मित्र दोह का फल : पंचतंत्र ~ मित्रभेद | Right Mind And Wrong Mind Panchatantra Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम पंचतंत्र की कहानी “मित्र दोह का फल” (Right Mind And Wrong Mind Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. पंचतंत्र के तंत्र (भाग) मित्रभेद से ली गई इस कहानी में सदाचार और दुराचार का वर्णन किया गया है. पढ़िए पूरी कहानी :

Right Mind And Wrong Mind Best Panchatantra Kahaniya

Best Panchatantra Kahaniya
Best Panchatantra Kahaniya

पढ़ें पंचतंत्र की संपूर्ण कहानियाँ : click here

>

Best Panchatantra Kahaniya : एक नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नामक दो व्यक्ति रहते थे. दोनों में अच्छी मित्रता थी.  

एक दिन पापबुद्धि ने विदेश जाकर धन अर्जित करने का मन बनाया और धर्मबुद्धि के पास आकर बोला, “मित्र! क्यों न धन अर्जन के लिए हम विदेश यात्रा करें? वहाँ पर्याप्त धन अर्जित करने के उपरांत हम दोनों अपने नगर वापस लौट आयेंगे और सुख-संपन्नता का जीवन व्यतीत करेंगे.”

धर्मबुद्धि को पापबुद्धि की बात उचित प्रतीत हुई और वह विदेश यात्रा में पापबुद्धि के साथ हो लिया. दोनों ने देश-देशांतर की यात्रा की और प्रचुर धन अर्जित किया.

अर्जित धन के साथ जब वे अपने नगर लौटने लगे, तो पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र! इतना धन देखकर हमारे सगे-संबंधी कहीं हमसे ईर्ष्या ना करने लगे. ऐसे में अनिस्ट की आशंका रहेगी. इसलिए उचित होगा कि हम अपना धन नगर के बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें.”

धर्मबुद्धि पापबुद्धि से सहमत हो गया और दोनों ने नगर पहुँचने के पूर्व अपने धन का बड़ा अंश एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर डाल दिया. गड्ढे को मिट्टी से  ढककर उसे सूखी पत्तियों से छुपाकर वे नगर आ गए.

कुछ दिन व्यतीत होने के उपरांत पापबुद्धि उसी स्थान पर वापस लौटा. गड्ढे को खोदकर उसने पूरा धन निकाल लिया और उस पर मिट्टी डालकर पुनः सूखी पत्तियों से ढक दिया.

पूरा धन घर में छुपाने के उपरांत वह धर्मबुद्धि के पास पहुँचा और बोला, “मित्र! मुझे पारिवारिक कारणों से धन की आवश्यकता पड़ गई है. इसलिए चलो हमारे विदेश में अर्जित धन में से कुछ धन निकालकर ले आते हैं.”

धर्मबुद्धि तैयार हो गया. दोनों जंगल में निर्धारित स्थान पर पहुँचे. धर्मबुद्धि ने गड्ढा खोदा, किंतु वहाँ से धन नदारत था. दुष्ट पापबुद्धि रोने-पीटने का नाटक करने लगा और धर्मबुद्धि पर धन चुराने का आरोप लगाने लगा.

बात नगर के धर्माधिकारी के पास पहुँची. पापबुद्धि ने धर्माधिकारी के समक्ष धर्मबुद्धि पर चोरी का आरोप लगाया और न्याय की गुहार लगाने लगा. धर्मबुद्धि अपने मित्र के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित था. वह धर्माधिकारी के समक्ष जड़वत खड़ा रहा.

पापबुद्धि कहने लगा, “जिस स्थान पर हमने धन गड्ढे में डाला था, वहाँ के पेड़ साक्षी हैं. आप उनसे पूछिये? वो जिसे चोर कहेंगे, उसे चोर मान लिया जाये.”

धर्माधिकारी ने निश्चय किया कि अगले दिन पेड़ों की साक्षी ली जायेगी. साक्षी के बयान अनुसार ही निर्णय सुनाया जायेगा.

सुबह मुँह अँधेरे पापबुद्धि ने अपने पिता को गड्ढे के पास के पेड़ की खोखली जड़ के अंदर बिठा दिया और बोला, “जब धर्माधिकारी पेड़ से पूछें कि चोर कौन है, तो आप धर्मबुद्धि का नाम लेना.”

पिता ने ठीक वैसा ही किया. धर्माधिकारी ने जब पेड़ से पूछा, “वनदेवता! धर्मबुद्धि और पापबुद्धि के धन चोरी हो जाने के प्रकरण में आप साक्षी हैं. कृपया बतायें इन दोनों में चोर कौन है?”

प्रश्न सुनते ही पेड़ के खोखले जड़ के अंदर बैठा पापबुद्धि का पिता बोला पड़ा, “धर्मबुद्धि चोर है.”

पेड़ का उत्तर सुन सब आश्चर्यचकित रह गए. धर्माधिकारी ने साक्षीस्वरुप पेड़ का उत्तर स्वीकार कर लिया. वह अपना निर्णय सुनाने को हुए ही थे कि धर्मबुद्धि ने पेड़ की खोखली जड़ में आग लगा दी.

आग की लपटों के कारण पापबुद्धि का पिता झुलस गया और चीखते हुए पेड़ की जड़ से बाहर निकला. मृत्यु पूर्व उसने पापबुद्धि के द्वारा धन चोरी करने का भेद खोल दिया.

दंड स्वरुप धर्माधिकारी ने पापबुद्धि को उसी पेड़ पर लटका दिया. पापबुद्धि को उसके कर्मों का फल मिल गया. एक ओर उसके ऊपर पिता के वध का पाप चढ़ा और दूसरी ओर अपने कर्म का दंड भी मिला.

सीख (Moral of the story)

बुरे कर्मों का फल बुरा ही होता है.   

Friends, आपको ‘Right Mind And Wrong Mind Panchatantra Story In Hindi‘ कैसी लगी? आप अपने comments के द्वारा हमें अवश्य बतायें. ये Hindi Story पसंद पर Like और Share करें. ऐसी ही और Best Panchatantra Kahaniya पढ़ने के लिए हमें Subscribe कर लें. Thanks.

Read More Best Panchatantra Kahaniya :

Leave a Comment