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बुड्ढा बुड्ढी की कहानी | Buddha Aur Buddhi Ki Kahani

buddha buddhi ki kahani बुड्ढा बुड्ढी की कहानी | Buddha Aur Buddhi Ki Kahani
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Buddha Aur Buddhi Ki Kahani

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Buddha Aur Buddhi Ki Kahani

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक बुड्ढा और बुड्ढी रहते थे। दोनों की उम्र ढल चुकी थी और उनकी संतानें अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गई थीं। बुड्ढा और बुड्ढी अब अकेले ही अपने जीवन के दिन गुजार रहे थे। उनकी जिंदगी साधारण थी, मगर उनका आपसी प्रेम और समझदारी गहरी थी। वे एक-दूसरे का साथ देने में ही अपनी खुशी ढूंढते थे।

बुड्ढा दिनभर खेत में काम करता और जो भी थोड़ा बहुत अन्न उगता, उसे लेकर बाजार में बेच आता। इससे उन्हें मुश्किल से ही पेट भरने लायक अनाज मिल पाता था। बुड्ढी घर पर रहती और बुड्ढा जब घर आता, तो वह उसे ताजगी से भर देने वाला भोजन बनाकर खिलाती। बुड्ढी को घर का काम करने में मजा आता था और वह कभी बुड्ढा की मेहनत को बेकार नहीं जाने देती थी। 

बुड्ढे को अपनी पत्नी पर गर्व था कि वह इतने कठिन समय में भी उसका साथ नहीं छोड़ती थी। हालांकि, उनकी स्थिति कठिन थी, लेकिन बुड्ढी ने कभी भी अपनी किस्मत को दोष नहीं दिया। वह कहती थी, “हमारा जीवन जैसा भी है, यह हमारा है। हमें इसे अपनाकर आगे बढ़ना चाहिए।”

एक दिन बुड्ढा जंगल से लकड़ियां काटने गया। वह रोज की तरह ही काम कर रहा था कि अचानक उसे एक बहुत ही बड़ा और अनोखा पेड़ दिखा। उस पेड़ की शाखाओं पर बहुत सारे सुंदर फल लटके हुए थे, जो उसने पहले कभी नहीं देखे थे। बुड्ढा ने सोचा कि अगर वह ये फल बाजार में बेच देगा, तो उन्हें काफी पैसे मिल सकते हैं। 

वह पेड़ के पास गया और एक फल तोड़ने की कोशिश की, मगर पेड़ ने बात की, “हे बुड्ढे, मैं कोई साधारण पेड़ नहीं हूं। मैं तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी की परीक्षा लेने आया हूं। अगर तुम लालच में पड़कर मेरे सारे फल तोड़ोगे, तो तुम्हें तुरंत ही सब कुछ खोना पड़ेगा। लेकिन अगर तुम मेरी इज्जत करोगे और केवल एक फल तोड़ोगे, तो तुम्हें जीवन भर की खुशी मिलेगी।”

बुड्ढा पहले तो चौंक गया, लेकिन उसने फिर सोचा कि वह कभी भी लालची नहीं रहा, तो आज क्यों हो? उसने सोचा कि एक फल ही काफी होगा और उसने केवल एक ही फल तोड़ा। जैसे ही उसने फल तोड़ा, पेड़ से एक चमकदार रोशनी निकली और वह गायब हो गया।

बुड्ढा खुशी-खुशी घर लौटा और बुड्ढी को सारा किस्सा सुनाया। बुड्ढी ने फल को बहुत ध्यान से देखा और फिर दोनों ने उसे खाने का फैसला किया। जैसे ही उन्होंने फल खाया, उनके शरीर में अद्भुत ऊर्जा आ गई और वे दोनों जवान हो गए। अब वे न सिर्फ सेहतमंद हो गए, बल्कि उन्हें फिर कभी भूख-प्यास का अनुभव नहीं हुआ।

यह देखकर गांव के लोग हैरान हो गए और पूछने लगे कि आखिर उनके साथ क्या हुआ। बुड्ढे और बुड्ढी ने गांववालों को पूरी घटना बताई। गांव के लोगों ने उनसे कहा कि वे भी उस पेड़ के पास जाकर ऐसे ही फल तोड़ेंगे और अपनी जिंदगी बदल लेंगे।

गांववालों ने पेड़ की खोज शुरू कर दी और जल्द ही उन्हें वह पेड़ मिल गया। लेकिन, वे बुड्ढे की तरह एक फल से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने सोचा कि जितने ज्यादा फल तोड़ेंगे, उतना ही ज्यादा फायदा होगा। उन्होंने पेड़ पर चढ़कर सारे फल तोड़ डाले और खुशी-खुशी उन्हें खाने लगे।

लेकिन जैसे ही उन्होंने फल खाया, उनके शरीर में बदलाव होने लगे। वे सभी लोग एक ही पल में बूढ़े हो गए और उनमें से कुछ तो इतने कमजोर हो गए कि तुरंत ही मर गए। जो बच गए, वे अपने लालच के कारण अब अपंग हो गए थे और उनका जीवन बहुत कठिन हो गया था।

जब बुड्ढे और बुड्ढी ने यह देखा, तो वे गांववालों के पास गए और उन्हें समझाया, “लालच हमेशा बुरा ही परिणाम देता है। ईश्वर ने हमें जो दिया है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। लालच में आकर हम जो कुछ भी पाने की कोशिश करते हैं, वह हमें और भी बुरी स्थिति में डाल देता है।”

बुड्ढे और बुड्ढी ने गांववालों से कहा, “हमने केवल एक फल लिया, क्योंकि हमें पता था कि आवश्यकता से अधिक लेना हमेशा नुकसानदायक होता है। संतोष ही सच्ची संपत्ति है।”

गांव के लोग, जो अब अपनी गलती समझ चुके थे, ने बुड्ढे और बुड्ढी से माफी मांगी और वादा किया कि वे अब जीवन में कभी लालच नहीं करेंगे। वे अपने जीवन को संतोष और ईमानदारी के साथ जीने लगे।

सीख

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि लालच और असंतोष हमें केवल बर्बादी की ओर ले जाते हैं। संतोष और ईमानदारी ही जीवन को सुखमय बनाते हैं। बुड्ढा और बुड्ढी की इस साधारण सी दिखने वाली कहानी में गहरा संदेश छिपा है। अगर हम अपनी इच्छाओं और लालच को नियंत्रित करना सीखें, तो हम अपने जीवन को बेहतर और खुशहाल बना सकते हैं। 

इस कहानी का संदेश यही है कि हमें अपने जीवन में जो भी मिला है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए और दूसरों के साथ भी ईमानदारी और सहानुभूति से पेश आना चाहिए। यही सच्चे सुख का रास्ता है।

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