चार ब्राहमण और शेर की कहानी : पंचतंत्र ~ अपरीक्षितकारक | Four Brahmins And The Lion Panchatantra Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम चार ब्राहमण और शेर – पंचतंत्र की कहानी (Four Brahmins And The Lion Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. ये कहानी पंचतंत्र के ५वें  तंत्र अपरीक्षितकारक से ली गई है. चार ब्राह्मण पुत्रों की इस कहानी में विद्या और बुद्धि की तुलना की गई है और बताया गया है कि विद्या बड़ी है या बुद्धि

Four Brahmins And The Lion Story In Hindi

Four Brahmins And The Lion Panchatantra Story In Hindi
Four Brahmins And The Lion Panchatantra Story In Hindi

 

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एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था. उसके चार पुत्र थे. तीनों बड़े ब्राह्मण पुत्रों द्वारा शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया गया था, परन्तु बुद्धि की उनमें कमी थी. चौथे ब्राह्मण पुत्र को शास्त्र-ज्ञान नहीं था, परन्तु वह बुद्धिमान था.

एक दिन चारों भाई भविष्य की चर्चा करने लगे. बड़ा भाई बोला, “हमने इतनी विद्या अर्जित की है. किंतु, जब तक इसका उपयोग न किया जाये, यह व्यर्थ है. सुना है, हमारे राज्य के राजा विद्वानों का बड़ा सम्मान करते हैं. क्यों न हम राज-दरबार जाकर उन्हें अपने ज्ञान से प्रभावित करें? पुरूस्कार स्वरुप वह अवश्य हमें अपार धन-संपदा प्रदान करेंगे.”

सभी भाइयों को यह बात उचित प्रतीत हुई और अगले ही दिन वे राजा से मिलने चल पड़े. उन्होंने आधा रास्ता ही पार किया था कि बड़ा भाई कुछ सोचते हुए बोला, “हममें से तीन के पास विद्या है. हम राजा के पास जाकर उनसे धन अर्जित करने के पात्र हैं. किंतु, सबसे छोटा बुद्धिमान तो है, पर उसके पास विद्या नहीं है. मात्र बुद्धि के बल पर राजा से धन का अर्जन संभव नहीं है. हम इसे अपने हिस्से में से कुछ नहीं देंगे. इसका घर लौट जाना ही उचित होगा.”

दूसरे भाई ने भी बड़े भाई का समर्थन किया, किंतु तीसरा भाई बोला, “यह हमारा भाई है. हम सब साथ पले-बढ़े हैं. इसलिए इसके साथ ऐसा व्यवहार अनुचित होगा. इसे साथ चलने देना चाहिए. मैं अपना कुछ धन इसे दे दूंगा.”

अंत में, सभी सहमत हो और आगे की यात्रा प्रारंभ की.

मार्ग में एक घना जंगल पड़ा. जंगल से गुजरते हुए उन्हें शेर की हड्डियों का ढेर दिखाई पड़ा. उसे देखकर बड़ा भाई बोला, “भाइयों, आज अपनी विद्या का परीक्षण करने का समय आ गया है. देखो, इस मृत शेर को. हमें अपनी-अपनी विद्या का प्रयोग कर इसे जीवित करना चाहिए.”

सबसे बड़े भाई ने शेर की हड्डियों को इकट्ठा कर उसका ढांचा बना दिया. दूसरे भाई ने अपनी सिद्धि से हड्डियों के ढांचे पर मांस चढ़ाकर रक्त का संचार कर दिया. तीसरा भाई अपनी विद्या से शेर में प्राणों का संचार करने आगे बढ़ा, तो चौथे भाई ने उसे रोक दिया और बोला, “भैया, कृपा कर ऐसा अनर्थ मत कीजिये. यदि यह शेर जीवित हुआ, तो हम सबके प्राण हर लेगा.”

यह सुनकर तीसरा भाई क्रोधित हो गया, वह बोला, “मूर्ख, तुम्हारे साथ चलने का समर्थन कर कदाचित् मैंने त्रुटि कर दी है. तुम चाहते हो कि मैं अपनी विद्या नष्ट कर दूं. किंतु, ऐसा कतई नहीं होगा. मैंने इस शेर को अवश्य जीवित करूंगा.”

चौथा भाई बोला, “क्षमा करें भैया. मेरा अर्थ यह कतई नहीं था. आपको जो उचित लगे करें. बस मुझे किसी वृक्ष पर चढ़ जाने दें.”

यह कहकर वह एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ गया. तीसरे भाई ने अपने विद्या से शेर को जीवित कर दिया. परन्तु, जैसे ही शेर जीवित हुआ, उसने तीनों भाइयों पर आक्रमण कर उन्हें मार डाला.

चौथा भाई, जिसने बुद्धि का प्रयोग किया था, वह वृक्ष पर बैठा यह सब देख रहा था. वह वृक्ष से तब तक नहीं उतरा, जब तब शेर चला नहीं गया. सिंह के जाने के बाद वह वृक्ष से उतरा और गाँव लौट गया.

शिक्षा (Moral of the story) 

बुद्धि सदैव विद्या से श्रेष्ठ होती है. शास्त्रों में निपुण होने पर भी लोक-व्यवहार न जानने वाला व्यक्ति हमेशा उपहास का पात्र बनता है या समस्या को आमंत्रित करता है.

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