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बूढ़ी गाय की कहानी | Budhi Gaay Ki Kahani 

budhi gaay ki kahani बूढ़ी गाय की कहानी | Budhi Gaay Ki Kahani 
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बूढ़ी गाय की कहानी (Budhi Gaay Ki Kahani) Old Cow Story In Hindi इस पोस्ट में शेयर की जा रही हैं।

Budhi Gaay Ki Kahani

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Budhi Gaay Ki Kahani Story In Hindi

यह कहानी एक बूढ़ी गाय की है, जिसका नाम “गौरी” था। गौरी एक छोटे से गाँव में रहती थी, जहाँ वह कई सालों तक एक परिवार के साथ रही। यह कहानी उसकी सेवा, त्याग, और जीवन के अंत में उसके साथ हुए व्यवहार को दर्शाती है।

गौरी जब छोटी थी, तब उसे गाँव के किसान, रामू, ने अपने घर लाया था। गौरी एक सुंदर और स्वस्थ बछिया थी, जिसकी आँखों में चमक थी और शरीर पर सफेद धब्बे थे। रामू ने उसे अपने बच्चों की तरह पाला-पोसा। गौरी ने रामू के परिवार के लिए अनगिनत वर्षों तक दूध दिया, जिससे उनके घर में खुशहाली और संपन्नता आई। उसके दूध से रामू की पत्नी घी, मक्खन और दही बनाती थी, जिन्हें बेचकर परिवार का गुजारा होता था। गौरी के दूध से रामू का परिवार ना केवल अपना पेट भरता था, बल्कि गाँव में उसकी ख्याति भी फैल गई थी।

गौरी ने अपने जीवन के अधिकांश वर्ष परिवार की सेवा में बिता दिए। वह सुबह जल्दी उठकर खेतों में जाने के लिए तैयार रहती थी। रामू उसे बहुत प्यार करता था, और उसके लिए विशेष घास और चारा लाता था। वह हर दिन गौरी को स्नान कराता और उसके थनों से दूध निकालता। गौरी ने अपने जीवन में कभी शिकायत नहीं की। उसने सर्दी, गर्मी और बरसात हर मौसम का सामना किया, लेकिन वह हमेशा रामू के परिवार के प्रति वफादार रही।

समय बीतता गया, और धीरे-धीरे गौरी बूढ़ी होने लगी। उसकी आँखों की चमक फीकी पड़ने लगी और उसका दूध भी कम हो गया। जहाँ पहले वह हर दिन बाल्टी भरकर दूध देती थी, अब मुश्किल से एक-आध लोटा दूध निकल पाता। उसके शरीर में अब पहले जैसी ताकत नहीं रही और वह कमजोर हो गई। रामू का परिवार, जो पहले गौरी को परिवार का हिस्सा मानता था, अब उसके प्रति उदासीन हो गया। 

गौरी ने महसूस किया कि अब वह पहले जैसी उपयोगी नहीं रही। उसकी हालत देखकर रामू भी परेशान रहने लगा, क्योंकि अब वह उसे पहले की तरह खिलाने-पिलाने में रुचि नहीं दिखा पाता था। एक दिन, रामू ने गाँव के अन्य किसानों के साथ बातचीत की और उन्हें अपनी समस्या बताई। गाँव के लोगों ने रामू को सलाह दी कि वह गौरी को किसी पशु मेले में बेच दे, ताकि उसे किसी और काम के लिए उपयोग किया जा सके। लेकिन रामू का दिल यह निर्णय लेने को तैयार नहीं था, क्योंकि गौरी ने उसकी इतनी सेवा की थी।

फिर भी, कुछ दिनों बाद रामू ने मजबूर होकर गौरी को बेचने का निर्णय लिया। उसने सोचा कि बूढ़ी गाय को रखने से कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि वह अब दूध नहीं देती। वह उसे मेले में ले गया, लेकिन वहां किसी ने भी उसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। गौरी अब बहुत कमजोर हो चुकी थी और उसे देखकर कोई भी उसे खरीदने को तैयार नहीं हुआ। रामू निराश होकर उसे वापस गाँव ले आया।

गाँव वापस आने पर रामू ने गौरी को अपने खेत के पास बाँध दिया और उसकी देखभाल बंद कर दी। गौरी ने दिन-रात वहीं बिताने शुरू कर दिए, बिना किसी उचित देखभाल के। वह धीरे-धीरे और भी कमजोर हो गई, क्योंकि उसे ठीक से भोजन और पानी नहीं मिल पाता था। उसका शरीर सूखने लगा और वह अपने अंतिम दिनों की ओर बढ़ रही थी। 

एक दिन, गाँव में एक साधु आया। साधु ने गाँव के लोगों से भोजन और जल माँगा। जब साधु रामू के घर पहुँचा, तो उसने गौरी को देखा, जो बहुत ही दयनीय स्थिति में थी। साधु ने रामू से पूछा, “यह गाय किसकी है?” रामू ने शर्माते हुए उत्तर दिया, “यह मेरी है, लेकिन अब यह बूढ़ी हो गई है और मेरे किसी काम की नहीं है।”

साधु ने गंभीरता से रामू की ओर देखा और कहा, “यह गाय तुम्हारे किसी काम की नहीं रही, लेकिन यह तुम्हारे जीवन का आधार रही है। इसने तुम्हें और तुम्हारे परिवार को वर्षों तक पोषित किया है। क्या यह तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि इसके अंतिम दिनों में तुम इसका ध्यान रखो?”

रामू ने साधु की बात सुनी और उसे गहरी शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने महसूस किया कि उसने अपनी गाय के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने में कमी कर दी है। रामू ने तुरंत गौरी के पास जाकर उसे प्यार से सहलाया और उसे उठाकर घर ले आया। उसने गौरी के लिए फिर से विशेष भोजन और पानी की व्यवस्था की और उसकी सेवा करने लगा।

रामू का परिवार भी अब गौरी की देखभाल में जुट गया। उन्होंने उसे उसके अंतिम दिनों में भरपूर प्यार और देखभाल दी। रामू को अब यह एहसास हो चुका था कि गौरी ने अपने जीवन में उनके लिए क्या-क्या किया था। उसने अपने किए पर पश्चाताप किया और वादा किया कि वह अब गौरी की पूरी देखभाल करेगा, चाहे वह अब दूध न भी दे सके।

गौरी, जिसने अपने जीवन के अधिकांश समय रामू और उसके परिवार की सेवा में बिताया था, अब अपने अंतिम दिनों में परिवार से मिलने वाले प्यार और देखभाल का आनंद लेने लगी। कुछ समय बाद, गौरी ने शांति से अपनी अंतिम साँस ली। उसकी मृत्यु ने रामू और उसके परिवार को गहरा दुख दिया, लेकिन साथ ही उन्हें यह सिखाया कि सेवा और प्रेम का महत्व क्या होता है।

रामू ने गौरी के सम्मान में गाँव के मंदिर के पास उसकी याद में एक छोटा सा स्मारक बनवाया। गाँव के लोग भी रामू के इस कार्य से प्रेरित हुए और उन्होंने संकल्प लिया कि वे भी अपने पशुओं का अंतिम समय तक ध्यान रखेंगे, चाहे वे बूढ़े या असहाय क्यों न हो जाएं।

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि हर जीवित प्राणी की सेवा और देखभाल हमारी जिम्मेदारी है, चाहे वह हमारे लिए कितना भी उपयोगी हो या न हो। बूढ़ी गाय गौरी ने रामू के परिवार को जीवन भर दिया, और उसके अंतिम दिनों में उसकी देखभाल न करना एक बड़ी भूल थी। यह कहानी हमें सिखाती है कि कृतज्ञता और प्रेम ही सच्ची मानवता है, और हमें अपने जीवन में उन सभी का सम्मान करना चाहिए, जिन्होंने हमें कुछ दिया है।

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