Mythological Story

भागीरथी गंगा की कहानी | Bhagirathi Ganga Ki Kahani

भागीरथी गंगा की कहानी (Bhagirathi Ganga Ki Kahani) भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में गंगा नदी का विशेष स्थान है। इसे न केवल एक नदी माना गया है, बल्कि एक देवी के रूप में पूजा जाता है। गंगा की पवित्र धारा भारत के करोड़ों लोगों के लिए आस्था और जीवन का प्रतीक है। भागीरथी गंगा की कहानी भारतीय पुराणों में एक प्रमुख स्थान रखती है, जो हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प, भक्ति और सेवा से किस प्रकार असंभव कार्य भी संभव हो सकता है। इस कहानी का केंद्र बिंदु है राजा भागीरथ का तप, जिसने उन्हें अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए असाधारण प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। 

Bhagirathi Ganga Ki Kahani

Bhagirathi Ganga Ki Kahani

मुख्य कथा

प्राचीन समय में अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं में राजा सगर का नाम आता है, जिनके राज्य में सुख-समृद्धि थी। राजा सगर के पास 60,000 पुत्र थे, और एक समय उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया। उस यज्ञ के लिए उन्होंने एक घोड़ा छोड़ा जो जिस भी राज्य में जाता, वहाँ राजा सगर का अधिपत्य सिद्ध होता। परंतु, देवराज इंद्र को यह यज्ञ रास नहीं आया, क्योंकि उन्हें भय था कि इस यज्ञ से राजा सगर का प्रभुत्व बहुत बढ़ जाएगा और वह इंद्र के सिंहासन के लिए खतरा बन सकता है। अतः इंद्र ने उस यज्ञीय अश्व को चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया।

जब राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने यह देखा कि घोड़ा गायब हो गया है, तो वे उसे ढूंढने निकल पड़े। खोजते-खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम तक पहुँच गए और उन्होंने वहाँ यज्ञीय अश्व को देखा। यह देखकर उन पुत्रों ने मुनि कपिल पर आरोप लगाया कि उन्होंने उनके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया है। मुनि कपिल, जो ध्यान में लीन थे, अचानक यह दोषारोपण सुनकर क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपनी आंखें खोलीं और अपने क्रोध से राजा सगर के 60,000 पुत्र वहीं जलकर भस्म हो गए।

राजा सगर को जब इस घटना का पता चला, तो उन्हें अत्यधिक दुख हुआ। परंतु उन्होंने अपने एकमात्र बचे पुत्र अंशुमान को कहा कि वह अपने भाइयों की मुक्ति का उपाय ढूंढें। अंशुमान ने जाकर कपिल मुनि से प्रार्थना की, जिनसे उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके भाइयों की आत्माओं की मुक्ति तब तक संभव नहीं है, जब तक गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर नहीं आती और उनके अस्थियों का स्पर्श नहीं करती।

अंशुमान ने अपने जीवनकाल में गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। उनके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी यह प्रयास किया, पर वे भी इसमें सफल न हो सके। अंततः दिलीप के पुत्र राजा भागीरथ ने यह प्रण लिया कि वे किसी भी कीमत पर गंगा को धरती पर लाकर अपने पूर्वजों की मुक्ति का कार्य करेंगे।

भागीरथ ने कठोर तपस्या का आरंभ किया और वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा जाननी चाही। भागीरथ ने उनसे प्रार्थना की कि वे गंगा को धरती पर लाने का मार्ग प्रशस्त करें। ब्रह्मा जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और गंगा जी को पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दी। लेकिन गंगा जी ने एक शर्त रखी कि उनका प्रवाह इतना प्रचंड होगा कि पृथ्वी उनका भार सहन नहीं कर पाएगी। इसलिए अगर उनका प्रवाह सीधे पृथ्वी पर गिरेगा, तो धरती धंस जाएगी।

यह सुनकर ब्रह्मा जी ने राजा भागीरथ को भगवान शिव की तपस्या करने का सुझाव दिया ताकि वे गंगा के प्रचंड प्रवाह को नियंत्रित कर सकें। इसके बाद भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें वरदान दिया कि वे गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में समेट लेंगे और धीरे-धीरे पृथ्वी पर छोड़ेंगे। 

गंगा जब शिव की जटाओं में समाई तो उन्होंने अपनी प्रचंडता को संयमित कर लिया। इसके पश्चात शिव जी ने अपनी जटाओं से गंगा को धीरे-धीरे पृथ्वी पर छोड़ा। गंगा का यह प्रवाह भागीरथ के पीछे-पीछे चल पड़ा, और वे गंगा के मार्ग का निर्देशन करते हुए अपने पूर्वजों की मुक्ति की ओर बढ़े। इस प्रकार, गंगा की पवित्र धारा ने पृथ्वी पर बहना शुरू किया और आज वह भारत की पावन नदियों में से एक है।

जब गंगा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई, तो उन्होंने कई स्थानों पर अपना विस्तार किया और उन्हें विभिन्न नामों से पुकारा जाने लगा। हिमालय के क्षेत्र में उन्हें भागीरथी कहा जाता है, क्योंकि राजा भागीरथ ने उन्हें स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने का महाप्रयास किया। गंगा के प्रवाह से राजा सगर के सभी 60,000 पुत्रों की आत्माओं को मोक्ष प्राप्त हुआ। उनके पवित्र जल के स्पर्श से उनकी आत्माओं को सद्गति प्राप्त हुई और वे सभी स्वर्ग को प्राप्त हो गए।

गंगा की महत्ता और संदेश

भागीरथी गंगा की कथा केवल एक पौराणिक कहानी नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सांकेतिकता को दर्शाती है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि दृढ़ संकल्प, परिश्रम और श्रद्धा के बल पर असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं। राजा भागीरथ का तप और उनकी भक्ति यह सिद्ध करते हैं कि जब कोई कार्य आत्मा से किया जाता है और उसके पीछे एक निःस्वार्थ उद्देश्य होता है, तो ईश्वर भी उस कार्य में सहायता करते हैं।

गंगा आज भी भारतीय संस्कृति में पवित्रता, श्रद्धा और मुक्ति का प्रतीक है। इसे “माँ गंगा” के नाम से जाना जाता है, और यह भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। गंगा के जल का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों और तीर्थयात्राओं में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा का जल सभी प्रकार के पापों और दोषों को दूर करता है, और मोक्ष प्रदान करने में सहायक होता है। गंगा की पवित्रता का महत्व इतना अधिक है कि लोग मृत्यु के समय गंगा के जल का स्पर्श पाना चाहते हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले।

इस कथा में यह भी संदेश मिलता है कि प्राचीन काल से ही भारत में जल का महत्व समझा गया था। गंगा जैसी नदी, जो जीवनदायिनी है, का महत्व केवल आध्यात्मिक नहीं है, बल्कि भौतिक रूप से भी है, क्योंकि इसके जल से खेती-बाड़ी, उद्योग और पेयजल की व्यवस्था होती है। भागीरथी गंगा की कथा इस तथ्य को और भी दृढ़ करती है कि जल के बिना जीवन की कल्पना असंभव है।

निष्कर्ष

भागीरथी गंगा की यह कहानी भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा है। यह हमें न केवल धार्मिक दृष्टि से प्रेरणा देती है, बल्कि यह यह भी सिखाती है कि यदि उद्देश्य पवित्र हो और मनुष्य में दृढ़ संकल्प हो, तो उसे कोई भी बाधा नहीं रोक सकती। गंगा केवल एक नदी नहीं है, वह भारत के लोगों के लिए एक जीवनधारा है, जो उन्हें शक्ति, पवित्रता और भक्ति का अनुभव कराती है।

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