चालाक चंदू : केरल की लोक-कथा | Chalaak Chandu Kerala Ki Lok Katha 

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम चालाक चंदू केरल की लोक-कथा (Chalaak Chandu Kerala Ki Lok Katha) शेयर कर रहे है.  Chalaak Chanu Kerala Folk Tale In Hindi चंदू नामक एक सुनार की कहानी है, जो हाथ की सफाई में माहिर था। एक सेठ उससे नौलखा हार बनवाता है और उस पर पूरी निगरानी रखता है कि वो कोई चालाकी न दिखा सके। क्या सेठ कामयाब रहता है या चंदू हाथ की सफाई दिखा जाता है। जानने के लिए पढ़िये :

Chalaak Chandu Kerala Ki Lok Katha 

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Chalaak Chandu Kerala Ki Lok Katha 
Chalaak Chandu Kerala Ki Lok Katha

केरल राज्य के एक गाँव में एक व्यापारी अपनी पत्नी और पुत्री चंद्रिका के साथ रहता था। गाँव के सब लोग उसे ‘गणेश सेठ’ कहकर पुकारते थे।

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गणेश सेठ ने अपनी पुत्री चंद्रिका का रिश्ता बाल्यकाल में ही निश्चित कर दिया था। जब वह विवाह योग्य हुई, तो उसके विवाह की तिथि नियत की गई और विवाह की तैयारी प्रारंभ हुई।

सेठ अपनी बेटी का विवाह बहुत धूमधाम से करना चाहता था। वह उसके लिए एक कीमती नौलखा हार भी बनवाना चाहता था। एक दिन उसने अपनी पत्नी को बुलाया और उसे अपनी इच्छा बताई।

पत्नी बोली, “ये तो बड़ी अच्छी बात है। मगर आप नौलखा हार बनवायेंगे किससे?”

“चंदू सुनार से! उसके जैसा बारीक काम कोई और सुनार नहीं कर पायेगा। उसके काम में जो सफाई है, वो किसी सुनार में नहीं।” सेठ ने उत्तर दिया।

“नहीं! तुम उससे नौलखा हार मत बनवाना।” पत्नी बोली।

“क्यों?” सेठ ने पूछा।

“इसलिए क्योंकि काम की सफाई के साथ-साथ वह हाथ की सफाई में भी माहिर है। मेरी सहेली रंभा ने उसे अपना दस तोले का सोने का हार चमकाने दिया। जब हार वापस मिला, तो वो बस नौ तोले का था। जानकी ने उससे मोतियों का हार बनवाया, तो सारे मोती नकली निकले। हमने उससे नौलखा हार बनवाया और वो नकली निकल गया, तो चंद्रिका के ससुराल में कितनी बदनामी होगी।” पत्नी ने अपनी शंका जताई।

“बात तो तुम ठीक कह रही हो। लेकिन उसके जैसा हार कोई और बना नहीं पायेगा। इसलिए हार तो मैं उससे ही बनवाऊंगा। देखता हूँ, वो मुझे कैसे धोखा देता है। वो शेर है, तो मैं सवा शेर। तुम बस देखती जाओ।”

“मुझे डर है कि हमारा नुकसान न हो जाये। इसलिए एक बार सोच लो।” पत्नी ने सेठ को चेताया।

“मैंने सोच लिया है। इस बार मेरी चालाकी के सामने उसकी चालाकी धरी की धरी रह जायेगी। तुम चिंता मत करो।” सेठ पत्नी को आश्वासन देते हुए बोला।

अगले दिन सेठ ने चंदू सुनार को बुलाया और नौलखा हार बनवाने का काम सौंपते हुए बोला, “चंदू! तुम्हारी हाथ की सफाई के बहुत चर्चे सुने हैं। ये मेरी बेटी की शादी का हार है। मैं नहीं चाहता कि इसमें तुम कोई हेराफेरी करो। इसलिए तुम ये हार काली नदी के पार बने मेरे मकान में बनाओगे और मेरा एक आदमी हर समय तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारी निगरानी करेगा।”

सेठ की बात सुनकर चंदू बोला, “सेठ जी! कैसी बातें करते हो? चंद्रिका तो मेरी बेटी जैसी है। भला उसके विवाह के गहने के साथ मैं ऐसा क्यों करूंगा? आप मुझ पर विश्वास करें। आप जैसा चाहते हैं, मैं वैसा ही हार बनाकर दूंगा, वो भी एक दम खरा। मुझे मेरी दुकान पर ही काम करने दीजिये।”

“नहीं चंदू! ये मेरी बेटी के ससुराल के सामने इज्ज़त की बात है। मैं किसी पर विश्वास नहीं करूंगा। तुमसे जैसा कहता हूँ, वैसा ही करो। कल से काली नदी के पार बने मकान में काम शुरू कर दो।”

अगले दिन से काम शुरू हो गया। चंदू और सेठ जी का नौकर मुरली नाव में बैठकर काली नदी के पार सेठजी के मकान में जाते और चंदू वहीं हार बनाता। मुरली उसकी निगरानी करता। शाम को अधबना हार लेकर वे वापस लौट आते। सेठ अधबना हार अपनी तिजोरी में रख लेता। अगले दिन उसे तिजोरी से निकालकर चंदू को देता।

अपने ऊपर सेठ का ये अविश्वास देखकर चंदू दु:खी था। किंतु फिर भी वह मन लगाकर काम करता। वह चाहता था कि उसके बनाए हार में चंद्रिका बहुत सुंदर लगे। लेकिन वह मुरली से बहुत परेशान था।

मुरली दिन भर उसके सिर पर सवार रहता। वह सिर खुजलाता, तो मुरली उसके बालों को टटोलता; वह छींक मारता, तो मुरली उसके रूमाल की तलाशी लेता। एक दिन तो हद हो गई। चंदू ने रूमाल से अपना मुँह पोंछा, तो मुरली उसकी मूंछ के बाल टटोलने लगा।

चंदू को बड़ा गुस्सा आया। एक क्षण को उसने सोचा कि काम ही छोड़ दे। किंतु जब उसे चंद्रिका बिटिया का ख़याल आया, तो उसने मन बदल दिया। सोचा – एक बार हार बन जाये, फिर मैं सेठजी को और इस मुरली को मजा चखाऊंगा।

आखिर वह दिन आ ही गया, जब नौलखा हार बनकर तैयार हो गया। बस उसे चमकाना बाकी था। चमकाने का काम अगले दिन किया जाना था। शाम को हार सेठ की तिजोरी में ही रहा।

अगले दिन उसे लेकर चंदू मुरली के साथ काली नदी पार करके सेठ के मकान में पहुँचा। उसने हार चमकाने का काम शुरू किया और दोपहर तक हार पूरी तरह से तैयार हो गया। चंदू ने हार को लाल रंग के मखमली कपड़े में लपेटा और एक डिब्बे में बंद कर नाव में बैठकर मुरली के साथ वापस लौटने लगा।

सेठ को पता था कि आज नौलखा हार बनकर तैयार हो जायेगा। उत्साह में वह नदी के किनारे पहुँच गया। चंदू ने जब सेठजी को नदी किनारे खड़े देखा, तो नाव से ही ज़ोर-ज़ोर से हाथ हिलाने लगा। हाथ हिलाते हुए वह खुद भी इतना डोल रहा था कि नाव भी डांवाडोल होने लगी।

मुरली ने नाव को संभालने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाव का संतुलन बिगड़ गया और वह उलट गई। चंदू और मुरली नदी में गिर पड़े। सेठ ने गाँव वालों को बुलाकर बड़ी मुश्किल से चंदू और मुरली को बाहर निकाला।

बाहर निकलने के बाद चंदू ने हार सेठ को सौंप दिया। सेठ खुश था कि नाव के उलट जाने और चंदू के पानी में गिरने के बाद भी नौलखा हार सही-सलामत है।

उसने चंदू को हार बनाने के पैसे दिए और घर चला आया। सेठानी हार देखकर खुश तो हुई, पर उससे कहीं ज्यादा अपने पति की चतुरता पर। गाँव भर के लोगों ने सेठ की भूरी-भूरी प्रशंसा की कि चालाकी में सेठ चंदू से बीस है।

दिन गुजरे और वो दिन भी आ गया, जब चंद्रिका का विवाह था। सेठानी ने नौलखा हार का डिब्बा खोला, तो दंग रह गई। हार काला पड़ चुका था। वह सिर पीटकर रह गईं। सेठ को बुलाकर हार दिखाया, तो सेठ आगबबूला हो गया।

उसने चंदू को बुला भेजा। चंदू आया और सेठ उस पर भड़कने लगा। चंदू सेठ को हार देता हुआ बोला, “सेठजी शांत हो जाइये। ये लीजिए नौलखा हार। आपकी अमानत। आपने मुझ पर विश्वास नहीं किया था। इसलिए मैंने ये सारा खेल किया था।”

हार लेकर सेठ ने पूछा, “मगर इतनी निगरानी के बाद भी तुमने असली हार गयाब कैसे किया?”

चंदू बोला, “सेठ जी! आपको याद है, जिस दिन मैंने आपको नौलखा हार पूरा तैयार कर सौंपा था, उस दिन नदी में नाव उलट गई थी।”

सेठ, “हाँ, वो मैं कैसे भूल सकता हूँ। बड़ी मुश्किल से तुम लोगों को नदी से निकाला था।”

“सेठ जी! मैंने नकली नौलखा हार नदी के भीतर छुपा कर रखा था। नाव उलटने पर मैंने असली हार को नकली हार से बदल दिया और किसी को पता भी न चला। असली हार मैंने नदी में ही छुपाकर रख दिया था, जो मैं रात को निकाल लाया।”

आखिर सेठ को मानना पड़ा कि चंदू उससे कहीं ज्यादा चालाक है।

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