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ढोलवाले का बेटा शिक्षाप्रद कहानी | Drummer’s Son Story In Hindi 

ढोलवाले का बेटा शिक्षाप्रद कहानी | Drummers Son Story In Hindi

कहते हैं कि बुद्धिमान वही होता है जो परिस्थिति के अनुसार अपना व्यवहार बदल सके। कभी-कभी हमारी छोटी-सी गलती भी हमें बड़े संकट में डाल सकती है। यह कहानी एक गरीब ड्रमर और उसके बेटे की है, जो मेहनत करके पैसा तो कमाते हैं, लेकिन एक छोटी-सी भूल के कारण सब कुछ गंवा बैठते हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हर जगह और हर समय एक जैसा व्यवहार करना सही नहीं होता।

Drummers Son Story In Hindi 

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Drummers Son Story In Hindi 

किसी गाँव में रामू नाम का एक गरीब ढोल वाला अपनी पत्नी गौरी और बेटे मोहन के साथ रहता था। वह गाँव में ढोल बजाकर अपनी आजीविका चलाता था। जब कोई शादी या उत्सव होता, तो उसे काम मिल जाता, लेकिन बाकी दिनों में उसकी हालत बहुत खराब रहती थी। कई बार ऐसा भी होता कि उनके घर में खाने के लिए कुछ नहीं होता।

रामू की पत्नी गौरी बहुत समझदार थी। वह हमेशा अपने पति को ढाँढस बँधाती और कहती, “समय एक जैसा नहीं रहता। मेहनत करते रहो, एक दिन हमारा भी अच्छा समय आएगा।” लेकिन रामू चिंतित रहता क्योंकि काम मिलना बहुत मुश्किल होता जा रहा था।

रामू का बेटा मोहन सिर्फ दस साल का था, लेकिन वह अपने माता-पिता की चिंता को समझता था। वह भी चाहता था कि उसके घर में खुशहाली आए।

एक दिन गाँव में एक व्यापारी आया। उसने बताया कि जंगल के पार एक गाँव में हर साल बड़ा मेला लगता है, जहाँ कलाकारों को अच्छा पैसा मिलता है। यह सुनकर रामू को लगा कि यह उसके लिए सुनहरा अवसर हो सकता है।

रामू ने अपनी पत्नी से कहा, “अगर मैं वहाँ जाकर ढोल बजाऊँ, तो शायद हमें कुछ पैसे मिल जाएँ।”

गौरी को चिंता हुई, “जंगल बहुत खतरनाक है। वहाँ जंगली जानवर और डाकू भी हो सकते हैं। क्या यह सही होगा?”

रामू ने जवाब दिया, “हम यूँ ही बैठे रहेंगे, तो भूख से मर जाएँगे। हमें यह कोशिश करनी चाहिए।”

मोहन ने कहा, “बाबा, मैं भी आपके साथ चलूंगा। मैं आपकी मदद करूंगा।”

गौरी को डर था, लेकिन उसने बेटे और पति को शुभकामनाएं विदा किया।

रामू और मोहन सुबह जल्दी ही निकल पड़े। जंगल घना था और वहाँ बहुत सन्नाटा था। चलते-चलते अचानक एक झाड़ी हिली, और दोनों डर गए। लेकिन वह केवल एक लोमड़ी थी, जो भाग गई।

वे आगे बढ़े तो अचानक एक बड़ा भालू रास्ता रोककर खड़ा हो गया। रामू और मोहन बहुत डर गए। तभी रामू को एक उपाय सूझा। उसने जल्दी से अपनी ढोलक निकाली और बजाने लगा। ढोल की आवाज सुनकर भालू शांत हो गया और धीरे-धीरे झूमने लगा। कुछ देर नाचने के बाद वह वहाँ से चला गया।

मोहन खुशी से बोला, “बाबा, आपका ढोल सच में जादू करता है!”

कई घंटे की कठिन यात्रा के बाद वे मेले वाले गाँव पहुँचे। वहाँ बहुत रौनक थी। रामू ने तुरंत ढोल बजाना शुरू किया। उसकी कला इतनी शानदार थी कि लोग उसकी ओर आकर्षित हो गए।

रामू ने पूरे जोश से ढोल बजाया, और लोग खुश होकर उसे इनाम देने लगे। कुछ ही देर में उसके पास बहुत सारा पैसा इकट्ठा हो गया। यह देखकर मोहन बहुत खुश हुआ।

वे कई दिन वहाँ रुके और ढोल बजाकर अच्छा पैसा कमाया। अब उनके पास इतना धन था कि वे एक आरामदायक जीवन जी सकते थे।

अब रामू और मोहन अपने गाँव लौट रहे थे। उनके पास काफी पैसे थे, इसलिए रामू बहुत सतर्क था। उसे डर था कि कहीं डाकू न आ जाएँ।

रामू चुपचाप चल रहा था, लेकिन मोहन बहुत उत्साहित था। वह खुशी में झूमते हुए बोला, “बाबा, आज तो हम अमीर हो गए!”

रामू ने उसे धीरे चलने के लिए कहा, “बेटा, यह जंगल है। यहाँ हमें शांति से चलना चाहिए।”

लेकिन मोहन बहुत खुश था। उसने ढोल उठाया और जोर-जोर से बजाने लगा।

रामू घबरा गया और बोला, “बेटा, ऐसा मत करो! डाकू सुन लेंगे।”

लेकिन मोहन मस्ती में था और वह ढोल बजाता रहा।

अचानक कुछ दूर झाड़ियों से आवाज आई। कुछ ही देर में चार-पाँच डाकू उनके सामने आ गए। उनके पास तलवारें और भाले थे।

डाकुओं ने कड़क आवाज में कहा, “तुम्हारे पास जो कुछ है, हमारे हवाले कर दो!”

रामू ने डरते हुए पैसे देने से मना कर दिया, लेकिन डाकुओं ने तलवार दिखाकर धमकाया। मजबूरी में रामू को अपनी सारी कमाई उन्हें देनी पड़ी।

डाकू हँसते हुए बोले, “तुम्हारा बेटा बहुत अच्छा ढोल बजाता है।” और पैसे लेकर गायब हो गए।

रामू निराश होकर बोला, “मैंने तुझे मना किया था, लेकिन तूने मेरी बात नहीं मानी। अब देख, हमारी मेहनत पर पानी फिर गया।”

मोहन रोने लगा, “मुझे माफ कर दो, बाबा। मैंने गलती की। मुझे आपकी बात माननी चाहिए थी।”

रामू और मोहन उदास होकर गाँव लौटे। घर पहुँचकर गौरी ने जब यह सुना, तो उसकी आँखों में आँसू आ गए।

रामू ने बेटे को समझाया, “बेटा, हमें हर जगह एक जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। खुशी और उत्साह ठीक है, लेकिन परिस्थिति को भी समझना जरूरी होता है। अगर तुमने जंगल में शांति रखी होती, तो हमारा पैसा सुरक्षित रहता।”

मोहन ने सिर झुका लिया और कहा, “बाबा, अब मैं हमेशा ध्यान रखूँगा कि जहाँ जैसी स्थिति हो, वैसा ही व्यवहार करूँ।”

सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिस्थिति के अनुसार अपना व्यवहार बदलना चाहिए। कई बार खुशी में या अज्ञानता में हम ऐसी गलती कर बैठते हैं, जो हमें नुकसान पहुँचा सकती है। जो व्यक्ति समय के अनुसार अपने कार्य करता है, वही सफल होता है।

“समय, स्थान और परिस्थिति को समझकर ही निर्णय लें, तभी सफलता मिलेगी।”

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