Zen Katha

चोरी का उपहार जेन कथा | Chori Ka Uphar Zen Katha

चोरी का उपहार जेन कथा | Chori Ka Uphar Zen Katha 

“चोरी का उपहार” एक ऐसी जेन कथा है, जो सादगी और गहन नैतिकता के माध्यम से जीवन के मूल्यों को उजागर करती है। यह कहानी रवि नामक एक युवा लड़के के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी इच्छाओं और नैतिकता के बीच फँसकर एक गलत कदम उठाता है। लेकिन उसकी यात्रा हमें सिखाती है कि सच्चा उपहार धन या जादू में नहीं, बल्कि पछतावे, मेहनत और ईमानदारी में छिपा होता है। यह कथा मन को झकझोरती है और आत्म-चिंतन की ओर ले जाती है।

Chori Ka Uphar Zen Katha 

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Chori Ka Uphar Zen Katha 

एक छोटे से गाँव में, जहाँ पहाड़ों की गोद में बस्ती बसी थी, एक लड़का रहता था, जिसका नाम था रवि। रवि की उम्र थी सोलह साल, और उसका जीवन सादगी से भरा था। गाँव में लोग मेहनत से जीते थे, खेतों में काम करते थे, और एक-दूसरे का साथ निभाते थे। लेकिन रवि का मन कुछ अलग था। वह सपनों का पीछा करता था, और उसे लगता था कि दुनिया में कुछ बड़ा करने के लिए उसे गाँव की सीमाओं को तोड़ना होगा।

रवि के पिता एक किसान थे, और माँ घर संभालती थी। उनके पास ज्यादा नहीं था, लेकिन जो था, उसमें वे खुश थे। रवि का एक दोस्त था, श्याम, जो उसका हमउम्र था और गाँव का सबसे तेज-तर्रार लड़का माना जाता था। श्याम की बातें सुनकर रवि के मन में अक्सर सवाल उठते थे कि क्या मेहनत ही एकमात्र रास्ता है, या कोई और रास्ता भी हो सकता है?

एक दिन, गाँव में एक मेले का आयोजन हुआ। मेले में दूर-दूर से व्यापारी आए, जिनके पास चमकदार सामान, रंग-बिरंगे कपड़े, और अनोखी चीजें थीं। रवि और श्याम भी मेले में घूम रहे थे। एक दुकान पर रवि की नजर एक छोटे से लकड़ी के डिब्बे पर पड़ी, जिसके ऊपर नक्काशी इतनी सुंदर थी कि वह उसे देखता ही रह गया। दुकानदार ने बताया कि यह डिब्बा जादुई है। “यह डिब्बा अपने मालिक की इच्छा को समझता है,” उसने कहा, “लेकिन इसकी कीमत इतनी है कि तुम जैसे लड़के इसे नहीं खरीद सकते।”

रवि का दिल उस डिब्बे पर अटक गया। उसने अपने पास पैसे देखे, जो उसने महीनों की मेहनत से जोड़े थे, लेकिन वे नाकाफी थे। वह निराश होकर श्याम के पास गया। श्याम ने उसकी उदासी देखी और मुस्कुराते हुए कहा, “क्यों परेशान है? अगर तुझे वो डिब्बा चाहिए, तो ले ले। चोरी करना कोई बड़ी बात नहीं। मेले में इतनी भीड़ है, कोई देखेगा नहीं।”

रवि चौंक गया। चोरी? उसने कभी ऐसा नहीं किया था। उसका मन डर और इच्छा के बीच झूलने लगा। श्याम ने उसे और उकसाया, “देख, ये व्यापारी अमीर हैं। उनके लिए एक डिब्बा चले जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। और तुझे वो चाहिए, तो ले ले। जिंदगी में कभी-कभी छोटा रास्ता लेना पड़ता है।”

रवि का मन डगमगाया। उसने सोचा, शायद श्याम सही है। उसने एक बार दुकान की ओर देखा, जहाँ दुकानदार किसी ग्राहक से बात करने में व्यस्त था। रवि ने जल्दी से डिब्बा उठाया और अपनी जेब में डाल लिया। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह श्याम के साथ तेजी से मेले की भीड़ में गायब हो गया।

घर पहुँचकर रवि ने डिब्बे को खोला। अंदर एक छोटा सा दर्पण था, जो साधारण लग रहा था। रवि ने निराश होकर दर्पण को देखा और कहा, “क्या ये जादुई है? मुझे कुछ चाहिए, कुछ बड़ा!” अचानक, दर्पण में एक धुंधली तस्वीर उभरी। उसमें रवि को एक सुनहरा महल दिखा, जहाँ वह राजा की तरह रह रहा था। तस्वीर में वह खुश था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी भी थी।

उस रात रवि को नींद नहीं आई। उसने चोरी की थी, और अब उसका मन अपराधबोध से भारी था। अगले दिन, उसने डिब्बे को फिर खोला और दर्पण से पूछा, “मुझे क्या करना चाहिए?” दर्पण में इस बार एक और तस्वीर उभरी। इसमें रवि गाँव में लोगों की मदद कर रहा था, खेतों में काम कर रहा था, और उसका चेहरा शांति से चमक रहा था।

रवि समझ गया कि दर्पण उसे उसकी इच्छाओं और उनके परिणामों को दिखा रहा था। उसने फैसला किया कि वह डिब्बा वापस करेगा। वह मेले में गया, लेकिन दुकानदार जा चुका था। रवि ने गाँव के बुजुर्ग, बाबा रामदास, से सलाह माँगी। बाबा ने उसकी बात सुनी और कहा, “चोरी करना गलत था, लेकिन तेरा मन अगर पछतावा कर रहा है, तो तू सही रास्ते पर है। अब तुझे अपने कर्मों का प्रायश्चित करना होगा।”

बाबा ने रवि को सुझाव दिया कि वह गाँव में मेहनत करे और उस मेहनत से कमाए पैसे से किसी जरूरतमंद की मदद करे। रवि ने ऐसा ही किया। उसने खेतों में दिन-रात काम किया, और जो पैसे कमाए, उससे गाँव के एक गरीब परिवार के लिए कपड़े और अनाज खरीदा। जब उसने वह सामान उस परिवार को दिया, तो उनकी आँखों में आंसुओं के साथ जो खुशी थी, उसने रवि के दिल को सुकून दिया।

कुछ महीनों बाद, मेले में फिर से वही दुकानदार आया। रवि ने हिम्मत जुटाकर उससे मुलाकात की और सारी बात बताई। उसने डिब्बा वापस करते हुए कहा, “मैंने गलती की थी। ये आपका है।” दुकानदार ने मुस्कुराते हुए डिब्बा लिया और कहा, “लड़के, ये डिब्बा जादुई नहीं है। जादू तो तेरे मन में है। तूने जो पछतावा और मेहनत की, वही तेरा असली उपहार है।”

रवि को अब समझ आ गया था कि असली धन मेहनत, ईमानदारी, और दूसरों की मदद करने में है। उसने श्याम को भी अपनी बात बताई, और उसे गलत रास्ते से हटने की सलाह दी। श्याम ने पहले तो उसका मजाक उड़ाया, लेकिन रवि की बदलती जिंदगी को देखकर वह भी धीरे-धीरे बदलने लगा।

वर्षों बाद, रवि गाँव का एक सम्मानित व्यक्ति बन गया। वह खेतों में काम करता, लोगों की मदद करता, और अपने सपनों को भी पूरा करता। उसने एक छोटा सा स्कूल खोला, जहाँ गाँव के बच्चे पढ़ते थे। और हर बार जब वह मेले में जाता, तो वह उस दुकानदार को याद करता, जिसने उसे चोरी का नहीं, बल्कि ईमानदारी का उपहार दिया था।

नैतिक शिक्षा

यह जेन कथा हमें सिखाती है कि गलतियाँ इंसान से होती हैं, लेकिन सच्चा रास्ता वही है जो पछतावे से शुरू हो और मेहनत व ईमानदारी से पूरा हो। असली जादू बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि हमारे मन की शुद्धता और कर्मों की सच्चाई में होता है।

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