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दानी पेड़ की कहानी | Dani Ped Ki Kahani

दानी पेड़ की कहानी ( Dani Ped Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

Dani Ped Ki Kahani

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Dani Ped Ki Kahani

गाँव शिवपुर के किनारे, एक विशाल नीम का पेड़ था, जिसे सभी “दानी पेड़” के नाम से जानते थे। यह पेड़ किसी जादुई पेड़ की तरह था, जो हर किसी की जरूरत पूरी करता था। कोई भी जरूरतमंद इस पेड़ के पास जाता, तो उसकी इच्छा पूरी हो जाती। पेड़ की शाखाएँ मानो हर व्यक्ति के लिए कुछ न कुछ उपहार लेकर तैयार रहती थीं।

दानी पेड़ का इतिहास गाँव में बहुत प्रसिद्ध था। कई पीढ़ियों से यह पेड़ गाँव की धरोहर बना हुआ था। गाँव के बुजुर्गों के अनुसार, यह पेड़ तब से था जब गाँव की स्थापना हुई थी। यह पेड़ अपनी छाया, फल और जड़ों से लोगों को हमेशा लाभान्वित करता रहा है। लेकिन सबसे अद्भुत बात यह थी कि यह पेड़ हर किसी की विश पूरी करता था।

एक बार गाँव में एक गरीब किसान, रामू, बहुत परेशान था। उसकी फसल बर्बाद हो चुकी थी और घर में खाने को भी कुछ नहीं था। एक दिन उसने सुना कि दानी पेड़ किसी भी जरूरतमंद की सहायता करता है। रामू पेड़ के पास गया और दिल से प्रार्थना करने लगा, “हे दानी पेड़, मेरी फसल बर्बाद हो गई है, मुझे मदद की जरूरत है।”

रामू की प्रार्थना सुनते ही पेड़ की एक शाखा नीचे झुकी और उस पर एक छोटी सी टोकरी लटक गई। टोकरी में गेहूं और चावल थे। रामू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने घर जाकर अपनी पत्नी और बच्चों को यह खुशखबरी सुनाई। अगले दिन उसने गाँव वालों को भी यह बात बताई।

धीरे-धीरे, दानी पेड़ की ख्याति पूरे गाँव में फैल गई। हर कोई अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पेड़ के पास जाने लगा। किसी को धन चाहिए था, किसी को नौकरी, किसी को संतान की चाहत थी, तो किसी को बस शांति और सुकून चाहिए था। दानी पेड़ सबकी इच्छाएं पूरी करता था।

गाँव की एक विधवा महिला, सुमन, जो अपने दो छोटे बच्चों के साथ अकेली रहती थी, उसे भी बहुत कष्ट था। उसका पति एक दुर्घटना में गुजर चुका था और उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। एक दिन वह भी दानी पेड़ के पास गई और बोली, “हे दानी पेड़, मेरे बच्चों के लिए कुछ खाने का प्रबंध कर दो।” पेड़ की शाखा से एक पोटली नीचे आई जिसमें खाने-पीने की वस्तुएं थीं। सुमन की आँखों में खुशी के आँसू आ गए।

लेकिन दानी पेड़ केवल भौतिक वस्तुएं ही नहीं देता था, वह लोगों की मानसिक और आध्यात्मिक जरूरतें भी पूरी करता था। गाँव के एक युवा, राकेश, जो कि बहुत पढ़ने-लिखने में रुचि रखता था, लेकिन गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रहा था। वह भी दानी पेड़ के पास गया और बोला, “हे दानी पेड़, मैं पढ़ाई करना चाहता हूँ, लेकिन मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।” पेड़ की शाखा से एक किताब और एक पोटली गिरी, जिसमें कुछ पैसे थे। राकेश ने उन पैसों से किताबें खरीदीं और अपनी पढ़ाई जारी रखी।

समय के साथ, राकेश एक सफल इंजीनियर बन गया और उसने गाँव के विकास में बहुत योगदान दिया। उसने दानी पेड़ का धन्यवाद किया और उसकी महिमा पूरे क्षेत्र में फैल गई। गाँव के लोग दानी पेड़ को न केवल अपने भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए, बल्कि अपनी मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी पूजने लगे।

लेकिन, एक दिन गाँव में एक लालची व्यक्ति, महेश, आया। उसने सुना था कि दानी पेड़ हर किसी की इच्छा पूरी करता है। वह सोने की लालच में पेड़ के पास गया और बोला, “हे दानी पेड़, मुझे बहुत सारा सोना चाहिए।” पेड़ की शाखा नीचे झुकी और एक खाली पोटली महेश के सामने आई। महेश को समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ। वह निराश होकर वापस चला गया।

महेश ने सोचा कि शायद उसकी इच्छा में कुछ कमी रह गई थी। उसने फिर से प्रयास किया, लेकिन हर बार उसे खाली पोटली ही मिली। धीरे-धीरे उसे समझ में आया कि दानी पेड़ केवल उन्हीं की इच्छाएं पूरी करता है जिनकी जरूरतें सच्ची और आवश्यक होती हैं, न कि लालच भरी।

दानी पेड़ की यह विशेषता गाँव वालों को समझ में आ गई। वे अब और भी अधिक आदर और सम्मान के साथ पेड़ के पास जाते थे। उन्होंने समझा कि दानी पेड़ केवल एक साधारण पेड़ नहीं है, बल्कि एक सजीव उदाहरण है जो उन्हें सिखाता है कि सच्ची खुशियां और संतोष आत्मिक और मानवीय मूल्यों में ही निहित हैं।

गाँव के बच्चे अब नियमित रूप से पेड़ की देखभाल करते, उसकी जड़ों के पास पानी डालते और उसके आसपास की सफाई करते। दानी पेड़ गाँव के लोगों के लिए केवल एक सहारा नहीं था, बल्कि उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका था। उसकी छाया में बैठकर लोग अपनी कहानियाँ सुनाते, अपनी समस्याएं साझा करते और समाधान पाते।

दानी पेड़ ने गाँव के लोगों को न केवल भौतिक सुख-सुविधाएं दीं, बल्कि उन्हें एकजुटता, परोपकार और संतोष का महत्व भी सिखाया। इस प्रकार, दानी पेड़ की कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती गई, और वह पेड़ गाँव की आत्मा के रूप में जीवित रहा, सबको यह सिखाता हुआ कि सच्चा सुख और संतोष तब मिलता है, जब हम अपनी जरूरतों को समझते हैं और दूसरों के प्रति दयालु और सहायक होते हैं।

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