है। वह अपनी दोनों बहुओं से कहती है कि वे अपने-अपने माता-पिता के घर लौट जाएं और पुनः विवाह कर लें। ओरपा तो नाओमी को छोड़कर अपने घर वापस चली जाती है, लेकिन रूथ नाओमी के साथ रहने का निश्चय करती है।

रूथ नाओमी से कहती है:

“जहाँ तुम जाओगी, मैं भी वहीं जाऊंगी; जहाँ तुम रहोगी, मैं भी वहीं रहूँगी। तुम्हारा लोग मेरा लोग और तुम्हारा ईश्वर मेरा ईश्वर होगा। जहाँ तुम मरोगी, मैं भी वहीं मरूँगी और वहीं दफनाई जाऊंगी।”

नाओमी और रूथ बेतलेहम लौट आती हैं। बेतलेहम में उनके आगमन का समय जौ की फसल के कटाई के समय होता है। जीविका के लिए रूथ खेतों में बालें बीनने का काम करती है। वह एक खेत में काम करने जाती है, जो कि एक धनी व्यक्ति, बोअज का है। बोअज का नाओमी के परिवार से संबंध होता है, और वह नाओमी के पति एलीमेलेक का रिश्तेदार है।

बोअज रूथ की वफादारी और भक्ति से प्रभावित होता है। वह रूथ का विशेष ध्यान रखता है और अपने काम करने वालों को आदेश देता है कि वे उसके लिए अतिरिक्त अनाज छोड़ दें। नाओमी को जब यह पता चलता है कि रूथ बोअज के खेत में काम कर रही है, तो वह उसे बताती है कि बोअज हमारा रिश्तेदार और उत्तराधिकारी है।

नाओमी रूथ को सलाह देती है कि वह बोअज के निकट जाकर उसके पैरों के पास लेट जाए और उसे अपनी स्थिति के बारे में बताए। रूथ नाओमी की बात मानती है। बोअज रूथ की वफादारी से और अधिक प्रभावित होता है और उसका कर्तव्य निभाने के लिए तैयार हो जाता है। हालांकि, एक और निकट का रिश्तेदार होता है, जिसे पहले यह अधिकार होता है। बोअज उसके साथ बातचीत करता है और वह व्यक्ति अपने अधिकार का त्याग कर देता है। इसके बाद, बोअज रूथ से विवाह करता है।

बोअज और रूथ का विवाह परमेश्वर की योजना का हिस्सा बनता है। उनके एक पुत्र होता है, जिसका नाम ओबेद रखा जाता है। ओबेद, इस्राएल के महान राजा दाऊद का दादा बनता है। इस प्रकार रूथ, जो एक मूआबी स्त्री थी, मसीह के वंश में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करती है।

सीख

रूथ की कहानी वफादारी, भक्ति, और विश्वास की एक अद्भुत कथा है। रूथ का नाओमी के प्रति प्रेम और निष्ठा, बोअज का अनुग्रह और भलाई, और परमेश्वर की योजना इस कहानी के प्रमुख तत्व हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी यदि हम सच्चाई, वफादारी, और विश्वास के मार्ग पर चलते हैं, तो परमेश्वर हमें आशीर्वाद और अनुग्रह से नवाजते हैं।

सामरी स्त्री की कहानी 

यीशु और उनके शिष्य यहूदिया से गलील की यात्रा कर रहे थे। रास्ते में उन्हें सामरिया से होकर गुजरना पड़ा। यहूदियों और सामरियों के बीच ऐतिहासिक और धार्मिक मतभेद थे, जिसके कारण यहूदी सामरिया से गुजरना पसंद नहीं करते थे। लेकिन यीशु ने इस क्षेत्र से गुजरने का फैसला किया।

जब यीशु और उनके शिष्य सिचार नामक सामरी गांव पहुंचे, तो वे एक कुवें के पास रुके। यह कुवा याकूब का कुवा था, जो सामरियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल था। दोपहर का समय था और यीशु थके हुए थे, इसलिए वे कुवें के पास बैठ गए, जबकि उनके शिष्य खाने के लिए कुछ लाने शहर गए।

इसी समय एक सामरी स्त्री पानी भरने के लिए कुवें पर आई। आमतौर पर महिलाएं सुबह या शाम को पानी भरने जाती थीं, जब तापमान कम होता था। लेकिन यह स्त्री दोपहर में आई, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह समाज से अलग-थलग थी। यीशु ने उससे पानी मांगते हुए कहा, “मुझे पानी पिलाओ।”

सामरी स्त्री ने आश्चर्यचकित होकर उत्तर दिया, “तुम, एक यहूदी, मुझसे, एक सामरी स्त्री से, पानी क्यों मांगते हो?” यहूदी और सामरी आपस में बोलचाल नहीं रखते थे, इसलिए स्त्री का आश्चर्य स्वाभाविक था।

यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम परमेश्वर का वरदान और यह जानती कि जो तुमसे कहता है, ‘मुझे पानी पिलाओ,’ वह कौन है, तो तुम उससे मांगती और वह तुम्हें जीवित जल देता।”

सामरी स्त्री ने कहा, “प्रभु, तुम्हारे पास पानी निकालने के लिए कुछ भी नहीं है और कुवा गहरा है। यह जीवित जल कहां से मिलेगा?”

यीशु ने उत्तर दिया, “जो कोई इस पानी को पीता है, वह फिर प्यासा होगा; परंतु जो कोई उस जल को पीएगा, जिसे मैं उसे दूंगा, वह फिर कभी प्यासा न होगा, वरन वह जल, जो मैं उसे दूंगा, उसमें एक सोते का जल बन जाएगा, जो अनंत जीवन के लिए उमड़ता रहेगा।”

स्त्री ने कहा, “प्रभु, वह पानी मुझे दे, ताकि मैं फिर प्यासा न होऊं और न यहां पानी भरने आऊं।”

यीशु ने उससे कहा, “जाओ, अपने पति को बुला लाओ और यहां आओ।”

स्त्री ने उत्तर दिया, “मेरे पास पति नहीं है।”

यीशु ने कहा, “तुमने सही कहा कि ‘मेरे पास पति नहीं है,’ क्योंकि तुम्हारे पांच पति हो चुके हैं और अब जो तुम्हारे पास है, वह तुम्हारा पति नहीं है।”

स्त्री ने महसूस किया कि यीशु कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। उसने कहा, “प्रभु, मैं देखती हूं कि आप एक नबी हैं। हमारे पूर्वजों ने इस पहाड़ पर आराधना की और आप लोग कहते हैं कि यरूशलेम वह स्थान है, जहां आराधना करनी चाहिए।”

यीशु ने उत्तर दिया, “स्त्री, मेरी बात मान, वह समय आ रहा है, जब तुम इस पहाड़ पर या यरूशलेम में पिता की आराधना न करोगे। तुम जिसकी आराधना नहीं जानते, उसकी आराधना करते हो; हम जिसकी आराधना जानते हैं, उसकी आराधना करते हैं, क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है। परंतु वह समय आ रहा है, और अब है, जब सच्चे आराधक पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही आराधक ढूंढता है। परमेश्वर आत्मा है और जो उसकी आराधना करते हैं, उन्हें आत्मा और सच्चाई से आराधना करनी चाहिए।”

सामरी स्त्री ने कहा, “मुझे पता है कि मसीह, जो ख्रीस्त कहलाता है, आने वाला है। जब वह आएगा, तो हमें सब कुछ बताएगा।”

यीशु ने उससे कहा, “मैं, जो तुमसे बात कर रहा हूं, वही हूं।”

इतने में, यीशु के शिष्य वापस आ गए और उन्होंने देखा कि वह स्त्री से बात कर रहे हैं, लेकिन किसी ने कुछ नहीं पूछा। स्त्री अपना पानी का घड़ा छोड़कर शहर में चली गई और लोगों से कहा, “आओ, एक मनुष्य को देखो, जिसने मुझे सब कुछ बता दिया, जो मैंने किया है। क्या यह मसीह नहीं हो सकता?”

लोग उसके कहने पर यीशु से मिलने के लिए निकले।

इस बीच, शिष्यों ने यीशु से भोजन करने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने कहा, “मेरा भोजन वह है कि मैं अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करूं और उसका कार्य पूरा करूं।”

जब शहर के लोग यीशु से मिले, तो उन्होंने उनसे और सुना और विश्वास किया। उन्होंने स्त्री से कहा, “अब हम तुम्हारे कहने के कारण नहीं, बल्कि स्वयं सुनने के कारण विश्वास करते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि यह वास्तव में संसार का उद्धारकर्ता है।”

सीख

यीशु और सामरी स्त्री की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और करुणा किसी भी सामाजिक, सांस्कृतिक, या धार्मिक बाधा से परे होते हैं। यीशु ने यह दिखाया कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि का हो, ईश्वर के प्रेpम का पात्र है। उन्होंने सच्चे आराधना के अर्थ को समझाया और यह सिखाया कि आत्मा और सच्चाई में ईश्वर की आराधना की जानी चाहिए। इस कहानी से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि सच्ची करुणा और सच्चाई का अनुभव जीवन को कैसे परिवर्तित कर सकता है।

लूत और उसकी बेटियों की कहानी 

लूत, अब्राहम का भतीजा, सोदोम शहर में रहता था। सोदोम और अमोरा (गोमोरा) के शहर अपने पाप और दुष्टता के लिए प्रसिद्ध थे। परमेश्वर ने अब्राहम से कहा कि वह इन शहरों को उनके पापों के कारण नष्ट कर देगा। लेकिन अब्राहम ने परमेश्वर से प्रार्थना की कि यदि वहां कुछ धर्मी लोग मिल जाएं, तो शहरों को नष्ट न किया जाए। परमेश्वर ने वादा किया कि यदि वह सोदोम में दस धर्मी लोगों को पाता है, तो वह शहर को बचा लेगा।

एक शाम, दो स्वर्गदूत सोदोम पहुंचे। लूत ने उन्हें शहर के द्वार पर देखा और आग्रह किया कि वे उसके घर में आकर रात बिताएं। स्वर्गदूतों ने पहले मना किया, लेकिन लूत के बार-बार अनुरोध करने पर वे मान गए।

रात में, सोदोम के सभी पुरुष, युवा और वृद्ध, लूत के घर के चारों ओर इकट्ठे हुए और स्वर्गदूतों को बाहर लाने की मांग की ताकि वे उन्हें “जान सकें” (बाइबिल में यह शब्द अक्सर यौन संबंध के लिए प्रयोग किया जाता है)। लूत ने बाहर आकर उनसे कहा, “मेरे भाइयों, ऐसा बुरा काम मत करो। मेरे पास दो बेटियां हैं जो अभी तक पुरुष के साथ नहीं रही हैं। मैं उन्हें तुम्हारे पास लाता हूं, तुम जैसा चाहो उनके साथ कर लो। लेकिन इन पुरुषों के साथ कुछ मत करो, क्योंकि वे मेरी छत के नीचे आए हैं।”

यह सुनकर पुरुषों ने लूत पर हमला करने की धमकी दी। तब स्वर्गदूतों ने लूत को अंदर खींच लिया और दरवाजे को बंद कर दिया। उन्होंने उन पुरुषों को अंधा कर दिया, जिससे वे दरवाजा नहीं ढूंढ सके।

स्वर्गदूतों ने लूत से कहा कि वह अपने परिवार को लेकर तुरंत शहर छोड़ दे, क्योंकि परमेश्वर ने सोदोम और अमोरा को नष्ट करने का निश्चय किया था। लूत, उसकी पत्नी, और उसकी दो बेटियां जल्दी से शहर छोड़ने लगे। स्वर्गदूतों ने उन्हें चेतावनी दी कि वे पीछे मुड़कर न देखें और न ही कहीं रुकें, बस पहाड़ों की ओर भागें।

लूत ने स्वर्गदूतों से कहा कि पहाड़ों तक पहुंचना मुश्किल होगा और उन्होंने ज़ोआर नामक छोटे शहर में जाने की अनुमति मांगी, जो स्वर्गदूतों ने दी।

लूत, उसकी पत्नी और बेटियां जब शहर से बाहर भाग रहे थे, तो लूत की पत्नी ने पीछे मुड़कर देखा। इस उल्लंघन के कारण, वह नमक का स्तंभ बन गई। यह घटना लूत और उसकी बेटियों के लिए एक कठोर सबक थी कि परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए।

लूत और उसकी बेटियां ज़ोआर पहुंची और वहां रहने लगे। लेकिन लूत को ज़ोआर में भी डर लगने लगा, इसलिए वे पहाड़ों में एक गुफा में जाकर बस गए।

लूत की बेटियों ने देखा कि उनके पास कोई पुरुष नहीं है जो उनकी संतति को बढ़ा सके। उन्होंने सोचा कि उनके पिता के वंश को जारी रखने के लिए उन्हें कुछ करना होगा।

एक रात, बड़ी बेटी ने अपने पिता को शराब पिलाई और उसके साथ सोई। अगली रात, छोटी बेटी ने भी यही किया। दोनों बेटियां अपने पिता से गर्भवती हो गईं।

बड़ी बेटी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम मोआब रखा। मोआब मोआबियों का पूर्वज बना। छोटी बेटी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बेन-अम्मी रखा। बेन-अम्मी अम्मोनियों का पूर्वज बना।

लूत और उसकी बेटियों की कहानी नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। यह कहानी दिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी, विश्वास और भगवान पर भरोसा बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। लूत की बेटियों का निर्णय अपने पिता के वंश को जारी रखने के लिए था, लेकिन इस प्रक्रिया में उन्होंने अनैतिकता और पाप का सहारा लिया।

यह कहानी यह भी दिखाती है कि परमेश्वर की योजनाएं और निर्णय मानव समझ से परे हो सकते हैं, और उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन गंभीर परिणाम ला सकता है। लूत की पत्नी का नमक का स्तंभ बनना इसका एक स्पष्ट उदाहरण है।

लूत और उसकी बेटियों की कहानी बाइबिल में नैतिकता, विश्वास, और मानव निर्णय की जटिलताओं की गहन समझ प्रदान करती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हमें अपने विश्वास और धार्मिकता पर अडिग रहना चाहिए और परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। लूत की बेटियों का निर्णय एक नैतिक शिक्षा के रूप में काम करता है, जो दिखाता है कि सही इरादों के बावजूद गलत तरीके अपनाने के परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

याकूब की कहानी 

याकूब इसहाक और रिबका के जुड़वां पुत्रों में से एक था। याकूब का बड़ा भाई एसाव था। याकूब और एसाव की आपसी प्रतियोगिता और संघर्ष उनकी माँ रिबका के गर्भ से ही शुरू हो गया था। जब याकूब और एसाव का जन्म हुआ, तो एसाव पहले बाहर आया, लेकिन याकूब उसके एड़ी को पकड़े हुए बाहर आया, जिससे उसका नाम याकूब पड़ा, जिसका अर्थ है “एड़ी पकड़ने वाला” या “धोखेबाज”।

बड़े होकर, एसाव एक कुशल शिकारी और अपने पिता इसहाक का प्रिय था, जबकि याकूब एक शांत स्वभाव का व्यक्ति था और अपनी माँ रिबका का प्रिय था। एक दिन जब एसाव शिकार से थका-मांदा घर लौटा, तो उसने याकूब से लाल दाल का कटोरा मांगा। याकूब ने उसे लाल दाल दी, लेकिन बदले में एसाव से उसके ज्येष्ठता अधिकार ले लिए।

इसके बाद याकूब ने अपनी माँ रिबका की मदद से अपने पिता इसहाक को धोखा देकर एसाव के आशीर्वाद को प्राप्त कर लिया। इसहाक ने अपनी बढ़ती उम्र और कमजोर दृष्टि के कारण याकूब को एसाव समझकर उसे आशीर्वाद दे दिया, जिससे एसाव क्रोधित हो गया और उसने याकूब को मारने की ठान ली।

एसाव के क्रोध से बचने के लिए याकूब अपने माता-पिता की सलाह पर पदनाराम भाग गया, जहां उसका मामा लाबान रहता था। रास्ते में एक स्थान पर उसने स्वप्न में एक सीढ़ी देखी, जो स्वर्ग तक जा रही थी, और स्वर्गदूत उस पर चढ़-उतर रहे थे। इस स्वप्न में, ईश्वर ने याकूब को आशीर्वाद दिया और उसके वंश को बढ़ाने का वादा किया। उस स्थान को याकूब ने ‘बेतएल’ नाम दिया।

पदानाराम पहुंचने पर, याकूब ने अपने मामा लाबान की सेवा में 14 वर्ष बिताए और लाबान की दो बेटियों, लिआ और राहेल से विवाह किया। याकूब ने राहेल से प्रेम किया, लेकिन लाबान ने छल से पहले लिआ से उसकी शादी करवा दी। फिर याकूब ने सात साल और सेवा की और राहेल से भी विवाह किया।

याकूब के बारह पुत्र और एक पुत्री हुई, जिनमें से बारह पुत्र इस्राएल के बारह गोत्रों के पूर्वज बने। याकूब के पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं: रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, दान, नप्ताली, गाद, आशेर, इस्साकार, जबुलून, यूसुफ और बिन्यामीन। याकूब की पुत्री का नाम दीनाह था।

याकूब का पुत्र यूसुफ उसकी सबसे प्रिय संतान था, जिससे उसके अन्य भाई ईर्ष्या करते थे। उन्होंने यूसुफ को गुलाम बनाकर मिस्र भेज दिया, जहां यूसुफ ने बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की और मिस्र का प्रधानमंत्री बन गया। अकाल के समय यूसुफ ने अपने परिवार को मिस्र बुलाया और उनकी रक्षा की।

बुढ़ापे में, याकूब ने अपने सभी पुत्रों को आशीर्वाद दिया और उन्हें उनकी भविष्य की भूमिकाओं के बारे में बताया। याकूब की मृत्यु मिस्र में हुई, लेकिन उसने अपने पुत्रों को अपनी अंतिम इच्छा बताई कि उसे कनान में, अपने पूर्वजों के साथ दफनाया जाए। उसके पुत्रों ने उसकी इस इच्छा का पालन किया और याकूब को हिब्रोन में मकफीलाह की गुफा में दफनाया, जहां इब्राहीम और इसहाक भी दफनाए गए थे।

सीख

याकूब की कहानी विश्वास, संघर्ष, और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास की एक प्रेरणादायक कथा है। याकूब का जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्ष और कठिनाइयों के बावजूद, यदि हम ईश्वर पर विश्वास रखें और सही मार्ग पर चलें, तो हमें सफलता और आशीर्वाद प्राप्त हो सकते हैं। याकूब का नाम बदलकर इस्राएल रखा गया और वह इस्राएली राष्ट्र के पिता बने। उनकी वंशावली और उनके बारह पुत्रों ने इस्राएल के बारह गोत्रों की नींव रखी, जिससे इस्राएल की महान गाथा की शुरुआत हुई।

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