बाज़ और बत्तख की कहानी (Eagle And Duck Story In Hindi With Moral) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Eagle And Duck Story In Hindi
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एक हरे-भरे जंगल के पास एक सुंदर और शांत झील थी। झील के किनारे रंग-बिरंगी बत्तखें रहती थीं। हर सुबह वे झील में तैरने निकलतीं, छोटी-छोटी मछलियों के साथ खेलतीं और हंसते-गाते अपना समय बितातीं। इस झील के ऊपर एक ऊँचा पहाड़ था, जहां एक बाज अपना घोंसला बनाए हुए था। वह अक्सर आसमान में ऊंची उड़ान भरता, पहाड़ों और जंगलों के ऊपर मंडराता और अपनी तीखी नज़रों से पूरे इलाके पर नजर रखता।
झील की बत्तखें बाज को देखकर हमेशा चकित होतीं। उसकी उड़ान की ऊँचाई और उसकी तेज़ गति देखकर वे सोचतीं कि काश वे भी इतनी ऊँचाई पर उड़ सकतीं। उनमें से एक बत्तख, जिसका नाम डोरा था, हमेशा किसी न किसी बात की शिकायत करती रहती थी। कभी वह झील के पानी की ठंडक की शिकायत करती, कभी मछलियों के कम होने की और कभी मौसम के गर्म होने की। लेकिन सबसे ज्यादा वह बाज के बारे में शिकायत करती थी।
डोरा अक्सर कहती, “देखो उसे, वह कितनी ऊँचाई पर उड़ता है! काश हम भी इतनी ऊँचाई पर उड़ सकते। हमें तो बस इस झील में तैरना ही आता है। हम कितने असहाय हैं!”
उसकी सहेलियाँ उससे कहतीं, “डोरा, हमें जो मिला है, उसी में खुश रहना चाहिए। हम तैरने में माहिर हैं और झील में हमारा जीवन कितना सुंदर है। हर किसी का अपना-अपना गुण होता है।”
लेकिन डोरा को ये बातें संतुष्ट नहीं कर पाती थीं। वह हमेशा कुछ न कुछ शिकायत करती रहती। एक दिन, जब वह इसी तरह बाज की उड़ान को देखकर बड़बड़ा रही थी, बाज ने उसकी बातें सुन लीं। वह झील के पास आकर एक पेड़ की शाख पर बैठ गया।
बाज ने अपनी गहरी आवाज में कहा, “डोरा, तुम क्यों इतनी शिकायत करती हो? हर प्राणी का अपना महत्व है। तुम झील में तैरने में माहिर हो, जबकि मैं ऊँचाइयों पर उड़ने में। हम दोनों का काम अलग-अलग है, लेकिन दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।”
डोरा ने जवाब दिया, “तुम्हें क्या पता? तुम तो इतनी ऊँचाई पर उड़ते हो, तुम्हारे पास ताकत है, गति है। तुम्हें कभी पानी में तैरने की समस्या नहीं होती। हमें हर दिन एक जैसी झील में रहना पड़ता है, वही पानी, वही पेड़-पौधे। हमें भी उड़ने का मौका मिलना चाहिए।”
बाज ने हंसते हुए कहा, “तुम्हें लगता है कि ऊँचाई पर उड़ना इतना आसान और सुखद है? हर चीज़ के अपने फायदे और नुकसान होते हैं। मैं ऊँचाइयों पर उड़ता हूं, लेकिन मुझे हर वक्त भोजन की तलाश में रहना पड़ता है। कभी-कभी मुझे घंटों तक भूखे रहकर उड़ना पड़ता है। और अगर जरा सी भी गलती हो जाए, तो मेरी जान भी जा सकती है।”
डोरा ने इसे गंभीरता से सुना, लेकिन फिर भी वह अपनी बात पर अड़ी रही, “फिर भी, तुम्हारा जीवन हमसे बेहतर है। हमें तो केवल तैरने को ही मिलता है। हमें भी ऊँचाइयों पर उड़ने का अनुभव चाहिए।”
बाज ने कुछ देर सोचा और फिर उसने डोरा से कहा, “ठीक है, अगर तुम वाकई ऊँचाइयों पर उड़ने का अनुभव करना चाहती हो, तो मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बिठाकर ऊँचाई तक ले जा सकता हूं। लेकिन याद रखना, यह आसान नहीं होगा।”
डोरा उत्साहित हो गई। वह बिना सोचे-समझे तुरंत तैयार हो गई। बाज ने अपनी पीठ झुकी, और डोरा उस पर बैठ गई। फिर बाज ने अपने पंख फैलाए और झील के ऊपर से उड़ान भरी। धीरे-धीरे वह झील से ऊपर उठता गया, और डोरा ने देखा कि झील, जो पहले इतनी विशाल लग रही थी, अब एक छोटी सी बूँद जैसी दिखने लगी।
जैसे-जैसे वे और ऊँचाई पर गए, डोरा को ठंडी हवाएँ महसूस होने लगीं। पहले तो उसे यह नया अनुभव रोमांचक लगा, लेकिन धीरे-धीरे हवा की ठंडक उसे चुभने लगी। उसकी छोटी चोंच काँपने लगी और पंख सिकुड़ने लगे। बाज लगातार ऊँचाई पर चढ़ता जा रहा था और अब वह पहाड़ों के ऊपर उड़ रहा था।
डोरा ने नीचे देखा, तो उसे चारों ओर केवल धुंध और बादल दिखाई दिए। जमीन कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। उसे घबराहट होने लगी। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। अब उसे समझ में आने लगा कि बाज के लिए यह उड़ान कितनी कठिन होती होगी।
अचानक, एक तेज़ हवा का झोंका आया और बाज को थोड़ा असंतुलित कर दिया। डोरा डर के मारे चिल्लाने लगी, “मुझे वापस ले चलो! मैं अब और नहीं सह सकती! यह बहुत डरावना है। मुझे नहीं पता था कि ऊँचाई पर उड़ना इतना कठिन होगा।”
बाज ने डोरा की स्थिति को समझा और तुरंत नीचे की ओर उड़ान भरने लगा। धीरे-धीरे वह झील के पास पहुंचा और डोरा को किनारे पर उतार दिया। डोरा की हालत खराब हो चुकी थी। वह कांप रही थी और उसका शरीर ठंड से अकड़ गया था।
बाज ने नरम स्वर में कहा, “देखो, हर किसी का अपना-अपना स्थान होता है। तुम तैरने में माहिर हो, जबकि मैं उड़ने में। हमें अपनी क्षमताओं को समझना चाहिए और उसी में खुश रहना चाहिए। तुमने ऊँचाई का अनुभव कर लिया, लेकिन अब समझ लो कि वह तुम्हारे लिए नहीं है।”
डोरा ने गहरी सांस ली और फिर धीमी आवाज़ में कहा, “तुम सही कह रहे हो। मैंने हमेशा शिकायत की, बिना यह समझे कि जो मुझे मिला है, वह कितना कीमती है। अब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास जो है, वही मेरे लिए सबसे अच्छा है।”
इसके बाद, डोरा ने शिकायत करना छोड़ दिया। अब वह झील में तैरने का आनंद लेती और अपने साथियों के साथ खुश रहती। उसे अब समझ में आ गया था कि हर प्राणी की अपनी विशेषता होती है, और उसे उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। बाज भी अब जब भी झील के ऊपर उड़ता, डोरा उसे देखकर मुस्कुराती और उसकी ऊँचाइयों की उड़ान का सम्मान करती, लेकिन कभी भी उसकी तरह बनने की चाह नहीं करती।
इस कहानी से डोरा ने एक महत्वपूर्ण सबक सीखा – हर किसी का अपना विशेष स्थान और महत्व होता है, और हमें उसे स्वीकार करना और उसमें खुश रहना चाहिए।
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