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चोर और पुलिस की कहानी | Chor Police Ki Kahani

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Chor Police Ki Kahani

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Chor Police Ki Kahani

किसी छोटे से गांव में, दो चोर बहुत मशहूर थे। उनके नाम थे गोपाल और राजू। दोनों बचपन के दोस्त थे, और वे मिलकर कई चोरियाँ कर चुके थे। गांव के लोग उनसे तंग आ चुके थे, पर उन्हें पकड़ पाना किसी के बस की बात नहीं थी। उनका तरीका इतना चालाकी से भरा होता था कि पुलिस भी उनके सामने कमजोर पड़ जाती थी। 

लेकिन एक दिन गांव में एक नया पुलिस इंस्पेक्टर आया, जिसका नाम विजय था। विजय ईमानदार और बहादुर था। उसने गांव में कदम रखते ही यह ऐलान कर दिया, “चाहे जो भी हो, इन चोरों को मैं जरूर पकड़ूंगा। गांव में अब किसी तरह की चोरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”

गोपाल और राजू ने विजय की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। वे सोचते थे कि वे इतने चालाक हैं कि उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता। विजय के आने के कुछ ही दिनों बाद, दोनों ने एक बड़ी चोरी की योजना बनाई। उन्होंने तय किया कि इस बार गांव के साहूकार के घर से गहने और पैसे चुराएंगे। साहूकार के पास बहुत सारा धन था, और यह चोरी उनके जीवन की सबसे बड़ी चोरी हो सकती थी।

गोपाल ने कहा, “हमने पहले भी कई चोरियां की हैं, लेकिन इस बार हमें ज्यादा सतर्क रहना होगा। पुलिस वाला नया है, और लगता है, थोड़ा तेज़ भी है।”

राजू ने हंसते हुए कहा, “कोई फर्क नहीं पड़ता। हमने इससे पहले भी पुलिस को चकमा दिया है, और इस बार भी हम कामयाब होंगे।”

विजय को गोपाल और राजू की चोरियों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी थी। उसने सोचा कि अगर उसे इन दोनों को पकड़ना है, तो वह उनके जैसा चालाक बनकर ही काम कर सकता है। उसने गांव के साहूकार के घर के आस-पास अपने खास सिपाहियों को गुप्त रूप से तैनात कर दिया। 

विजय ने यह भी समझ लिया था कि गोपाल और राजू सीधा हमला नहीं करेंगे, बल्कि बहुत ही चालाकी से चोरी करेंगे। इसलिए उसने कुछ जासूसों को भी गांव में भेज दिया, जो भेस बदलकर गांव के लोगों से जानकारी इकट्ठा करें।

चोरी की रात आ गई। गोपाल और राजू ने पूरे गांव का चक्कर लगाया और फिर साहूकार के घर की तरफ बढ़े। उन्होंने बड़े ही होशियारी से साहूकार के घर के पिछवाड़े से प्रवेश किया, जहां कोई सिपाही नहीं दिख रहा था। उन्होंने खिड़की की सलाखें काटीं और अंदर घुस गए। 

घर के अंदर, वे बड़े ध्यान से इधर-उधर देखने लगे। उन्हें जल्दी ही अलमारी मिल गई, जिसमें गहने और पैसे रखे थे। दोनों ने जल्दी-जल्दी सब कुछ अपने थैलों में भर लिया। 

लेकिन जैसे ही वे घर से बाहर निकलने लगे, अचानक चारों तरफ से पुलिस के सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया। विजय ने बड़े ही शांत स्वर में कहा, “अब कहां भागोगे, गोपाल और राजू? हमने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया है।”

गोपाल और राजू चौक गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गोपाल ने तुरंत सोचा और कहा, “इंस्पेक्टर साहब, लगता है आपको कोई गलतफहमी हुई है। हम तो यहां साहूकार के घर की सुरक्षा के लिए आए थे। हमें खबर मिली थी कि कुछ चोर यहां चोरी करने वाले हैं।”

विजय हंसते हुए बोला, “वाह! क्या कहानी बनाई है। लेकिन हमें भी तुम दोनों की चालों का पता है।” विजय ने सिपाहियों से कहा, “इन्हें पकड़ लो।” 

लेकिन गोपाल ने एक और चाल चली। उसने अचानक से अपने थैले से धुआं पैदा करने वाली एक चीज निकाली और पूरे इलाके में धुआं फैल गया। इसका फायदा उठाकर गोपाल और राजू वहां से भाग निकले। विजय और उसके सिपाही उन्हें पकड़ने की कोशिश करते रहे, लेकिन धुएं की वजह से वे सफल नहीं हो सके।

विजय ने सोचा कि गोपाल और राजू चालाक जरूर हैं, लेकिन उनकी हरकतों से वह हारा नहीं था। उसने सोचा कि अब उसे एक नई योजना बनानी होगी ताकि वह इन्हें पकड़ सके। 

विजय ने गांव में अफवाह फैलवा दी कि साहूकार ने चोरी हुए धन को दुगुनी कीमत पर खरीदने का एलान किया है। विजय जानता था कि गोपाल और राजू लालची हैं और ज्यादा पैसे के लालच में अपनी चोरी का सामान बेचने जरूर आएंगे।

गोपाल और राजू ने यह खबर सुनी तो उनकी आंखें चमक उठीं। उन्होंने सोचा कि चोरी का सामान वैसे भी छिपाकर रखना मुश्किल होता जा रहा था, और अगर साहूकार खुद ही उसे खरीदने के लिए तैयार है, तो इससे बढ़िया मौका और क्या होगा। 

दोनों ने तय किया कि वे साहूकार के पास जाकर चोरी का सामान बेच देंगे। लेकिन इस बार वे बहुत सतर्क रहने वाले थे। उन्होंने अलग-अलग भेस बना लिए ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।

अगले दिन, गोपाल और राजू साहूकार के पास पहुंचे। वे अपने भेस में थे, और उन्हें यकीन था कि कोई उन्हें पहचान नहीं सकेगा। साहूकार ने उनका स्वागत किया और कहा, “मुझे खुशी है कि तुम मेरा सामान लौटाने आए हो।” 

लेकिन जैसे ही उन्होंने चोरी का सामान दिखाया, विजय अचानक कमरे में प्रवेश कर गया। विजय ने पहले से ही सब कुछ प्लान कर रखा था। उसने साहूकार के साथ मिलकर एक जाल बिछाया था। गोपाल और राजू के भेस को विजय ने तुरंत पहचान लिया और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।

गोपाल और राजू को जब पुलिस ने जेल भेजा, तो वे बहुत पछताए। उन्हें समझ में आ गया कि चालाकी और धोखाधड़ी से भले ही कुछ समय के लिए सफलता मिल जाए, लेकिन अंत में सच्चाई और ईमानदारी की ही जीत होती है। 

जेल में रहते हुए दोनों ने अपने किए पर बहुत विचार किया और फैसला किया कि जब वे जेल से छूटेंगे, तो ईमानदारी से काम करेंगे। विजय ने भी उन्हें सिखाया कि मेहनत से कमाया गया धन ही असली खुशी देता है।

सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बुराई का रास्ता चाहे कितना भी आसान और आकर्षक क्यों न लगे, अंत में उसका परिणाम हमेशा बुरा ही होता है। ईमानदारी और सच्चाई ही वह रास्ता है जो हमें सच्ची सफलता और संतोष की ओर ले जाता है।

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