बाइबिल की कहानी : काइन और हाबिल | Bible Story Of Cain And Abel In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम काइन और हाबिल की कहानी (Bible Story Of Cain And Able In Hindi) शेयर कर रहे हैं. बाइबिल की ये कहानी पृथ्वी पर प्रथम मानव आदम और हव्वा के पुत्रों ‘काइन और हाबिल’ (Cain And Abel Story Hindi) की है. इस कहानी में धरती पर किये गये पहले अपराध के बारे में बताया गया है. पढ़िए पूरी कहानी :

Bible Story Of Cain And Able In Hindi

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Bible Story Of Cain And Able In Hindi
Bible Story Of Cain And Able In Hindi | Kane And Able Story In Hindi

अदन वाटिका से निकाले जाने के बाद आदम और उसकी पत्नि हव्वा ने धरती पर अपना कठिन जीवन प्रारंभ किया. वे दिनभर खेत में परिश्रम करते और विभिन्न प्रकार के अनाज, फल और सब्जियाँ उगाते.

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समय बीता और हव्वा ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया. उसका नाम ‘काइन’ रखा गया. जब हव्वा का दूसरा पुत्र हुआ, तो उसका नाम ‘हाबिल’ रखा गया.

काइन को खेती-बाड़ी में रूचि थी. वह बड़ा होकर किसान बना. वहीं हाबिल को भेड़-बकरियों से प्यार था. बड़ा होकर वह चरवाहा बना.

एक दिन दोनों को उनके पिता आदम ने बुलाया और उन्हें प्रभु को बलि अर्पित को कहा. दोनों ने उनकी बात मानकर बलि की तैयारी प्रारंभ कर दी.

काइन ने सोचा कि वह तो एक किसान है. इसलिए उसे अपनी भूमि में उत्पन्न उपज में से ही कुछ प्रभु को अर्पित करना चाहिए. उसने भूमि की उपज का अधिकांश भाग स्वयं के लिए रखा और कुछ अंश प्रभु को अर्पित कर दिया.

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हाबिल प्रभु को बलि चढ़ाने के लिए अपनी सर्वोत्तम भेड़ों के पहलौठे मेमनों को चुना. वह उन्हें बहुत प्रेम करता था. किंतु उसका मानना था कि प्रभु को अपनी सबसे प्रिय वस्तु ही अर्पित की जानी चाहिए. इसलिए उसने अपनी सर्वोत्तम भेड़ों के पहलौठे मेमनों को ही प्रभु को अर्पित किया.

प्रभु ने हाबिल की भेंट स्वीकार की, किंतु काइन की भेंट अस्वीकार कर दी. यह देख काइन का चेहरा उतर गया और उसका मन हाबिल के प्रति ईर्ष्या से भर उठा. क्रोध की जवाला उसके भीतर धधकने लगी.

तब प्रभु ने उससे कहा, “काइन! तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है? तुम क्रोध में क्यों हो? जब तुम भला करोगे, तो प्रसन्न होगे. यदि तुम भला नहीं करोगे, तो पाप हिंसक पशु की तरह तुम पर झपटने के लिए तुम्हारे द्वार पर घात लगा कर बैठेगा. क्या तुम उसका दमन कर पाओगे?”

किंतु काइन का क्रोध कम नहीं हुआ. हाबिल से बदला लेने की भावना उस पर हावी होने लगी. वह शाम को हाबिल के पास गया और बोला, “हाबिल, क्या हम टहलने चलें?”

हाबिल उसके इरादों से अनजान था. वह उसके साथ जाने तैयार हो गया. दोनों टहलते हुए दूर निकल गये और एक सुनसान स्थान पर काइन ने हाबिल पर हमला किया और उसे मार डाला.

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हाबिल को मारने के बाद जब काइन जाने लगा, तो प्रभु ने काइन को आवाज़ दी, “काइन, तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है?”

काइन ने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता. मैं कैसे जानूंगा? क्या मैं उसका रखवाला हूँ?”

तब प्रभु ने कहा, “तुमने क्या किया है काइन? मैं सब जानता हूँ. तुमने अपने भाई हाबिल को मार दिया है. उसका रक्त भूमि पर से मुझे पुकार रहा है. भूमि ने तुम्हारे भाई के उस रक्त को ग्रहण किया है, जिसे तुमें बहाया है. इसलिए तुम शापित होकर उस भूमि से निर्वासित किये जाओगे. यदि तुम उस भूमि पर खेती करोगे, तो वह कुछ भी पैदा नहीं करेगी. तुम आवारे की तरह पृथ्वी पर मारे-मारे फिरोगे.”

काइन प्रभु के सामने गिड़गिड़ाने लगा, “प्रभु, मैं यह दंड नहीं सह सकता. तू मुझे उपजाऊ भूमि से निर्वासित कर रहा है. तू मुझे ख़ुद से दूर कर रहा है. मैं कैसे आवारे की तरह पृथ्वी पर मारा-मारा फिरूंगा? वहाँ कोई भी मेरा वध कर देगा. मुझ पर दया करो.”

इस पर प्रभु ने उससे कहा, “मैं तुम्हारे लिए बस इतना कर सकता हूँ कि जो भी तुम्हारा वध करेगा, उससे इसका सात गुना बदला लिया जायेगा.”

काइन से भेंट होने पर कोई उसका वध न कर दे, इसलिए प्रभु ने उस पर एक चिन्ह अंकित कर दिया. इसके बाद काइन प्रभु के पास से चला गया और अदन के पूर्व में नोद देश में रहने लगा.

इस तरह काइन के द्वारा धरती पर पहला अपराध किया गया और उसे उसकी सजा मिली.

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