चार चोर की कहानी (Char Chor Ki Kahani) Four Thieves Story In Hindi इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। यह कहानी ईमानदारी का जीवन जीने की सीख देती है।
Char Chor Ki Kahani
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किसी गांव में चार दोस्त थे, जो चोर थे। उनका नाम रघु, मोहन, किशन और रामू था। चारों ने बचपन से ही छोटी-मोटी चोरी करना शुरू कर दिया था और धीरे-धीरे वे बड़े चोर बन गए थे। गांव के लोग उनसे तंग आ चुके थे, लेकिन किसी के पास सबूत नहीं था, जिससे पुलिस को शिकायत कर सकें। वे अपने काम में इतने चालाक थे कि कभी पकड़े नहीं जाते थे।
एक दिन चारों ने मिलकर गांव के सुनार की दुकान लूटने की योजना बनाई। सुनार गांव का सबसे अमीर आदमी था, और उसकी दुकान में सोने-चांदी के गहनों की भरमार थी। रघु ने कहा, “अगर हम यह दुकान लूट लें, तो हमारी जिंदगी बन जाएगी। हमें फिर कभी चोरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
मोहन बोला, “लेकिन हमें सावधान रहना होगा। पुलिस इस बार हमें पकड़ने की कोशिश करेगी।”
किशन ने योजना बनाई कि वे रात में दुकान में घुसेंगे और गहने चुराएंगे। रामू का काम था दुकान के बाहर खड़ा रहकर चौकसी करना। चारों को लगा कि यह काम बहुत आसान होगा।
रात होते ही वे सुनार की दुकान पर पहुंच गए। रघु ने बड़ी होशियारी से ताले तोड़े और किशन ने अंदर जाकर गहने चुराने शुरू किए। मोहन ने गहने एक थैले में भरने शुरू किए, जबकि रामू बाहर निगरानी कर रहा था। काम लगभग पूरा हो चुका था कि अचानक से दुकान का अलार्म बज उठा। चारों चौंक गए और घबराकर भागने लगे।
अलार्म की आवाज सुनकर गांव के लोग जाग गए और पुलिस भी तुरंत वहां पहुंच गई। चारों दोस्त बड़ी मुश्किल से बच निकले, लेकिन उनके हाथ ज्यादा गहने नहीं लगे थे। वे एक जंगल में जाकर छिप गए। जंगल में बैठकर वे सोचने लगे कि अब क्या किया जाए।
रघु बोला, “यार, ये सब हमारी लापरवाही की वजह से हुआ। अगर रामू ध्यान से निगरानी रखता, तो अलार्म नहीं बजता।”
रामू नाराज होकर बोला, “मैं तो अपनी पूरी कोशिश कर रहा था। लेकिन शायद यह हमारी किस्मत में नहीं था।”
चारों के मन में लालच गहरा बैठ गया था। गहने कम मिले थे, लेकिन उन्हें बेचकर भी काफी पैसे मिल सकते थे। वे अब आपस में सोचने लगे कि गहनों का बंटवारा कैसे किया जाए।
मोहन ने कहा, “क्यों न हम इन्हें शहर जाकर बेच दें और जो भी पैसे मिलें, उसे बराबर-बराबर बांट लें।”
किशन को यह बात पसंद आई, लेकिन रघु को शक था कि कोई उनमें से धोखा कर सकता है। उसने चुपचाप एक योजना बनाई कि वो सबको धोखा देकर सारा धन खुद ले जाएगा।
अगले दिन चारों ने शहर जाने का फैसला किया। वे अलग-अलग रास्तों से शहर पहुंचे ताकि किसी को उन पर शक न हो। लेकिन जैसे ही वे शहर पहुंचे, रघु ने बाकी तीनों को धोखा देने के लिए अपने एक दोस्त से मदद ली। उसने मोहन, किशन और रामू को जहरीला खाना खिलाने की योजना बनाई, ताकि वे मर जाएं और सारा धन उसे मिल जाए।
लेकिन रघु को यह नहीं पता था कि मोहन और किशन भी उसे धोखा देने की सोच रहे थे। वे दोनों भी रघु को रास्ते से हटाने के लिए उसकी पानी में जहर मिलाने की योजना बना चुके थे। वहीं, रामू ने सोचा कि उसे इन सबसे बचने के लिए चोरी का धन लेकर अकेले भाग जाना चाहिए।
शाम होते ही वे एक जगह मिले। रघु ने अपने दोस्त के हाथों खाना भिजवाया, जिसे तीनों ने खा लिया। लेकिन खाना खाते ही मोहन, किशन और रामू की तबीयत बिगड़ने लगी और कुछ ही देर में उनकी मौत हो गई। रघु खुश हुआ कि अब सारा धन उसका होगा। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि जो पानी उसने पिया था, उसमें भी जहर था। थोड़ी ही देर में रघु को भी उल्टियां होने लगीं और वह भी वहीं दम तोड़ गया।
अंत में, चारों चोर अपनी ही चालाकी और लालच का शिकार हो गए। उनका धन वहीं पड़ा रह गया, लेकिन उसे कोई इस्तेमाल नहीं कर पाया। गांव के लोगों को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने राहत की सांस ली। उन्होंने सोचा कि यह चोरों के लालच और धोखे का ही परिणाम था कि वे इस तरह मारे गए।
सीख
यह कहानी इस बात की सीख देती है कि लालच और धोखा किसी भी इंसान का भला नहीं कर सकते। चारों चोरों ने एक-दूसरे को धोखा देने की कोशिश की, लेकिन अंत में उनका लालच ही उनकी मौत का कारण बना। अगर वे ईमानदारी और सच्चाई से जीवन जीते, तो शायद वे इस त्रासदी से बच सकते थे।
इस कहानी से हमें यह भी सीख मिलती है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका अंत हमेशा बुरा ही होता है।
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