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चल मेरे मटके टम्मक टू कहानी | Chal Re Matke Tammak Tu Kahani

chal mere matake tammak tu kahani चल मेरे मटके टम्मक टू कहानी | Chal Re Matke Tammak Tu Kahani
Written by Editor

चल मेरे मटके टम्मक टू कहानी (Chal Re Matke Tammak Tu Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। ये एक चतुर बुढ़िया की कहानी है, जो अपनी अक्लमंदी से अपनी जान बचाती है।

Chal Re Matke Tammak Tu Kahani

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Chal Re Matke Tammak Tu Kahani

एक समय की बात है, एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। वह अकेली रहती थी, लेकिन उसकी एक बेटी थी, जो शहर में रहती थी। बुढ़िया की बेटी ने एक दिन अपनी माँ को कुछ समय के लिए अपने पास शहर में आने का निमंत्रण दिया। बुढ़िया ने सोचा, “कितने दिनों से मैं अपनी बेटी से नहीं मिली हूँ। अब उससे मिलने का मौका मिला है।” बुढ़िया बहुत खुश हुई और अपनी बेटी के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए। उसने बेटी के लिए कई उपहार भी इकट्ठे किए और शहर के लिए निकल पड़ी।

शहर जाने का रास्ता लंबा और कठिन था। गाँव से शहर जाने के बीच में एक घना जंगल था, जिसमें कई खतरनाक जानवर रहते थे। लेकिन बुढ़िया ने हिम्मत नहीं हारी और वह जंगल के रास्ते पर चल पड़ी।

जंगल के अंदर जाने के कुछ देर बाद ही, बुढ़िया का सामना एक भेड़िये से हो गया। भेड़िया ने भूख से लालच भरी आँखों से बुढ़िया की ओर देखा और कहा, “बुढ़िया-बुढ़िया, मैं तुझे खा जाऊँगा।” बुढ़िया ने घबराए बिना जवाब दिया, “अभी नहीं भेड़िया भाई, पहले मुझे अपनी बेटी से मिलने दे। मैं मोटी-ताजी होकर वापस आऊँगी, तब तुझे मुझे खाने का पूरा मौका मिलेगा।” भेड़िया ने सोचा, “यह तो अच्छा सौदा है,” और वह मान गया, “ठीक है, लेकिन जल्दी आना।”

बुढ़िया आगे बढ़ी, लेकिन जंगल में आगे बढ़ते ही उसकी मुलाकात लकड़बग्घे से हुई। उसने भी बुढ़िया को धमकी दी, “बुढ़िया-बुढ़िया, मैं तुझे खा जाऊँगा।” बुढ़िया ने फिर वही चतुराई दिखाई और कहा, “अभी नहीं लकड़बग्घा भाई, पहले मुझे अपनी बेटी से मिलने दो। वापस आकर मैं तुझसे मिलूँगी।” लकड़बग्घे ने भी उसे जाने दिया, लेकिन जल्द लौटने की हिदायत दी।

आगे चलकर बुढ़िया का सामना लोमड़ी, भालू और आखिर में शेर से भी हुआ। सभी जानवरों ने बुढ़िया को धमकाया, लेकिन बुढ़िया ने हिम्मत से सबको यही जवाब दिया, “पहले मैं अपनी बेटी से मिल आऊँ, फिर तुझे मोटी-ताजी होकर खाने का मौका दूँगी।” जानवरों ने उसे छोड़ा, लेकिन सभी ने जल्दी लौटने को कहा।

आखिरकार बुढ़िया जंगल पार करके अपनी बेटी के घर पहुंची। बेटी ने माँ को देखकर खुशी से उसका स्वागत किया। बुढ़िया ने अपनी बेटी को सारे पकवान और उपहार दिए, और बेटी ने भी बुढ़िया की खूब खातिरदारी की। बुढ़िया और उसकी बेटी ने कुछ दिनों तक खूब आनंद से समय बिताया।

लेकिन जल्द ही, बुढ़िया को अपने घर लौटने की चिंता सताने लगी। वह उदास हो गई क्योंकि उसे याद आया कि वापसी में उसे उन खतरनाक जानवरों का सामना करना पड़ेगा, जो उसे खा जाने की धमकी दे चुके थे। बुढ़िया की चिंता देखकर उसकी बेटी ने पूछा, “माँ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?” बुढ़िया ने उसे जंगल के जानवरों के बारे में सारी बात बता दी।

बेटी ने माँ की चिंता सुनी और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “माँ, आप चिंता मत करो, मेरे पास एक योजना है।

बेटी ने एक बड़ा मटका मँगवाया। उसने मटके में बुढ़िया के लिए खाना, पानी और जरूरी सामान रख दिया। फिर उसने बुढ़िया को मटके के अंदर बैठा दिया और मटके का मुँह कपड़े से बंद कर दिया। बेटी ने मटके को जंगल के रास्ते पर लुढ़का दिया। बुढ़िया मटके के अंदर से ही मटके को लुढ़काती जाती थी और गुनगुनाती थी, “चल मेरे मटके टिम्बकटू, चल मेरे मटके टिम्बकटू।”

जंगल के रास्ते में सबसे पहले भेड़िया मिला, जो बुढ़िया का इंतजार कर रहा था। उसने मटके को देखकर पूछा, “मटके-मटके, क्या तुमने बुढ़िया को देखा है?” बुढ़िया ने मटके के अंदर से जवाब दिया, “चल हट, कहाँ की बुढ़िया कहाँ का तू। चल मेरे मटके टिम्बकटू।” भेड़िया सोच में पड़ गया, “यह आवाज़ तो जानी-पहचानी लगती है,” लेकिन फिर भी वह मटके के पीछे-पीछे चलने लगा।

इसके बाद बुढ़िया का सामना लकड़बग्घा, लोमड़ी, और भालू से भी हुआ। सबने मटके से वही सवाल किया, “मटके-मटके, क्या तुमने बुढ़िया को देखा है?” और बुढ़िया ने सभी को फटकारते हुए जवाब दिया, “चल हट, कहाँ की बुढ़िया कहाँ का तू। चल मेरे मटके टिम्बकटू।” सभी जानवर मटके के पीछे-पीछे चलने लगे, लेकिन कोई भी मटके को रोक नहीं पाया।

अब बुढ़िया के घर के पास पहुँचने से पहले उसे शेर मिला। शेर ने मटके को दहाड़ते हुए रोका और पूछा, “मटके-मटके, क्या तूने बुढ़िया को देखा है?” शेर की दहाड़ से बुढ़िया डर गई और कांपती आवाज़ में बोली, “क..हाँ.. की.. बु..ढ़ि..या.. क..हाँ.. का.. तू..। चल..मे..रे..मट..के.. टि..म्ब..क..टू..।” बुढ़िया ने जल्दी से मटका लुढ़काना चाहा, लेकिन मटका एक पत्थर से टकरा गया और फूट गया। मटके के फूटते ही बुढ़िया बाहर निकल पड़ी।

जानवरों ने बुढ़िया को देखकर कहा, “अरे, यह तो वही बुढ़िया है!” बुढ़िया पहले तो घबरा गई, लेकिन फिर उसने हिम्मत से काम लिया। उसने पास पड़े रेत के ढेर पर खड़े होकर जानवरों से कहा, “अगर तुम मुझे खाना चाहते हो, तो पहले मेरे पास आकर बैठ जाओ।” जानवर खुश होकर बुढ़िया के पास आकर बैठ गए। बुढ़िया ने रेत के ढेर से पूरी ताकत से फूंक मारी, जिससे रेत उड़कर जानवरों की आँखों में चली गई। आँखों में रेत भरते ही जानवर दर्द से कराहने लगे और अपनी आँखें मलने लगे।

बुढ़िया ने मौके का फायदा उठाया और तेजी से अपने घर की ओर दौड़ी। वह घर में घुसकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। जानवरों को अब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, और बुढ़िया सुरक्षित अपने घर में थी।

सीख

इस तरह, अपनी बेटी की समझदारी और अपनी चतुराई से बुढ़िया ने न केवल अपनी जान बचाई, बल्कि अपनी बेटी से मिलने की अपनी इच्छा भी पूरी की। यह कहानी हमें सिखाती है कि बुद्धिमानी और हिम्मत से किसी भी मुश्किल स्थिति का सामना किया जा सकता है।

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