फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम तीन बौनों और मोची की कहानी (The Elves And The Shoemaker Story In Hindi) की कहानी शेयर कर रहे है. इस जर्मन परी कथा में एक गरीब मोची के बारे में बताया गया है कि कैसे वह तीन बौनों से सहायता प्राप्त करता है और उसकी ज़िंदगी बदल जाती है. बहुत सरल तरीके से ये कहानी जीवन की कई सीखें दे जाती हैं. पढ़िए :
The Elves And The Shoemaker Story In Hindi
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एक शहर में एक गरीब मोची रहता था. अपने घर के एक कमरे में वह जूते बनाता और उन्हें बेचकर जो भी पैसे मिलते, उससे अपने परिवार का भरण-पोषण करता था.
वह दिन भर मेहनत कर जूते बनाता था, लेकिन उसके जूते ज्यादा नहीं बिकते थे. एक समय तो ऐसा आया कि उसके बनाये जूते बिकने बहुत कम हो गए. मजबूरी में वह बहुत कम दाम पर जूते बेच दिया करता, ताकि कुछ तो पैसे मिल जाये.
धीरे-धीरे हालत ये हो गई कि उसका धंधा बंद होने की कगार पर आ गया. ऐसे में उसे हर समय अपने परिवार के भरण-पोषण की चिंता सतात्ती रहती. उसके जमा पैसे भी ख़त्म होने लगे थे. घर का सामान बेचने की नौबत तक आ गई थी.
मोची बहुत अधिक परेशान रहने लगा था. उसकी पत्नि उसे हमेशा भगवान पर भरोसा रखने को कहती और उसे समझाती कि भगवान सब देख रहा है और वह हमारी सारी परेशानी दूर कर देगा. मोची ऊपर से तो मुस्कुरा देता, लेकिन अंदर ही अंदर चिंता में घुलता रहता.
उसके पास जूते बनाने का सामान भी खत्म होने लगा था. दुकान में बस एक जोड़ी जूता बचा हुआ है, जिसे ख़रीदने कोई ग्राहक नहीं आ रहा था. आखिरकार, एक दिन उसने बाज़ार जाकर उस जूते को बेचने का मन बना लिया और उसे लेकर बाज़ार की ओर निकल पड़ा.
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वह बाज़ार की कई दुकानों में गया और अपने आखिरी जोड़ी जूते बेचने की कोशिश की, लेकिन कोई उसके जूते ख़रीदने तैयार नहीं हुआ. वह जूते लेकर वापस लौटने लगा, तो रास्ते में उसे एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई पड़ा. वह खाली पैर चला जा रहा है. रास्ते के कंकड़-पत्थर उसके पैर में चुभ रहे हैं.
मोची को उस बूढ़े व्यक्ति पर दया आ गई. उसने सोचा कि जूते तो बिक नहीं रहे हैं, इस बूढ़े व्यक्ति के ही काम जायेंगे. उसने वे जूते उस बूढ़े व्यक्ति को दे दिए और घर वापस आ गया.
शाम को वह अपनी दुकान में गया, तो देखा कि वहाँ चमड़े का एक टुकड़ा बचा हुआ है. उस टुकड़े से मात्र एक जोड़ी जूता बन सकता था. वह जूता बनाने के लिए चमड़े का वह टुकड़ा काटने लगा. चमड़ा काटते-काटते उसे काफ़ी रात हो गई. इसलिए वह उसे यूं ही दुकान में छोड़कर घर आ गया.
अलगे दिन जब वह दुकान गया, तो यह देखकर हैरान रह गया कि जिस जगह उसने चमड़े का टुकड़ा छोड़ा था, वहाँ एक जोड़ी जूते रखे हुए हैं. वे जूते देखने में बहुत सुंदर थे. कुछ देर तो मोची उन्हें देखता ही रहा. फिर सोचा कि क्यों न इसे बाज़ार जाकर बेचने की कोशिश करूं.
जब वह बाज़ार पहुँचा, तो पहली ही दुकान में दुकानदार ने अच्छी कीमत देकर उन जूतों को ख़रीद लिया. मोची बड़ा ख़ुश हुआ. उसने जूते बनाने का और घर की ज़रूरत का कुछ सामान ख़रीदा और ख़ुशी-ख़ुशी घर वापस आ गया.
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रात में उसने दो जूते बनाने का चमड़ा काटकर रख दिया. अगले दिन उसे दो सुंदर जूते बने हुए मिले. वे जूते भी अच्छी कीमत पर बिक गये.
उसने बाद से मोची रोज़ चमड़ा काटकर दुकान में छोड़ने लगा. अगले दिन उसे बने बनाए जूते मिल जाते. उसके जूतों की पूरे बाज़ार में चर्चा होने लगी और उसकी दुकान में ग्राहकों की भीड़ उमड़ने लगी.
अब उसके जूते तुरंत बिक जाते और साथ ही नए जूतों की मांग भी रहती. धीरे-धीरे उसकी आर्थिक स्थति सुधरने लगी. यह देख उसकी पत्नि भी हैरान थी. एक दिन उसने मोची से पूछा कि ऐसा अचानक क्या हुआ कि बाज़ार में उसके बनाये जूते इतने लोकप्रिय हो गये.
मोची ने उसे सारी बात बता दी कि कैसे वह रात में जूते बनाने के लिए चमड़ा काटकर घर चला आता है और अगले दिन उसे बने-बनाए जूते मिल जाते हैं.
पूरी बात जानकर पत्नि बोली, “ये तो भगवान की कृपा है कि कोई नेक इंसान हमारी मदद कर रहा है. लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि हमें ये पता होना चाहिए कि वो कौन है? और हमें भी उसके लिए कुछ करना चाहिए.”
मोची को अपनी पत्नि को बात ठीक लगी. उस रात जूते बनाने का चमड़ा काटकर वह घर नहीं गया, बल्कि पत्नि के साथ दुकान में ही छुपकर उस इंसान का इंतज़ार करने लगा, जो उसके लिए जूते बना जाता है.
रात १२ बजे खिड़की के रास्ते तीन बौने दुकान में आये और नाचते-गाते मज़े से जूते बनाने में जुट गये. सुबह तक उन्होंने सुंदर-सुंदर जूते तैयार कर दिए और खिड़की के ही रास्ते वापस चले गये.
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उनके जाने के बाद मोची और उसकी पत्नि आपस में बात करने लगे. पत्नि बोली, “वे तीनों बौने कितने नेकदिल है. बिना किसी आशा के वे हमारी मदद कर हैं और हम हैं कि उनके लिए कुछ भी नहीं कर रहे. हमें भी उनके लिए कुछ करना चाहिए. कम से कम हम उन्हें कोई उपहार तो दे ही सकते हैं.”
“मुझे भी लगता है कि हमें उपहार देकर अपनी कृतज्ञता उन्हें दिखानी चाहिए. आखिर, उनके ही कारण हम गरीबी से बाहर आये हैं. लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि हम उन्हें क्या दें?” मोची बोला.
“तुमने देखा था कि उनके कपड़े पुराने हो चुके थे और जूते फटे हुए थे. मैं ऐसा करती हूँ कि उनके लिए पकड़े सिल देती हूँ और तुम उनके लिए जूते बना दो. वे ज़रूर ये उपहार पाकर ख़ुश हो जायेंगे.”
मोची को पत्नि की ये बात जंच गई. वह फ़ौरन दुकान गया और कपड़े और जूते बनाने का सामान ले आया. कुछ दिन तक दोनों पति-पत्नि मिलकर कपड़े और जूते बनाते रहे.
जब कपड़े और जूते तैयार हुए, तो मोची और उसकी पत्नि बहुत ख़ुश हुए, क्योंकि वे बहुत ही सुंदर बने थे. उस रात मोची ने चमड़े के स्थान पर वे कपड़े और जूते रख दिए. फिर अपनी पत्नि के साथ छुपकर बौनों का इंतज़ार करने लगा.
रात १२ बजे तीनों बौने हमेशा की तरह खिड़की से दुकान में दाखिल हुए. जब उन्होंने अपने लिए कपड़े और जूते देखे, तो बहुत ख़ुश हुए. वे उन्हें पहनकर रात भर नाचते-गाते रहे और सुबह वापस चले गये. मोची और उसकी पत्नि ख़ुश थे कि बौनों को उनके उपहार पसंद आ गया.
उस रात जब मोची के जूते बनाने के लिए चमड़ा काटकर रखा, तो अगले दिन उसे तैयार जूते नहीं मिले. उसे अगले कुछ दिनों तक भी ऐसा ही होता रहा. मोची समझ गया कि अब बौने नहीं आएंगे. उन्हें उसकी जितनी मदद करनी थी, वे कर चुके थे.
उस दिन के बाद से मोची ख़ुद जूते बनाने लगा. जूते बनाने में वह माहिर तो था ही, अब उसे ग्राहकों की पसंद का भी अंदाज़ा लग चुका था. वह खूब मेहनत करने लगा और जूते बनाने की अपनी कला को भी निखारने लगा.
उसके जूते भी बौनों द्वारा बनाए जूतों जैसे ही सुंदर बनने लगे और ग्राहकों को पसंद आने लगे. अब उसकी दुकान में ग्राहकों की हमेशा भीड़ लगी रहती. अब वह ख़ुश था और संतुष्ट भी.
सीख (Moral of the story)
- ईश्वर पर सदा विश्वास रखें. चाहे कितनी ही मुश्किल क्यों न आ जाये, वह उस मुश्किल से आपको अवश्य बाहर निकालेगा.
- जब भी संभव को दूसरों की मदद करें
- जब कोई आपकी मदद करे, तो उसके प्रति अपनी कृतज्ञता अवश्य प्रकट करें.
- दूसरों की मदद पर सदा के लिए निर्भर न हो जायें. सीखें, अपनी कला को निखारें, मेहनत करें और सफ़लता आपके कदम चूमेगी.
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