ब्राह्मणी और नेवला ~ अपरीक्षितकारक : पंचतंत्र की कहानी | The Brahamani And The Mangoose Panchatantra Story

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में पंचतंत्र की कहानी “ब्राह्मणी और नेवला” (The Brahamani And The Mangoose Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. पंचतंत्र के तंत्र अपरीक्षितकारक से ली गई ये कहानी एक ब्राह्मणी और उसके द्वारा पाले गए नेवले की है. शंका ग्रस्त मनुष्य क्या अनिष्ट कर बैठता है? ये कहानी इसका वर्णन करती है. पढ़िए Brahmani Aur Nevla Ki Kahani :   

The Brahamani And The Mangoose Panchatantra Story In Hindi

The Brahamani And The Mangoose Panchatantra Story In Hindi
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The Brahamani And The Mangoose Panchatantra Story In Hindi : एक गाँव में देवशर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नि एक साथ रहता था. उसके घर के आंगन में एक नेवली भी रहा करती थी. देवशर्मा की पत्नि गर्भवती थी. जिस दिन उसने पुत्र को जन्म दिया, उस दिन नेवली ने भी एक नेवले को जन्म दिया. नेबले को जन्म देने के उपरांत नेवली चल बसी.

ब्राह्मण की पत्नि स्वभाव से दयालु थी. नवजात नेवले (Mangoose) के प्रति उसके ह्रदय में प्रेमभाव उमड़ पड़ा और वह अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण करने लगी. नेवला भी ब्राह्मण के परिवार से अच्छी-तरह घुल-मिल गया. वह सदा उनके पुत्र के साथ खेला करता. दोनों में अच्छी मित्रता हो गई थी.

ब्राह्मण और उसकी पत्नि को नेवले और अपने पुत्र की मित्रता में कोई आपत्ति नहीं थी. दोनों का प्रेम देख वे प्रसन्न थे. किंतु ब्राह्मणी का हृदय यदा-कदा चिंतित हो उठता और वह सोच बैठती कि पशु बुद्धि के कारण कभी नेवले ने उसके पुत्र का कुछ अनिष्ट कर दिया तो? यह शंका धीरे-धीरे उसके मन में घर करते गई. उधर ब्राहमण का विश्वास था कि पशुओं में भी प्रेमभाव की समझ होती है और नेवला अभी उसके पुत्र को अनिष्ट नहीं पहुँचाएगा.

एक दिन ब्राह्मणी अपने पुत्र को एक वृक्ष की छांव में सुलाकर नदी में पानी भरने चली गई. उस समय नेवला भी वहाँ खेल रहा था. जाने के पूर्व वह ब्राह्मण से पुत्र का ध्यान रखने को कह गई. उसे भय था कि कहीं नेवला उसे काट न लें?

ब्राह्मणी के जाने के बाद ब्राहमण ने सोचा कि नेवला और उसके पुत्र में गहरी मित्रता है. वह उसे क्यों कटेगा? और वह भिक्षाटन करने गाँव प्रस्थान कर गया.

ब्राहमण वहाँ से गया ही था कि वृक्ष के नीचे बने बिल से एक काला नाग निकल आया और ब्राहमण के पुत्र की ओर बढ़ने लगे. पास ही खेल रहे नेवले की दृष्टि जब काले नाग पर पड़ी, तो वह उस पर टूट पड़ा और मार डाला.

काले नाग को मारने के उपरांत वह घर से बाहर निकला, तो पानी भरकर वापस आती ब्राह्मणी की दृष्टि उस पर पड़ी. नेवले के मुँह में खून लगा हुआ था, जिसे देख ब्राह्मणी घबरा गई. उसने सोचा कि नेवला उसके पुत्र का वध करके आ रहा है. क्रोधवश अपने सिर पर उठाये घड़े को उसने नेवले पर पटक दिया और नेवले के प्राणपखेरू उड़ गए.

भागती हुई ब्राह्मणी जब अपने पुत्र के पास पहुँची, तो उसे वृक्ष की छांव में शांति से सोते हुए पाया. पास ही काले नाग का क्षत-विक्षत शरीर पड़ा हुआ था. उसे समझते देर न लगी कि उसके पुत्र की रक्षा के लिए नेवले ने काले नाग को मारा है. वह दुःख और पछतावे में अपना सिर पीटने लगी.  

तभी ब्राह्मण भिक्षाटन वापस लौटा. ब्राह्मणी ने उसे नेवले की बारे में पूरी बात बताकर कोसने लगी कि यदि मेरी बात मानकर तुम पुत्र के साथ रहते और लोभवश भिक्षाटन को नहीं जाते, तो नेवले की जान नहीं जाती. नेवले के प्राण तुम्हारे लोभवश गए हैं.

सीख (Moral of the story)

बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछिताये.

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