गधे की 10 कहानियाँ | 10 Gadhe Ki Kahani

फ्रेंड्स,  गधा की कहानी (Gadhe Ki Kahani, Donkey Story In Hindi) हम इस पोस्ट में शेयर कर रहे हैं। 

Gadhe Ki Kahani

इस वेबसाइट के समस्त आर्टिकल्स/सामग्रियों का कॉपीटाइट website admin के पास है। कृपया बिना अनुमति Youtube या अन्य डिजिटल या प्रिंट मीडिया में इस्तेमाल न करें। अन्यथा कार्यवाही की जावेगी।

>

 

Gadhe Ki Kahani 

बाघ, घास और गधे की कहानी 

एक दिन की बात है। एक गधा हरे भरे मैदान से घास चरकर लौट रहा था। उसकी मुलाकात बाघ से हो गई। बाघ ने पूछा, “क्यों गधे! हरी हरी घास चर कर आ रहे हो।”

गधा तुनक कर बोला, “घास हरी नहीं नीली होती है।”

“क्या कह रहे हो गधे? घास हरी होती है।” बाघ बिगड़कर बोला।

दोनों में बहस होने लगी। कोई अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं था। काफ़ी देर बहस करने के बाद भी परिणाम न निकलता देख कर बाघ बोला, “ऐसा करते हैं जंगल के राजा शेर के पास चलते हैं। वही फैसला करेंगे कि हम दोनों में से कौन सही है और कौन गलत।”

गधा राज़ी हो गया। दोनों शेर के पास पहुंचे। शेर उस समय खा पीकर सोने की तैयारी में था। दोनों को अपने पास आया देखकर शेर ने पूछा, “क्या बात है? इस समय कैसे आना हुआ? और वो भी एक साथ!”

पढ़ें : शेर की 15 कहानियाँ 

बाघ के कुछ कहने के पहले गधा बोल पड़ा, “वनराज! बाघ कहता है घास हरी होती है, मैं कहता हूं नीली। अब आप ही फ़ैसला करें।”

शेर ने घूरकर बाघ को देखा। बाघ बोला, “वनराज! सब जानते हैं कि घास हरी होती है। ये गधा मूर्ख है।”

शेर बोला, “मूर्ख तुम हो। गधे तुम जाओ। मैं बाघ को एक साल तक मौन रहने की सज़ा देता हूं।”

खुश होकर गधा लौट गया।

दुखी बाघ बोला, “वनराज! घास हरी ही होती है। फिर भी आपने मुझे सज़ा दी।”

शेर बोला, “मैंने तुम्हें इसलिए सज़ा नहीं दी कि घास हरी होती है या नीली। घास तो हरी ही होती है। किसी के नीला कह देने से वो नीली नहीं हो जायेगी। गधा तो मूर्ख और कम अक्ल है। लेकिन तुम तो समझदार हो। फिर भी व्यर्थ की बात में उस मूर्ख से उलझकर अपना समय बर्बाद किया। उसके बाद वो व्यर्थ की बहस मेरे पास लाकर मेरा समय बर्बाद किया। ये सज़ा इसलिए है।”

बाघ ने कान पकड़े कि अब वह मूर्खों के साथ व्यर्थ की बहस में कभी नहीं उलझेगा।

सीख

मूर्खों के साथ व्यर्थ की बहस में उलझना मूर्खता है।

शेर और मूर्ख गधा की कहानी 

एक जंगल में करालकेसर नामक शेर रहता था. धूसरक नामक गीदड़ उसका सेवक था, जो उसकी सेवा-टहल किया करता था और बदले में शेर द्वारा मारे गए शिकार का अंश भोजन के रूप में प्राप्त करता था.

एक बार शेर का हाथी से सामना हो गया. दोनों अपने गर्व में चूर थे. बात बढ़ी और युद्ध तक पहुँच गई. दोनों में युद्ध हुआ, जिसमें हाथी शेर पर हावी रहा. उसने शेर को सूंड से पकड़कर उठाया और धरती पर पटक दिया. शेर के शरीर की कई हड्डियाँ टूट गई.

शेर बुरी तरह चोटिल हो चुका था. ऐसे में शिकार पर जाना उसके लिए दुष्कर था. वह दिन भर एक स्थान बैठा रहता. शिकार न कर पाने के कारण वो और उसका सेवक गीदड़ दोनों भूखे मरने लगे.

पढ़ें : लोमड़ी की कहानियां

एक दिन शेर गीदड़ से बोला, “यदि इसी तरह चला, तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारे प्राण पखेरू उड़ जायेंगे. इस समस्या का कुछ न कुछ समाधान निकालना पड़ेगा.”

“वनराज! क्या करें? आप तो शिकार पर जा नहीं सकते. मैं ठहरा आपका सेवक. मैं तो आप पर निर्भर हूँ.” गीदड़ ने उत्तर दिया.

“इस स्थिति में मेरा शिकार पर जाना संभव नहीं. लेकिन यदि कोई जानवर मेरे निकट आ गए, तो अब भी मुझमें इतनी शक्ति है कि अपने पंजे के एक वार से उसके प्राण हर सकता हूँ. तुम किसी जानवर को बहला-फुसलाकर मुझ तक ले आओ. मैं उसे मार डालूंगा और फिर हम दोनों छककर उसका मांस खायेंगे.” शेर बोला.

गीदड़ को शेर की बात जंच गई और वह शिकार की खोज में निकल पड़ा. चलते-चलते वह एक गाँव में पहुँचा. वहाँ उसने एक खेत में लम्बकर्ण नामक गधे को चरते हुए देखा. उसे देख वह सोचने लगा कि इस गधे को किसी तरह शेर के पास ले जाऊं, तो कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.

वह गधे के पास गया और स्वर में मिठास भरकर बोला, “अरे मित्र, क्या हाल बना रखा है? पहले कितने हृष्ट-पुष्ट हुआ करते थे. इतने दुबले-पतले कैसे हो गए? लगता है धोबी कुछ ज्यादा ही काम ले रहा है.”

गीदड़ ने गधे की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. गधा दु:खी स्वर में बोला, “सही समझे मित्र. मैं बड़ा दु:खी हूँ. धोबी मुझसे आवश्यकता से अधिक काम लेता है और कुछ गलती हो जाने पर खूब पीटता है. ऊपर से खाने को भी कुछ भी देता. इधर-उधर चरकर कर किसी तरह मैं अपनी भूख शांत करता हूँ. इसलिए मेरा ऐसा हाल हो गया है.”

गीदड़ ने मौके की नज़ाकत समझ ली और कहने लगा, “मैं तुम्हारा दुःख समझ सकता हूँ मित्र. वैसे तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जा सकता हूँ, जहाँ हरी घास का विशाल मैदान है. तुम वहाँ जी भर कर घास खा सकते हो.”

“ये तो बहुत अच्छी बात कही मित्र. किंतु वहाँ जंगली जानवरों का भय होगा. प्राणों पर संकट आ गया तो? मैं यहीं ठीक हूँ. जो भी प्राप्त हो रहा है. कम से कम सुरक्षित तो हूँ.” गधे ने अपनी शंका जताई.

“अरे मित्र, क्या बात कर रहे हो? मेरे होते हुए तुम्हें किस बात का भय? वह पूरा क्षेत्र मेरे अधीन है. वहाँ कोई तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकता. तुम निर्भय होकर वहाँ के घास के मैदानों में चर सकते हो. और एक बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया. वहाँ तीन गर्दभ कन्यायें भी रहती हैं, जो अपने लिए वर की खोज में हैं. संभवतः, वहाँ तुम्हारी बात भी बन जाये.” गीदड़ उसे फुसलाते हुए बोला.

गधा उसकी बातों में आकर उसके साथ चलने को तैयार हो गया. गीदड़ उसे लेकर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ शेर बैठा हुआ था. गीदड़ को गधे के साथ आते हुए देख शेर ख़ुश हो गया और अपनी सारी शक्ति जुटाकर उठ खड़ा हुआ, ताकि गधे का शिकार कर सके.

इधर गधे ने जैसे ही शेर को उठते हुए देखा, वह वहाँ से भाग गया. शेर में इतनी शक्ति ही नहीं थी कि वह उसका पीछा कर सके. गीदड़ को शेर पर बहुत क्रोध आया कि हाथ में आया शिकार उसने यूं ही जाने दिया.

वह बोला, “वनराज, अब मुझे समझ में आया कि हाथी ने आपको युद्ध में पटकनी कैसे दी? आप में तो गधे का शिकार करने का भी सामर्थ्य नहीं है. हाथी तो फ़िर अति बलवान था.”

पढ़ें : बकरी की कहानियां 

शेर लज्जित होकर बोला, “क्या करूं? मैं झपट्टा मारता, उसके पहले ही वह भाग गया. मेरे पंजे का एक वार भी लग जाता, तो वह बचकर नहीं जा पाता. तुम उसे किसी तरह एक बार फिर ले आओ. अबकी बार मैं उसे दबोच ही लूँगा.”

“उसे दोबारा लाना बहुत कठिन है. फिर भी मैं यत्न करूंगा. किंतु, इस बार वह आये, तो बचके जाने ना पाए.” गीदड़ बोला.

फ़िर वह गधे की तलाश में निकला पड़ा. कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि गधा एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहा है. वह उसेक पास गया और बोला, “क्या हुआ मित्र. तुम वहाँ से क्यों भाग आये?”

“अच्छी बात कर रहे हो तुम. तुम मुझे किस भयानक जीव के पास ले गए थे, जो मुझे देखते साथ मेरे पीछे भागा था. आज तो मुझे मौत सामने दिखाई पड़ रही थी. पूरा जोर लगाकर भागा न होता, तो अभी तुमसे बात न कर रहा होता.” गधा हांफते हुए बोला.

गीदड़ ने फिर से अपना पासा फेंका, “अरे तुमने ध्यान नहीं दिया. वो एक गर्दभी कन्या थी. तुम्हें देख वह उतावली हो गई और तुम्हारे पास आने लगी. किंतु, तुम तो ऐसे भागे की नज़रों से ओझल ही हो गये. अब वो तुमसे पुनः मिलने की आस में बैठी है. मुझे तुम्हें लाने के लिए भेजा है. वो तुमसे मिलना चाहती थी. कदाचित्, वह तुम्हारे प्रेम में पड़ गई है. तुम्हें भी उससे मिलना चाहिए. उसे इस तरह सताना उचित नहीं.”

गधा फिर गीदड़ की बातों में आ गया और उसके साथ फिर जंगल की ओर चल पड़ा. शेर वहाँ घात लगाये बैठा था. इस बार उसने गलती नहीं की. जैसे ही गधा उसके निकट आया, उसके अपने पंजे का शक्तिशाली वार किया और गधे के प्राण हर लिए.

गीदड़ और शेर के भोजन का प्रबंध हो चुका था. दोनों बहुत खुश थे. शेर गीदड़ से बोला, “मैं नदी में स्नान कर आता हूँ, तुम तब तक इसकी निगरानी करो.”

गीदड़ गधे के शव की निगरानी करने लगा. शेर नदी की ओर चला गया. उधर शेर स्नान करने में समय ग्गाया रहा था और इधर गीदड़ भूख से व्याकुल हो रहा था. आखिर, उससे रहा न गया और उसने गधे का कान और दिमाग खा लिया.

शेर जब स्नान कर लौटा, तो गधे के कान और दिमाग को गायब देख गीदड़ पर क्रुद्ध हो गया, “लोभी, मैंने तुझे निगरानी के लिए यहाँ छोड़ा था. किंतु, तुझसे मेरी प्रतीक्षा भी नहीं हुई. तूने इसे जूठा कर दिया. अब क्या मैं तेरी जूठन खाऊँ?”

गीदड बोला, “वनराज, आप गलत ना समझें. इस गधे के कान और दिमाग तो थे ही नहीं. होते तो क्या ये एक बार मौत के मुँह से बचने के बाद दोबारा वापस आता.”

शेर को गीदड़ की बात ठीक लगी. फ़िर क्या था? दोनों ने छककर गधे का मांस खाया और अपनी भूख मिटाई.

शिक्षा

१. किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए.

२. लोभ नहीं करना चाहिए.

गधा, लोमड़ी और शेर की कहानी

एक बार जंगल में रहने वाली चालाक लोमड़ी की मुलाकात सीधे-सादे गधे से हुई. उसने गधे के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखा. गधे का कोई मित्र नहीं था. उसने लोमड़ी की मित्रता स्वीकार कर ली. दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि वे सदा एक-दूसरे की सहायता करेंगे.

उस दिन के बाद से दोनों अपना अधिकांश समय एक-दूसरे के साथ गुजारने लगे. वे जंगल में घूमा करते, घंटों एक-दूसरे से बातें किया करते थे. गधा लोमड़ी का साथ पाकर बहुत ख़ुश था.

एक दिन दोनों जंगल के तालाब किनारे बातें कर रहे थे. तभी वहाँ जंगल का राजा शेर पानी पीने आया. उसने जब गधे को देखा, तो उसके मुँह में पानी आ गया.

लोमड़ी को शेर की मंशा भांपते देर नहीं लगी. वह सोचने लगी कि क्यों न शेर से एक समझौता किया जाए. मैं उसे गधे को मारने में सहायता करूंगी. इस तरह मेरे भोजन की भी व्यवस्था को जायेगी.

वह शेर के पास गई और मधुर स्वर में बोली, वनराज! यदि आप उस गधे का मांस खाना चाहते हैं, तो आपकी सहायता कर सकती हूँ. बस आप मुझे वचन दें कि आप मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे और थोड़ा मांस मुझे भी दे देंगे.”

शेर भला सामने से आ रहे प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार करता? वह मान गया. अगले दिन योजना अनुसार लोमड़ी गधे को भोजन ढूंढने के बहाने जंगल में एक ऐसे स्थान पर ले गई, जहाँ एक गहरा गड्ढा था.

पढ़ें : हाथी की कहानी 

लोमड़ी की बातों में उलझे गधे की दृष्टि गड्ढे पर नहीं पड़ी और वह उसमें गिर पड़ा. लोमड़ी ने तुरंत पेड़ के पीछे छुपे शेर को इशारा कर दिया. शेर भी इसी अवसर की ताक में था.

उसने पहले लोमड़ी पर हमला किया और उसे मारकर छककर उसका मांस खाया. बाद में उसने गधे को मारकर उसके मांस की दावत उड़ाई.

शिक्षा

मित्र को धोखा देने वाले का परिणाम बुरा होता है।

बेचारा गधा की कहानी

बहुत समय पहले की बात है. एक गाँव में एक धोबी रहता था. धोबी ने घर की रखवाली के लिए एक कुत्ता पाला हुआ था. उसके पास एक गधा भी था, जिस पर कपड़े लादकर वह नदी तक ले जाया करता था.

एक रात जब धोबी गहरी नींद में सो रहा था, तब एक चोर घर में घुस आया. घर के बाहर बंधा गधा जाग रहा था. उसने चोर को घर में घुसते हुए देख लिया. लेकिन घर की रखवाली के लिए रखा गये कुत्ते को चोर की भनक नहीं लगी. वह बेसुध होकर सो रहा था. गधा पैर मारकर कुत्ते को जगाने लगा, “जागो भाई….घर में चोर घुस आया है.”

कुत्ता की नींद टूट गई, तो वह चिड़चिड़ाकर बोला, “इससे मुझे क्या? मेरी नींद ख़राब मत कर.” और वह दूसरी तरफ़ मुँह करके सो गया.

कुत्ते की दो टूक बात सुनकर गधा हैरान रह गया. वह डांटते हुए बोला, “तुम्हारा काम घर की रखवाली करना है और तुम सो रहे हो. तुम्हें इसी समय भौंककर मालिक को जगाना चाहिए और चोर को भी भगाना चाहिए.”

गधे की डांट का कुत्ते पर कोई असर नहीं हुआ. वह तुनककर बोला, “अब तू मुझे मेरा काम सिखाएगा. मैं अपना काम जानता हूँ. तू अपने काम से मतलब रख. वैसे भी पिछले कुछ दिनों से मालिक से मुझे ढंग से कुछ खाने को नहीं दे रहा है. तो मैं उसके घर की रखवाली क्यों करूं?”

“ये शिकायत करने का समय नहीं है भाई. शिकायत बाद में कर लेना. अभी अपनी ज़िम्मेदारी निभाओ. तुरंत उठो और जाकर मालिक को जगाओ. नहीं तो चोर चोरी करके भाग जायेगा.” गधे के फिर से कुत्ते को समझाने का प्रयास किया.

“तो उसे भागने दो. मुझे भूखा रखने का मालिक को भी तो कुछ सबक मिलना चाहिए.” यह कहकर कुत्ता फिर से सो गया.

गधे को कुत्ते पर बहुत गुस्सा आया. उसे समझ आ गया था कि स्वार्थी और लापरवाह कुत्ते को जगाने का कोई लाभ नहीं. उसने सोचा कि उसे खुद ही शोर मचाकर मालिक को जगा देना चाहिए और वह जोर-जोर से रेंकने लगा.

गधे के रेंकने की आवाज़ जब चोर के कानों में पड़ी, तो वह एक अंधेरे कोने में छुप गया. इधर मालिक भी गधे के शोर से जाग गया. उसने घर के चारों ओर नज़र डाली, तो उसे कोई अनहोनी दिखाई नहीं दी. वह अंधेरे कोने में छुपे चोर को नहीं देख पाया.

आधी रात में उसकी नींद ख़राब करने की वजह से मालिक को गधे पर बहुत गुस्सा आया. वह घर के बाहर गया और एक लकड़ी लेकर गधे की धुनाई करने लगा. इधर चोर अवसर पाकर वहाँ से भाग गया. कुत्ता मज़े से सोता रहा और गधा मार खाकर बेदम हो गया. उसे समझ में आ गया कि अपना काम छोड़कर दूसरे के काम में टांग अड़ाने का क्या नतीज़ा होता है.

सीख

अपने काम से काम रखो।

गधा और भेड़िया की कहानी

जंगल के पास एक घास का मैदान था। एक मोटा ताज़ा गधा रोज़ वहाँ हरी घास चरने आया करता था।

एक दिन वह बड़े मज़े से घास के मैदान में चर रहा था। तभी जंगल से एक भेड़िया वहाँ आ गया। वह शिकार की तलाश में निकला था। उसे बड़े जोरों की भूख लगी थी। गधे को देख वह बड़ा खुश हुआ और सोचने लगा – ‘इस गधे का शिकार कर कई दिनों के भोजन का बंदोबस्त हो जायेगा।‘

वह अवसर की ताक में एक पेड़ के पीछे छिप गया और गधे पर नज़र रखने लगा। घास चरते गधे ने उसे देख लिया था और वह समझ गया था कि भेड़िया उसे मारने की फ़िराक़ में है।

वह यह सोच ही रहा था कि भेड़िया उसकी ओर आने लगा। जान बचाने के लिए गधे ने एक युक्ति लगाई और वह लंगड़ाकर चलने लगा।

उसे यूं लंगड़ाकर चलते देख भेड़िये ने पूछा, “क्यों? क्या बात है? तुम यूं लंगड़ा कर क्यों चल रहे हो?”

“क्या बताऊं भेड़िये भाई? मेरे पैर में कांटा चुभ गया है। बड़ा दर्द हो रहा है। इसलिए यूं लंगड़ाकर चल रहा हूँ। क्या तुम ये कांटा निकाल दोगे?”

“मैं?” भेड़िया चकित होकर बोला।

पढ़ें : भेड़िया की कहानी 

“मैं जानता हूँ भेड़िये भाई! तुम मुझे खाने के बारे में सोच रहे हो। मगर जब तुम मुझे खाओगे, तब ये कांटा तुम्हारे गले में अटक सकता है। इसलिए इसे निकालना जरूरी है।”

भेड़िये ने सोचा – ‘गधा सही कह रहा है। खाते समय मैं बेकार की मुसीबत क्यों मोल लूं? इसका कांटा निकाल ही देता हूँ। फिर इसे मारकर मज़े से खाऊंगा।‘

वह बोला, “जरा दिखाओ तो, तुम्हें कहाँ कांटा चुभा है?”

गधे ने अपना पैर उठा दिया। भेड़िया उसके पैर के पास गया और कांटे को ढूंढने लगा। जब गधे ने देखा कि भेड़िये का ध्यान पूरी तरह से उसके पैर पर है, तो उसने एक ज़ोरदार दुलत्ती उसको मार दी।

भेड़िया दूर फिंका गया। उसका सिर चकरा गया था। उसे दिन में तारे नज़र आ गए। जब वह संभला और उठा, तो देखा कि गधा उसकी पहुँच से बहुत दूर भाग चुका है।

इस तरह अपनी सूझबूझ से गधे ने अपनी जान बचाई। भेड़िया सोचने लगा – जो काम मेरा नहीं बल्कि वैद्य का था अर्थात् कांटा निकालने का काम, उसे करने के चक्कर में मैंने दुलत्ती भी खाई और अपने शिकार से हाथ धो बैठा। आइंदा से उस काम में कभी हाथ नहीं डालूंगा, जो मुझे नहीं आता।

सीख 

  • विपत्ति के समय सूझबूझ से काम लें।
  • जो काम अपना नहीं है, उसमें जबरदस्ती दखल न दें। अन्यथा लेने के देने पड़ जायेंगे।

घोड़ा और गधा की कहानी

एक गाँव में एक धोबी रहता था. उसके पास एक गधा और एक घोड़ा था. धोबी जब भी नदी पर कपड़े धोने जाता, तो गठरी में कपड़े बांधकर गधे की पीठ पर लाद देता. घोड़े का इस्तेमाल वह सवारी करने के लिए किया करता था.

रोज़ की तरह एक दिन धोबी कपड़े धोने नदी की ओर जा रहा था. कपड़े की गठरी गधे की पीठ पर लदी हुई थी. उस दिन कपड़े अधिक होने के कारण गठरी बहुत भारी था. जिसके बोझ से कुछ ही दूर चलकर गधा थक गया.

उस दिन साथ में घोड़ा भी था. गधे ने मदद मांगते हुए घोड़े से कहा, “घोड़े भाई! ज़रा मेरी मदद कर दो. कपड़े की गठरी बहुत भारी हैं. तुम भी थोड़ा बोझ उठा लो. इस तरह बोझ आधा-आधा बंट जायेगा.”

घोड़ा घमंडी था. वह बोला, “ये क्या कह रहे हो तुम? मैं घोड़ा हूँ और तुम गधे. मेरा काम सवारी ले जाना है और तुम्हारा काम बोझ ढोना. इसलिए तुम अपना काम ख़ुद करो. उसे मेरे सिर पर मत डालो.”

पढ़ें : थ्री लिटिल पिग्स स्टोरी 

घोड़े के दो टूक जवाब से गधा उदास हो गया. पर क्या करता? बोझ उठाये चलता रहा. लेकिन कुछ दूर और चलने के बाद उससे आगे चला न गया. वह निढाल होकर गिर पड़ा.

धोबी ने जब गधे को हालत देखी, तो उसे उस पर दया आ गई. उसे लगा कि इतना सारा बोझ उसे गधे पर नहीं लादना चाहिए था. उसने गधे को उठाकर खड़ा किया और कपड़ों की गठरी घोड़े की पीठ पर रख दी.

अब गधा बिना किसी बोझ के चल रहा था और घोड़ा पूरा बोझ उठाये चल रहा था. पूरे रास्ते घोड़ा सोचता रहा, ‘काश मैंने गधे की बात मान ली होती और आधा बोझ बांट लिया होता. तो अभी मैं पूरा बोझ उठाये अकेला नहीं चल रहा होता.’

उस दिन घोड़े ने तय किया कि हमेशा अपने साथियों की और ज़रुरतमंदों की मदद करेगा.

सीख 

हमेशा दूसरों की ज़रूरत के समय उनकी मदद करनी चाहिए.

शेर की खाल में गधा कहानी

एक गाँव में शुद्धपट नामक धोबी रहता था. उसके पास एक गधा था. वह गधे से दिन भर बोझ लदवाता था. परन्तु, निर्धनता के कारण उसके खाने-पीने की व्यवस्था नहीं कर पाता था. गधा इधर-उधर घास चरकर अपना पेट भरा करता था.

एक दिन जंगल में धोबी को एक मरे हुए शेर की खाल मिली. उसे देख धोबी ने सोचा कि यदि मैं यह खाल अपने गधे को ओढ़ा दूं, तो लोग इसे शेर समझकर डरेंगे और इसे नहीं भगायेंगे. इस प्रकार यह बिना किसी बाधा के आराम से किसी के भी खेत में घास चर सकेगा.

उसने शेर की खाल उठा ली. उसके बाद से हर रात वह अपने गधे को शेर की खाल ओढ़ाकर गाँव के खेत में छोड़ने लगा. शेर की खाल में गधे को लोग शेर समझते और डर के मारे उससे दूर भागते थे. गधा मज़े से रात पर खेत में घास चरकर सुबह घर आ जाता था. गधा भी ख़ुश था और धोबी भी. दोनों के दिन बड़े मज़े से बीत रहे थे.

पढ़ें : वानरराज का बदला पंचतंत्र की कहानी

एक रात गधा हमेशा की तरह शेर की खाल ओढ़कर एक खेत में घास चरने घुसा. वह मज़े से घास चर रहा था कि कहीं से उसे किसी अन्य गधे के रेंकने की आवाज़ सुनाई पड़ी. उसका मन भी रेंकने को मचल उठा और सब कुछ भूलकर वह रेंकने में रम गया.

उसका रेंकना सुन खेत का मालिक सारी बात समझ गया. फिर उसने गधे को इतना पीटा कि वह मर ही गया. इस प्रकार धूर्त आचरण के कारण गधे को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा और धोबी को अपने गधे से.

सीख 

बाह्य वेश बदल लेने से किसी का मूल स्वभाव नहीं बदल जाता।

गाने वाला गधा की कहानी 

गाँव में रहने वाले एक धोबी के पास उद्धत नामक एक गधा (Donkey) था. धोबी गधे से काम तो दिन भर लेता, किंतु खाने को कुछ नहीं देता था. हाँ, रात्रि के पहर वह उसे खुला अवश्य छोड़ देता था, ताकि इधर-उधर घूमकर वह कुछ खा सके. गधा रात भर खाने की तलाश में भटकता रहता और धोबी की मार के डर से सुबह-सुबह घर वापस आ जाया करता था.

एक रात खाने के लिए भटकते-भटकते गधे की भेंट एक सियार से हो गई. सियार ने गधे से पूछा, “मित्र! इतनी रात गए कहाँ भटक रहे हो?”

सियार के इस प्रश्न पर गधा उदास हो गया. उसने सियार को अपने व्यथा सुनाई, “मित्र! मैं  दिन भर अपनी पीठ पर कपड़े लादकर घूमता हूँ. दिन भर की मेहनत के बाद भी धोबी मुझे खाने को कुछ नहीं देता. इसलिए मैं रात में खाने की तलाश में निकलता हूँ. आज मेरी किस्मत ख़राब है. मुझे खाने को कुछ भी नसीब नहीं हुआ. मैं इस जीवन से तंग आ चुका हूँ.”

गधे की व्यथा सुनकर सियार को तरस आ गया. वह उसे सब्जियों के एक खेत में ले गया. ढेर सारी सब्जियाँ देखकर गधा बहुत ख़ुश हुआ. उसने वहाँ पेट भर कर सब्जियाँ खाई और सियार को धन्यवाद देकर वापस धोबी के पास आ गया. उस दिन के बाद से गधा और सियार रात में  सब्जियों के उस खेत में मिलने लगे. गधा छककर ककड़ी, गोभी, मूली, शलजम जैसी कई सब्जियों का स्वाद लेता. धीरे-धीरे उसका शरीर भरने लगा और वह मोटा-ताज़ा हो गया. अब वह अपना दुःख भूलकर मज़े में रहने लगा.

पढ़ें : मगरमच्छ और बंदर की कहानी 

एक रात पेट भर सब्जियाँ खाने के बाद गधे मदमस्त हो गया. वह स्वयं को संगीत का बहुत बड़ा ज्ञाता समझता था. उसका मन गाना गाने मचल उठा. उसने सियार से कहा, “मित्र! आज मैं बहुत ख़ुश हूँ. इस खुशी को मैं गाना गाकर व्यक्त करना चाहता हूँ. तुम बताओ कि मैं कौन सा आलाप लूं?”

गधे की बात सुनकर सियार बोला, “मित्र! क्या तुम भूल गए कि हम यहाँ चोरी-छुपे घुसे हैं. तुम्हारी आवाज़ बहुत कर्कश है. यह आवाज़ खेत के रखवाले ने सुन ली और वह यहाँ आ गया, तो हमारी खैर नहीं. बेमौत मारे जायेंगे. मेरी बात मानो, यहाँ से चलो.”

गधे को सियार की बात बुरी लग गई. वह मुँह बनाकर बोला, “तुम जंगल में रहने वाले जंगली हो. तुम्हें संगीत का क्या ज्ञान? मैं संगीत के सातों सुरों का ज्ञाता हूँ. तुम अज्ञानी मेरी आवाज़ को कर्कश कैसे कह सकते हो? मैं अभी सिद्ध करता हूँ कि मेरी आवाज़ कितनी मधुर है.”

सियार समझ गया कि गधे को समझाना असंभव है. वह बोला, “मुझे क्षमा कर दो मित्र. मैं तुम्हारे संगीत के ज्ञान को समझ नहीं पाया. तुम यहाँ गाना गाओ. मैं बाहर खड़ा होकर रखवाली करता हूँ. ख़तरा भांपकर मैं तुम्हें आगाह कर दूंगा.”

इतना कहकर सियार बाहर जाकर एक पेड़ के पीछे छुप गया. गधा खेत के बीचों-बीच खड़ा होकर अपनी कर्कश आवाज़ में रेंकने लगा. उसके रेंकने की आवाज़ जब खेत के रखवाले के कानों में पड़ी, तो वह भागा-भागा खेत की ओर आने लगा.

सियार ने जब उसे खेत की ओर आते देखा, तो गधे को चेताने का प्रयास किया. लेकिन रेंकने में मस्त गधे ने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया. सियार क्या करता? वह अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया. इधर खेत के रखवाले ने जब गधे को अपने खेत में रेंकते हुए देखा, तो उसे दबोचकर उसकी जमकर धुनाई की. गधे के संगीत का भूत उतर गया और वह पछताने लगा कि उसने अपने मित्र सियार की बात क्यों नहीं मानी.

सीख

अपने अभिमान में मित्र के उचित परामर्श को न मानना संकट को बुलावा देना है.

कुएं में गिरा गधा कहानी

एक किसान के पास एक गधा था. वह काफ़ी बूढ़ा हो चुका था. एक दिन वह चरने के लिए पास ही खेत में गया और असावधानी के कारण एक सूखे कुएं में गिर पड़ा. जैसे ही वह कुएं में गिरा, डर के मारे जोर-जोर से रेंकने लगा. उसके रेंकने की आवाज़ जब किसान ने सुनी, तो वह दौड़ा-दौड़ा खेत के उस कुएं के पास आया.

वहाँ उसने देखा कि उसका गधा कुएं में गिरा हुआ है. उसने उसे कुएं से बाहर निकालने का बहुत प्रयास किया. किंतु सब व्यर्थ रहा. अंत में थक-हार कर उसने सोचा कि इस गधे को कुएं से बाहर निकालने का प्रयास निरर्थक है. वैसे भी यह गधा बूढ़ा हो चुका है, इसलिए मिट्टी डालकर इसे कुएं में ही दफना दिया जाना उचित होगा.

वह गांव गया और वहाँ से कुछ आदमियों को कुएं में मिट्टी डालने के लिए बुला लाया. हाथ में फावड़ा लिए वे आदमी कुएं पर पहुँचे और फावड़े से मिट्टी उठाकर कुएं में डालने लगे.

जब गधे के ऊपर मिट्टी गिरने लगी, तो वह समझ गया कि क्या होने वाला है और वह बुरी तरह रेंकने लगा. किसान ने जब उसे देखा, तो उस पर उसे दया भी आई. लेकिन अब वह क्या कर सकता था? कुएं से बाहर न निकाल पाने के कारण उसने तो गधे को वहीं दफ्न करने का नाम बना लिया था. लोगों का कुएं में मिट्टी डालना जारी रहा.

पढ़ें : अंतिम दौड़ परोपकार पर प्रेरणादायक कहानी

इधर कुछ देर तो गधा बुरी तरह रेंकता रहा, लेकिन फिर न जाने क्या हुआ कि वह शांत हो गया. किसान को उसके शांत होने पर हैरत हुई और उसने कुएं में झांककर देखा. कुएं में हो रहा था, उसने उसे और हैरत में डाल दिया.

लोग कुएं में मिट्टी डालते और जब वह मिट्टी गधे पर गिरती, तो वह उसे झटककर गिरा देता और जमा मिट्टी के ढेर पर चढ़ जाता. हर बार वह ऐसा ही करता. लोगों का कुएं में मिट्टी डालना जारी रहा और गधे का मिट्टी को झटककर मिट्टी के ढेर पर चढ़ना जारी रहा.

कुछ ही देर में कुवां मिट्टी से भर गया और गधा बाहर आ गया.   

सीख 

दोस्तों, ज़िंदगी भी विभिन्न समस्याओं के रूप में हम पर मिट्टी फेंकती है. यदि हम उनसे डर गए और हार मानकार बिना कुछ करे बस परेशान होते रहे या रोते रहे, तो उस मिट्टी के नीचे ही दफ्न हो जायेंगे. इसलिए जब जीवन में समस्यायें आये, तो उनसे डरे नहीं. सकारात्मक रहकर उनका सामना करें. उनका निराकरण करने का प्रयास करें और जीवन में एक-एक कदम आगे बढ़ते जायें. कोई भी समस्या स्थायी नहीं होती. उनका हिम्मत से सामना करें. कुछ समय बाद आप देखेंगे कि वहीं समस्याएं आपके जीवन में मील का पत्थर साबित होंगी।

जादुई गधा की कहानी 

एक बार बादशाह अकबर ने बेगम साहिबा के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें एक बेशकीमती हार दिया. बादशाह अकबर का उपहार होने के कारण बेगम साहिबा को वह हार अतिप्रिय था. उन्होंने उसे बहुत संभालकर एक संदूक में रखा था.

एक दिन श्रृंगार करते समय जब हार निकालने के लिए बेगम साहिबा ने संदूक खोला, तो उन्होंने वह नदारत पाया.

घबराते हुए वो फ़ौरन अकबर के पास पहुँची और उन्हें अपना बेशकीमती हार खो जाने की जानकारी थी. अकबर ने उन्हें वह हार कक्ष में अच्छी तरह ढूंढने को कहा. लेकिन वह हार नहीं मिला. अब अकबर और बेगम साहिबा को यकीन हो गया कि हो न हो, उस शाही हार की चोरी हो गई है.

अकबर ने तुरंत बीरबल को बुलवा भेजा और सारी बात बताकर शाही  हार खोजने की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी.

बीरबल ने बिना देर किये राजमहल के सभी सेवक-सेविकाओं को दरबार में हाज़िर होने का फ़रमान ज़ारी करवा दिया.

पढ़ें : हरे रंग का घोड़ा अकबर बीरबल

कुछ ही देर में दरबार लग चुका था. अकबर अपनी बेगम साहिबा के साथ शाही तख़्त पर विराजमान थे. सभी सेवक-सेविकायें दरबार में हाज़िर थे. बस बीरबल नदारत था.

सब बीरबल के आने का इंतज़ार करने लगे. लेकिन दो घंटे बीत जाने पर भी बीरबल नहीं आया. बीरबल की इस हरक़त पर अकबर आग-बबूला होने लगे.

दरबार में बैठने का कोई औचित्य न देख वे बेगम साहिबा के साथ उठकर वहाँ से जाने लगे. ठीक उसी वक़्त बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया. उसके साथ एक गधा भी था.

विलंब के लिए अकबर से माफ़ी मांगते हुए वह बोला, “जहाँपनाह! माफ़ कीजियेगा. इस गधे को खोजने में मुझे समय लग गया.”

सबकी समझ के परे था कि बीरबल अपने साथ वो गधा दरबार में लेकर क्यों आया है?

बीरबल सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोला, “ये कोई साधारण गधा नहीं है. ये एक जादुई गधा है. मैं ये गधा यहाँ इसलिए लाया हूँ, ताकि ये शाही हार के चोर का नाम बता सके.”

पढ़ें : मछुआरों की समस्या प्रेरणादायक कहानी

बीरबल की बात अब भी किसी के पल्ले नहीं पड़ रही थी. बीरबल कहने लगा, “मैं इस जादुई गधे को पास ही के एक कक्ष में ले जाकर खड़ा कर रहा हूँ. एक-एक कर सभी सेवक-सेविकाओं को उस कक्ष में जाना होगा और  इस गधे की पूंछ पकड़कर जोर से चिल्लाना होगा कि उसने चोरी नहीं की है. ध्यान रहे आप सबकी आवाज़ बाहर सुनाई पड़नी चाहिए. अंत में ये गधा बताएगा कि चोर कौन है?”

बीरबल गधे को दरबार से लगे एक कक्ष में छोड़ आया और कतार बनाकर सभी सेवक-सेविका उस कक्ष में जाने लगे. सबके कक्ष में जाने के बाद बाहर ज़ोर से आवाज़ आती – “मैंने चोरी नहीं की है.”

जब सारे सेवक-सेविकाओं ने ऐसा कर लिया, तो बीरबल गधे को बाहर ले आया. अब सबकी निगाहें गधे पर थी.

लेकिन गधे को एक ओर खड़ा कर बीरबल एक विचित्र हरक़त करने लगा. वह सभी सेवक-सेविकाओं के पास जाकर उनसे हाथ आगे करने को कहता और उसे सूंघता. बादशाह अकबर और बेगम सहित सभी हैरान थे कि आखिर बीरबल ये कर क्या रहा है. तभी बीरबल एक सेवक का हाथ पकड़कर जोर से बोला, “जहाँपनाह! ये है शाही हार का चोर.”

पढ़ें : मूर्ख बगुला और नेवला पंचतंत्र की कहानी

“तुम इतने यकीन से ऐसा कैसे कह सकते हो बीरबल? क्या इस जादुई गधे ने तुम्हें इस चोर का नाम बताया है?” आश्चर्यचकित अकबर ने बीरबल से पूछा.

बीरबल बोला, “नहीं हुज़ूर! ये कोई जादुई गधा नहीं है. ये एक साधारण गधा है. मैंने बस इसकी पूंछ पर एक खास किस्म का इत्र लगा दिया था. जब सारे सेवक-सेविकाओं ने इसकी पूंछ पकड़ी, तो उनके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू आ गई. लेकिन इस चोर ने डर के कारण गधे की पूंछ पकड़ी ही नहीं. वह कक्ष में जाकर बस जोर से चिल्लाकर बाहर आ गया. इसलिए इसके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू नहीं आ पाई. इससे सिद्ध होता है कि यही चोर है.”

उस चोर को दबिश देकर शाही हार बरामद कर लिया गया और उसे कठोर सजा सुनाई गई. इस बार बीरबल की अक्लमंदी की बेगम साहिबा भी कायल हो गई और उन्होंने अकबर से कहकर बीरबल को कई उपहार दिलवाए.

Friends, आपको ये ‘Gadhe Ki Kahani In Hindi‘ कैसी लगी? आप अपने comments के द्वारा हमें अवश्य बतायें. ये ‘Donkey Story In Hindi With Moral‘ पसंद आने पर Like और Share करें. ऐसी ही और Moral Stories, Motivational Stories & Kids Stories In Hindi पढ़ने के लिए हमें Subscribe कर लें. Thanks.

Leave a Comment