देवरानी जेठानी : महाराष्ट्र की लोक कथा | Devrani Jethani Maharashtra Folk Tale In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम महाराष्ट्र की लोक कथा “देवरानी जेठानी” (Devrani Jethani Maharashtra Lok Katha) शेयर कर रहे है. एक कहानी आपसी मनमुटाव को प्रेम के मीठे बोल से दूर करने की शिक्षा देती है. पढ़िये पूरी कहानी : 

Devrani Jethani Maharashtra Lok Katha

Devrani Jethani Maharashtra Lok Katha
Devrani Jethani Maharashtra Ki Lok Katha

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गली के नुक्कड़ में परसराम का मकान था. वहाँ रहने वाली देवरानी और जेठानी की आपस में बनती नहीं थी. उनमें अक्सर तू-तू मैं-मैं हुआ करती थी. जिसके बाद कुछ दिनों तक दोनों में अनबोला रहता और फिर धीरे-धीरे सब ठीक हो जाया करता था.

एक बार फिर किसी बात पर दोनों झगड़ पड़ी. इस बार झगड़ा इतना ज़ोरदार था कि दोनों ने एक-दूसरे की सूरत ना देखने का प्रण कर लिया. दोनों अपने-अपने कमरों में जाकर बंद हो गई.

कुछ देर तक दोनों बड़बड़ाती हुई अपने-अपने कमरों में बैठीं रही. लेकिन, फिर जाने क्या हुआ कि देवरानी ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर निकल आई.

धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वो जेठानी के कमरे के सामने पहुँची और दरवाज़ा खटखटाने लगी. जेठानी अब भी गुस्से में थी. उसने दरवाज़ा खोले बिना ही पूछा, “कौन है?”

देवरानी बोली, “दीदी मैं हूँ. दरवाज़ा खोलो.”

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जेठानी भड़की, “अब क्यों आई है मेरे पास? कभी मुँह ना देखने का प्रण लिया है ना, तो दूर रह. मेरे पास मत आ.”

देवरानी बोली, “दीदी, उस समय गुस्से में मैंने वह प्रण ले लिया था और सोचा था कि अब कभी न अपनी सूरत आपको दिखाऊंगी न ही आपकी देखूंगी. लेकिन, जब माँ की बात याद आई, तो इरादा बदल लिया. माँ ने कहा था कि जब कभी किसी से मन-मुटाव हो जाए, तो सदा वह अपने हृदय में दबाए मत रखना. उस व्यक्ति की बुराई को नहीं, बल्कि अच्छाई को याद करना. आज झगड़े के बाद जब मैंने आपके दिए प्रेम के बारे में सोचा, तो मेरा हृदय द्रवित हो गया. मुझे क्षमा कर दो दीदी. बाहर आओ. मैंने चाय बनाई है. आओ साथ में चाय पियें.”

देवरानी की बात सुनकर जेठानी का ह्रदय पसीज़ का. उसने तुरंत दरवाज़ा खोला और देवरानी के गले लग गई. उसके बाद दोनों बहनों की तरह एक-साथ ऐसे चाय पीने लगी, मानो कुछ देर पहले कुछ हुआ ही ना हो.

सीख (Moral of the story)

जीवन में कभी भी क्रोधवश बात बिगड़ने लगे, तो प्रेम को अपना साथी बना लें. दो प्रेमपूर्ण बोल क्रोध पिघला देते हैं. इसलिए अपना हृदय उदार रखें और मनमुटाव की स्थिति की प्रेम से सुलझाने का प्रयास करें.

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