विचित्र आशीर्वाद गुरु नानकदेव का प्रेरक प्रसंग | Bizzare Blessing Guru Nanak Dev Prerak Prasang In Hindi
संतों और महापुरुषों के जीवन में अनेक ऐसे प्रसंग आते हैं, जो हमें जीवन की गहरी सच्चाइयों से परिचित कराते हैं। वे न केवल अपने आचरण से बल्कि अपनी वाणी और व्यवहार से भी समाज को दिशा देते हैं। ऐसे ही एक महान संत थे गुरु नानक देव। उनकी शिक्षाएँ न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से प्रेरणादायक थीं, बल्कि उनमें व्यवहारिकता और जीवन जीने की कला भी समाहित थी। वे सच्चे प्रेम, करुणा, दया और समानता के पक्षधर थे।
गुरु नानक देव के जीवन से जुड़ा एक प्रसंग ऐसा है, जो हमें यह समझने में सहायता करता है कि सज्जन और दुर्जन लोगों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह प्रसंग न केवल गुरु नानक देव की अद्भुत बुद्धिमत्ता और दिव्य दृष्टि को दर्शाता है, बल्कि यह भी समझाता है कि हमें जीवन में किस प्रकार के लोगों से जुड़ना चाहिए और किस प्रकार की संगति से बचना चाहिए। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सज्जन व्यक्ति जहाँ भी जाते हैं, वहाँ खुशहाली और नैतिकता का संचार करते हैं, जबकि दुर्जन व्यक्ति अपने अहंकार, नकारात्मकता और बुरे विचारों से वातावरण को दूषित कर देते हैं।
Bizzare Blessing Guru Nanak Dev Prerak Prasang
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गुरु नानक देव अपने शिष्यों के साथ देश-विदेश में भ्रमण करते थे। वे केवल एक धर्म के उपदेशक नहीं थे, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश लेकर चलते थे। इसी क्रम में वे एक दिन अपने शिष्यों के साथ एक गाँव पहुँचे। यह गाँव विशेष रूप से अपने कठोर हृदय, नास्तिक प्रवृत्ति और धर्म-विरोधी विचारों के लिए प्रसिद्ध था। वहाँ के लोगों को ईश्वर में विश्वास नहीं था, वे पूजा-पाठ और धर्म-कर्म को व्यर्थ समझते थे।
गुरु नानक देव की योजना थी कि वे इस गाँव में एक रात विश्राम करेंगे और अगले दिन आगे प्रस्थान करेंगे। जब गाँव वालों को उनके आने की सूचना मिली, तो उन्होंने नानक देव और उनके शिष्यों का उपहास किया। कुछ लोग उनके पास आए, लेकिन उन्होंने नानक देव के प्रति सम्मान प्रकट करने के बजाय तिरस्कार भरे शब्द कहे। उन्होंने उन पर कटाक्ष किए और उनकी आध्यात्मिकता को चुनौती दी।
गुरु नानक देव ने इन सभी नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के बावजूद कोई क्रोध या प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। वे शांत भाव से मुस्कुराते रहे। उनका धैर्य और सहनशीलता अपार थी।
अगले दिन जब गुरु नानक देव और उनके शिष्य गाँव से प्रस्थान करने लगे, तो गाँव वालों ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “गुरु जी, जाते-जाते हमें कुछ आशीर्वाद तो दीजिए!”
गुरु नानक देव मुस्कुराए और सहज भाव से बोले, “सदा आबाद रहो।”
गाँव वाले उनकी बात को हल्के में लेकर हँस पड़े और उन्हें अनदेखा कर दिया। वे यह नहीं समझ पाए कि गुरु नानक देव के इन शब्दों के पीछे क्या अर्थ छिपा है।
गुरु नानक देव अपनी यात्रा के दौरान एक अन्य गाँव पहुँचे। इस गाँव में लोग धर्मपरायण, दयालु और प्रेमपूर्वक व्यवहार करने वाले थे। वे साधु-संतों का सम्मान करते थे और ईश्वर में उनकी गहरी आस्था थी। जब गाँव वालों को गुरु नानक देव के आगमन की सूचना मिली, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उनका सादर स्वागत किया, उनके ठहरने और भोजन की उचित व्यवस्था की, और उनके प्रवचनों को सुनने के लिए बड़े उत्साह के साथ एकत्र हुए।
गुरु नानक देव ने गाँव में प्रवचन दिया और लोगों को सत्य, करुणा, प्रेम और ईमानदारी का मार्ग अपनाने की सीख दी। गाँव के लोग उनके ज्ञान से अत्यंत प्रभावित हुए और उनके प्रति गहरी श्रद्धा प्रकट की।
जब गुरु नानक देव वहाँ से प्रस्थान करने लगे, तो गाँव वालों ने विनम्रता से उनसे आशीर्वाद माँगा। उन्होंने कहा, “गुरु जी, कृपया हमें भी आशीर्वाद दें ताकि हमारा गाँव और अधिक सुखी और समृद्ध हो।”
गुरु नानक देव ने गंभीरता से कहा, “बिखर जाओ।”
गाँव वाले यह सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। उनके चेहरे पर अचरज के भाव थे। वे सोचने लगे कि उन्होंने गुरु जी की सेवा और सत्कार में कोई कमी नहीं की, फिर भी उन्हें ऐसा आशीर्वाद क्यों मिला?
गुरु नानक देव के शिष्य भी इस भेद को समझ नहीं पाए। वे स्वयं को रोक नहीं सके और एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक पूछा, “गुरुदेव, आपने उन लोगों को ‘सदा आबाद रहने’ का आशीर्वाद दिया, जिन्होंने आपका अपमान किया, और उन्हें ‘बिखर जाने’ का आशीर्वाद दिया, जिन्होंने आपको सम्मान और प्रेम दिया। ऐसा क्यों?”
गुरु नानक देव मुस्कुराए और बोले, “देखो, शिष्यों! सज्जन लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ अच्छाई, प्रेम और सद्भाव फैलाते हैं। यदि वे बिखरेंगे, तो संसार के हर कोने में नैतिकता और सच्चाई का प्रकाश फैलेगा। उनके विचार और कर्म समाज को आगे बढ़ाने में सहायक होंगे। इसलिए मैंने उन्हें ‘बिखर जाने’ का आशीर्वाद दिया।”
“इसके विपरीत, दुर्जन लोग अपने अहंकार, कटुता और नास्तिकता के कारण समाज को दूषित करते हैं। यदि वे एक स्थान पर एकत्र रहते हैं, तो उनकी बुराइयाँ केवल वहीं सीमित रहेंगी और अन्य स्थानों को दूषित नहीं करेंगी। इसलिए मैंने उन्हें ‘सदा आबाद रहने’ का आशीर्वाद दिया, ताकि उनकी नकारात्मकता एक ही स्थान पर बनी रहे और अन्य स्थानों पर उसका प्रभाव न पड़े।”
गुरु नानक देव के इस उत्तर को सुनकर शिष्यों के मन में छिपी शंका दूर हो गई। वे उनके ज्ञान और दिव्य दृष्टि को समझकर नतमस्तक हो गए।
सीख
1. सज्जनों का फैलाव समाज के लिए कल्याणकारी होता है – जब अच्छे लोग विभिन्न स्थानों पर जाते हैं, तो वे अपने सद्गुणों से समाज को बेहतर बनाते हैं।
2. दुर्जनों की एकता समाज के लिए घातक होती है – यदि बुरे लोग एक साथ एकत्र होते हैं, तो वे अपने आसपास नकारात्मकता ही फैलाते हैं।
3. बुराई पर क्रोधित होने के बजाय उसे समझना चाहिए – गुरु नानक देव ने नास्तिकों की निंदा नहीं की, बल्कि धैर्यपूर्वक अपनी बात रखी।
4. संतों की दृष्टि दूरगामी होती है – जो सामान्य लोग समझ नहीं पाते, संत उसे अपनी दिव्य दृष्टि से पहले ही देख लेते हैं।
5. जहाँ प्रेम और सेवा हो, वहाँ ज्ञान और समृद्धि बढ़ती है – अच्छे लोगों का आदर करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
गुरु नानक देव की यह कहानी हमें जीवन में सही संगति चुनने और अपनी अच्छाइयों को दूसरों तक पहुँचाने की प्रेरणा देती है। उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था।