Mythological Story

भाई दूज की कथा कहानी | Bhai Dooj Ki Katha Kahani

भाई दूज की कथा कहानी (Bhai Dooj Ki Katha Kahani)

भाई दूज, जिसे ‘भ्रातृ द्वितीया’ भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक एक प्रमुख पर्व है। यह पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है और इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई दूज के साथ जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं जो इस पर्व की महत्ता और धार्मिक आस्था को दर्शाती हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान यमराज और उनकी बहन यमुनाजी की है। इस कथा के माध्यम से यह पर्व भाई-बहन के प्रेम, समर्पण और आपसी स्नेह का प्रतीक बन गया है।

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Bhai Dooj Ki Katha Kahani

Bhai Dooj Ki Katha Kahani 

यमराज और यमुनाजी की कथा

बहुत पुरानी बात है, जब इस धरती पर देवताओं और असुरों का वास होता था। सभी देवी-देवता अपनी अपनी जिम्मेदारियों का पालन करते थे। इन्हीं देवताओं में मृत्यु के देवता यमराज का विशेष स्थान था। यमराज का कार्य सभी जीवों की आयु समाप्त होने पर उन्हें मृत्यु लोक में ले जाना था। उनका निवास स्थान यमलोक था, जहाँ जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय दिया जाता था। 

यमराज की एक बहन थी, जिसका नाम यमुनाजी था। यमुनाजी का स्वभाव बहुत ही सरल, कोमल और करुणामयी था। वह अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थीं और उन्हें अपने घर बुलाने की इच्छा हमेशा रहती थी। यमुनाजी ने कई बार अपने भाई यमराज को अपने घर आने के लिए निमंत्रण दिया, लेकिन यमराज अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते थे कि वे यमुनाजी के घर नहीं जा पाते थे। 

समय बीतता गया, लेकिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने नहीं जा सके। यमुनाजी को यह बात मन ही मन दुखी करती थी, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः एक दिन यमराज को याद दिलाया कि वे अपने वचन के अनुसार उनसे मिलने आएं। यमुनाजी के इस भावुक निमंत्रण को यमराज अस्वीकार नहीं कर सके और उन्होंने यमुनाजी के घर जाने का निश्चय किया।

यमराज जब अपनी बहन यमुनाजी के घर पहुँचे, तो यमुनाजी ने बड़े प्रेम और उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। उन्होंने यमराज के आने की खुशी में अपने घर को सजाया, अनेक प्रकार के पकवान बनाए और भाई का आदरपूर्वक सत्कार किया। यमुनाजी ने यमराज को सुंदर स्थान पर बैठाया और उनका तिलक किया, उनके हाथों में रक्षा सूत्र बांधा, और उनकी दीर्घायु और समृद्धि की कामना की। 

यमराज ने बहन के इस प्रेम और सत्कार से अभिभूत होकर कहा, “हे बहन! आज तुमने मेरा दिल जीत लिया है। मैं तुम्हारे इस प्रेम से अत्यंत प्रसन्न हूँ। आज तुम मुझसे जो चाहो वरदान मांग सकती हो।”

यमुनाजी ने अपने भाई से कहा, “हे भाई! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो मेरा एक निवेदन है। आप हर साल इसी दिन मेरे घर पधारें और जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा और बहन उसकी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करेगी, उसे मृत्यु का भय नहीं होगा।”

यमराज ने यमुनाजी के इस अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया और कहा, “हे बहन! ऐसा ही होगा। आज से इस दिन को भाई दूज के नाम से जाना जाएगा। जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा और बहन उसकी दीर्घायु की कामना करेगी, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा।”

इस प्रकार, यमराज ने अपनी बहन यमुनाजी को यह वरदान दिया और हर साल इस दिन बहन द्वारा अपने भाई को तिलक करने की परंपरा शुरू हुई। तभी से भाई दूज का पर्व मनाया जाता है, और इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु की कामना करती हैं।

कथा का प्रतीकात्मक महत्त्व

यमराज और यमुनाजी की कथा भाई दूज के पर्व की पवित्रता और महत्व को दर्शाती है। इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि भाई-बहन का रिश्ता कितना खास और गहरा होता है। बहन अपने भाई के लिए जीवन भर शुभकामनाएँ और आशीर्वाद मांगती है, जबकि भाई भी अपनी बहन की सुरक्षा और सुख-समृद्धि की जिम्मेदारी निभाता है।

यमराज के मृत्यु के देवता होने के बावजूद, यमुनाजी के प्रेम और समर्पण के सामने वे भी अपनी कठोरता को भूलकर भावनाओं से अभिभूत हो जाते हैं। यह दर्शाता है कि प्रेम, स्नेह और परिवार के रिश्ते इतने मजबूत होते हैं कि वे मृत्यु जैसे सत्य को भी मोड़ सकते हैं। भाई दूज की यह कथा रिश्तों की मिठास और पारस्परिक समर्पण का प्रतीक है।

भाई दूज का सांस्कृतिक महत्त्व

भाई दूज केवल पौराणिक कथाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय समाज में यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते की अनोखी परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र, सफलता और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई भी अपनी बहन को उपहार देते हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं। इस पर्व के पीछे का भाव यह है कि भाई-बहन का रिश्ता केवल खून का नहीं होता, बल्कि यह आत्मा का रिश्ता है जो जीवन भर एक-दूसरे का सहारा बनता है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। नेपाल में इसे ‘भाई टीका’ कहा जाता है, जहाँ इस दिन को अत्यंत उत्साह से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे ‘भाऊ बीज’ के नाम से जाना जाता है, और बंगाल में इसे ‘भाई फोंटा’ कहा जाता है। नाम चाहे जो भी हो, लेकिन इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करना और उनके बीच प्रेम और विश्वास को बढ़ावा देना है।

आधुनिक युग में भाई दूज

आज के आधुनिक युग में जहाँ परिवार के सदस्य अक्सर एक-दूसरे से दूर रहते हैं, भाई दूज का पर्व उन्हें फिर से करीब लाने का अवसर प्रदान करता है। विशेष रूप से शहरों में, जहाँ भाई-बहन अक्सर काम या शिक्षा के कारण अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं, यह पर्व उन्हें एक साथ लाने का महत्वपूर्ण माध्यम है। 

इस दिन भाई और बहन चाहे कितनी भी दूर हों, एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का यह विशेष अवसर होता है। कई भाई-बहन वीडियो कॉल या सोशल मीडिया के माध्यम से भी इस पर्व को मनाते हैं, लेकिन इसका भाव वही रहता है – एक-दूसरे के प्रति प्रेम, आदर और समर्पण। 

निष्कर्ष

भाई दूज की पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि परिवार के रिश्ते कितने महत्वपूर्ण होते हैं। भाई-बहन का संबंध सिर्फ खून का नहीं, बल्कि विश्वास, प्रेम और आपसी सहयोग पर आधारित होता है। यमराज और यमुनाजी की कथा के माध्यम से यह पर्व हमें यह सिखाता है कि चाहे मृत्यु भी क्यों न हो, स्नेह और समर्पण से बड़ी कोई शक्ति नहीं है। 

भाई दूज न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में रिश्तों की महत्ता को भी प्रकट करता है। इस पर्व के माध्यम से भाई और बहन के बीच का प्यार और स्नेह और भी मजबूत होता है, और यह पर्व सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है।

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