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गरीब मछुआरे की कहानी | Garib Machhuare Ki Kahani

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Garib Machhuare Ki Kahani

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Garib Machhuare Ki Kahani

किसी समय की बात है। एक छोटे से तटीय गांव में रमेश नाम का एक गरीब मछुआरा रहता था। वह बहुत ही ईमानदार और परिश्रमी व्यक्ति था, लेकिन उसकी गरीबी ने उसे कभी चैन की सांस नहीं लेने दी। रमेश का परिवार कई पीढ़ियों से मछली पकड़ने का काम करता आ रहा था, और यही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन था।

रमेश का एक छोटा सा परिवार था, जिसमें उसकी पत्नी, दो छोटे बच्चे, और उसकी बूढ़ी माँ थी। वह हर रोज़ सुबह सूरज उगने से पहले ही अपनी नाव लेकर समुद्र की ओर निकल जाता और शाम ढलने तक मछलियाँ पकड़ता रहता। लेकिन अक्सर ऐसा होता कि उसे समुंदर से बहुत कम मछलियाँ मिलतीं, जिससे उसका परिवार ठीक से पेट भरने लायक भी भोजन नहीं जुटा पाता।

रमेश की पत्नी, सीता, अपने पति के संघर्ष को समझती थी और उसे हमेशा हिम्मत देती रहती थी। लेकिन बच्चों की भूख और माँ की दवाईयों के लिए पैसे जुटाना उसके लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा था। गांव के अन्य मछुआरे भी उसकी तरह गरीब थे, लेकिन उन्होंने अपनी गरीबी से हार मानकर अपने काम में ढिलाई नहीं आने दी।

एक दिन, जब रमेश समुद्र के किनारे बैठा हुआ था, उसने सोचा कि अगर इसी तरह चलता रहा तो उसका परिवार भूखों मर जाएगा। उसने अपनी टूटी-फूटी नाव और पुराने जाल को देखा और सोचा कि इन्हीं साधनों के भरोसे वह कितनी दूर तक जा सकता है। उसे लगा कि उसे कुछ अलग करना होगा, वरना उसका जीवन यहीं खत्म हो जाएगा।

रमेश ने अपने जाल को और मजबूत करने का निश्चय किया और कुछ पैसे उधार लेकर नए जाल खरीदने का सोचा। गांव में एक बूढ़ा मछुआरा था, जो अब मछली पकड़ने के लायक नहीं रहा था, लेकिन उसने जीवनभर समुद्र में बिताए थे। रमेश उस बूढ़े मछुआरे के पास गया और उससे सलाह मांगी।

बूढ़े मछुआरे ने उसे समझाया, “बेटा, समुद्र बहुत विशाल और गहरा है। उसमें न जाने कितनी मछलियाँ और संपत्तियाँ छिपी हैं। लेकिन उन तक पहुँचने के लिए साहस और धैर्य चाहिए। अगर तुम सच्चे दिल से मेहनत करोगे तो जरूर सफल होओगे।”

रमेश ने बूढ़े मछुआरे की बातों से प्रेरित होकर समुद्र में और गहराई तक जाने का निश्चय किया। उसने अपने पास जो थोड़े से पैसे थे, उनसे एक बड़ा जाल खरीदा और अगली सुबह जल्दी उठकर समुद्र में निकल पड़ा। वह पूरे दिन समुद्र में मछलियाँ पकड़ता रहा, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। फिर भी उसने हार नहीं मानी और अगले दिन फिर से समुद्र में उतरा।

कुछ दिन बाद, जब रमेश समुद्र में गहराई तक पहुंचा, तो उसने देखा कि उसके जाल में कुछ भारी चीजें फंसी हुई हैं। जब उसने जाल को बाहर खींचा, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जाल में कई बड़ी-बड़ी मछलियाँ फंसी हुई थीं। ये मछलियाँ बहुत कीमती थीं और उन्हें बेचकर रमेश को अच्छा खासा पैसा मिल सकता था।

रमेश ने अपनी नाव को तेजी से किनारे की ओर मोड़ा और गांव में आकर मछलियाँ बेच दीं। उसे जितना पैसा मिला, वह उसकी कल्पना से परे था। उसने सोचा कि भगवान ने उसकी मेहनत का फल दिया है। उसने उन पैसों से अपने परिवार के लिए अच्छे कपड़े, खाने का सामान, और माँ की दवाइयाँ खरीदीं। उसकी पत्नी और बच्चे बहुत खुश थे, और पहली बार उनके घर में खुशियों का माहौल था।

लेकिन रमेश ने अपने इस छोटे से सफलता पर घमंड नहीं किया। उसने सोचा कि अगर वह इसी तरह मेहनत करता रहेगा, तो उसका परिवार हमेशा सुखी रहेगा। उसने अपनी नाव और जाल में सुधार किया और हर दिन और ज्यादा मेहनत करने का निश्चय किया। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और वह गांव के सबसे सफल मछुआरों में से एक बन गया।

रमेश ने अपनी सफलता से यह सीखा कि चाहे हालात कितने भी बुरे हों, अगर इंसान मेहनत और लगन से काम करता है, तो सफलता जरूर मिलती है। उसकी इस सोच ने न केवल उसके जीवन को बदल दिया, बल्कि गांव के अन्य मछुआरों को भी प्रेरित किया।

गांव के लोग अब रमेश को सम्मान की नजरों से देखने लगे थे। उसने अपने गांव के लोगों के लिए एक छोटी सी मछली बाजार की भी स्थापना की, जहां गांव के अन्य मछुआरे भी अपनी मछलियाँ बेच सकते थे। इससे गांव में खुशहाली आई और सभी का जीवन स्तर सुधर गया।

समय के साथ, रमेश ने और भी नावें खरीदीं और अपने काम को विस्तार दिया। वह अब न केवल मछलियाँ पकड़ता था, बल्कि उन्हें बाजार में बेचने के लिए भी काम करता था। उसकी मेहनत ने उसे गांव का सबसे समृद्ध व्यक्ति बना दिया। लेकिन उसने कभी अपनी जड़ों को नहीं भूला और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहा।

सीख

 कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा होती हैं, लेकिन अगर हम धैर्य और साहस के साथ उनका सामना करें, तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं।

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