चार मित्र : महाराष्ट्र की लोक कथा | Four Friends Folk Tale Of Maharashtra In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम महाराष्ट्र की लोक कथा “चार मित्र” (Char Mitra Maharashtra Ki Lok Katha) शेयर कर रहे है.  चार गहरे मित्रों की ये कहानी उनकी दोस्ती की गहराई और उनके जीवन में आये उतार-चढ़ाव का वर्णन करती है. पढ़िये पूरी कहानी : 

Char Mitra Maharashtra Ki Lok Katha

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Char Mitra Maharashtra Ki Lok Katha
Char Mitra Maharashtra Ki Lok Katha

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एक छोटे नगर में चार मित्र रहते थे. उनमें से एक राजकुमार था, एक मंत्री का पुत्र, एक साहूकार पुत्र और एक किसान पुत्र. चारों में बचपन से ही गहरी मित्रता थी. ऐसी कि एक के बिना दूसरे को चैन नहीं. सारा समय वे एक साथ गुजारा करते थे. एक साथ खाते-पीते, खेलते-कूदते उनके दिन बहुत अच्छे बीत रहे थे.

किसान अपने पुत्र के धनवान मित्र देख चिंता में पड़ जाता था. वह एक निर्धन व्यक्ति था. इसलिए सोचा करता था कि ऐसे बड़े रुतबे वाले लोगों से मेल-जोल रखने का कोई औचित्य नहीं. जीवन के किसी न किसी मोड़ पर वे साथ छोड़ देंगे. वह अक्सर अपने पुत्र को उन धनवानों से मित्रता तोड़ देने के लिए समझाता था. किंतु, उसका पुत्र नहीं मानता था.

एक दिन इसी बात पर किसान और उसके पुत्र के बीच बहस हो गई और पुत्र घर छोड़कर चला गया. घर छोड़ने के बाद जब उसकी अपने मित्रों से भेंट हुई, तो उसने सारी बात अपने मित्रों को बताई. सभी गहरे मित्र थे. इसलिए सबने निश्चय किया कि अगर एक ने मित्रता के कारण घर छोड़ा है, तो हम सब भी छोड़ेंगे.

चारों मित्र गाँव छोड़कर चले गए. चलते-चलते वे एक जंगल में पहुँचे. सूर्यास्त हो चुका था. चारों और अंधेरा ही अंधेरा था. वे भयभीत होने लगे. तभी किसान पुत्र को एक पेड़ के नीचे ढेर सारे जुगनू दिखाई पड़े. जुगनुओं के कारण वहाँ प्रकाश बिखर रहा था. किसान पुत्र अपने मित्रों को उस पेड़ के पास ले गया.

चारों पेड़ के नीचे बैठ गए. वे सब थके हुए थे और उन्हें जोरों की भूख लगी थी. किसान पुत्र दु:खी था कि उसके कारण उसके मित्रों ने अपना घर छोड़ दिया और वह उनके लिए कुछ कर नहीं पा रहा है.

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वह कहने लगा, “मित्रों! तुम सबको अपने-अपने घर लौट जाना चाहिए. मेरे कारण क्यों कष्ट भोग रहे हो?”

किंतु, किसी ने उसकी बात नहीं मानी और बोले, “मित्र! जब मित्रता की है, तो साथ-साथ निभाएंगे. हम बचपन से अब तक साथ रहते आये हैं, अब भी रहेंगे.”

उसके बाद चारों भूखे-प्यासे ही पेड़ के नीचे लेट गए. तीन मित्रों को तो नींद आ गई, किंतु किसान पुत्र जागता रहा. वह दु:खी था और भगवान से प्रार्थना कर रहा था, “भगवन्! मेरी सहायता करो. मुझे इस कष्ट से बाहर निकालो.”

उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान ने किसान पुत्र को दर्शन दिया और पूछा, “क्या चाहते हो पुत्र. हीरे-जवाहरात, सोने-चाँदी.”

“नहीं भगवन्! मुझे हीरे-जवाहरात और सोने-चाँदी नहीं चाहिए. मैं अपने मित्रों के लिए भोजन मांगता हूँ.”

तब भगवान बोले, “वत्स! मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताता हूँ, जिससे तुम लोगों की भूख भी मिटेगी और जीवन भी बदल जाएगा. सामने वो आम का पेड़ देख रहे हो, उसमें चार आम लगे हुए हैं. एक आम पूरा पका हुआ है, दूसरा उससे कुछ कम, तीसरा उससे भी कम और चौथा आम कच्चा है. उन आमों में से जो पहला आम खाएगा, वो राजा बनेगा; जो दूसरा आम खाएगा, वो मंत्री बनेगा; जो तीसरा आम खाएगा, उसके मुँह से हीरे निकलेंगे और जो चौथा कच्चा आम खाएगा, वो कारावास जाएगा.”

यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए.

किसान पुत्र ने आम के पेड़ से चारों आम तोड़ लिए. कच्चा आम उसने ख़ुद खाया और तीन आम अपने मित्रों के लिए रख दिए. सुबह जब तीनों मित्र उठे, तो उसने वे आम उन्हें दे दिए.

पहला आम मंत्री पुत्र ने खाया, दूसरा साहूकार पुत्र ने और तीसरा आम राजकुमार ने खाया. उसके बाद वे आगे की यात्रा करने लगे. दोपहर तक वे चलते रहे. चलते-चलते उन्हें प्यास लग आई. एक कुएं के पास वे पानी पीने के लिए रुके. राजुकमार के पानी से कुल्ला किया, तो उसके मुँह से तीन हीरे निकले. ये देख वह चकित रह गया. उसने एक पोटली में हीरे रखकर अपने वस्त्रों में छुपा लिया. उनकी यात्रा पुनः प्रारंभ हुई.

चलते-चलते वे एक नगर की सीमा पर पहुँचे. रात गहरा गई थी. इसलिए वे वहीं एक पेड़ के नीचे सो गए. अगले दिन जब उनकी नींद खुली, तो भूख से सबका हाल बेहाल था. तब राजकुमार ने एक हीरा निकलकर मंत्री पुत्र को दिया उर बोला, “मित्र! इस हीरे को किसी जौहरी के पास बेच आओ. जो पैसे मिलेंगे, उससे कुछ दिन हम सब आराम से गुजारेंगे.”

वह हीरा लेकर बाज़ार पहुँचा, तो देखा कि मार्ग में लोगों की भीड़ एकत्रित है. वह भी वहाँ खड़ा हो गया. एक व्यक्ति से उसने पूछा, “यहाँ लोग क्यों जमा हैं भाई?”

उस व्यक्ति ने उसे बताया कि वहाँ के राजा की मृत्यु हो गई है. वह निःसंतान था. इसलिए नया राजा चुनने के लिए एक हाथी को फूलों की माला के साथ छोड़ा गया है. वो जिस भी व्यक्ति को वह माला पहनाएगा, वह नया राजा होगा.”

मंत्री पुत्र आश्चर्यचकित था. किंतु, उसके आश्चर्य की सीमा न रही, जब हाथी ने आकर उसके गले में फूलों की माला डाल दी. सब उसे दंडवत प्रणाम करने लगे. अब वह उस नगर का राजा बना गया था. यह उसके द्वारा खाए आम का प्रताप था. उसे राजमहल ले जाया गया और वहाँ के वैभव में वह इतना डूब गया कि अपने मित्रों की उसे सुध ना रही.

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कुछ दिन बीतने पर भी जब मंत्री पुत्र नहीं लौटा, तो राजकुमार ने दूसरा हीरा साहूकार पुत्र को देकर कहा, “मित्र! जाओ इसे बेचकर कुछ धन का प्रबंध करो.”

साहूकार पुत्र बाज़ार पहुँचा. उस दिन भी वहाँ भीड़ जमा थी. पूछने पर पता चला कि हाथी फूलों की माला लेकर निकला है. जिस व्यक्ति को वह माला पहनाएगा, वो नगर का मंत्री होगा. बात समाप्त ही हुई थी कि हाथी पास आ गया और फूलों की माला साहूकार पुत्र को पहना दी. अब वह नगर का मंत्री बन गया था. यह उसके द्वारा खाए आम का प्रताप था. वह भी राजकाज के कार्यों में व्यस्त हो गया और अपने मित्रों के बारे में भूल गया.

राजकुमार और किसान पुत्र उसकी प्रतीक्षा करते रह गए. जब वह नहीं आया, तो राजुकमार ने तीसरा हीरा निकाला और किसान पुत्र को देकर बोला, “मित्र! अब ये हीरा शेष है. इसे बेचकर शीघ्र वापस लौटो.”

किसान पुत्र हीरा लेकर जौहरी की दूकान में गया. उसे हीरा देकर बोला, “सेठ, इसे बेचना है. क्या कीमत दोगे?”

सेठ ने फाटे-पुराने वस्त्र पहने एक निर्धन लड़के के पास इतना कीमती हीरा देखा, तो सोचने लगा कि अवश्य ये कहीं से चुराकर हीरा लाया है.”

उसने तुरंत नगर के सिपाहियों को सूचना दी. सिपाही आये और किसान पुत्र को पकड़कर ले गए. उसे कारवास में डाल दिया गया. कच्चे आम खाने का यह परिणाम था.

उधर राजकुमार किसान पुत्र की प्रतीक्षा करते रह गया. वह चिंतित होकर सोचने लगा कि क्यों मेरा कोई भी मित्र नगर में जाकर वापस नहीं आया? वह उस नगर में नहीं गया और दूसरी दिशा में चला गया. चलते-चलते वह एक गाँव में पहुँचा. वहाँ उसे एक किसान मिला, जो खेत से लौट रहा था.

राजकुमार को देख उसे दया आया और वह उसे अपने घर ले गया. किसान बहुत निर्धन था. किंतु, राजकुमार के सत्कार में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी. जो भी रुखी-सूखी थी, उसे थाल में रखकर राजकुमार को परोस दिया. भोजन करके राजुकमार की भूख शांत हुई.

बातों-बातों में किसान ने राजकुमार को बताया कि एक समय वह समय में गाँव का सबसे धनी किसान था. दान-पुण्य के लिए उसके पास धन की कोई कमी ना थी. किंतु, पिछले वर्ष फसल बर्बाद हो गई और आज मैं इस निर्धनता की स्थिति में हूँ कि खाने को मोहताज़ हूँ. दान क्या करूंगा?”

राजकुमार को किसान पर बड़ी दया आई. किंतु, वह क्या करता? वह रात को वहीं किसान के घर रुका. अगले दिन उसने जब मुँह धोया, तो फिर से उनके मुँह से तीन हीरे निकले. तब उसे समझ आया कि उसके मुँह से हीरे निकलने लगे हैं.

उसने वे सारे हीरे किसान को दे दिए. किसान फिर से धनवान हो गया. राजकुमार को भी उसने अपना पुत्र बनाकर अपने साथ रख लिया. धनवान होने के बाद किसान फिर से दान-पुण्य करने लगा.

किसान घर काम करने वाली एक दासी को किसान के धनी होने का भेद पता चल गया था. वह किसान से ईर्ष्या करती थी. वह एक वेश्या के पास गई और राजकुमार के बारे में बताकर बोली, “यदि तुम उस राजकुमार को अपने पास ले लाओ, तो जीवन भर धन की गंगा में गोते लगाते रहोगी.”

वेश्या एक साधारण गाँव की स्त्री का रूप धरकर किसान के घर पहुँची और बोली, “मैं इस लड़के की माँ हूँ. कुछ दिनों पहले ये खो गया था. तब इसे ढूंढ रही हूँ. इसे मेरे साथ भेज दो. मैं इसके बगैर जी नहीं सकती.”

दयालु किसान ने वैसा ही किया. राजकुमार भी वेश्या के साथ चला गया. घर पहुँचकर वेश्या ने राजकुमार को खूब मदिरा पान करवाया. उसने सोचा था कि राजकुमार को मतली होगी, तो उसे हीरे मिलेंगे. किंतु, वैसा कुछ नहीं हुआ. हीरे ना मिलने पर उसने राजकुमार को बहुत मारा और किसान के घर के पीछे फेंक आई.

राजकुमार वहाँ बहुत समय तक बेहोश पड़ा रहा. जब होश आया, तो वह किसान के घर नहीं गया. शरीर पर राख मलकर वह सन्यासी बन गया और जंगल चला गया. वहाँ उसे एक स्वर्ण की बनी हुई रस्सी जमीन पर पड़ी हुई दिखाई पड़ी. उसने उसे जैसे ही उठाया, वह सुनहरा तोता बन गया.

राजकुमार चकित था. तभी एक आकाशवाणी हुई – “एक राजकुमारी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है. वह सुनहरे तोते से विवाह करना चाहती है. तुम उसके पास जाओ.”

तोता बना राजकुमार उड़ चला. उड़ते-उड़ते वह उसी राजमहल में पहुँचा, जहाँ राजकुमारी रहती थी. बाग़ में बैठी राजकुमारी सुनहरे तोरे की बांट जोह रही थी. वह बहुत दुखी थी, खाने-पीने की उसे कोई सुध ना थी और दिन पर दिन दुर्बल होती जा रही थी. राजा भी अपनी पुत्री की यह दशा देख चिंतित था.

जब राजकुमारी ने सुनहरे तोते को देखा, तो ख़ुश हो गई और झूम-झूमकर कहने लगी, “मेरे प्रतीक्षा पूर्ण हुई. मैं इस सुनहरे तोते को अपने पति के रूप में स्वीकार करती हूँ. मैं इससे विवाह करूंगी.”

जब ये बात रजा के कानों में पड़ी, तो वह बड़ा दुखी हुआ. किंतु, पुत्री मोह में विवश होकर उसने राजकुमारी का विवाह सुनहरे तोते से कर दिया. विवाह होते ही सुनहरा तोता राजकुमार बन गया. यह देख राजकुमारी और राजा बहुत प्रसन्न हुए. राजा ने आधा राज्य राजकुमार को दे दिया और राजकुमार वहाँ का राजा बन गया.

राजा बनने के बाद वह किसान से मिलने गया. वहाँ उसने देखा कि किसान फिर से निर्धन हो गया है. उसने किसान को ढेर सारा धन दिया और किसान फिर से धनी हो गया.

समय बीतने लगा. राजकुमार प्रायः अपने मित्रों को याद किया करता था.   किंतु, उसे किसी की कोई खबर नहीं थी. एक बार उसने राज्य विस्तार के लिए पड़ोसी राज्य में आक्रमण करने की योजना बनाई. पड़ोसी राजा युद्ध नहीं करना चाहता था. वह संधि प्रस्ताव लेकर दरबार में उपस्थित हुआ. राजकुमार ने उसे देखा, तो तुरंत पहचान गया. वह उसका मित्र था, मंत्री पुत्र, जो राजा बन गया था.

दोनों मित्र एक-दूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए. दोनों के अपने आप-बीती सुनाई. मंत्री पुत्र ने राजकुमार को बताया कि उनका एक मित्र, साहूकार पुत्र, उसके राज्य का मंत्री है. किंतु, किसान पुत्र को कोई पता नहीं. दोनों किसान पुत्र को ढूंढने लगे. किंतु, उसका कुछ पता नहीं चला. एक बार जब साहूकार पुत्र के राज्य में कुछ बंदियों को क्षमादान के लिए प्रस्तुत किया गया, उसमें किसान पुत्र भी था. राजा बन चुके साहूकार पुत्र ने अपने मित्र को पहचान लिया. उसने उसे गले से लगा लिया. किसान पुत्र ने उसने आम वाली पूरी कहानी कह सुनाई और बताया, क्यों उसे कारावास भोगना पड़ा? साहूकार पुत्र बड़ा दुखी हुआ.किंतु, जो हो चुका था, अब उसे बदला नहीं जा सकता था.

उसने किसान पुत्र को अपने अन्य मित्रों से मिलवाया. अब चारों साथ थे. उन्होंने अपने गाँव लौट जाने का मन बनाया. अपनी संपत्ति इकठ्ठा कर उन्होंने चार बराबर हिस्से किये और आपस में बांटकर अपने गाँव चले आये. वहाँ अपने माता-पिता से मिले और सुख के साथ अपने गाँव में रहने लगे.

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