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गणेश जी की छोटी सी कहानी | Ganesh Ji Ki Chhoti Si Kahani

गणेश जी की छोटी सी कहानी (Ganesh Ji Ki Chhoti Si Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

Ganesh Ji Ki Chhoti Si Kahani

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Ganesh Ji Ki Chhoti Si Kahani

गणेश जी की कहानी भारतीय पौराणिक कथाओं में एक प्रसिद्ध और प्रिय कथा है। यह कहानी न केवल भगवान गणेश की महानता को दर्शाती है, बल्कि उनकी बुद्धिमत्ता, करुणा और भक्तों के प्रति स्नेह को भी प्रकट करती है। यह कथा धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न रूपों में मिलती है, लेकिन यहाँ हम इसे सरल और सहज रूप में प्रस्तुत करेंगे।

एक समय की बात है। महादेव शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास कर रहे थे। उनके पुत्र गणेश जी और कार्तिकेय भी उनके साथ थे। एक दिन, माता पार्वती ने अपने पुत्रों को अपने पास बुलाया और उन्हें एक विशेष कार्य सौंपने का विचार किया। उन्होंने कहा, “तुम दोनों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर आएगा, वो मेरी गोद में बैठेगा।”

यह सुनकर, कार्तिकेय अपने मयूर (मोर) वाहन पर सवार होकर तुरंत पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। वे अत्यंत तेज गति से उड़ान भरने लगे, ताकि जल्दी से जल्दी पृथ्वी का चक्कर लगाकर माँ के पास वापस आ सकें।

गणेश जी की सवारी छोटा सा मूषक था। उस पर पृथ्वी का जल्दी चक्कर लगा पाना असंभव था। उन्होंने थोड़ा विचार किया और अपने माता-पिता की परिक्रमा करने का निर्णय लिया। उन्होंने शिव और पार्वती के चारों ओर तीन बार घूमकर कहा, “मेरे लिए आप ही मेरी पूरी पृथ्वी हैं। आपकी परिक्रमा करना ही सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करने के समान है।”

गणेश जी की इस बुद्धिमानी को देखकर माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने गणेश जी को विजेता घोषित किया और उन्हें अपनी गोद में बिठाया। जब कार्तिकेय लौटकर आए और उन्होंने देखा कि गणेश जी को माता की गोद में बैठा देखा, तो नाराज हुए। उन्होंने कहा, “मैंने सचमुच पूरी पृथ्वी की परिक्रमा की है, फिर भी मुझे मां की गोद में बैठने का अवसर नहीं मिला!”

तब माता पार्वती ने उन्हें समझाया, “गणेश ने हमें समझाया कि माता-पिता ही पूरे संसार के बराबर हैं। उन्होंने हमारे प्रति अपनी भक्ति और आदर दिखाया है। इसीलिए वे विजेता हैं।”

कार्तिकेय को यह सुनकर अपनी नाराजगी दूर हो गई और उन्होंने अपने बड़े भाई गणेश की बुद्धिमत्ता की सराहना की। इस प्रकार, गणेश जी ने अपनी चतुराई और भक्ति से हमें यह सिखाया कि सच्ची भक्ति और बुद्धिमानी से सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।

इस कथा का सार यह है कि भगवान गणेश जी ने अपने माता-पिता के प्रति भक्ति और आदर को सर्वोपरि माना।

सीख

यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि समस्याओं का समाधान हमेशा शारीरिक शक्ति या तेजी से नहीं होता, बल्कि सही दृष्टिकोण और बुद्धिमानी से होता है। गणेश जी का यह सरल परंतु गहरा संदेश आज भी हमें प्रेरित करता है।

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