Success Story In Hindi

सिनेमाघर के कैंटीन में काम करने वाले ने कैसे बनाई 2200 करोड़ की कंपनी | Chandubhai Virani Owner Balaji Wafers And Namkeen PVT Ltd. Success Story In Hindi

Chandubhai Virani Balaji Wafers Success Story In Hindi
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इस पोस्ट में हम चंदू भाई वीरानी बालाजी वेफर्स की सफ़लता की कहानी (Chandubhai Virani Owner Balaji Wafers Success Story Biography In Hindi) शेयर कर रहे हैं। Balaji Wafers And Namkeen Private Limited Company Owner, History, Challenges, Products, Networth आदि जानकारियां आप इस पोस्ट में पढ़ सकते हैं।

Chandubhai Virani Balaji Wafers Success Story In Hindi

Chandubhai Virani Owner Balaji Wafers Success Story

Table of Contents

बालाजी वेफ़र्स क्या है? | What Is Balaji Wayfers 

बालाजी वेफ़र्स और नमकीन ग्रुप भारत के गुजरात प्रांत के राजकोट शहर में स्थापित आलू चिप्स, नमकीन और अन्य स्नैक्स की प्रमुख निर्माता और वितरक कंपनी है.

बालाजी वेफर्स कंपनी का मालिक कौन है? | Balaji Wayfers Company Owner 

कंपनी के एमडी चंदूभाई वीरानी ने अपने भाइयों के साथ मिलकर आज इस कंपनी को 2200 करोड़ रूपये की कंपनी बना दिया है. लेकिन न कंपनी की शुरूवात आसान थी, न ही वह राह, जिस पर चलकर आज कंपनी इस मुकाम कर है.

राजकोट के एस्त्रोन सिनेमा के कैंटीन से शुरू हुआ चंदुभाई वीरानी और उनके भाइयों का सफ़र उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था. आइये जानते हैं उनकी सफ़लता की कहानी  (Chandubhai Virani Founder Balaji Wafers Success Story In Hindi) :

Balaji Wayfers Owner Chandubhai Virani Biography In Hindi 

चंदूभाई वीरानी का जन्म और प्रारंभिक जीवन | Chandubhai Virani Birth And Early Life 

नाम  चंदूभाई वीरानी 
जन्म  31-01-1951
जन्म स्थान जामनगर (गुजरात)
पिता का नाम पोपट भाई
व्यवसाय बालाजी वेफर्स एंड नमकीन प्राइवेट लिमिटेड 

चंदूभाई वीरानी (Chandubhai Virani) का जन्म जामनगर जिले के कलावाड़ ताल्लुक में धुन-धोराजी गाँव में हुआ था. उनके पिता पोपटभाई किसान थे.  

बारिश की कमी की वजह से खेती में लगातार आ रही मुश्किलों के कारण पोपटभाई ने अपना खेत बेच दिया और उससे प्राप्त पैसे में से ₹20,000 रुपये अपने बेटों को देकर कोई व्यवसाय प्रारंभ करने को कहा.

वीरानी भाइयों ने उन पैसों से खाद और कृषि उपकरण का व्यवसाय प्रारंभ किया. लेकिन वह व्यवसाय सफ़ल न हो सका. वीरानी भाइयों ने राजकोट का रूख कर लिया और वहाँ जाकर कॉलेज छात्रों के लिए बोर्डिंग और लोजिंग मैस खोल लिया. लेकिन वह काम भी चल न सका.

उस समय चंदूभाई की उम्र मात्र 17 वर्ष थी और वे स्कूल में थे. लेकिन वे अपनी पढ़ाई जारी न रख सके. भाइयों का हाथ बंटाने वे भी राजकोट आ गए.

बालाजी वेफर्स कंपनी की शुरुआत कैसे हुई? | Balaji Wayfers Company History 

1974 में राजकोट में एस्त्रोन सिनेमा प्रारंभ हुआ, जहाँ की कैंटीन में वीरानी भाइयों को काम मिल गया. कैंटीन के काम के अतिरिक्त भी वे वहाँ के हर काम करते, फिर चाहे वो साफ़-सफ़ाई का काम हो, टिकट काउंटर पर बैठने का या गार्ड का. सिनेमा का मालिक उनके काम से बहुत ख़ुश था. इसलिए 1976 में उसने उन्हें एस्त्रोन सिनेमा का कैंटीन ठेके पर चलाने का प्रस्ताव दिया. वीरनी भाइयों ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया.

एस्त्रोन सिनेमा के कैंटीन में वे लोग चिप्स, नमकीन, सॉफ्टड्रिंक्स आदि बेचने लगे. काम ठीक-ठाक चलने लगा. प्रारंभ में चंदूभाई अपने भाइयों के सहायक के रूप में काम करते रहे और व्यवसाय की बारीकियों को समझते रहे.

कैंटीन में सबसे ज्यादा बिक्री वैफर्स की होती थी. इसलिए चंदूभाई वीरानी (Chandubhai Virani) अपने भाइयों के साथ मिलकर वेफ़र्स की बिक्री से अधिक मुनाफ़ा कमाने के बारे में विचार करने लगे. उस समय वे लोग वैफ़र्स के पैकेट खरीद कर बेचा करते थे. चंदूभाई और उनके बड़े भाई भीकाभाई ने खुले वेफ़र्स खरीदकर उसे पैकेट में भरकर बेचने की योजना बनाई, जो सफ़ल रही और उन्हें पहले से अधिक मुनाफ़ा होने लगा.

मुनाफ़े में और बढ़ोत्तरी के लिए उन्होंने कैंटीन के मेन्यू में सैंडविच भी शामिल कर लिया. इससे उनका मुनाफ़ा कुछ और बढ़ गया. चंदूभाई जिम्मेदार तो थे ही, साथ ही महत्वकांकक्षी भी. वे अपने व्यवसाय में तरक्की चाहते थे. 1982 में भाइयों से सलाह-मशविरा कर उन्होंने घर पर एक तवा लगा लिया और घर पर ही आलू के चिप्स बनाने लगे. चिप्स बनाने की पूरी ज़िम्मेदारी चंदूभाई की थी. उन्होंने एक ऐसा रसोइया ढूंढा, जो चिप्स बनाने में माहिर था. इस तरह घर पर चिप्स तैयार करने का काम चल पड़ा.

घर पर तैयार किये गए वैफ़र्स को उन्होंने ‘बालाजी’ (Balaji) का नाम दिया और कैंटीन के साथ ही अन्य दुकानों में भी बेचने लगे. बालाजी वेफ़र्स (Balaji Wafers) मोपेड पर लादकर दुकानों में सप्लाई की जाने लगे. यह काम भी आसान नहीं था. शुरुआत में दुकानदारों से पेमेंट लेने में दिक्कतें सामने आई. कई बार पेमेंट देर से मिली या मिली ही नहीं. लेकिन वे अपना काम ईमानदारी से करते रहे.

बालाजी वेफ़र्स (Balaji Wafers) करारे और स्वादिष्ट थे. इसके स्वाद ने जल्द ही ग्राहकों में अपनी पैठ बना ली और परिणामस्वरूप इसकी डिमांड बढ़ने लगी. ग्राहकों की डिमांड बढ़ने पर बालाजी वेफ़र्स (Balaji Wafers) की सप्लाई लेने वाले दुकानदारों की संख्या भी बढ़ने लगी. अब मोपेड पर वेफ़र्स की सप्लाई करना मुश्किल हो गया. इसलिए पहले रिक्शे की व्यवस्था की गई. बाद में डिमांड और बढ़ने पर लोन पर टेम्पो ले लिया गया.

डिमांड पूरी करने के लिए उत्पादन में वृद्धि आवश्यक थी. लेकिन चिप्स बनाना इतना भी आसान नहीं था. आलू ख़रीदने से लेकर छीलने, धोने, काटने और तलने के साथ-साथ पैकिंग भी करनी पड़ती थी, जिसमें ज्यादा मेहनत तो लगती ही थी, समय भी ज्यादा लगता था. काफ़ी सोच-विचार के बाद वीरानी भाइयों ने मशीन में निवेश करने का निर्णय लिया गया.

उस समय मार्केट में मात्र 5 किलो की क्षमता की आलू छीलने की मशीन उपलब्ध थी. स्पेशल ऑर्डर पर 10 से 20 किलो आलू छीलने की क्षमता की मशीन बनवाई गई. आलू काटने की मशीन की भी स्पेशल यूनिट तैयार करवाई गई, जिसमें एक साथ 10 आलू काटे जा सकें. मशीनरी में निवेश के परिणामस्वरुप उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी हुई.

1982 से 1989 तक व्यवसाय में तो तेजी आ गई थी, लेकिन मुनाफ़ा कुछ ख़ास नहीं था. ऐसे में सबसे बड़े भाई अन्य व्यवसायों में हाथ आज़माने का विचार करने लगे. लेकिन चंदूभाई इसी काम को आगे ले जाना चाहते थे. 1989 में, बालाजी वेफ़र्स (Balaji Wafers) में प्रतिवर्ष 2 लाख चिप्स की बिक्री हो रही थी. उस वर्ष सिटीजन बैंक से लोन लेकर राजकोट में 10000 वर्गमीटर का एक प्लाट ख़रीदा गया और वहाँ 8 तवे लगा दिए गए. साथ ही स्टाफ भी बढ़ा दिया गया.

बालाजी वेफर्स के सामने आई चुनौतियां | Balaji Wayfers Challenges

बालाजी वेफर्स के लिए सफलता का सफर आसान नहीं था। इस सफर में उन्हें कई मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा 

1. आटोमेटिक वेफ़र-मेकिंग प्लांट की असफलता 

1992 तक, ‘बालाजी वेफ़र्स’ (Balaji Wafers) की प्रतिवर्ष बिक्री 3 करोड़ हो चुकी थी. लेकिन चंदूभाई संतुष्ट नहीं थे. वे बेहतर दाम और पैकेजिंग के साथ बेहतर क्वालिटी ग्राहकों को देना चाहते थे, जो तवा पर बने चिप्स में दे पाना संभव न था. इसलिए 1992 में  उन्होंने आटोमेटिक वेफ़र-मेकिंग प्लांट डाल लिया. पुणे की मैथर एंड प्लांट कंपनी से मशीन ख़रीदी गई.

आटोमेटिक वेफ़र-मेकिंग प्लांट के साथ शुरुवाती 6 महीने बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा जिस कंपनी से मशीन ख़रीदी थी, वो बंद हो चुकी थी. वीरानी भाइयों के पास न तो इंजीनियर थे, न तकनीकी स्टाफ. प्लांट की क्षमता 1000 किलो चिप्स/ घंटे थी. लेकिन उससे नाम मात्र ही उत्पादन हो पा रहा था. किसी तरह इस समस्या से निजात पाया गया.

2. विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना 

90 के दशक के शुरुवात में कई बड़े ब्रांड प्रतियोगी के रूप में सामने आ गये, जैसे अंकल चिप्स (uncle chips) और बिन्नी (binny). ये आकर्षक पैकेजिंग से ग्राहकों को लुभाने लगे. बालाजी वेफर्स अब भी पारदर्शी प्लास्टिक के पैकेट, जिसमें नीले-पीले रंग के लोगो लगे थे, में चिप्स बेच रहा था. प्रतिस्पर्धा के दौर में वीरानी भाइयों ने पैकेजिंग मशीन में निवेश करने का निर्णय लिया.

विदेशी मशीन की कीमत 60 लाख थी. लोकल मशीन की कीमत 6 लाख. वीरानी भाइयों ने लोकल मशीन खरीद ली. इस निर्णय पर उन्हें पछताना पड़ गया क्योंकिं यह मशीन बुरी तरह फेल रही. किसी तरह कानूनी कार्यवाही के जरिये मशीन सप्लायर को वापस की गई, लेकिन तब तक 2- 3 साल बर्बाद हो गए थे.  बाद में जापान से 1995 में इम्पोर्टेंट मशीन खरीदी गई. तब तक पेप्सी के फ्रीटो-ली ने भी इंडियन बाज़ार में एकदम रख लिया था.

बालाजी वेफर्स की सफ़लता और प्रगति | Balaji Wafers Success & Progress

कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच छोटी भारतीय कंपनी के लिए अपना अस्तित्व बचा पाना भी आसान नहीं था. लेकिन बालाजी वेफर्स (Balaji Wafers) डटी रही. अपने चटपटे, करारे, मसालेदार स्वाद के कारण इसने अपने ग्राहकों के बीच अपने जगह बनाए रखी और 20-25% की वृद्धि दर से प्रतिवर्ष आगे बढ़ती रही.

राजकोट में एफएमसी पोटैटो प्रोसेसिंग मशीनरी प्लांट की स्थापना 

1999 में 2000 किलो प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता का आटोमेटिक प्लांट और 2003 में राजकोट में एफएमसी पोटैटो प्रोसेसिंग मशीनरी (पीपीएम्) लगाईं गई, जिसकी क्षमता 5000 किलो थी. अब बालाजी वेफेर्स की सालाना आय 20 करोड़ तक पहुँच गई.

नमकीन को किया व्यवसाय में शामिल 

इसके बाद चंदूभाई ने नमकीन को अपने व्यवसाय में शामिल करने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने भुजिया से शुरुवात की. भुजिया पूरी तरह से भारतीय उत्पाद था. चिप्स की तरह इसके लिए बाहर से रेडीमेड आटोमेटिक प्लांट नहीं मंगाए जा सकते थे. तवा से शुरुवात की गई. लेकिन आटोमेटिक प्लांट के बारे में विचार किया जाने लगा. एक ऑस्ट्रलियन कंपनी को यह काम दिया गया और इंजीनियर ने इसे चुनौती की तरह लेकर भुजिया बनाने वाली आटोमेटिक मशीन का निर्माण कर लिया.

बालाजी वेफर्स में कितने उत्पाद हैं?| Balaji Wayfers Products

नमकीन के क्षेत्र में कदम रखने एक बाद भुजिया सेव, चने की दाल, मटर के साथ ही सींग भुजिया सहित नमकीन की सभी वैरायटी बेचने लगे. स्वाद और गुणवत्ता के साथ ही किफायती दाम ने बालाजी वेफर्स का अस्तित्व कड़ी प्रतियोगिता में भी बरक़रार रखा. आज बालाजी वेफ़र्स के ४ मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स हैं, जो प्रतिदिन 6.5 लाख किलो आलू के चिप्स और 10 लाख किलो नमकीन बनाने की क्षमता रखते हैं. उनका 20,000 डीलर्स का एक विशाल नेटवर्क है.

बालाजी वेफर्स की नेटवर्थ | Balaji Wayfers Networth Reneue 

पेस्प्सिको (Pespsi co), लेस (Lays) और हल्दीराम (Haldiram) जैसे बड़े ब्रांड को बालाजी वेफेर्स (Balaji Wafers) कड़ी टक्कर दे रही हैं. गुजरात में 90% मार्केट पर बालाजी नमकीन का कब्ज़ा है, वहीं मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में 71% मार्केट पर बालाजी वेफर्स का कब्ज़ा है. कंपनी की आय वर्ष 2018 (Balaji Wafers Turnover 2018) में 2200 करोड़ रूपये थी. कंपनी प्रतिवर्ष 20-25% की दर से प्रगति की राह पर अग्रसर है.

एस्त्रोन सिनेमा के कैंटीन से शुरू हुआ ये सफ़र आज जिस मुकाम पर पहुँचा है, उसके पीछे चंदूभाई वीरानी (Chandubhai Virani) सहित सभी भाइयों की कड़ी मेहनत, लगन और अच्छी-बुरी हर परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ने का हौसला है.


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