डरपोक भूत की कहानी (Darpok Bhut Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Darpok Bhut Ki Kahani
Table of Contents
गांव में ‘भूतबाड़ी’ नाम की एक पुरानी हवेली थी। कई सालों से यह हवेली वीरान पड़ी थी, और गांववाले इसे भूतिया मानते थे। रात के समय हवेली से अजीबोगरीब आवाजें आती थीं—कभी दरवाजों के चरमराने की, कभी खिड़कियों के बजने की। लोग कहते थे कि वहां एक भूत रहता है, जिसने पूरे गांव में डर का माहौल बना रखा था। पर सच्चाई यह थी कि वह भूत बहुत ही डरपोक था।
उस भूत का नाम था “बबलू”। बबलू के बारे में कहा जाता था कि वह एक समय में गांव का सबसे साहसी लड़का था। लेकिन एक दिन, एक हादसे में उसकी मृत्यु हो गई, और वह भूत बनकर भूतबाड़ी में आ बसा। लेकिन बबलू का साहस उस दिन कहीं खो गया था। अब वह सिर्फ एक डरपोक भूत था, जो खुद से भी डरता था।
बबलू दिन में हवेली के किसी कोने में छुपा रहता और रात को जब पूरा गांव सो जाता, तब वह बाहर निकलता। लेकिन रात को भी वह अकेला नहीं घूमता था, बल्कि हमेशा सावधान रहता कि कहीं कोई उसे देख न ले। उसकी सबसे बड़ी परेशानी थी कि उसे अंधेरे से डर लगता था। इसलिए वह अपनी हाथ में हमेशा एक पुरानी टिमटिमाती लालटेन लेकर घूमता था।
गांववाले अक्सर भूतबाड़ी की हवेली के बारे में कहानियां बनाते रहते थे। कोई कहता कि वहां सफेद कपड़ों में एक भूत घूमता है, तो कोई कहता कि उसकी आंखों से आग निकलती है। लेकिन असल में बबलू इतना डरपोक था कि अगर हवेली में कोई आहट भी होती, तो वह डर के मारे एक कोने में दुबक जाता था।
एक दिन की बात है, गांव के कुछ लड़के साहस दिखाने के लिए रात में भूतबाड़ी में जाने की ठान लेते हैं। वे सोचते हैं कि भूतों की कहानी बस एक अफवाह है और वे इसे झूठ साबित करना चाहते हैं। वे रात को हाथ में मशालें लेकर हवेली की ओर बढ़ते हैं। दूसरी ओर, बबलू भी अपने रोज़मर्रा के अनुसार हवेली के अंदर लालटेन लेकर घूम रहा था।
लड़कों के हवेली में घुसते ही, बबलू को उनके कदमों की आहट सुनाई दी। उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं। “कौन है? कौन आ रहा है?” बबलू ने खुद से कहा। उसे लगा कि कोई इंसान उसकी खोज में आया है और वह पकड़ा जाएगा। उसने जल्दी से हवेली के ऊपर के कमरे में छिपने की कोशिश की। लेकिन उसकी लालटेन से निकली हल्की सी रोशनी ने लड़कों का ध्यान खींच लिया।
“देखो, वह रहा! वह रहा भूत!” एक लड़के ने चिल्लाते हुए कहा। सभी लड़के बबलू के पीछे दौड़ने लगे। बबलू यह देख और भी घबरा गया। वह तेजी से हवेली के ऊपर की ओर भागा, लेकिन उसके रास्ते में एक पुरानी सीढ़ी टूट गई और वह गिर गया। बबलू अब कांपने लगा। वह डर के मारे सोच रहा था कि अब उसका क्या होगा। लड़कों ने उसे घेर लिया और मशालों की रोशनी में उसे देखा।
लेकिन जब उन्होंने ध्यान से देखा, तो वे हैरान रह गए। बबलू कोई खतरनाक भूत नहीं था, बल्कि एक मासूम और डरपोक आत्मा थी। उसकी आंखों में डर और मासूमियत साफ झलक रही थी। एक लड़के ने आगे बढ़कर पूछा, “तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो?”
बबलू ने कांपते हुए जवाब दिया, “मैं… मैं बबलू हूँ। मैं इस हवेली में रहता हूँ, लेकिन मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। प्लीज, मुझे मत मारो।”
लड़के उसकी बात सुनकर हंस पड़े। “हम तुम्हें क्यों मारेंगे? तुम तो खुद ही डरे हुए हो!” एक लड़के ने कहा। लड़कों को समझ आ गया कि बबलू वाकई में डरपोक है और वह उनसे डर रहा है। उन्होंने बबलू को डराना बंद कर दिया और उससे दोस्ती करने का फैसला किया।
अब बबलू के पास दोस्त थे जो रात को हवेली में आते और उसके साथ खेलते। वे सब मिलकर हंसते, बातें करते और मजे करते। बबलू को अब डरना बंद हो गया था। उसके नए दोस्तों ने उसे साहसी बनने में मदद की। धीरे-धीरे, वह अपना डर भूलने लगा और उसकी आत्मा को शांति मिली।
कुछ ही दिनों में, बबलू का भूत गांववालों के लिए एक डर का नहीं, बल्कि एक मजेदार कहानी का हिस्सा बन गया। लड़के गांव में सबको बताते कि भूतबाड़ी में रहने वाला बबलू कितना अच्छा और प्यारा भूत था। लोग भी अब हवेली से डरने के बजाय वहां जाने लगे और बबलू के साथ समय बिताने लगे। बबलू अब अकेला नहीं था, और न ही डरपोक। उसकी डरपोक आत्मा को उसके नए दोस्तों ने ऐसा साहस दिया कि वह अब एक खुशमिजाज भूत बन गया।
और इस तरह, बबलू की डरपोक भूत वाली कहानी एक खुशहाल अंत के साथ खत्म हुई। गांववाले कहते हैं कि अगर आपके पास अच्छे दोस्त हों, तो आप किसी भी डर से लड़ सकते हैं, चाहे वह असली हो या कल्पना का हिस्सा।