चिड़िया और पेड़ की कहानी | Bird And Tree Story In Hindi

फ्रेंड्स, चिड़िया और पेड़ की कहानी (Bird And Tree Story In Hindi) इस पोस्ट में हम शेयर कर रहे हैं। किसी की “ना” से दिल दुखता है, तो ये कहानी ज़रूर पढ़ें :

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Bird And Tree Story In Hindi

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Bird And Tree Story In Hindi
Bird And Tree Story In Hindi

बरसात के दिन आने वाले थे। चिड़िया का एक जोड़ा घोंसला बनाने के लिए पेड़ तलाश रहा था। उड़ते-उड़ते वह जोड़ा एक नदी के किनारे पहुंचा। वहां कई पेड़ लगे हुए थे। उन्हें वह जगह अपने लिए उपयुक्त लगी।

एक पेड़ के पास जाकर वे विनती करने लगे, “बरसात के पहले हमें अपना घोंसला बनाना है। कृपा करके हमारी मदद करें। अपनी एक टहनी पर हमें घोंसला बनाने की अनुमति दे दें।”

पेड़ ने उन्हें इंकार कर दिया।

पेड़ के इंकार से चिड़िया के जोड़े को बहुत बुरा लगा। जाते-जाते वे बोले, “इतना अहंकार अच्छा नहीं! एक दिन तुम भी टूटोगे और तुम्हारा अहंकार भी।”

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पेड़ कुछ कह पाता, उसके पहले वे उड़ गए। उड़ते-उड़ते वे नदी के पास स्थिति जंगल में पहुंचे और वहां एक पेड़ से घोंसला बनाने की अनुमति मांगी। पेड़ सहर्ष तैयार हो गया। 

चिड़िया का जोड़ा उस पेड़ पर घोंसला बनाकर खुशी खुशी रहने लगा। बरसात का मौसम आ गया। लेकिन अब वे दोनों अपने घोंसले में सुरक्षित थे।

एक दिन आंधी तूफान के साथ घनघोर बरसात हुई और वह पेड़ टूटकर गिर गया, जिसने चिड़िया के जोड़े को अपनी शाखाओं पर घोंसला बनाने की अनुमति नहीं दी थी।

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तूफान थमा और बरसात बंद हुई, तो चिड़िया का जोड़ा नदी के पास पहुंचा। वहां उन्होंने उस पेड़ को नदी की तेज़ धार में बहते देखा। वे दोनों बहुत खुश हुए और पेड़ से बोले, “हमने कहा था ना कि एक दिन तुम भी टूटोगे और तुम्हारा अहंकार भी। आज वो दिन आ गया। ये तुम्हारे कर्मों का फल है।”

पेड़ ने कहा, “तुमने मुझे गलत समझा था। मैं पहले से जानता था कि मैं टूट जाऊंगा। मेरी जड़ें मिट्टी का साथ छोड़ रही थीं और शाखाएं कमज़ोर हो गई थीं। इसलिए मैंने उस दिन तुम्हें इंकार किया था। तुम मेरी शाखा पर घोंसला बनाते, तो आज जीवित न होते। लेकिन तुम्हें मेरा इंकार बुरा लग गया। उसके लिए क्षमा!”

पेड़ की बात सुनकर चिड़िया के जोड़े को अपनी सोच पर बहुत दुख हुआ। 

सीख (Chidiya Aur Ped Ki Kahani Moral)

दोस्तों! कई बार जीवन में हमें इंकार का सामना करना पड़ता है। ज़ाहिर है, इंकार सुनना किसी को पसंद नहीं। इंकार से हमारी भावनाएं आहत हो जाती हैं और उस समय हम सिर्फ अपनी भावनाओं के बारे में सोचते हैं।

हम खुले मन से ये विचार ही नहीं करते कि इंकार करने वाले की भी कोई मजबूरी रही होगी या उसने हमारे भले के लिए इंकार किया होगा। हम उसे भला बुरा कहते हैं। दूसरे के सामने उसकी बुराई करते हैं।

क्या एक “ना” भी हम सकारात्मक तरीके से नहीं ले सकते? अब से जब भी कोई “ना” कहे, तो उसे दिल से न लगाएं। उसका बुरा न माने। हो सकता है किसी की एक “ना” आपको बहुत बड़ी मुसीबत से बचा रही हो।

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