भगवान महावीर और चोर की कहानी (Bhagwan Mahavir Aur Chor Ki Kahani)
जैन धर्म की कहानियाँ हमें जीवन में अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता का मार्ग दिखाती हैं। भगवान महावीर का जीवन इन्हीं मूल्यों का प्रतीक है। उनकी शिक्षाएँ केवल उपदेश नहीं, बल्कि उनके व्यवहार और कर्मों से प्रेरित होती हैं। आज हम “महावीर और चोर की शिक्षा” की कथा प्रस्तुत कर रहे हैं, जो हमें यह समझाती है कि सच्ची अहिंसा और करुणा से सबसे क्रूर व्यक्ति का भी हृदय परिवर्तित हो सकता है।
Bhagwan Mahavir Aur Chor Ki Kahani
Table of Contents
बहुत समय पहले भगवान महावीर एक नगर के बाहर एक शांत वन में ध्यान लगा रहे थे। उनके तप और करुणा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। लोग उनके पास आकर धर्म और जीवन के बारे में ज्ञान प्राप्त करते थे।
उसी नगर में एक कुख्यात चोर रहता था, जिसका नाम था संग्राम। संग्राम धन और वैभव के लिए चोरी करता और कई बार निर्दोष लोगों को हानि भी पहुँचाता था। उसे अपने कृत्यों पर कभी पश्चाताप नहीं होता था।
एक दिन संग्राम को पता चला कि भगवान महावीर नगर के बाहर ध्यान में लीन हैं। उसने सोचा, “यह साधु लोग तो हमेशा अमीर व्यापारियों और राजाओं से दान प्राप्त करते हैं। उनके पास अवश्य ही बहुत मूल्यवान वस्तुएँ होंगी। मैं जाकर उनसे सब कुछ छीन लूँगा।”
उसने भगवान महावीर को लूटने की योजना बनाई और रात के समय वन में पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि भगवान महावीर शांत मुद्रा में ध्यान में बैठे हुए थे। उनका चेहरा दिव्य और तेजस्वी था।
संग्राम उनके पास पहुँचा और गुस्से से बोला, “हे साधु, मुझे पता है कि तुम्हारे पास धन और बहुमूल्य वस्तुएँ हैं। तुरंत मुझे सब कुछ दे दो, नहीं तो मैं तुम्हें कष्ट पहुँचाऊँगा।”
महावीर ने अपनी आँखें खोलीं और शांत स्वर में कहा, “वत्स, मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं एक साधु हूँ, जिसने संसार की सभी मोह-माया त्याग दी है। जो कुछ भी मेरे पास था, वह मैंने पहले ही दूसरों को दे दिया है।”
संग्राम ने गुस्से में कहा, “झूठ मत बोलो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला। यदि तुमने मुझे अपनी चीज़ें नहीं दीं, तो मैं तुम्हें मार डालूँगा।”
महावीर ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “वत्स, तुम जो चाहो, वह कर सकते हो। मेरा शरीर तुम्हारा है, लेकिन मेरी आत्मा को कोई नहीं छीन सकता।”
संग्राम महावीर के उत्तर से चकित हो गया। उसने सोचा, “यह साधु कैसा है? न यह डरता है, न गुस्सा करता है। इसे कोई मोह-माया नहीं है।”
लेकिन उसका लालच कम नहीं हुआ। उसने भगवान महावीर के वस्त्र खींचने की कोशिश की। महावीर ने कोई विरोध नहीं किया। वे शांत बने रहे।
संग्राम ने गुस्से में पूछा, “तुम्हें क्रोध क्यों नहीं आता? मैं तुम्हें लूट रहा हूँ, फिर भी तुम चुपचाप बैठे हो।”
महावीर ने कहा, “वत्स, क्रोध और हिंसा से किसी का भला नहीं होता। मैं तुम्हारी मजबूरी और अज्ञानता को समझता हूँ। तुम जो कर रहे हो, वह तुम्हारे कर्म हैं। मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई द्वेष नहीं है।”
महावीर के इन शब्दों ने संग्राम के हृदय को झकझोर दिया। उसने पहली बार अपने जीवन में किसी को इतना शांत और दयालु देखा था। उसने कहा, “हे साधु, आप किस प्रकार के इंसान हैं? मैंने अब तक कई लोगों को लूटा, लेकिन कोई भी मेरी बात मानने के लिए तैयार नहीं होता। और आप तो बिना विरोध के सब कुछ देने को तैयार हैं।”
महावीर ने उत्तर दिया, “मैंने यह समझ लिया है कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। धन, वस्त्र और शरीर सभी नश्वर हैं। जब इनसे मोह समाप्त हो जाता है, तो किसी भी चीज़ का खोना दुःख नहीं देता।”
संग्राम के मन में पश्चाताप जागा। उसने महावीर के चरणों में गिरकर कहा, “मुझे क्षमा करें। मैंने अपने पूरे जीवन में केवल बुरे कर्म किए हैं। मुझे इस अज्ञानता से मुक्ति दिलाएँ।”
महावीर ने कहा, “वत्स, हर व्यक्ति का हृदय परिवर्तन संभव है। अहिंसा, सत्य और संयम का पालन करके तुम अपने कर्मों को सुधार सकते हो। जीवन का सच्चा अर्थ दूसरों को कष्ट पहुँचाने में नहीं, बल्कि उनकी भलाई करने में है।”
संग्राम ने अपनी भूल स्वीकार की और प्रतिज्ञा की कि वह अब कभी चोरी या हिंसा नहीं करेगा। उसने अपने पुराने जीवन को छोड़ दिया और महावीर के शिष्य बनकर धर्म और तपस्या के मार्ग पर चल पड़ा।
सीख
1. अहिंसा और करुणा का महत्व: यह कहानी हमें सिखाती है कि अहिंसा और करुणा से सबसे क्रूर व्यक्ति का भी हृदय परिवर्तन हो सकता है।
2. सच्ची संपत्ति: भौतिक वस्त्र और धन नश्वर हैं। सच्ची संपत्ति आत्मा की शुद्धता और सत्य के मार्ग पर चलने में है।
3. क्रोध और हिंसा का त्याग:क्रोध और हिंसा से किसी का भला नहीं होता। शांत मन और संयम से ही समस्याओं का समाधान होता है।
4. हर व्यक्ति में सुधार की संभावना: चाहे कोई कितना भी बुरा क्यों न हो, सही मार्गदर्शन और दया से वह सही राह पर आ सकता है।
भगवान महावीर और चोर संग्राम की यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में सबसे बड़ा धर्म अहिंसा और करुणा है। सच्चा तप और धर्म दूसरों को कष्ट पहुँचाने के बजाय उनके जीवन को सुधारने में है। यह कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में सहिष्णुता, दया और संयम के मूल्यों को अपनाएँ।
More Stories
गरीब श्रावक की दानशीलता जैन कथा