Moral Story In Hindi

चतुर नाई की कहानी | Chatur Naai Ki Kahani

चतुर नाई की कहानी (Chatur Naai Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

Chatur Naai Ki Kahani

Table of Contents

Chatur Naai Ki Kahani

बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में एक नाई रहता था जिसका नाम रघु था। रघु अपनी चतुराई और समझदारी के लिए पूरे गाँव में मशहूर था। वह न केवल बाल काटने और दाढ़ी बनाने का काम करता था, बल्कि गाँव के लोगों की समस्याओं का हल निकालने में भी माहिर था। उसकी बातों में ऐसी मिठास और बुद्धिमानी थी कि लोग उससे सलाह लेने के लिए दूर-दूर से आते थे।

गाँव के राजा, राजा वीर सिंह, भी रघु की बुद्धिमानी से प्रभावित थे। राजा अक्सर अपनी परेशानियों को हल करने के लिए रघु के पास आते थे। एक दिन राजा ने सोचा कि वह रघु की चतुराई की परीक्षा लें। उन्होंने रघु को अपने महल में बुलाया और कहा, “रघु, मैंने सुना है कि तुम बहुत चतुर हो। आज मैं तुम्हारी चतुराई की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुमने मेरी समस्या का हल निकाल लिया, तो मैं तुम्हें इनाम दूंगा, लेकिन अगर तुम असफल रहे, तो तुम्हें दंड मिलेगा।”

रघु ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, आपकी सेवा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। आप जो भी समस्या देंगे, मैं उसे हल करने की पूरी कोशिश करूंगा।”

राजा ने कहा, “ठीक है, मेरी समस्या यह है कि मुझे अपने महल के बगीचे में एक ऐसी गाय चाहिए जो सोने का दूध दे। अगर तुमने इस काम को पूरा कर दिया, तो तुम्हें मुंहमांगा इनाम मिलेगा।”

रघु ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “महाराज, आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। लेकिन इसके लिए मुझे कुछ समय और कुछ साधनों की आवश्यकता होगी।”

राजा ने सहमति में सिर हिलाया और कहा, “तुम्हें जो भी चाहिए, वह तुम्हें मिलेगा। बस मेरा काम पूरा करो।”

रघु ने सबसे पहले गाँव के लोहार को बुलाया और उससे कहा कि वह एक ऐसा पिंजरा बनाए जिसमें एक बड़ा ताला लग सके। फिर उसने गाँव के सबसे तेज दौड़ने वाले घोड़े की मांग की। कुछ ही दिनों में, लोहार ने पिंजरा तैयार कर दिया और रघु को घोड़ा भी मिल गया।

रघु ने पिंजरे को एक गाड़ी पर रखा और उस पर घोड़े को बाँध दिया। फिर वह राजा के पास गया और कहा, “महाराज, सोने का दूध देने वाली गाय तैयार है। लेकिन उसे पकड़ने के लिए मुझे इस पिंजरे और घोड़े की जरूरत होगी।”

राजा ने यह सुना और आश्चर्य से पूछा, “तुम्हें पिंजरा और घोड़ा क्यों चाहिए?”

रघु ने जवाब दिया, “महाराज, सोने का दूध देने वाली गाय बहुत चालाक और तेज होती है। उसे पकड़ने के लिए तेज घोड़े की जरूरत होगी, और उसे बंद करने के लिए पिंजरा भी चाहिए।”

राजा ने रघु की बात मान ली और उसे अनुमति दी कि वह अपना काम करे। रघु घोड़े पर सवार होकर पिंजरे के साथ गाँव के एक बड़े मैदान में गया। वहाँ उसने पिंजरे को बीच में रखा और एक बड़ा जाल बिछा दिया। फिर उसने गाँव के कुछ बच्चों को बुलाया और कहा कि वे जाल के चारों ओर घूमकर खेलें।

थोड़ी देर बाद, गाँव के कुछ लोग वहाँ इकट्ठा हो गए, यह देखने के लिए कि रघु क्या कर रहा है। रघु ने बड़ी चतुराई से भीड़ को अपनी योजना में शामिल कर लिया। उसने लोगों से कहा कि वे चारों ओर खड़े हो जाएँ और ध्यान रखें कि कोई भी गाय इस क्षेत्र में प्रवेश न करे।

फिर रघु ने लोगों से कहा, “अब मैं आपको एक अद्भुत दृश्य दिखाने जा रहा हूँ। इस पिंजरे में बंद होते ही गाय सोने का दूध देने लगेगी। लेकिन ध्यान रहे, इसे पकड़ने के लिए आपको धैर्य रखना होगा।”

लोग उत्सुकता से इस अद्भुत घटना को देखने के लिए खड़े हो गए। रघु ने घोड़े की लगाम को खींचा और एक दिशा में दौड़ने लगा, जैसे कि वह किसी गाय को पकड़ने जा रहा हो। वह कुछ समय के लिए दौड़ता रहा, फिर अचानक घोड़ा रोक दिया और वापस आ गया। उसने पिंजरे का दरवाजा खोला और जाल के नीचे कुछ घास डाल दी, जैसे कि गाय को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा हो।

जब कुछ समय तक कोई गाय नजर नहीं आई, तो लोग धीरे-धीरे अधीर होने लगे। एक व्यक्ति ने रघु से पूछा, “रघु भैया, वह गाय कहाँ है? क्या तुम सचमुच उसे पकड़ सकते हो?”

रघु ने मुस्कुराते हुए कहा, “धैर्य रखो मित्रों, वह गाय बहुत चालाक है। वह तब तक नहीं आएगी जब तक कि वह पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाए कि उसे कोई पकड़ नहीं सकता।”

लेकिन जब बहुत देर हो गई और गाय नहीं आई, तो लोगों ने सोचा कि शायद रघु उन्हें धोखा दे रहा है। राजा भी वहाँ आ पहुंचे और स्थिति को देख नाराज हो गए। उन्होंने रघु से कहा, “रघु, तुमने तो कहा था कि तुम गाय को पकड़ लोगे। यह सब क्या हो रहा है?”

रघु ने बड़े ही धैर्य से जवाब दिया, “महाराज, मैं अपनी कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन मुझे लगता है कि वह गाय हमें धोखा दे रही है। शायद उसे हमारी योजनाओं का पता चल गया है।”

राजा को यह सुनकर गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा, “रघु, अगर तुम गाय को नहीं पकड़ सकते, तो तुम्हें इसका दंड भुगतना होगा।”

रघु ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, मैंने तो बस वही किया जो आपने कहा था। अगर सोने का दूध देने वाली गाय जैसी कोई चीज़ होती, तो मैं उसे ज़रूर पकड़ लेता। लेकिन महाराज, क्या आपने कभी सोने का दूध देने वाली गाय देखी है?”

राजा को रघु की बात सुनकर समझ आ गई कि उन्होंने असंभव की मांग की थी। उन्होंने रघु की चतुराई को सराहा और अपनी गलती मान ली। उन्होंने रघु को इनाम दिया और कहा, “रघु, तुमने अपनी चतुराई और धैर्य से हमें सिखाया कि कभी-कभी जो चीज़ हम चाहते हैं, वह वास्तविकता में नहीं होती। हमें अपनी इच्छाओं को वास्तविकता के साथ जोड़कर देखना चाहिए।”

रघु ने विनम्रता से इनाम स्वीकार किया और कहा, “महाराज, जीवन में धैर्य और समझदारी से ही हर समस्या का हल निकलता है। कभी-कभी हमें असंभव को स्वीकार करना भी सीखना चाहिए।”

राजा ने इस सीख को दिल से लगाया और आगे से कभी भी किसी असंभव चीज़ की मांग नहीं की। गाँव के लोग भी रघु की बुद्धिमानी के और भी प्रशंसक हो गए। इस प्रकार, चतुर नाई रघु ने अपनी चतुराई से न केवल राजा को संतुष्ट किया, बल्कि सबको एक महत्वपूर्ण सीख भी दी—धैर्य, समझदारी, और वास्तविकता को पहचानना ही जीवन की सच्ची बुद्धिमानी है।

नाई और भूत की कहानी

नकल उतारने वाला नाई पंचतंत्र

नाई की उच्च नियुक्ति तेनालीराम 

मूर्ख मित्र पंचतंत्र की कहानी 

About the author

Editor

Leave a Comment