गरीब और अमीर दोस्त की कहानी (Garib Aur Ameer Dost Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Garib Aur Ameer Dost Ki Kahani
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रामू और श्यामू बचपन के दोस्त थे। दोनों एक ही गाँव में रहते थे, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर था। रामू गरीब था, वह दिनभर मेहनत-मजदूरी करके अपनी रोजी-रोटी चलाता था। वहीं श्यामू के पास अपनी दुकान थी और अच्छी आमदनी थी। इसके चलते श्यामू के पास एक स्कूटर भी था, जो उसने हाल ही में खरीदा था।
एक दिन रामू को शहर में एक जरूरी काम से जाना था। बस की हड़ताल होने के कारण उसके पास कोई साधन नहीं था। उसने सोचा कि अगर श्यामू से स्कूटर मांग लिया जाए, तो काम आसान हो जाएगा। लेकिन जैसे ही उसने यह सोचा, उसके मन में कई तरह की शंकाएँ उत्पन्न होने लगीं।
“श्यामू को क्या कहूँगा?” रामू ने अपने मन में सोचा, “वो क्या सोचेगा कि मैं हमेशा उससे कुछ न कुछ मांगता रहता हूँ। अगर उसने मना कर दिया तो? क्या वो मुझे ताने मारेगा कि मैं हर बार उसी के पास मदद के लिए आता हूँ?”
रामू का मन और उलझता चला गया। उसने खुद से सवाल किया, “क्या मेरा आत्मसम्मान इस कदर गिर गया है कि मुझे हर बार श्यामू के सामने हाथ फैलाना पड़े? क्या होगा अगर उसने साफ मना कर दिया? क्या हमारी दोस्ती पर इसका असर पड़ेगा?”
इन विचारों में उलझते हुए, रामू ने स्कूटर मांगने का इरादा बदल दिया। उसने सोचा, “नहीं, मैं किसी तरह पैदल ही शहर चला जाऊँगा। श्यामू से कुछ मांगना ठीक नहीं। अगर उसने ना कह दिया तो मेरा मन टूट जाएगा और उसकी नज़रों में मेरी इज्जत भी कम हो जाएगी।”
लेकिन फिर, दूसरे ही पल, एक नई सोच उसके मन में आई। “श्यामू मेरा दोस्त है। हम बचपन से साथ रहे हैं। उसने कभी मुझे निराश नहीं किया। हो सकता है कि वो खुशी-खुशी मुझे स्कूटर दे दे। दोस्ती का मतलब ही तो एक-दूसरे की मदद करना है।”
रामू का मन एक बार फिर से द्वंद्व में पड़ गया। उसके मन में असमंजस था, क्या सही है और क्या गलत। इसी उधेड़बुन में वह कई घंटे बर्बाद कर चुका था, और अब समय तेजी से निकल रहा था। अंत में, उसने फैसला किया कि वह श्यामू के पास जाएगा और सीधा-सीधा उससे स्कूटर मांग लेगा, बिना किसी संकोच के।
रामू ने हिम्मत जुटाई और श्यामू के घर पहुँचा। दरवाज़े पर दस्तक दी और श्यामू बाहर आया। रामू ने थोड़ा हिचकिचाते हुए अपनी बात रखी, “श्यामू, मुझे एक जरूरी काम से शहर जाना है। क्या तुम अपना स्कूटर मुझे थोड़ी देर के लिए दे सकते हो?”
श्यामू ने बिना कोई देरी किए कहा, “अरे रामू, इसमें पूछने की क्या बात है? तुम मेरे दोस्त हो, और दोस्ती में हिसाब-किताब कैसा? स्कूटर की चाबी ले लो और आराम से काम करके लौट आओ।”
रामू के मन की सारी उलझनें एक पल में खत्म हो गईं। उसने महसूस किया कि उसकी सोच ने उसे बेवजह परेशान किया था। श्यामू ने उसे ना सिर्फ स्कूटर दिया, बल्कि उसकी मदद के लिए खुशी-खुशी आगे आया।
रामू ने सोचा, “कभी-कभी हमारी सोच हमें इतना उलझा देती है कि हम सच्चाई को भूल जाते हैं।” उसने श्यामू का धन्यवाद किया और स्कूटर लेकर शहर की ओर चल पड़ा।
इस अनुभव से रामू ने यह सीखा कि मन की सोच पर भरोसा करने से पहले सच्चाई को परखना जरूरी है, क्योंकि कभी-कभी हमारे मन की बनाई धारणाएं ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती हैं।
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