Mythological Story

दिवाली की पौराणिक कथा | Diwali Ki Pauranik Katha

दिवाली की पौराणिक कथा (Diwali Ki Pauranik Katha In Hindi)

दिवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, भारत का एक प्रमुख और महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई, और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। हिंदू धर्म में, दिवाली की कई पौराणिक कथाएँ हैं जो इसे विशेष और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाती हैं। इन कथाओं के माध्यम से दिवाली के महत्त्व को समझा जा सकता है। दिवाली की सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से मानी जाने वाली पौराणिक कथा भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी से संबंधित है, लेकिन इसके साथ ही कई अन्य कथाएँ भी दिवाली से जुड़ी हुई हैं। आइए दिवाली की इन पौराणिक कथाओं को विस्तार से समझते हैं।

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Diwali Ki Pauranik Katha In Hindi

Diwali Ki Pauranik Katha

 1. भगवान राम की अयोध्या वापसी और रावण पर विजय

दिवाली का सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से मानी जाने वाली पौराणिक कथा भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है। रामायण के अनुसार, भगवान राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे। राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। कौशल्या से राम, कैकेयी से भरत, और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे। भगवान राम को उनकी सत्यनिष्ठा, मर्यादा और धर्म का पालन करने के लिए जाना जाता है।

जब राजा दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम को राजा बनाने का निर्णय लिया, तब कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी को यह समझाया कि यदि राम राजा बनेंगे, तो भरत का स्थान छोटा हो जाएगा। कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने वचन के अनुसार दो वरदान मांगे – पहला वरदान राम को 14 वर्षों के लिए वनवास भेजने का और दूसरा वरदान भरत को राजा बनाने का। राजा दशरथ को विवश होकर कैकेयी की इच्छाओं का पालन करना पड़ा, और भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए चले गए।

वनवास के दौरान, राम ने कई कठिनाइयों का सामना किया। सबसे प्रमुख घटना रावण द्वारा सीता का अपहरण था। राम ने वानरराज सुग्रीव और उनके सेनापति हनुमान की सहायता से लंका पर आक्रमण किया। एक भयंकर युद्ध के बाद, राम ने रावण का वध किया और सीता को वापस प्राप्त किया। राम ने अधर्म और अत्याचार का अंत करके धर्म और सत्य की विजय प्राप्त की। 14 वर्षों का वनवास समाप्त होने के बाद, राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे।

अयोध्या के लोगों ने राम, सीता और लक्ष्मण के स्वागत के लिए अपने घरों और सड़कों को दीपों से सजाया। इस प्रकार, अयोध्या नगरी में दीप जलाए गए, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है। अंधकार पर प्रकाश की इस विजय को ही दिवाली के रूप में मनाया जाता है।

2. भगवान कृष्ण और नरकासुर का वध

दिवाली से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा भगवान श्रीकृष्ण और असुर नरकासुर से संबंधित है। नरकासुर, एक अत्याचारी दानव था जिसने पृथ्वी और स्वर्ग दोनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उसने कई देवताओं को बंदी बना लिया था और 16,000 स्त्रियों का अपहरण कर उन्हें अपने बंदीगृह में कैद कर रखा था। नरकासुर की शक्तियों के कारण उसे कोई पराजित नहीं कर सकता था, क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु केवल भगवान विष्णु के अवतार के हाथों ही हो सकती है।

भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध करने का संकल्प लिया। युद्ध के दौरान, नरकासुर ने सत्यभामा पर भी आक्रमण किया, लेकिन सत्यभामा ने भगवान विष्णु की शक्ति से नरकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार, भगवान कृष्ण ने नरकासुर के आतंक से पृथ्वी और स्वर्ग को मुक्त किया और 16,000 स्त्रियों को भी स्वतंत्र किया। इस विजय की स्मृति में दिवाली के एक दिन पूर्व “नरक चतुर्दशी” या “छोटी दिवाली” मनाई जाती है।

3. माता लक्ष्मी का प्राकट्य

दिवाली का एक महत्वपूर्ण पहलू धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा भी है। लक्ष्मी पूजन के पीछे एक प्रमुख पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान, समुद्र से कई दिव्य वस्तुएं प्रकट हुईं, जिनमें माता लक्ष्मी भी थीं। माता लक्ष्मी ने समुद्र मंथन से उत्पन्न होकर विष्णु जी को अपने पति के रूप में चुना और उनके साथ विवाह किया। लक्ष्मी को समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है, और दिवाली की रात को देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है ताकि उनके आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहे।

 4. राजा बलि और वामन अवतार

दिवाली की एक अन्य पौराणिक कथा राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। राजा बलि एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ असुर राजा थे, जिनकी शक्ति और साम्राज्य ने देवताओं को चिंतित कर दिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने यह भिक्षा सहर्ष स्वीकार की।

वामन ने पहले पग में पूरी पृथ्वी नाप ली, दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया, और जब तीसरे पग की बारी आई, तब बलि ने अपनी भक्ति और वचन को निभाते हुए अपना सिर वामन के सामने रख दिया। वामन ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और उसके त्याग की सराहना की। इस कथा से राजा बलि की भक्ति और वचनबद्धता की महिमा प्रकट होती है। दक्षिण भारत में इस दिन को बलिप्रतिपदा या ओणम के रूप में भी मनाया जाता है, जो राजा बलि के सम्मान में होता है।

 5. पांडवों की वापसी

दिवाली की एक और कथा महाभारत से संबंधित है। महाभारत के अनुसार, कौरवों और पांडवों के बीच पासे का खेल हुआ था, जिसमें पांडवों को हार का सामना करना पड़ा था। हारने के बाद, पांडवों को 12 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास सहना पड़ा। जब पांडवों ने अपने वनवास और अज्ञातवास की अवधि पूरी कर ली, तब वे अपनी राजधानी हस्तिनापुर लौटे। उनकी इस विजय और वापसी की खुशी में हस्तिनापुर के लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। यह दिन भी दिवाली के रूप में मनाया जाता है।

 6. जैन धर्म में दिवाली

जैन धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्त्व है। यह दिन भगवान महावीर के निर्वाण का दिन माना जाता है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या के दिन पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था। उनके अनुयायियों ने उनके निर्वाण की खुशी में दीप जलाए और तभी से जैन समुदाय दिवाली को महावीर निर्वाणोत्सव के रूप में मनाता है।

 7. सिख धर्म में दिवाली

सिख धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्त्व है। सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी को मुगल सम्राट जहांगीर ने ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। बाद में, गुरु हरगोबिंद जी को रिहा कर दिया गया, और उनके साथ 52 अन्य राजाओं को भी स्वतंत्रता मिली। गुरु हरगोबिंद जी की वापसी के इस दिन को सिख समुदाय “बंदी छोड़ दिवस” के रूप में मनाता है, जो दिवाली के दिन ही पड़ता है। इस दिन सिख समुदाय हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में दीप जलाते हैं और खुशी मनाते हैं।

 निष्कर्ष

दिवाली केवल एक धार्मिक त्योहार ही नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसकी पौराणिक कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि दिवाली अच्छाई की बुराई पर, प्रकाश की अंधकार पर, और सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है। हर कथा अपने आप में एक महत्वपूर्ण संदेश देती है—धर्म का पालन, सत्य की रक्षा, और अपने कर्तव्यों का निर्वहन। यही कारण है कि दिवाली को संपूर्ण भारत में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।

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