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कौवा और गिलहरी की कहानी | Crow And Squirrel Story In Hindi

कौवा और गिलहरी की कहानी (Crow And Squirrel Story In Hindi) Kauwa Aur Gilahari Ki Kahani यह कहानी एक कौवे और गिलहरी की है, जो हमें परिश्रम, आत्मनिर्भरता और बुद्धिमानी की सीख देती है। जीवन में कई बार हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और ऐसे समय में मेहनत, समझदारी, और एक अच्छा मार्गदर्शन बहुत मददगार साबित हो सकता है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सफलता मेहनत और ईमानदारी से ही मिलती है, न कि शॉर्टकट या चालाकी से।

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Crow And Squirrel Story In Hindi

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Crow And Squirrel Story In Hindi

एक समय की बात है, एक हरे-भरे जंगल में एक विशाल पेड़ पर कौवा और गिलहरी साथ रहते थे। कौवा थोड़ा आलसी और चालाक था, जबकि गिलहरी मेहनती और ईमानदार थी। वह हमेशा अपने भोजन और सर्दियों की तैयारी में लगी रहती थी, ताकि ठंड के समय में उसे कोई परेशानी न हो। कौवे को यह देखकर बहुत आश्चर्य होता था कि गिलहरी दिन-रात मेहनत करती रहती है और अपनी खाने-पीने की चीजों को इकट्ठा करती है।

गिलहरी पूरे जंगल में घूम-घूमकर बीज, मेवे, और फल इकट्ठा करती थी। उसे पता था कि ठंड का मौसम जल्द ही आने वाला है और तब जंगल में भोजन की कमी हो जाएगी। वहीं दूसरी ओर, कौवे को गिलहरी का यह काम समय की बर्बादी लगता था। वह सोचता था कि जंगल में तो खाने-पीने की चीजों की कोई कमी नहीं है, तो इतनी मेहनत क्यों करनी? वह गिलहरी का मजाक उड़ाता और कहता, “अरे गिलहरी, तुम इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? देखो, मैं तो मजे से घूमता हूँ और खाना मिल ही जाता है। तुम भी मेरी तरह मस्ती करो।”

गिलहरी हंसते हुए जवाब देती, “कौवे भाई, यह सब मैं अपने अच्छे समय का आनंद लेने के लिए नहीं कर रही हूँ। सर्दी का मौसम आने वाला है, तब भोजन मिलना मुश्किल हो जाएगा। अगर मैंने अभी से तैयारी नहीं की, तो ठंड में भूख से मर सकती हूँ।”

लेकिन कौवे को गिलहरी की बातों में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। उसने उसे समझाना छोड़ दिया और अपने काम में लग गई। हर दिन वह अपने लिए अनाज, मेवे, और अन्य खाने-पीने की चीजें जमा करती रहती थी। धीरे-धीरे उसने एक बड़ा भंडार बना लिया।

कुछ महीनों बाद सर्दियों का मौसम आ गया। ठंड इतनी बढ़ गई थी कि भोजन ढूंढना मुश्किल हो गया। पेड़ों पर पत्तियाँ गिर चुकी थीं, और पेड़-पौधे सब सूख गए थे। पक्षी और अन्य छोटे जानवर सभी अपने-अपने घोंसलों में दुबके पड़े थे। कौवे को भी खाने की बहुत परेशानी होने लगी। अब वह इधर-उधर भोजन की तलाश में भटकता, लेकिन उसे कहीं कुछ भी नहीं मिलता।

थक-हारकर कौवा गिलहरी के पास गया और बोला, “गिलहरी बहन, मुझे बहुत भूख लगी है। तुम्हारे पास खाने का कुछ है? मुझे भी कुछ दे दो।” गिलहरी ने कौवे को देखा और कहा, “कौवे भाई, मैंने तो तुम्हें पहले ही कहा था कि सर्दी के लिए तैयारी कर लो, पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुमने मुझ पर हंसी उड़ाई थी। अब जब तुम परेशानी में हो, तो तुम्हें मेरी मदद चाहिए।”

कौवा अपनी गलती समझ गया और शर्मिंदा होकर बोला, “हां, गिलहरी बहन, मुझे अब समझ में आया कि मेहनत और तैयारी कितनी जरूरी है। मैं अपनी आलस्य में ही खोया रहा और अब भूखा रह गया हूँ। कृपया मुझे थोड़ा खाना दे दो।”

गिलहरी ने कुछ देर सोचा और कहा, “ठीक है कौवे भाई, मैं तुम्हें खाना दे दूंगी, लेकिन इस शर्त पर कि अब से तुम मेहनती बनोगे और समय रहते हर काम की तैयारी करोगे।”

कौवे ने वादा किया कि वह अब से मेहनत करेगा और किसी भी काम को टालने की बजाय समय पर पूरा करेगा। गिलहरी ने उसे कुछ बीज और मेवे दिए, जिससे उसकी भूख शांत हुई। धीरे-धीरे, कौवे ने गिलहरी की मदद से ठंड का मौसम काटा।

सर्दी के बाद, जब फिर से गर्मियों का मौसम आया, कौवा अब बदल चुका था। वह आलस्य छोड़कर मेहनती बन गया और हमेशा गिलहरी की तरह सर्दियों के लिए खाने-पीने की चीजें जमा करता। उसने यह सीख लिया था कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता और समय पर तैयारी करना जरूरी होता है।

सीख:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में हमें भविष्य की तैयारी हमेशा करनी चाहिए और मेहनत को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जैसे गिलहरी ने समय पर मेहनत की और ठंड के लिए भोजन जमा किया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए मेहनत और ईमानदारी से काम करना चाहिए। आलस्य और लापरवाही हमें सिर्फ पछतावा देती है, लेकिन मेहनत और तैयारी हमें सफलता और संतुष्टि का एहसास कराते हैं।

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