ठगों की करतूत : बीरबल की चतुराई की कहानी | Birbal Ki Chaturai Ki Kahani

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम अकबर बीरबल की कहानी “ठगों की करतूत” (Birbal Ki Chaturai Ki Kahani) शेयर कर रहे है. ये कहानी दो ठगों की है,  जो एक साहूकार को मूर्ख बनाते हैं. क्या बीरबल अपनी चतुराई से साहूकार को न्याय दिलवा पाता है? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी : 

Birbal Ki Chaturai Ki Kahani

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Birbal Ki Chaturai Ki Kahani
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दिल्ली में एक ईमानदार साहूकार रहता था. एक बार दो ठग सेठ के भेष में उसके पास आये और साहूकार से बोले, “हम दोनों कुछ जेवरात बेचना चाहते हैं. आपसे निवेदन है कि आप उन्हें बिकवा दें. आपकी बड़ी कृपा होगी.”

साहूकार छल-कपट से परे एक सरल स्वभाव का व्यक्ति था. उसने उत्तर दिया, “जब तक मैं इन जेवरातों को ख़रीददारों को दिखाकर उनसे बातचीत न करूं, तब तक मैं आपको नहीं कह सकता कि ये बिकेंगे या नहीं. इसलिए, आपको इन जेवरातों को मेरे पास छोड़ना होगा. कल दोपहर तक ग्राहकों से बात कर मैं आपको जानकारी दे दूंगा.”

सेठ के रूप में आये ठग बोले, “आप बेखटक इन जेवरातों को अपने पास रखें. पर एक बात का ध्यान रखें कि जब हम दोनों एक साथ इन जेवरातों को लेने आयें, तब ही इन्हें लौटाइयेगा. एक के आने पर मत लौटाइयेगा.”

साहूकार ने कहा, “ऐसा ही होगा.”

ठग जेवरात साहूकार के हवाले कर वहाँ से आगे बढ़ गये.

साठ-सत्तर गज का फ़ासला तय करने के बाद उनमें से एक साहूकार के पास वापस आया और बोला, “हम ये जेवरात आपके पास नहीं छोड़ना चाहते. आप कृपा कर इन्हें वापस दे दीजिये. हम लोग कल दोपहर फ़िर आपकी सेवा में हाज़िर हो जायेंगे.”

साहूकार ने पूछा, “आपके दूसरे साथी कहाँ हैं?”

उस ठग ने उंगली से अपने दूसरे साथी की ओर इशारा कर साहूकार को बतलाया, “उस तिराहे पर मेरा दूसरा साथी अपने एक मित्र से वार्तालाप कर रहा है. उसके कहने पर ही मैं आपके पास आया हूँ.”

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साहूकार ने भी जब दूसरे ठग को तिराहे पर खड़ा देखा, तो उसने  विश्वास कर पहले ठग को जेवरात वापस कर दिए. वह ठग जेवरात लेकर चला गया.

कुछ समय बीता, तो दूसरा ठग साहूकार के पास आया और जेवरात मांगने लगा. इस पर साहूकार बोला, “जब आप तिराहे पर अपने मित्र से वार्तालाप कर रहे थे, तब आपका दूसरा साथी आया था और वह जेवरातों को ले गया. मैंने उससे आपके बार में पूछा, तो उसने आपकी ओर इशारा कर बताया कि आपके ही कहने पर वह आया है. उसकी बातों पर विश्वास कर मैंने उसे जेवरात वापस कर दिए.”

ठग जेवरात लिए बिना वहाँ से जाने को तैयार न हुआ. वह कहने लगा, “जब मैनें आपको पहले ही कहा था कि जब तक हम दोनों साथ न आयें, तब तक जेवरात वापस न करना, तो फ़िर आपने ऐसा किया क्यों? आपने गलती की है. अब इसका फ़ल मैं क्यों भोगूं? आपने किया है, आप भरें.”

साहूकार ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “आप भी तो उस समय तिराहे पर खड़े थे, जब आपका दूसरा साथी जेवरात लेने आया था.”

ठग का मिजाज़ गर्म हो गया. वह तैश में अकार बोला, “इससे क्या होता है? क्या मैं कहीं खड़ा नहीं हो सकता. मैंने तो उसे जेवरात लेने भेजा ही नहीं था.”

दोनों का वाद-विवाद बढ़ता चला गया. ठग किसी तरह से भी बिना जेवरात के मानने को तैयार न था. जब उसे जेवरात वापस मिलने की उम्मीद न रही, तो वह साहूकार को धमकी देने लगा कि वह उसे बदनाम कर देगा और जेल की हवा खिलायेगा.

साहूकार ने कहा, “जो जी में आये, वो करो.”

ठग ने शीघ्र ही जाकर बादशाह अकबर के यहाँ न्याय की दरख्वास्त दे दी. अकबर के इस प्रकरण के निपटारे की ज़िम्मेदारी बीरबल को सौंपी. बीरबल ने आदेश का पालन करते हुए साहूकार को बुलवाया.

साहूकार बीरबल के सामने उपस्थित हुआ और सारी बात उसे बताते हुए  बड़े-बड़े विश्वसनीय महाजनों की गवाही भी दिलवाई.

बीरबल को तब यकीन हो गया कि ठग का दावा झूठा है.

वह ठग से बोला, “जब यह बात तय हुई थी कि तुम और तुम्हारा साथी एक साथ जेवरात लेने आओगे, तब ही साहूकार तुम्हें जेवरात वापस देगा. फ़िर तुम अकेले क्यों आये हो? तुम्हारा दूसरा साथी कहाँ है?”

ठग को कोई जवाब देते नहीं बना, तब बीरबल ने साहूकार को आज्ञा  दी, “जाओ, जब दोनों साथ आयें, तब इन्हें मेरे पास ले आना. अकेले आयें], तो भी लाना.”

ठग समझ गया कि अब उसकी कोई चालकी नहीं चलेगी. लाचार होकर वह वापस चला गया और फ़िर कभी साहूकार के पास नहीं आया.

साहूकार इस न्याय से बहुत ख़ुश हुआ. अकबर ने भी मन ही मन बीरबल की बुद्धि की प्रशंषा की.

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