गणेश जी की कहानी खीर वाली (Ganesh Ji Ki Kahani Kheer Wali) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। ये कहानी भगवान गणेश कि अपने भक्तों पर कृपा के बारे में बताती है और उनकी भक्ति हेतु अग्रसर करती है।
Ganesh Ji Ki Kahani Kheer Wali
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एक समय की बात है, भगवान गणेश बाल रूप में चुटकी भर चावल और एक चम्मच दूध लेकर पृथ्वी लोक में भ्रमण पर निकले। वे गाँव-गाँव घूमते हुए सभी से खीर बनाने की विनती कर रहे थे, लेकिन कोई भी उनकी बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। लोग उन्हें केवल एक सामान्य बालक समझ रहे थे और उनकी बातों को अनसुना कर रहे थे।
इसी दौरान, एक गरीब बुढ़िया ने गणेश जी की आवाज सुनी और उनकी बात मानकर खीर बनाने के लिए तैयार हो गई। उसने अपने घर के छोटे से बर्तन में चावल और दूध डालकर चूल्हे पर चढ़ा दिया।
गणेश जी ने बुढ़िया से कहा, “यह बर्तन छोटा है, घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर आओ और उसमें खीर बनाओ।” बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का सबसे बड़ा भगोना चूल्हे पर चढ़ा दिया।
कुछ ही देर में एक अद्भुत चमत्कार हुआ – गणेश जी के दिए चावल और दूध से वह बड़ा भगोना खीर से भर गया। गणेश जी ने बुढ़िया से कहा, “मैं स्नान करने जा रहा हूँ, जब लौटूंगा तो खीर खाऊँगा।” यह कहकर वे वहां से चले गए।
इस बीच बुढ़िया के पोते-पोती आए और भूख लगने पर बुढ़िया ने उन्हें खीर खिला दी। बुढ़िया की एक पड़ोसन भी खीर बनते देख रही थी, उसे भी बुढ़िया ने कटोरा भरकर खीर दे दी। बुढ़िया की बहू ने भी चुपके से एक कटोरा खीर खा ली और एक कटोरा खीर छिपा दिया।
बुढ़िया ने सोचा कि इतनी खीर बच गई है, इसे क्या किया जाए। उसने फिर से गणेश जी को बुलाया और कहा, “आजा रे गणेस्या, खीर खा ले।” तभी गणेश जी वहां प्रकट हुए और बोले, “मैंने तो खीर पहले ही खा ली है।” बुढ़िया ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “तुमने कब खाई?” गणेश जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “जब तेरे पोते-पोती, पड़ोसन और बहू ने खाई, तब ही मेरा पेट भर गया।”
बुढ़िया ने यह सुनकर सोचा कि इतनी खीर अभी भी बची है, इसका क्या उपयोग किया जाए। गणेश जी ने कहा, “इस खीर को नगर में बाँट दो।” बुढ़िया ने गणेश जी के आदेश का पालन किया और नगर में खीर बाँट दी। इस बात की खबर राजा तक पहुँची और उसने बुढ़िया को अपने दरबार में बुलाया। सारा माजरा जानने के बाद, राजा ने बुढ़िया का खीर का भगोना अपने पास मंगवाया। पर जैसे ही भगोना महल में पहुंचा, उसमें कीड़े-मकोड़े और जहरीले जानवर भर गए।
यह देख राजा ने वह बर्तन वापस बुढ़िया को लौटा दिया। बुढ़िया जब बर्तन अपने घर लाई, तो वह वापस खीर से भर गया। उसने फिर गणेश जी से पूछा कि इस बची हुई खीर का क्या करें। गणेश जी ने उसे झोपड़ी के कोने में गाड़ देने को कहा।
बुढ़िया ने गणेश जी की आज्ञा का पालन किया और खीर को झोपड़ी के कोने में गाड़ दिया। रात को बुढ़िया सो गई। भगवान गणेश जी ने उसकी झोपड़ी को लात मारी और अंतर्ध्यान हो गए। अगले दिन, जब बुढ़िया उठी तो उसने देखा कि उसकी झोपड़ी एक महल में बदल गई है और खीर के बर्तन सोने और जवाहरातों से भरे हुए हैं। यह देखकर बुढ़िया अत्यंत प्रसन्न हो गई। वह गणेश जी लीला समझ गई और उनकी कृपा के लिए उनका धन्यवाद करने लगी।
सीख
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भगवान गणेश अपने भक्तों की सच्ची श्रद्धा और भक्ति को पहचानते हैं और उन्हें अपार कृपा से नवाजते हैं। बुढ़िया की निस्वार्थ सेवा और भगवान गणेश पर विश्वास ने उसे अनंत संपत्ति और खुशियों से भर दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि निस्वार्थ भाव से की गई सेवा और श्रद्धा का फल हमेशा श्रेष्ठ होता है।
पौराणिक कथा