बीरबल की खिचड़ी की कहानी अकबर बीरबल | Birbal Ki Khichadi Story In Hindi

बीरबल की खिचड़ी की कहानी अकबर बीरबल, Birbal Ki Khichadi Akbar Birbal Ki Kahani 

मित्रों, ‘Birbal Ki Khichdi Story In Hindi’ में बीरबल को अजीबोगरीब तरीके से खिचड़ी बनाते देख बादशाह अकबर चिढ़ जाते हैं. लेकिन जब इसके पीछे का कारण उन्हें पता चलता है, तो वे बीरबल की अक्लमंदी के साथ उसकी नेकदिली पर भी फ़क्र करने लगते हैं. पढ़िए पूरी कहानी ‘Birbal Ki Khichdi Ki Kahani’ :

Birbal Ki Khichdi Story In Hindi

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रात्रि भोज के उपरांत बादशाह अकबर बीरबल (Akbar Birbal) को साथ लेकर यमुना तट पर टहल रहे थे. उनके साथ सुरक्षा हेतु कुछ सैनिक भी थे.

वो जनवरी का महिना था और दिल्ली में शीतलहर बह रही थी. कड़ाके की ठंड में यमुना नदी का जल बर्फ़ के समान ठंडा हो चुका था.

अकबर (Akbar) को जाने क्या सूझी कि उन्होंने अपनी उंगली यमुना के जल में डाल दी. ठंडक का अहसास होते ही उन्होंने फ़ौरन अपनी उंगली जल से बाहर निकाली और बोले, “बीरबल! इस मौसम में यमुना का पानी बर्फ़ के समान हो जाता है. इसमें एक उंगली डालना मुश्किल है. यदि किसी को इस पानी में थोड़ी देर भी रहना पड़ जाये, तो वो जीवित नहीं बचेगा. क्यों क्या कहते हो?”

बीरबल (Birbal) की सोच अकबर के विपरीत थी. वह बोला, “मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ हुज़ूर. इच्छाशक्ति हो तो मनुष्य कुछ भी कर गुजरता है. यमुना के पानी में कुछ देर खड़ा रहना तो बहुत ही छोटी बात है.”

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“हम तुमसे इत्तेफ़ाक नहीं रखते बीरबल. इन दिनों यमुना के पानी में कोई खड़ा हो ही नहीं सकता.” अकबर बीरबल की बात मानने को कतई तैयार नहीं थे.

“तो आज़माकर देख लीजिये जहाँपनाह. कोई न कोई ज़रूर होगा, जो अपनी इच्छाशक्ति के दम पर ये कर जायेगा.” बीरबल विश्वास के साथ बोला.

“तो ठीक है. कल पूरे राज्य में मुनादी करवा दी जाये कि जो कोई भी पूरी रात यमुना के पानी में कमर तक डूबकर खड़ा रहेगा. उसे १०० स्वर्ण मुद्रायें ईनाम में दी जायेंगी.” अकबर तैश में आकर बोले.

अगले दिन अकबर का आदेश पूरे राज्य में प्रसारित करवा दिया गया. कुछ दिनों तक यह चुनौती स्वीकार करने वाला कोई सामने नहीं आया. कोई साहस नहीं कर पा रहा था कि पूरी रात यमुना के ठंडे जल में कमर तक डूबकर खड़ा रह सके.

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अकबर के राज्य में एक निर्धन धोबी भी रहता था. उसकी माँ का स्वास्थ्य बहुत ख़राब था. किंतु पैसों की तंगी के कारण वह उनका इलाज़ नहीं करवा पा रहा था. जब उसने यह मुनादी सुनी, तो पैसों के लिए यमुना में खड़े होने की चुनौती स्वीकार कर ली.

वह रात भर अकबर के सैनिकों की निगरानी में यमुना में कमर तक पानी में डूबकर खड़ा रहा. भोर होते ही सैनिक उसे लेकर अकबर के सामने हाज़िर हुए.

अकबर के लिए यह यकीन कर पाना मुश्किल था. उन्होंने धोबी से पूछा, “तुम सारी रात यमुना के पानी में कैसे खड़े रह पाए?”

“जहाँपनाह! मैं रात भर आपके महल में जल रहे दीपक को देखता रहा और इस तरह पूरी रात गुजर गई.” धोबी बोला.  

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ये सुनकर अकबर का पारा चढ़ गया और वे बिफ़रते हुए बोले, “ओह, तो तुम सारी रात महल के दीपक से गर्मी लेते रहे. ये तो तुमने बेईमानी की है. तुम ईनाम के नहीं बल्कि सज़ा के हक़दार दो. सैनिकों इसे बंदी बना लो.”

निर्धन धोबी को कारागार में डाल दिया गया. जब ये बात बीरबल को पता चली, तो वो बड़ा दु:खी हुआ. उस दिन वह दरबार नहीं गया.

दरबार से बीरबल को नदारत पाकर अकबर ने एक सैनिक को उसे बुलवाने उसके घर भेजा. सैनिक ने वापस आकर अकबर को बताया कि बीरबल ने भोजन नहीं किया है. वह खिचड़ी बना रहा है. खाकर वह दरबार में हाज़िर हो जायेगा.

समय गुजरता गया. सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गई, लेकिन बीरबल दरबार में हाज़िर नहीं हुआ. बीरबल कभी ऐसा नहीं करता था. बीरबल की ये हरक़त अकबर की समझ के बाहर थी.

शाम को वह स्वयं सैनिकों सहित बीरबल के घर पहुँचे. वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि बीरबल अपने घर के आँगन में चारपाई डालकर लेटा हुआ है. पास ही एक पेड़ के नीचे आग जल रही है और ऊपर घड़ा लटका हुआ है.

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यह नज़ारा देख अकबर हैरत में तो पड़े ही, साथ ही क्रोधित भी हुए. क्रोध में लाल-पीले होते हुए उन्होंने बीरबल से पूछा, “ये क्या है बीरबल? तुम अब तक दरबार में हाज़िर क्यों नहीं हुए?”

“मैंने ख़बर भिजवाई थी जहाँपनाह कि मैं खिचड़ी बना रहा हूँ. खाकर दरबार में हाज़िर हो जाऊंगा. देखिये सामने पेड़ पर लटके घड़े में खिचड़ी पक रही है.” पेड़ पर लटके घड़े की ओर इशारा कर बीरबल ने उत्तर दिया.

“ऐसे कोई खिचड़ी बनाता है. पेड़ के नीचे जल रही आग से ऊपर लटके घड़े की खिचड़ी कैसे पकेगी?” अकबर चिल्लाये.

“जब यमुना में खड़े धोबी को इतने दूर स्थित महल में जल रहे दीपक से गर्मी मिल सकती है. तो इस तरह भी खिचड़ी पक सकती है हुज़ूर. यहाँ तो आग उस दीपक की तुलना में निकट ही है.” बीरबल झट से बोला.

बीरबल की बात सुनकर अकबर का गुस्सा शांत हो गया. वे समझ गए कि बीरबल ने ये स्वांग उन्हें धोबी के साथ हुए अन्याय की बात समझाने के लिए किया है. उन्हें अपने किये पर पछतावा हुआ. सैनिकों से कहकर उन्होंने धोबी को कारागार से बाहर निकलवाया और उसे ईनाम की १०० स्वर्ण मुद्रायें दी.

इस तरह बीरबल ने अपनी अक्लमंदी से एक निर्धन धोबी के साथ अन्याय नहीं होने दिया.


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