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एक पिता की दर्द भरी कहानी | Ek Pita Ki Dard Bhari Kahani

pita ki dard bhari kahani एक पिता की दर्द भरी कहानी | Ek Pita Ki Dard Bhari Kahani
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Ek Pita Ki Dard Bhari Kahani

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Ek Pita Ki Dard Bhari Kahani

शहर के एक छोटे से मोहल्ले में रघुवीर नाम का एक व्यक्ति अपने बच्चों के साथ रहते थे। रघुवीर का जीवन संघर्ष और मेहनत से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के लिए काम किया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, उनके बच्चे उनसे दूर होते गए। 

रघुवीर का नाम मोहल्ले में सम्मान से लिया जाता था। वे एक स्कूल के शिक्षक थे और बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करते थे। उनके छात्रों में हमेशा उनके प्रति एक विशेष आदर होता था। लेकिन घर में बात अलग थी। रघुवीर के दो बच्चे, अजय और नेहा, अब बड़े हो चुके थे और अपने-अपने करियर में व्यस्त थे। रघुवीर ने उन्हें हमेशा अच्छे संस्कार दिए, लेकिन समय के साथ उनका तिरस्कार बढ़ने लगा।

जब अजय कॉलेज में गया, तो उसने अपने पिता की कमाई को लेकर बातें करना शुरू किया। वह सोचने लगा कि पिता की नौकरी से उसका भविष्य नहीं बन सकता। अजय ने कहा, “पिता, आप क्यों नहीं कुछ और काम करते? आपकी नौकरी से कुछ नहीं होने वाला।” यह सुनकर रघुवीर का दिल टूट गया, लेकिन उन्होंने सोचा कि शायद यह सिर्फ एक किशोर का विद्रोह है। 

नेहा, जो एक युवा डॉक्टर बन चुकी थी, भी धीरे-धीरे अपने पिता से दूर हो गई। जब भी वह घर आती, रघुवीर उसे सुनाते कि कैसे उसने अपने बचपन में कठिनाइयों का सामना किया। नेहा ने कहा, “पिता, आप पुराने ख्यालों में जी रहे हैं। आपको यह समझना होगा कि समय बदल चुका है।” रघुवीर ने अपने बच्चों को समझाने की कोशिश की, लेकिन उनके दिलों में पिता के प्रति सम्मान की कमी होती गई।

रघुवीर का दिल तड़पता था। उन्होंने अपने बच्चों के लिए सब कुछ किया, लेकिन उन्हें यह महसूस नहीं हुआ कि उनके पिता की मेहनत और संघर्ष का कोई महत्व नहीं था। एक दिन, रघुवीर ने अपने बच्चों से कहा, “मैंने अपनी पूरी जिंदगी आपके लिए बलिदान की है। क्या यही मेरा फल है?” लेकिन अजय और नेहा की आंखों में केवल असहमति थी। 

समय बीतने के साथ, रघुवीर की सेहत भी बिगड़ने लगी। उन्हें एक गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया, लेकिन उनके बच्चे उनकी देखभाल करने के बजाय अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए। रघुवीर ने सोचा कि शायद जब वे उन्हें जरूरत महसूस करेंगे, तब आएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने दिन-रात अकेले बिताए, दर्द और बुरे समय से जूझते हुए।

एक दिन, रघुवीर ने तय किया कि वह अपने बच्चों से बात करेंगे। उन्होंने दोनों को बुलाया और कहा, “मैंने तुम्हारे लिए सब कुछ किया है, लेकिन अब मुझे आपकी जरूरत है।” अजय ने जवाब दिया, “पिता, हम व्यस्त हैं। हमें अपना करियर बनाना है।” नेहा ने भी यही कहा। रघुवीर की आंखों में आंसू आ गए। वह सोचने लगे कि क्या उनके बलिदान का कोई मूल्य नहीं था।

कुछ महीनों बाद, रघुवीर की तबियत और बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस बार भी बच्चों ने सिर्फ फोन पर हालचाल लिया। जब रघुवीर ने उन्हें बताया कि वह गंभीर हैं, तब भी उनकी आवाज में कोई चिंता नहीं थी। अजय ने कहा, “पिता, हम काम में व्यस्त हैं। हम कोशिश करेंगे कि जल्द ही आ सकें।” 

इस बीच, रघुवीर को यह महसूस हुआ कि उनके बच्चों ने उनकी सोच और उनकी परवरिश को पूरी तरह भुला दिया है। वह सोचने लगे कि क्या उन्होंने अपने बच्चों को सही शिक्षा दी थी। उन्होंने अपनी मेहनत से उन्हें शिक्षित किया, लेकिन क्या उनके दिलों में पिता के प्रति कोई सम्मान था?

अस्पताल में रघुवीर ने अपनी पूरी जिंदगी का विचार किया। वह सोचने लगे कि क्या वह बच्चों के लिए सब कुछ करने में गलती कर गए। क्या उन्होंने उन्हें स्वतंत्रता देने में अधिक छूट दी? क्या उनका प्यार ही उनकी दूरियों का कारण बना?

अंततः, रघुवीर को अस्पताल में अकेले बिताए हुए समय में बहुत कुछ समझ में आया। उन्होंने तय किया कि वह अपने बच्चों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश करेंगे, लेकिन अब उनके दिल में उम्मीद कम थी। 

कुछ समय बाद, जब रघुवीर घर लौटे, तो उन्होंने बच्चों को फिर से बुलाया। इस बार उन्होंने कहा, “मैंने तुम्हारे लिए सब कुछ किया, लेकिन मैं भी एक इंसान हूँ। मुझे आपकी जरूरत है।” लेकिन अजय और नेहा के चेहरे पर वही बेपरवाही थी। 

इस दौरान, रघुवीर ने अपने दर्द को अपने दिल में ही रखा। उन्होंने सोचा कि शायद यह उनकी किस्मत है कि उनके बच्चे उन्हें समझ नहीं पा रहे। रघुवीर ने समझा कि कभी-कभी बलिदान और प्यार का मूल्य नहीं समझा जाता। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम संध्या में यह सोचते हुए बिताई कि एक पिता की भूमिका में कितना दर्द छिपा होता है, और कैसे बच्चों का तिरस्कार एक पिता के दिल को चीर देता है।

रघुवीर का जीवन एक ऐसे पिता की कहानी बन गई, जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ करता रहा, लेकिन अंत में तिरस्कार और असहायता का सामना करना पड़ा। यह कहानी केवल रघुवीर की नहीं, बल्कि कई पिताओं की है, जो अपने बच्चों के लिए जीते हैं, लेकिन अपने दर्द और संघर्ष को छिपा कर रखते हैं।

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